Monday, May 16, 2016

रामेश्वरम

रामेश्वरम को हिन्दू धर्म में वर्णित चार धामों में से एक प्रमुख धाम की मान्यता प्रदान की गई है। यहां पर स्थापित शिवलिंग को द्वादश ज्योतिर्लिं में प्रमुख ज्योतिर्लिंग माना जाता है। भारतवर्ष के उत्तरी भाग में स्थित धर्मस्थल काशी का जो माहात्म्य माना गया है वही  माहात्म्य दक्षिण भारत में स्थित रामेश्वरम का भी है। यहां पर स्थित ज्योतिर्लिंग भगवान श्रीराम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।  कहा जाता है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम रामेश्वरम में श्रद्धापुष्प चढाकर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के दर्शन के पश्चात वाराणसी जाकर काशी विश्व्नाथ जी का दर्शन करके वहां से गंगाजल लाकर पुनः लिंगम अर्थात रामेश्वरम  को जलाभिषेक किया जाता है। यहीं पर भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई के पूर्व श्रीराम सेतु का निर्माण करवाया था। अतः श्रीराम सेतु के दस किलोमीटर परिक्षेत्र को  श्री रामेश्वरम की संज्ञा दी जाती है।इसे भगवान शंकर का ग्यारहवां अवतार माना जाता है।  

भौगोलिक स्थिति :-

दक्षिण भारत के तमिलनाडु प्रान्त में रामनाथपुरम जनपद के अन्तर्गत हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी से चतुर्दिक घिरा हुआ शंखाकार इस द्वीप में रामेश्वरम का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। यह चेन्नई से लगभग सवा चार सौ किलोमीटर की दूरी पर है। प्राचीन समय में यह द्वीप भारत से जुड़ा हुआ था किन्तु कालान्तर में सागर की लहरों के निरन्तर प्रहार से इसका कुछ भूभाग कटता गया  जिसके कारण अब यह द्वीप चारों ओर से समुद्री जल से आप्लावित है। सीता हरण के पश्चात भगवान श्रीराम जब लंका जाने हेतु इस द्वीप पर आये थे तब सागर को पार करने हेतु पत्थरों से निर्मित श्रीराम सेतु का निर्माण करवाया था जिससे सम्पूर्ण वानर सेना सहित भगवान श्रीराम लंका में प्रविष्ट हुए थे। विभीषण के अनुरोध पर बाद में श्रीराम ने धनुष्कोटि नामक स्थान पर इस सेतु को तोड़वा दिया था। इस ४८ किलोमीटर लम्बे सेतु के अवशेष आज भी यहां दृष्टिगत होते हैं। जिस स्थल पर यह टापू मुख्य भूमि से जुड़ा हुआ था वहां इस समय ढाई मील चौड़ी एक खाड़ी बन गई है। प्रारम्भ में इस खाड़ी को नावों के द्वारा पार किया जाता था। धनुषकोटि से मन्नार तक लोग पैदल भी चले जाते थे किन्तु सन् १४८० ई ० में एक चक्रवाती भयंकर तूफ़ान ने इसे पूर्णतयः नष्ट कर दिया था। बाद में कृष्ण्पनापकम नाम के राजा ने इस पर पत्थर के एक पुल का निर्माण करवा दिया था।  अंग्रेजों  द्वारा जर्मन इंजीनियर की सहायता से इसी पुल को  रेल पुल में परिवर्तित करवा दिया गया और सम्प्रति यही पुल रामेश्वरम को  रेलसेवा से भारत को जोड़ता है।  कहा जाता है कि पहले यह पुल जहाजों के निकलने हेतु खोल दिया जाता था। रामेश्वरम शहर तथा प्रसिद्ध रामनाथ का मंदिर इस द्वीप के उत्तरी किनारे पर स्थित हैं। यह मदुरै से १६७ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मदुरै से नियमित हवाई सेवाएं रामेश्वरम के लिए उपलब्ध हैं। यह राष्ट्रिय राजमार्ग ४९ पर स्थित है। 

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

श्रीराम सेतु के निर्माण के संबन्ध में पौराणिक साक्ष्य से विदित होता है कि सनकादि ऋषि ने सूतजी को इस पुल के निर्माण के उद्देश्य से अवगत करते हुए कहा कि त्रेतायुग में जब अयोध्या के राजा दशरथ ने अपने पुत्र राम को चौदह वर्ष का वनवास दे दिया था और वनवास जाते समय श्रीराम की भार्या सीताजी को लंकाधिपति रावण द्वारा अपहृत कर लिया गया तब सीताजी की खोज एवं उनकी वापसी हेतु लंका पर चढ़ायी करने हेतु इस पुल का निर्माण किया  जाना आवश्यक समझा गया और  इसीलिए इस स्थान का नाम सेतुबंध पड़ा। 
रामेश्वरम एवं यहां पर निर्मित श्रीराम सेतु दोनों ही अत्यधिक प्राचीन हैं किन्तु यहां पर निर्मित रामनाथ का मंदिर बहुत अधिक पुराना नहीं है। इसके दक्षिणी भाग में निर्मित कुछ मंदिर डेढ़ दो हजार वर्ष पहले अवश्य बने थे किन्तु रामनाथ का मंदिर लगभग आठ सौ वर्ष पुराना  माना जाता है। रामेश्वरम का गलियारा विश्व का सबसे लम्बा गलियारा माना जाता है। यह गलियारा उत्तर -दक्षिण १९७ मीटर लम्बा एवं पूर्व -पश्चिम १३३ मीटर चौड़ा है। इसके परकोटि की चौड़ाई ६ मीटर तथा ऊँचाई ९ मीटर है। मन्दिर का प्रवेशद्वार ३८४ मीटर ऊंचा है। यह मंदिर लगभग ६ हेक्टेयर भूमि में निर्मित है। रामेश्वरम  शहर से उत्तर -पूर्व में करीब डेढ़ मील की दूरी पर गन्धमादन नामक छोटी सी पहाड़ी है। बताया जाता है कि श्री हनुमानजी ने इसी पर्वत से समुद्र लाँघने के लिए छलांग लगाई थी और यहीं पर श्रीराम द्वारा अपनी वानर सेना का पड़ाव डाला गया था। यहां से लंका पर चढ़ायी की गई थी तथा रावण वध के बाद भगवान श्रीराम यहीं पर रावण -वध के कारण उत्पन्न ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए एक शिवलिंग की स्थापना की थी जिसे रामेश्वरम के नाम से जाना जाता है। हनुमान द्वारा काशी से मंगाए गए शिवलिंग के आने में देरी होते देखकर सीता जी ने समुद्र के किनारे से रेत को अपनी मुट्ठी में भरकर ले आयीं थी और उसी से एक शिवलिंग का निर्माण कर दिया था। श्रीराम ने इसी रेत से निर्मित शिवलिंग को यहां पर प्रतिष्ठापित किया था जो श्रीलिंगम के नाम से जाना गया। बाद में श्रीहनुमान द्वारा लाए गए शिवलिंग को भी उसी के निकट श्रीराम जी ने स्थापित कर दिया था । यहां पर स्थित मंदिर में विशालाक्षी जी गर्भगृह के निकट ही नौ अन्य ज्योतिर्लिंग हैं जो लंकापति विभीषण द्वारा बाद में बनवाया गया माना जाता है। रामनाथ मंदिर स्थित ताम्रपट से ज्ञात होता है कि सन् ११७३ ई ० में श्रीलंका के तत्कालीन राजा पराक्रमबाहु  ने मूल लिंग वाले गर्भगृह का निर्माण करवाया था। इस मंदिर में केवल शिवलिंग की ही स्थापना की गई थी किसी अन्य देवता या देवी की मूर्ति स्थापित नहीं की गई थी। यही मूल मंदिर आज वर्तमान स्थिति में यहां मौजूद है। कालान्तर में 15वीं शदी के  राजा उड्डमान सेतुपति और निकटवर्ती निवासी वैश्य ने १४५० ई ० में इसके ७८ फुट ऊंचे गोपुरम का निर्माण करवाया और बाद में मदुरई के एक देवी भक्त ने इसका नवनिर्माण करवाया। सोलहवीं शताब्दी में दक्षिण भाग के द्वितीय परकोटे की दीवार का निर्माण तिसमलय सेतुपति ने करवाया क्योंकि इसमें उनके पुत्र की मूर्ति द्वार पर आज भी मौजूद है। 
रामेश्वरम मंदिर की निर्माणकला  एवं शिल्पकला दोनों अद्वितीय है। इसका प्रवेश द्वार चालीस फुट ऊंचा है और मंदिर में सैकड़ों खम्भे बने हुए हैं। रामनाथ की मूर्ति के चारों ओरपरिक्रमा करने के लिए तीन प्राकार बने हुए हैं और इस प्राकार की कुल लम्बाई ४०० फुट से अधिक है। दोनों ओर ५ फुट ऊंचा और ८ फुट चौड़ा चबूतरा बना हुआ है। चबूतरों के किनारे खम्भों की कतारें दिखाई पड़तीं हैं।  रामेश्वरम के विशाल मंदिर के निर्माण में रामनाथपुरम नामक छोटी सी रियासत का बहुत बड़ा योगदान रहा है। रामेश्वरम से रामनाथपुरम की दूरी लगभग ३८ किलोमीटर है। रामेश्वरम मंदिर की स्थापना के संदर्भ में कहा जाता है कि सीताजी को बिना युद्ध के लंका से लाने का काफी प्रयत्न श्रीराम ने किया था किन्तु सफलता न मिलने पर युद्ध करना पड़ा था  जिससे रावण और उसकी सेना के सभी राक्षस मारे गए थे। ब्रह्म हत्या पाप के निवारणार्थ श्रीराम ने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

रामेश्वरम में शिव एवं पार्वती जी की दो मूर्तियां स्थापित हैं। प्रथम मूर्ति को पर्वत वर्धिनी एव दूसरी को विशालाक्षी कहा जाता है। रामेश्वरम मुखयतः शिवमंदिर के लिए जाना जाता है किन्तु उसके  परिसर में अन्य देवी देवताओं के मंदिर भी स्थापित हैं। भगवान विष्णु का मंदिर इनमें से प्रमुख है। यहां से २ किलोमीटर की दूरी पर लक्ष्मण तीर्थ है जहां स्नान करके श्रद्धालु रामेश्वरम के मुख्य मंदिर का दर्शन करते हैं। कहा जाता है कि श्रीलंका से लौटकर श्रीराम ने यहां स्नान किया था। लक्ष्मण तीर्थ मार्ग पर ही सीता तीर्थ है जो पंचमुखी हनुमान मंदिर के सन्निकट स्थित है। सीता तीर्थ के निकट राम तीर्थ भी बना हुआ है। 
रामेश्वरम बाजार के पूर्व में समुद्र तट पर रामेश्वरम का मुख्य मंदिर स्थित है। यहीं पर सेतुमाधव मंदिर के निकट माधव तीर्थ तालाब स्थित है। उत्तरी भाग में गन्धमदन तीर्थ में गवय ,नल नील तीर्थ श्रृंखलाएं दृष्टिगत होती हैं। यहां पर अलग अलग स्थानों पर मीठे जल के २२ कुएं स्थित हैं जिनमें स्नान करके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। चक्राकार मार्ग में दोनों ओर लम्बे बरामदे बने हैं। मार्ग के सम्मुख श्रीराम लिंगम का पवित्र स्थल है। मार्ग के उत्तर में प्रसिद्ध तीर्थ ब्रह्म हत्या विमोचन तीर्थ ,सूर्य तीर्थ ,चंदन तीरामेश्वरम र्थ ,गंगतीर्थ ,यमुना तीर्थ एवं गया तीर्थ स्थित हैं। निकट ही पूर्व की ओर चक्रतीर्थ व शंख तीर्थ स्थित हैं। इन दोनों के मध्य से रामेश्वरम  के मुख्य मंदिर की ओरएक मार्ग जाता है।  मुख्य मंदिर के बाएं तरफ मंदिर का कार्यालय है जहां गंगाजल के विक्रय की व्यवस्था रहती है तथा यहीं से मंदिर के दर्शन हेतु निधारित शुल्क की पर्ची निर्गत की जाती है। यहां पर गंगाजल व पुष्प आदि के पात्र श्रद्धालुओं को वापस नहीं किये जाते बल्कि यहां से गंगाजल खरीदकर रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक हेतु श्रद्धालु आगे बढ़ते हैं। रामेश्वरम मंदिर के सम्मुख एक स्वर्णिम खम्भा स्थित है और उसी के निकट १३ फिट लम्बी एवं ८ फिट चौड़ी सफेद रंग की नंदी की मूर्ति बनी हुई है। नन्दी  के बायीं  ओर बालरूप हनुमान की मूर्ति बनी हुई  है और नन्दी  के दक्षिण में शिवतीर्थ नामक छोटा सा तालाब स्थित है। यहीं पर गंगा ,यमुना ,सूर्य एवं चन्द्र तीर्थ एवं ब्रह्म हत्या विमोचन तीर्थ स्थित है। मुख्य मंदिर के सन्निकट ही कोटितीर्थ है जहां से दर्शनार्थी वापसी के समय पवित्र जल घर लाने हेतु एकत्रित करते हैं। इस पवित्र जल के लिए उन्हें निर्धारित शुल्क देना पड़ता है। ,ज्योतिर्लिंगम श्री रामेश्वरम के तीन प्रवेश द्वार बने हुए हैं और मंदिर के शीर्ष पर शेषनाग ताज की भांति स्थित हैं। यहां पर कोई भी दर्शनार्थी श्री रामेश्वरम को स्वयं जलाभिषेक नहीं कर सकता है बल्कि गंगोत्री एवं हरिद्वार से लाये गए गंगाजल को मंदिर के पुजारी ही उनके सामने ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक करते हैं। इस जलाभिषेक के लिए भी निर्धारित शुल्क उन्हें देना पड़ता है। यहां पर प्रत्येक पूजा के लिए अलग अलग शुल्क निर्धारित हैं जिसे दर्शनार्थी को अदा करना पड़ता है। 
कहा जाता है कि प्राचीन समय में रामेश्वरम एक जंगल था और बाद में कुछ सन्तों ने यहां आश्रम का निर्माण करवाया था। श्रीराम सेतु के प्रशासकों ने बाद में यहां मंदिर का निर्माण करवाया था। वर्तमान रामेश्वरम मंदिर का नवनिर्माण समय समय पर विभिन्न राजाओं द्वारा ही सम्भव हो पाया था। रामेश्वरम मंदिर से लगभग ३ किलोमीटर की दूरी पर गन्धमदन तक पहले पैदल ही पहुंचा जा सकता था। यहां पर सुग्रीव तीर्थ ,आनन्दतीर्थ ,जामवन्त तीर्थ एवं अमृत तीर्थ भी दर्शनीय हैं। सुग्रीव तीर्थ तालाबनुमा है जबकि अन्य  तीन तीर्थ कुंवानुमा हैं। दर्शनार्थी इन तीर्थों से आचमन स्वरूप जल ग्रहण करते हैं और यहीं पर बने हुए श्रीहनुमान जी को समर्पित मंदिर का दर्शन करते हैं। इसी के निकट राम झरोखा की पहाड़ियां दिखाई पड़तीं है जिसके तल तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं। भगवन श्रीराम के चरण चिह्न यहाँ स्थित मंदिर में मौजूद हैं। कहा जाता है कि हनुमान जी ने यहीं से समुद्र को लांघा था और श्रीराम ने सुग्रीव के साथ यहीं पर युद्ध की रणनीति बनाई थी। 
रामेश्वरम की दर्शन यात्रा समाप्ति पर वापसी के समय राम झरोखा पहाड़ी के ठीक नीचे धर्मतीर्थ के दर्शन किये  जाते हैं। इस तीर्थ का निर्माण युधिष्ठिर द्वारा करवाया गया था और इसी के निकट भीमतीर्थ ,अर्जुन तीर्थ ,नकुलतीर्थ एवं सहदेव तीर्थ भी दर्शनीय हैं। रामेश्वरम के दक्षिण में  जहां विभीषण ने शरण ली थी ,रामस्वामी का मंदिर बना हुआ है । लंकाधिपति रावण के वध के पश्चात यहीं पर  श्रीराम द्वारा विभीषण का राजतिलक किया गया था और इसी के निकट सीताकुंड जहां सीता जी ने अपने सतीत्व को सिद्ध किया था ,स्थित है। 


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