भारत के सात पवित्र धर्मस्थल जहां पर मनुष्य को परमानन्द एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है, उस स्थल को अयोध्या ,मथुरा ,द्वारिका ,हरिद्वार ,काशी ,श्री कांचीपुरी एवं उज्जैन के रूप में जाना जाता है। इनमें से कांचीपुरी भगवान शिव एवं विष्णु को समर्पित धर्मनगरी मानी जाती है। इसके दो भाग शिव काँची व विष्णु काँची हैं। काँची इक्यावन शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्तिपीठ है क्योंकि सती का कंकाल यहां पर गिरा था। कांचीपुरी को काशी के बराबर पवित्र स्थान माना गया है और इसीलिए इसे दक्षिण की काशी कहा जाता है। समुद्रगुप्त के शिलालेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। पूर्व में यह पल्लव राजाओं की राजधानी भी रही है।इसे हरिहरात्मक पुरीभी कहते हैं।
भौगोलिक स्थिति :-
भारत के तमिलनाडु राज्य में मद्रास से ५६ किलोमीटर की दूरी पर मद्रास धनुषकोटि रेलवे लाइन पर चिंगुली पुट रेलवे स्टेशन से ३५ किलोमीटर दूरी पर कांचीपुरम जिले के अन्तर्गत वेगवती नदी के किनारे बसे हुए शहर में यह तीर्थस्थल स्थित है। यहां से एक लाइन अर्कोनम की ओर जाती है। मद्रास से कांचीपुरी ९७ किलोमीटर दूर है और चेन्नई से दक्षिण पश्चिम में है। इस शहर का मुख्य भाग शिवकांची में ही आता है और विष्णुकांची में शहर का थोड़ा सा भाग आता है। यह कांचीपुरम रेलवे स्टेशन से मात्र ५ किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ स्थित सर्व तीर्थसरोवर रेलवे स्टेशन से आधा किलोमीटर है जो शिवकांची क्षेत्र में पड़ता है। सर्वतीर्थ सरोवर के किनारे कतिपय छोटे छोटे मंदिर बने हुए हैं किन्तु एक मंदिर इसके मध्य में भी बना हुआ है। यहां का निकटतम हवाई अड्डा चेन्नई है जो ७५ किलोमीटर की दूरी पर है। कांचीपुरम का रेलवे स्टेशन चेन्नई ,चेंगलपट्टू तिरुपति और बेंगलौर से जुड़ा है। यह तमिलनाडु के सभी शहरों से सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
कांचीपुरम अपने मंदिरों एवं रेशमी साड़ियों के उद्द्योग के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहां स्थित वरदराज पेरुमल मंदिर भगवान विष्णु के लिए एवं भगवान शिव के पांच रूपों में से एक को समर्पित एकाम्बर नाथ मंदिर ,कामाक्षी ,अम्मा मंदिर, कुमरकोट्टम ,कचछपेश्वर मंदिर एवं कैलाश नाथ मंदिर स्थित हैं। यहां पर हजारों छोटे बड़े मंदिर बने हुए हैं। इन मंदिरों में से अधिकांश मंदिरों को आठवीं शताब्दी में पल्लव राजाओं ने बनवाया था। ६४० ई में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां पर आया था और इसका विस्तारपूर्वक वर्णन करते हुए उसने बताया था कि उस समय यह ८ -१० किलोमीटर के परिक्षेत्र में फैला हुआ था। यहां पर कई जैन एवं बौद्ध मंदिर भी बने हुए हैं। बौद्ध आचार्य धर्मपाल की यह जन्म भूमि भी थी। आचार्य रामानन्द की शिक्षा -दीक्षा यहीं से हुई थी। जगदगुरु शंकराचार्य ने अपने जीवन का अधिकांश समय यहां पर व्यतीत किया था। इसे पूर्व में कांचीपुरम या कांजीवरम के नाम से भी जाना जाता था।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
शिवकांची :-कांची पुरी का सर्वाधिक भाग इसके अंतर्गत आता है। यह रेलवे स्टेशन से २ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ स्थित सर्व सरोवर के चारों ओरकई मन्दिर बने हुए हैं जिनमें काशी विश्वनाथ मन्दिर प्रमुख है।यहां के प्रमुख मंदिरों में कामाक्षी मन्दिर,एकमरेश्वर मंदिर एवं काशी विश्व्नाथ मंदिर प्रमुख हैं। शिव कांची में इनके अतिरिक्त अन्य कई मंदिर है जिनमें निम्न प्रमुख हैं :-
एकमरेश्वर मंदिर अथवा ऐकाम्बेश्वर:- इस मंदिर में तीन प्रवेश द्वार बने हुए हैं और यहां स्थापित शिवलिंग काले पत्थर से निर्मित है। इसे बालू से निर्मित बताया जाता है। यहां स्थापित शिवलिंग पर जलाभिषेक करना वर्जित है। केवल सुगन्धित चमेली का तेल ही चढ़ाया जाता है। इसका निर्माण सातवीं शताब्दी में पल्लव राजाओं द्वारा किया गया था एवं चोल राजाओं ने इसकी मरम्मत करवायी थी।
कामाक्षी देवी मन्दिर :- एक्मेश्वर मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर कामाक्षी देवी का मंदिर स्थित है। इसे भी पललव राजाओं ने छठी शताब्दी में बनवाया था। यह इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है तथा मंदिर के गर्भगृह में कामाक्षी देवी की आकर्षक प्रतिमा स्थापित है।मन्दिर में यह दक्षिण पूर्व की ओरपद्मासन लगाकर श्रीचक्र रूप में चतुर्भुज सहित दर्शन दे रही हैं। कहा जाता है कि कांची में कामाक्षी मदुरै में मीनाक्षी और काशी में विशालाक्षी विराजमान हैं। मीनाक्षी और विशालाक्षी विवाहिता हैं। यहां कामाक्षी खड़ी मुद्रा में होने के बजाय बैठी हुई मुद्रा में हैं और दक्षिण पूर्व की ओर देख रहीं हैं। मंदिर परिसर में गायत्री मंडपम भी है। कभी यहां चम्पक का वृक्ष हुआ करता था। मां कामाक्षी के भव्य मंदिर में भगवती पार्वती का श्रीविग्रह है जिसे कामकोटि भी कहते हैं। कहा जाता है कि कामाक्षी देवी के नेत्र की सुंदरता के कारण ही इन्हें कामाक्षी की संज्ञा दी गई है। कामाक्षी में मात्र कमनीयता ही नहीं है बल्कि कुछ बीजाक्षरों का यांत्रिक महत्व भी है। इसीलिए कामाक्षी के तीन नेत्र त्रिदेवों के प्रतिरूप माने जाते हैं। सूर्य -चन्द्र उनके प्रधान नेत्र माने जाते हैं। अग्नि उनके भाल पर चिन्मय ज्योति से प्रज्ज्वलित तृतीय नेत्र हैं। इसीलिए कामाक्षी को आदिशक्ति त्रिपुर सुंदरी का स्वरूप माना जाता है। परिसर में ही अन्नपूर्णा और शारदा देवी मंदिर बने हुए हैं। यहीं से थोड़ी दूरी पर वामन एवं सुब्रह्मण्य मंदिर भी बने हुए हैं।यहीं पर आदि शन्कराचार्य की भव्य मूर्ति भी स्थापित की गयी है।
बैकुंठ पेरुमल मंदिर:- यह भगवान विष्णु को समर्पित है जो सातवीं शताब्दी में पल्लव राजा नंदिवर्मन् पललवमल्ला द्वारा बनवाया गया था। इसमें भगवान विष्णु बैठे एवं आराम मुद्रा में स्थित हैं। इस मंदिर में एक विशाल हाल बना हुआ है।
विष्णु कांची :- शिव कांची से विष्णु कांची की दूरी ३ किलोमीटर है । यहां पर अठारह विष्णु मंदिर बने हुए हैं किन्तु मुख्य मंदिर वरदराज स्वामी का मंदिर है। इस मंदिर से पूर्व में एक प्रार्थना कक्ष बना हुआ है तथा यह मंदिर ग्यारह मंजिली है। ब्रह्म उत्सव समारोह यहां पर वैशाखी पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्री वल्ल्भचार्य महाप्रभु की पीठ यहीं विष्णु कांची परिक्षेत्र में स्थित है। भगवान विष्णु की शेषनाग शैय्या पर विराजित देवाधिराज मूर्ति यहां जलाच्छादित रहती है किन्तु बिस वर्षों में एक बार इसे बाहर निकालकर उत्सव मनाया जाता है।
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