Wednesday, May 4, 2016

पारसनाथ

जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की निर्वाण स्थली होने के कारण जैन धर्म के अनुयायियों  के लिए पारसनाथ पर्वत एक पवित्र तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है। यह स्थल श्री संवेद शिखर जी के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस पावन स्थल पर जैन धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में से बीस तीर्थंकरों {जैन गुरुओं } ने निर्वाण प्राप्त किया था। यह तीर्थस्थल पारसनाथ पर्वत पर स्थित है। जैन धर्म के दिगम्बर मत के अनुयायियों  का यह सिद्ध क्षेत्र माना जाता है। 

भौगोलिक स्थिति :-

भारतवर्ष के  नवनिर्मित झारखण्ड राज्य के गिरिडीह जनपद में छोटा नागपुर के पठार पर स्थित पारसनाथ की पहाड़ियों पर यह तीर्थस्थल स्थित है। हावड़ा {कलकत्ता }से १९६ मील दूर धनबाद एवं हजारीबाग के मध्य पारसनाथ रेलवे स्टेशन से १८ मील की दूरी पर अपने आँचल में पर्वतीय सौन्दर्य को समेटे हुए यह स्थल जैन धर्म के अनुयायिओं के पवित्र तीर्थ के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। गिरिडीह रेलवे स्टेशन से पर्वतीय तलहटी में स्थित मधुबन स्थान की दूरी १४ मील तथा मधुबन से ७ किलोमीटर पर्वतीय चढ़ाई चढ़कर यहां पहुंचा जा सकता है। पारसनाथ का प्रसिद्ध जैन मन्दिर लगभग १३५० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यह पर्वत झारखण्ड का सबसे ऊंचा पर्वत माना जाता है। 

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

वर्धमान महावीर के जन्म से लगभग २५० वर्ष पूर्व जैन तीर्थंकर पार्शवनाथ जी का जन्म वाराणसी    में हुआ था।  इनकी माता का नाम  वामा  देवी व पिता  इक्ष्वाकु वंश के राजा थे और इनका           विवाह कुशस्थल के राजा की पुत्री प्रभावती के साथ हुआ था। बचपन से ही पार्शवनाथ  जी का मन सांसारिक कार्यों एवं राजसी वैभव से दूर रहने लगा था। अतः ३० वर्ष की अल्पायु में ही घरबार से विरक्त होकर सन्यास ग्रहण कर लिया था। पारसनाथ पर्वत पर कठोर तपस्या एवं साधना के पश्चात एक दिन इन्हें सम्यक ज्ञान की प्राप्ति हुई और ज्ञान प्राप्ति के पश्चात जैनधर्म का प्रचार -प्रसार करने में लग गए। सत्तर वर्ष तक धर्म का प्रचार -प्रसार करते रहे और इसके पश्चात मधुवन पर्वत जो अब पारसनाथ के नाम से प्रसिद्ध है ,पर आकर १०० वर्ष की आयु पूर्ण करते हुए यहीं पर निर्वाण गति को प्राप्त हुए।  कठोर तपस्या के कारण इनके अनुयायियों  ने बाद में भगवान पार्शवनाथ जी को जिन की उपाधि से विभूषित किया। जैन धर्मशास्त्रों के अनुसार जो अपने जीवन में श्री संवेद शिखर तीर्थ की एक बार यात्रा कर लेता है वह मृत्यु के पश्चात पशुयोनि में पुनर्जन्म नहीं लेता और सीधे मुक्ति प्राप्त करता है। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

जैन धर्मग्रंथों के अनुसार श्री सम्वेद शिखर और अयोध्या इन दोनों  धार्मिक स्थलों का अस्तित्व सृष्टि के समनान्तर माना जाता है। इन स्थानों पर तीर्थंकरों एवं तपस्वी सन्तों ने कठोर तपस्या करके अपनी साधना एवं ध्यान द्वारा मोक्ष की प्राप्ति की है. अतः यही कारण है कि श्री सम्वेद शिखर की यात्रा प्रारम्भ करते ही प्रत्येक श्रद्धालु का मन इन तीर्थंकरों का स्मरण कर उनके प्रति अपार  श्रद्धा व सम्मान व्यक्त करने लगता है। पारसनाथ पर्वत पर छोटे बड़े कुल मिलाकर चौबीस मन्दिर बने हुए हैं। पारसनाथ मन्दिर यहां का प्रमुख मन्दिर है जहां देश एवं विदेश से प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु आते रहते हैं। 
भगवान पार्श्वनाथ ने अपने अनुयायिओं को चार प्रमुख व्रतों का पालन करना अनिवार्य बताया था। अहिंसा ,अस्तेय ,अचौर्य एवं अपरिग्रह इन चार व्रतों का सम्यक  अनुपालन करते हुए इसी जीवन में जीवनमुक्ति प्राप्त की जा सकती है। चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने बाद में पांचवा व्रत ब्रह्मचर्य जोड़ते हुए इस श्रृखला को आगे बढ़ाया  दिया था। यह तभी सम्भव होता है जब सभी भक्त पूर्व तीर्थंकरों का स्मरण करते हुए उनके द्वारा दिए गए उपदेशों एवं सिद्धांतों को आत्मसात कर ले। पारसनाथ परिक्षेत्र की पवित्रता औेर  सात्विकता के प्रभाव से ही यहां पर पाए जाने वाले हिंसक जंगली पशुओं जैसे शेर ,बाघ एवं चीते आदि में हिंसक प्रवृत्ति नहीं पायी जाती। अतः तीर्थयात्री निर्भय होकर यहां की धर्मयात्रा सम्पन्न कर लेते हैं। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ {ऋषभदेव }ने कैलाश पर्वत पर ,बारहवें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने चम्पापुरी में ,बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ ने गिरनार पर्वत पर और चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया था तथा शेष बीस तीर्थंकरों ने इसी स्थल श्री सम्वेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त की थी। जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर भगवान पार्शवनाथ ने भी इसी स्थल पर कठोर तपस्या और ध्यान द्वारा अन्ततः निर्वाण की प्राप्ति की थी। आज भी भगवान पार्शवनाथ की टोक इस शिखर पर विद्यमान है। जैन धर्म में तीर्थस्थल को तीर्थराज की संज्ञा दी जाती है। यह स्थल मुख्य रूप से जैन धर्म के दिगम्बर मत के अनुयायियों  का प्रमुख तीर्थस्थल है तथा इसे ही पारसनाथ पर्वत के नाम से जाना जाता है।      

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