Wednesday, May 18, 2016

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग

पुराणों में भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से श्री मल्लिकार्जुन स्वामी को दूसरा महत्वपूर्ण  ज्योतिर्लिंग बताया गया है। इस क्षेत्र को दक्षिण भारत में दिव्य क्षेत्रम अथवा श्रीशैलम के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। यह दक्षिण भारत के कैलाश के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दू धर्मगर्न्थों के अनुसार श्रीशैलम  शिखर के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं और उन्हें समस्त सुखों की प्राप्ति हो जाती है। यहां तक कि समस्त सांसारिक बन्धनों एवं पुनर्जन्म से भी मुक्ति मिल जाती है। इस आशय का विस्तृत वर्णन शिव महापुराण के कोटिरुद्र संहिता के पन्द्रहवें अध्याय में किया गया है। मल्लिका माता पार्वती का उपनाम है तथा अर्जुन भगवान शंकर को कहा जाता है। इस प्रकार मल्लिकार्जुन भगवान शिव एवं माता पार्वती के संयुक्त नाम से इस ज्योतिर्लिंग को सम्बोधित किया जाता है। यहीं पर भ्रमराम्बा देवी शक्तिपीठ भी है। 

भौगोलिक स्थिति :-

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मन्दिर भारतवर्ष के आंध्रप्रदेश प्रान्त के पश्चिमी भाग में कुर्नूल{कृष्णा } जनपद की श्रीशैलम पर्वत श्रृंखला के नल्लमल्ला पहाडी के घने जंगलों के मध्य स्थित है। इसके निकट ही कृष्णा नदी प्रवाहित होती हैंजिसके तट पर यह बसा है। यहां पर शिव की आराधना मल्लिकार्जुन के नाम से की जाती है। आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद से श्रीशैलम लगभग २२० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह देश के प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग, रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है।यहां का निकटतम हवाई अड्डा कुर्नुल है जिसकी दूरी ११६ किलोमीटर है।मनमाड ,काचीकुड़ा लाइन के सिकन्द्राबाद स्टेशन से एक लाइन द्रोणाचलम तक जाती है ,इसी पैन पर कुरनूल टाउन स्टेशन है। रेलयात्रा यहीं  सकती है  बस द्वारा सम्पन्न की जाती है। हैदराबाद से श्रीशैलम के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है। यह स्थल कुर्नूल रेलमार्ग से भी जुड़ा हुआ है और वहां से भी बस द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। कुर्नूल से श्रीशैलम लगभग ११६  किलोमीटर दूर है। कुर्नूल से आत्मकूट और यहां से पंचरतु तक सड़कमार्ग उपलब्ध हैऔर बसें आतमपुर तक जाती हैं आत्मपुर से नागाघाटी १८ किलोमीटर है और इससे ४५ किलोमीटर आगे श्रीशैल पर्वत है । पंचरतु के बाद श्रीशैलम पर्वत की चढ़ाई आरम्भ हो जाती है और साढ़े पांच मील पैदल चढ़ाई के पश्चात तोलाकुंड मिलता है तथा तोलाकुण्ड से ४ मील आगे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग पड़ता है। श्रीशैलम की ओर जाने वाला प्रत्येक रास्ता घने जंगलों से होकर गुजरता है। यहां के मंदिर में ज्योतिर्लिंग के दर्शन का समय ४. ३० बजे प्रातःकाल से रात्रि १० बजे तक निर्धारित है।  इस मंदिर में भी तिरुपति की भांति अन्नदानम नामक भोजनालय का संचालन किया जाता है और दर्शन के बाद श्रद्धालुओं को निःशुल्क भोजन का कूपन अन्नदानम से दिया जाता है। 

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

पौराणिक कथानकों के अनुसार भगवान शिव एवं माता पार्वती के पुत्र स्वामी कार्तिकेय एवं श्री गणेश दोनों भाइयों के विवाह के संबन्ध में यह समस्या उत्पन्न हुई कि इनमें से किसका विवाह पहले किया जाये। स्वामी कार्तिकेय बड़े थे, अतः उनका विवाह पहले होना चाहिए था किन्तु श्रीगणेश अपना विवाह पहले करने का प्रस्ताव कर रहे थे। इस समस्या का निदान कराने के लिए दोनों भाई भगवान शिव एवं माता  पार्वती के पास गए और अपनी अपनी बात उनके सम्मुख रखी। शिव एवं पार्वती ने दोनों के समक्ष यह शर्त रख दी कि दोनों में से जो कोई इस पृथ्वी की परिक्रमा पहले करके उनके पास आएगा उसी का विवाह पहले होगा। शर्त के अनुसार कार्तिकेय जी तुरन्त पृथ्वी की परिक्रमा हेतु वहां से चल दिए किन्तु स्थूलकाय श्रीगणेश अपने वाहन चूहे के साथ मन्दगति से चलते हुए सोचने लगे कि यह परिक्रमा कैसे पूर्ण होगी ? चूँकि श्रीगणेश कुशाग्र बुद्धि के थे, अतः उन्होंने शिव एवं पार्वती से एक ही आसन पर बैठने का निवेदन किया और उनके आसन पर बैठने के बाद गणेश ने उनकी सात बार परिक्रमा कर उनका विधिवत पूजन करते हुए सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा से प्राप्त फल हेतु अपने को अधिकृत बताया। उनके चातुर्यपूर्ण इस कृत्य से प्रसन्न होकर भगवान शंकर एवं पार्वती ने श्रीगणेश का विवाह पहले करने की सहमति प्रदान कर दी। श्रीगणेश के विवाह के बाद जब कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा पूर्ण करके वापस लौटे, तब देवर्षि नारद ने उन्हें बताया  कि श्रीगणेश का विवाह प्रजापति की पुत्री सिद्धि एवं बुद्धि से हो चुका है  एवं सिद्धि से क्षेम एवं बुद्धि से लाभ नामक दो पुत्रों की प्राप्ति भी हो चुकी है। कार्तिकेय जी यह समाचार सुनकर अत्यन्त क्रोधित हुए और अपने माता - पिता के चरण स्पर्श करते हुए वहां से नाराज होकर चल दिए और क्रौंच पर्वत पर आकर रहने लगे। यह देखकर शिव एवं पार्वती जी ने कार्तिकेय को समझाने- बुझाने हेतु नारद को उनके पास भेजा किन्तु नारद के बहुत समझाने पर भी कार्तिकेय वापस नहीं लौटे, तब माता  पार्वती वात्सल्य एवं पुत्र- स्नेह से व्याकुल होकर स्वयं भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पर गईं। कार्तिकेयजी को उनके आगमन की सूचना पहले ही मिल चुकी थी, अतः वे वहां से थोड़ी दूर स्थित दूसरी पहाड़ी पर चले गए। कार्तिकेय को क्रौंच पर्वत पर न पाकर शिव एवं पार्वती को आत्मग्लानि हुई और  शिवजी ने वहीं पर अपनी ज्योतिर्लिंग स्थापित की एवं पार्वतीजी के साथ वापस कैलाश  लौट आये। तभी से यह ज्योतिर्लिंग यहां मल्लिकार्जुन के नाम से प्रसिद्ध हो गयी और श्रद्धालुगण उनकी पूजा अर्चना करने लगे। 
श्रीशैलम का वर्णन पुराणों एवं महाभारत दोनों में किया गया है। स्कन्दपुराण में श्रीशैलम काण्ड नामक अध्याय में इस मंदिर का विस्तृत वर्णन किया गया है। तमिल संतों ने भी प्राचीनकाल से ही मल्लिकार्जुन स्वामी की स्तुति प्रारम्भ कर दी थी। कहा जाता है कि आदि शकराचार्य ने जब इस मंदिर की यात्रा की थी तब उन्होंने यहीं पर शिवनंद लहरी की रचना की थी। श्रीशैलम मंदिर का इतिहास सातवाहन काल से मिलना प्रारम्भ हो जाता है। पहली शताब्दी के पुल्लुमावी के नासिक अभिलेख में श्रीशैलम पहाड़ी के संदर्भ में प्रथम बार चर्चा मिलती है। पल्लव ,चालुक्य ,काकातीय और रेड्डी राजाओं द्वारा भी श्रीशैलम की पूजा अर्चना का संदर्भ मिलता है। काकातीय राजा प्रताप रूद्र ने श्रीशैलम क्षेत्र के विकास हेतु प्रयास किया था किन्तु रेड्डी राजाओं के कार्यकाल में श्रीशैलम मंदिर के उत्थान एवं विकास हेतु सर्वाधिक प्रयास किये गए। चौदहवीं सदी में प्रलयवम रेड्डी ने पातालगंगा से श्रीशैलम के लिए सीढ़ीदार मार्ग का निर्माण करवाया था। आजकल इस मार्ग पर पक्की सड़क बन गई है। विजयनगर के हरिहर राय ने मंदिर के मुख्य मण्डपम् का निर्माण करवाया था औेर  पंद्रहवीं सदी में उन्होंने राजगोपुरम  का निर्माण करवाया था। इस मंदिर के उत्तरी गोपुरम को छत्रपति शिवाजी ने बनवाया था। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

यहां का मुख्य धर्मस्थल श्रीशैलम स्थित मल्लिकार्जुन का मंदिर ही है। ऐसी मान्यता है कि मल्लिकार्जुन स्वामी के दर्शन के साथ साथ यहां पर स्थित साक्षी गणपति मन्दिर में श्री गणेशजी का दर्शन करना आवश्यक होता है अन्यथा भगवान शिव एवं पार्वती का आशीर्वाद नहीं मिल पाता। साक्षी गणपति का मन्दिर श्रीशैलम स्थित मुख्य मंदिर से दो किलोमीटर पहले शहर के प्रवेशद्वार पर स्थित है। श्रीशैलम पर्वत पर साढ़े पांच मील चढ़ाई के बाद भीमतोला कुण्ड पड़ता है। यहां मल्लिकार्जुन मंदिर परिसर में भी एक कुण्ड बना हुआ है और उसी के निकट मां पार्वती जी का मंदिर स्थित है। पार्वती जी को यहां पर भमरावा के नाम से जाना जाता है। मल्लिकार्जुन की यात्रा ट्रेकिंग की दृष्टि से श्रद्धालुओं को अधिक आकर्षित करती है क्योंकि इस यात्रा में ज्योतिर्लिंग के दर्शन के साथ प्रकृति के अप्रतिम सौंदर्य एवं शान्तिप्रिय वातावरण का भी आनंद लिया जा सकता है। चूँकि श्रीशैलम घने जंगलों के बीच स्थित है, अतः प्राकृतिक वन सम्पदा से भरपूर यह क्षेत्र बहुत ही समृद्ध माना जाता है। महाभारत में बताया गया कि श्रीशैलम पर भगवान शिव एवं पार्वती जी का पूजन व दर्शन करने से अश्वमेध यज्ञ करने का पुण्य प्राप्त होता है। इस मंदिर का गर्भगृह बहुत बड़ा नहीं है इसीलिए इसमें एक बार में अधिक लोग प्रवेश नहीं कर पाते हैं। 
-पाताल गंगा मुख्य  मंदिर के पूर्व द्वार से एक मार्ग कृष्णा नदी तक गया है उसे ही पाताल गंगा  के नाम से जाना जाता है।  पाताल गंगा के निकट ही दो छोटे छोटे नाले कृष्णा नदी में मिलते हैं जिसे संगम स्थल अथवा त्रिवेणी कहते हैं। कृष्णा नदी के पूर्व की ओर कुछ ही दूरी पर स्थिर पहाड़ की कन्दरा में देवी एवं भैरव मंदिर अवस्थित है। मल्लिकार्जुन मंदिर से पश्चिम में ३ किलोमीटर की दूरी पर भ्रमरांबा देवी अथवा महालक्ष्मी देवी का मंदिर स्थित है। यह ५१ शक्तिपीठों में से एक हैं। यहां अम्बाजी की भव्य मूर्ति स्थापित है।       

No comments:

Post a Comment