Thursday, May 12, 2016

शिरडी

आधुनिक भारत  में  शिरडी के साईं बाबा का नाम सर्वविदित है। शिर्डी के साईं एक गुरु एवं फकीर संत के रूप में जाने जाते हैं। इनके समाधिस्थल पे बने हुए विशाल मन्दिर में प्रतिदिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु साईं बाबा के दर्शन करके अपनी मनोकामनाओं की सम्पूर्ति करते हैं। गत बीस -पच्चीस वर्षों से यह स्थल विवादित भी रहा है क्योंकि सनातन धर्म के अनुयायी उन्हें संत न मानकर देवी देवताओं के साथ मन्दिरों में इनकी मूर्ति की स्थापना का विरोध कर रहे हैं।  कुछ अनुयायी इन्हें अवतारी पुरुष मानते हुए इन्हें भगवान की संज्ञा देते हैं तो कुछ लोग इन्हें फकीर संत के रूप में मानते हैं। देश के सभी शहरों में स्थित मंदिरों में इनकी मूर्ति स्थापित करने पर काफी विवाद हो चूका है। इसके बावजूद साईं बाबा की चमत्कारी शक्तियों से ऐसी अनेक घटनाओं का समय समय पर उदघाटन होता रहा है जिससे इनके भक्तो में निरन्तर वृद्धि भी होती रही है। आज साईं बाबा के भक्तों ने शिर्डी में काफी बड़े क्षेत्र में मंदिर व धर्मशाला का निर्माण करवाया है। लाखों की संख्या में प्रतिमाह यहां श्रद्धालु आते रहते हैं तथा सोने ,हीरे व चांदी से साईं बाबा के मंदिर को अलंकृत करते रहे हैं। 

भौगोलिक स्थिति :-

भारतवर्ष के महाराष्ट्र प्रान्त में अहमदनगर जनपद के रहता तहसील के अन्तर्गत शिरडी नामक कस्बे में यह धार्मिक स्थल स्थित है। यह स्थल अहमदनगर -मनमाड़ राजमार्ग संख्या १० पर अहमदनगर से लगभग ८३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अहमदनगर के कोपर गाँव से यह स्थल मात्र १५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर पहुँचने के लिए रेलमार्ग ,सड़कमार्ग एवं हवाई मार्ग की सेवाएं उपलब्ध हैं। शिरडी में बाबा के प्रथम पदक्षेप स्थान पर श्रीखंडोवा मंदिर तथा साईं बाबा के गुरु श्रीगुरस्थान मंदिर ,द्वारकामाई मंदिर ,मारूति मंदिर व अब्दुलबबा की समाधि स्थित है। 

ऐतिहासिक साक्ष्य :-

शिरडी का साईं बाबा के वास्तविक नाम ,जन्म ,पता एवं माता -पिता के सम्बन्ध में कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं हैं किन्तु कुछ लोग इन्हें हिन्दू सन्त मानते हैं तो कुछ लोग इन्हें फकीर की मान्यता प्रदान करते हैं। साईं की उपाधि इन्हें भारत के पश्चिमी भाग में स्थित महाराष्ट्र के शिरडी नामक कस्बे में निवास के दौरान उनके भक्तों द्वारा प्रदान किया गया था। अप्रामाणिक जानकारी के आधार पर साईं का जन्म सन् १८३५ ई० में तथा मृत्यु दिनांक १५ अक्टूबर १९१८ ई० में बताया जाता है। ऐसा माना जाता है कि अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में काफी समय उन्होंने मुस्लिम फकीरों के साथ बिताया था। इनकी वेशभूषा व साधना की पद्धति से भी यही परिलक्षित होता है कि वे वास्तव में फकीर ही थे किन्तु इनके मानने वालों में हिन्दू भक्त की संख्या अधिक है। उन्होंने संत कबीर की भांति हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों धर्मों के अनुयायिओं से समान व्यवहार किया।  शिष्य दासमनु द्वारा पथरी गाँव पर एक शोध किया था जिसके परिणाम स्वरूप कुल चार पृष्ठों में साईं बाबा के बाल्यकाल को उदघाटित किया था जिसे उनके भक्तगण साईं गुरुचरित्र के नाम से सम्बोधित किया। दासमनु के अनुसार उनका बाल्यकाल पथरी गांव में अपने परिवार के साथ गुजरा था और लगभग १६ वर्ष की अल्पायु में वे महाराष्ट्र के अहमदनगर जनपद के शिरडी ग्राम आ गए थे और आजीवन यहीं पर एक फकीर की भाँति जीवनयापन किया था। 
कुछ अनुयायी बताते है कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में धुपखेडा नामक गाँव में चाँद भाई का घोडा एक बार कहीं खो गया था और चाँद भाई उसे खोजते हुए १५-१६ वर्ष के एक नवयुवक फकीर से मिले तो उस युवक ने बताया कि उनका घोडा उधर मैदान में घास चर रहा है। चाँद भाई यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि एक अनजान युवक द्वारा  उनका नाम लेकर पुकारना तथा उनके खोये हुए घोड़े का सही पता बताना सचमुच उन्हें रहस्यात्मक लगा। वापस आकर चाँद भाई ने यह घटना समस्त ग्रामवासियों को सुनायी तो सभी आश्चर्यचकित हो गए और तभी से उस युवक फकीर को महान आत्मा मानने लगे। इस घटना  से युवक फकीर की ख्याति चारों ओर आग की तरह फ़ैल गई और सभी ने उन्हें सिद्ध फकीर की उपाधि दे दी। कुछ समय बाद चाँद भाई के परिवार के किसी सदस्य की बारात औरंगाबाद से शिरडी गई और वहीं पर वह युवक भी बारात में सम्मिलित हुआ। बारात जब एक मंदिर के निकट पहुंची तो उस मंदिर के पुजारी ने उस फकीर युवक को आओ साईं बाबा कहकर अपने पास बुलाया और उसे गले लगा लिया !तभी से वह युवक फकीर साईं बाबा के नाम से जाना जाने लगा और वह स्थायी रूप से शिरडी में ही रहने लगा। 
शिरडी गाँव की एक वृद्ध महिला जो नाना चोपदार की मां थी ,ने एक दिन एक युवक को नीम के पेड़ के नीचे बैठकर साधनारत देखा तब उसने सोचा कि गर्मी सर्दी एवं भूख प्यास की परवाह न कर एक अल्पायु युवक द्वारा  इस तरह कठोर तपस्या करना वास्तव में किसी महापुरुष का ही कार्य हो सकता है। प्रेम और वैराग्य की साक्षात् प्रतिमूर्ति समझकर वह उसके निकट आयीं किन्तु उस युवक की समाधि भंग नहीं हुई !तभी से समस्त ग्रामवासी उस युवक से अपने कष्ट बताते हुए उसका समाधान कराने लगे। अनेक चमत्कारिक घटनाओं को देखकर लोग उन्हें सिद्ध फकीर मानने लगे। यद्यपि साईं बाबा ने कभी भी अपने को भगवान होने बात स्वीकार नहीं की फिरभी उनके भक्तों ने उन्हें भगवान मानते हुए सदैव उनकी सेवा सुश्रुखा की। 

 अन्य दर्शनीय स्थल :-

शनिसिग्नापुर मंदिर शिरडी नगर से ६० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो भारत का प्रसिद्ध जागृत शनि मंदिर माना जाता है। यहां कालसर्प दोष के निवारण की पूजा की जाती है। यहां से ९० किलोमीटर की दूरी पर त्र्यंबकेश्वर मंदिर स्थित है जो द्वादस शिव मंदिरों में से एक है। 
वैसे तो साईं बाबा की समाधि स्थल को ही बाद में उनके अनुयायिओं द्वारा मंदिर का रूप दे दिया गया था किन्तु जिस मस्जिद में साईं बाबा रहा करते थे वह स्थल को भी उनके मरणोपरान्त भक्तो द्वारा एक पवित्र स्थल के रूप में माना जाने लगा। भक्तों ने उनकी समाधिस्थल पर चंदा एकत्रित कर एक विशाल मंदिर का निर्माण करवाया और उसके निकट ही कई धर्मशालाएं भी बनवायीं। मंदिर के निकट ही भण्डारगृह ,कैन्टीन व स्नान के लये स्नानगृह का निर्माण भी भक्तों द्वारा ही करवाया गया। कहा जाता है कि बाबा ने यहां पर अपनी योगशक्ति से एक अग्निशिखा प्रज्ज्वलित की थी जो आजतक वहां पर विद्यमान है। इस प्रज्ज्वलित अग्नि को उदी के नाम से पुकारा जाता है। साईं बाबा ने अपने जीवनकाल में इस ऊदी से कई असाध्य रोगियों को जीवनदान दिया था इसीलिए आज भी श्रद्धालुगण इस धूनी की राख को श्रद्धापूर्वक अपने मस्तक से लगाते हैं तथा इसे पवित्र मानकर अपने घर भी ले जाते हैं। साईं बाबा के प्रथम भक्तों में महाल्सपति और काशीराम का नाम लिया जाता है। इन दोनों ने साईं बाबा को एक मस्जिद में रहने की व्यवस्था की थी। बाबा ने उस मस्जिद का नाम द्वारकामाई रखा था। उक्त से स्पस्ट है कि शिरडी के साईं बाबा किसी अलौकिक शक्ति से सम्पन्न फकीर थे और वे सदा अपने को परमेश्वर का सेवक बताते थे। 
सम्प्रति  शिरडी एक प्रसिद्ध धर्मस्थल बन गया है और यहां पर प्रतिदिन हजारों भक्त बाबा के दर्शन हेतु आते रहते हैं। आज यह मंदिर भारत के समृद्धशाली मंदिरों में से एक है क्योंकि यहां पर प्रतिदिन लाखों रुपये चढ़ावे के रूप में साईं मंदिर के व्यवस्थापकों को प्राप्त होता है। साईं मंदिर की सम्पूर्ण व्यवस्था साईं ट्रस्ट द्वारा किया जाता है। यहां संघ के क्लाक रूम में सामान रखने की समुचित व्यवस्था उपलब्ध है। यहां से मंदिर थोड़ी ही दूरी पर है। बाबा की व्यवहृत वस्तुएं भी यहां प्रदर्शित की गईं हैं। शिर्डी  

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