पुराणों एवं अन्य धर्मशास्त्रों में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से प्रधान ज्योतिर्लिंग के रूप में सोमनाथ का उल्लेख मिलता है। यह प्राचीन काल से ही हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल माना जाता रहा है। ऋग्वेद में भी इस स्थल का वर्णन मिलता है। सोमनाथ के इस प्रसिद्ध मन्दिर को हिन्दू धर्म के उत्थान एवं पतन का द्योतक भी माना गया है क्योंकि इसे नष्ट करने के लिए विदेशी एवं स्वदेशी शासकों द्वारा कई बार इस पर आक्रमण किये गए और कई बार इसका पुनर्निर्माण भी कराया गया। वर्तमान सोमनाथ मन्दिर का नवनिर्माण भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात लौह पुरुष सरदार वल्ल्भ भाई पटेल प्रथम गृहमंत्री भारत सरकार ने करवाया था और ०१ दिसंबर १९९५ को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित कर इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया था। यहां पर भगवान सोमनाथ का विश्व प्रसिद्ध मन्दिर बनवाया गया है। सोमनाथ के नामकरण के संदर्भ में मान्यता है कि सोम अर्थात चन्द्रमा जो भगवान शिव के मस्तक पर स्थित हैं ,के दृष्टिगत ही इन्हें सोमनाथ की संज्ञा दी गई थी। प्रभास क्षेत्र को प्रभास पाटन के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। प्राचीन समय में यह मन्दिर बहुत ही समृद्ध था। इस मंदिर में लगे स्वर्ण निर्मित बहुमूल्य मूर्तियों को लूटने के लिए महमूद गजनवी ने कई बार इस पर आक्रमण किया और अंत में सन् १०२४ ई ० में इसे लूटकर वह इस मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था। वर्तमान सोमनाथ मन्दिर १५५ फिट ऊंचा है और यहां पर स्थित शिवलिंग के दर्शन हेतु देश एवं विदेश से हजारों लोग प्रतिदिन यहाँ आते रहते हैं।
भौगोलिक स्थिति :-
सोमनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर गुजरात प्रान्त के सौराष्ट्र क्षेत्र में वेरावल बन्दरगाह के निकट स्थित है। पूर्व में यह जूनागढ़ रियासत का एक प्रमुख नगर था। सन् १९४८ के पूर्व इसे प्रभास तीर्थ अथवा प्रभास पाटण के नाम से जाना जाता था। इसी नाम से इसकी तहसील व नगरपालिका भी थी। सन् १९४८ के बाद इसकी तहसील और नगरपालिका का वेरावल में विलय हो गया और तब से यह वेरावल में ही स्थित है। यहां तक पहुँचने के लिए हवाई मार्ग ,सड़कमार्ग एवं रेलमार्ग तीनों की सुविधायें उपलब्ध है। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन वेरावल एवं निकटतम हवाई अड्डा दीव ,राजकोट ,अहमदाबाद व बड़ोदरा है।दिल्ली की ओर से भी जूनागढ़ होकर वेरावल पहुँच सकते हैं। प्रदेश एवं देश के प्रमुख शहरों से यह सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा है। द्वारिका तीर्थस्थल यहां से २०० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।सड़क मार्ग से पहुँचने के लिए वेरावल ७ किलोमीटर. मुम्बई ८८९ किलोमीटर ,अहमदाबाद ४०० किलोमीटर ,भावनगर २६६ किलोमीटर ,जूनागढ़ ८५ किलोमीटर ,पोरबन्दर १२२ किलोमीटर की यात्रा तय करनी पड़ती है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
ऋग्वेद में इस मन्दिर का निर्माण स्वयं चन्द्रदेव द्वारा कराये जाने का उल्लेख मिलता है। प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार सोम अर्थात चन्द्र ने दक्ष प्रजापति राजा की २७ कन्याओं से विवाह किया था किन्तु चन्द्र उनमें से केवल रोहिणी नामक पत्नी से अधिक प्रेम करते थे। यह शिकायत उनकी अन्य पत्नियों द्वारा राजा दक्ष से की गई तब दक्ष क्रोधित होकर चन्द्र को यह शाप दे दिया कि चन्द्र का तेज निरन्तर घटता जायेगा और वे क्षयरोग से ग्रसित होकर अधोगति को प्राप्त होंगे। उक्त शाप से भयभीत होकर चन्द्र समस्त अन्य देवताओं के साथ राजा दक्ष के पास आये और शाप वापस लेने की उनसे प्रार्थना करने लगे। दक्ष ने उनकी प्रार्थना स्वीकार करते हुए यह परामर्श दिया कि चन्द्र प्रभास क्षेत्र में जाकर भगवान शिव की तपस्या करें तभी शाप से उन्हें मुक्ति मिल सकती है। चन्द्र ने तत्काल प्रभास तीर्थ जाकर वहां स्थित हिरण्या ,सरस्वती और कपिला नदी में नित्य स्नान करते हुए हजारों वर्षों तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की तब एक दिन शिव जी प्रसन्न होकर उन्हें यह वरदान दिया कि वे कृष्ण पक्ष में १५ दिनों तक प्रतिदिन घटते जायेंगे किन्तु शुक्ल पक्ष में १५ दिन क्रमशः बढ़ते हुए पूर्णिमा को पूर्ण रूप प्राप्त कर अपनी पूर्व स्थिति प्राप्त कर लेंगे। ऐसा वरदान पाकर चन्द्र ने वहां पर एक शिवलिंग की स्थापना की और उसका नाम सोमनाथ रखा।
उक्त स्थल के संबन्ध में एक लोक कथा यह भी प्रचलित है जिसके अनुसार सोमनाथ मंदिर से २ किलोमीटर की दूरी पर स्थित भालुका नामक स्थान पर एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठे हुए भगवान श्रीकृष्ण के तलुवे में हिरण की आँख के निशान को देखकर एक शिकारी ने भ्रमवश उनके तलुवे पर अपना तीर चला दिया जिससे आहत होकर श्रीकृष्ण ने शरीर त्यागते हुए यहीं से परलोक गमन किया था। तभी से भालुका को तीर्थस्थल के रूप में माना जाने लगा।स्कन्दपुराण के सप्तम खण्ड में इसे प्रभास खण्ड कहा गया है।
ऐतिहासिक साक्ष्य के दृष्टिगत ईशा पूर्व यहाँ सोमनाथ का मन्दिर मौजूद था और सातवीं सदी में वल्लभी के मैत्रक राजाओं ने इस मन्दिर का पुनर्निर्माण करवाया था। आठवीं सदी में सिन्ध के अरबी गवर्नर ने इसे नष्ट कर दिया था किन्तु ८१५ ई० पू०प्रतिहार शासक नागभट्ट ने इसका तीसरी बार नवनिर्माण करवाया। अरबी यात्री अलबरूनी ने अपने यात्रा कथा में यह लिखा है कि इस मंदिर के वैभव से प्रभावित होकर महमूद गजनवी ने सन् १०२४ ई में इस मंदिर पर आक्रमण किया था और इसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति को लूटकर इसे नष्ट कर दिया था। इसके पश्चात गुजरात के राजा भीमदेव और मालवा के राजा भोज ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। सन् १९२७ ई० में जब दिल्ली सल्तनत ने गुजरात पर अधिकार कर लिया तब इसे पांचवीं बार नष्ट किया गया किन्तु पुनः इस मंदिर के नवनिर्माण हो जाने के बाद मुगल बादशाह औरंगजेब ने सन् १७०६ ई ० में इसे पुनः गिरवा दिया था। सन् १९४७ ई ० में देश की स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इसका नवनिर्माण करवाया और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने इस स्थल पर ज्योतिर्लिंग की पुनर्स्थापना की क्योंकि यहां पूर्व स्थापित ज्योतिर्लिंग को महमूद गजनवी ने १०२६ ई ० में ही खंडित कर दिया था। यहां स्थित मंदिर कई शताब्दी से भारत की सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक मने जाते रहे हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
सोमनाथ मन्दिर से दक्षिण में एक अन्य शिवमन्दिर स्थित है जिसका निर्माण इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने करवाया था। इसीलिए इसे अहिल्याबाई मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग गर्भगृह के निचले भाग में है जहां सीढ़ियों से पहुंचा जा सकता है। यहीं पर हिरण्या ,सरस्वती और कपिला नदिया समुद्र में गिरती हैं, अतः इसे प्राची त्रिवेणी का नाम से सम्बोधित किया जाता है। श्रद्धालु यहां प्राची त्रिवेणी में स्नान करके सोमनाथ मंदिर व अन्य शिवमंदिर के दर्शन करते हैं। इस स्थल से २ किलोमीटर दूर भालुका तीर्थ स्थित है जहां हनुमान जी का मन्दिर ,वर्दी विनायक , नवदुर्गा,खोडीयार ,अहिलेश्वर ,अन्नपूर्णा गणपति और काशी विश्व्नाथ का मंदिर स्थित है। यहीं पर स्थित अघोरेश्वर मंदिर के निकट भैरवेश्वर मंदिर ,महाकाली मंदिर एवं दुःख हरण की जलसमाधि स्थित है। कुम्हारवाड़ा में स्थित पंचमुखी महादेव मंदिर के निकट राम मंदिर बना हुआ है। यहीं से १० किलोमीटर के परिक्षेत्र में लगभग ४२ मंदिर बने हुए हैं जिनमें हाटकेश्वर ,देवी हिंगलाज ,कलिका बालाजी नरसिंह व नागनाथ मंदिर प्रमुख हैं।
सोमनाथ के समीप स्थित त्रिवेणी घाट पर गीता मंदिर बना हुआ है तथा वेरावल प्रभास क्षेत्र में समुद्र तट पर शशिभूषण मंदिर, भीड़मंजन गणपति मंदिर, बाणेश्वर ,चन्द्रशेखर -रत्नेश्वर ,कपिलेश्वर ,रोटलेश्वर मंदिर भालुका तीर्थ में दर्शनीय हैं। यहीं पर भालकेश्वर, प्रागटेश्वर,पदमकुंड ,पांडव कूप ,द्वारिकानाथ मंदिर लक्ष्मीनारायण मंदिर ,रुद्रेश्वर मंदिर सूर्यमन्दिर ,हिंगलाज गुफा व वल्लभाचार्य प्रभु की ६५ वीं बैठक स्थित है। प्राची त्रिवेणी के समीप स्थित समुद्रतट को अग्निकुंड की संज्ञा दी जाती है क्योंकि श्रीकृष्ण के पार्थिव शरीर का यहीं पर दाह संस्कार किया गया था।इसे बाणतीर्थ अथवा भालुकातीर्थ कहा जाता है। सोमनाथ में ही जूनागढ़ ,गिरनार ,दामोदर कुंड, वीरपुर आदि धार्मिक महत्व के अन्य दर्शनीय स्थल हैं। जूनागढ़ में नृसिंह भक्त का चौरा बना हुआ है तथा गिरनार पर्वत पर अम्बा भवानी का मंदिर बना हुआ है।यहां स्थित अहिल्याबाई मंदिर के निकट महाकाली मंदिर स्थित है। गिरनार पर्वत के पास ही दामोदर कुंड स्थित है जिसमें समस्त नदियां तीर्थ के रूप में विद्यमान मानी जाती हैं। यहां स्थित वीरपुर के सम्बन्ध में बताया जाता है कि यहां पर चमत्कारी संत जालाराम बापा ने अपनी पत्नी वीरबाई को साधु वेशधारी भगवान को अर्पित कर दिया था। उस साधु की झोली व डण्डा आज भी यहां स्थित मंदिर में सुरक्षित बताया जाता है।
सोमनाथ के मंदिर की व्यवस्था व संचालन का कार्य सोमनाथ ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। प्रदेश एवं केंद्र सरकार ने ट्रस्ट को आवश्यक भूमि व बगीचे आदि सौंपकर उनकी नियमित आय का समुचित प्रबन्ध कर दिया है। चैत्र एवं कार्तिक मास में यहां श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया जाता है। अतः इन मासों में यहां पर विशेष भीड़ देखने को मिलती है। यहां पर स्थित हिरण्या ,कपिला एवं सरस्वती के महासंगम स्थल त्रिवेणी पर स्नान करने हेतु श्रद्धालुओं की भीड़ प्रत्येक दिन देखने को मिलती है। यहां स्थित सोमकुण्ड में स्नान करने से कुष्ठ जैसे भयंकर रोग से मुक्ति मिल जाती है।
No comments:
Post a Comment