हरमिंदर पटना साहिब मुख्य रूप से सिक्ख धर्म के दसवें गुरु गोविन्द सिंह की जन्मस्थली के रूप में जानी जाती है। इस प्रकार यह सिक्ख धर्म के अनुयायिओं की आस्था से जुड़ा हुआ एक ऐतिहासिक दर्शनीय स्थल है। गुरु गोविन्द सिंह का जन्म पौष शुक्ल सप्तमी दिन शनिवार सन् १९६६ को हुआ था। इनकी माता का नाम गुजरी तथा पिता का नाम गुरु तेग बहादुर सिंह था। बचपन में इन्हें गोविन्द राय के नाम से जाना जाता था। यहां पर राजा रंजीत सिंह द्वारा बनवाया गया गुरुद्वारा स्थित है। बचपन के सात वर्ष उन्होंने पटना में ही गुजारा था। गुरु नानक देव के साथ इनके पिता गुरु तेग बहादुर सिंह ने भी यहां की यात्रा की थी। यहां स्थित गुरुद्वारा को सिक्खों के पांच पवित्र तख्तों में से यह एक प्रमुख तख़्त माना जाता है। पटना जिसका प्राचीन नाम पाटलिपुत्र था ,में अवस्थित यह धार्मिक स्थल उक्त तीनों सिक्ख गुरुओं के पावन चरणों से पवित्र हुआ माना जाता है। प्रत्येक वर्ष गुरु गोविन्द सिंह जी की जन्मतिथि पौष शुक्ल सप्तमी के दिन यहां पर विशेष मेले का आयोजन किया जाता है।
भौगोलिक स्थिति :-
पटना साहिब बिहार राज्य की राजधानी पटना शहर में स्थित है। सिक्ख धर्म का यह पावन धार्मिक स्थल अर्थात गुरुद्वारा गुरु गोविन्द सिंह की पुण्य स्मृति में बनवाया गया है। पटना साहिब की भव्य इमारत पांच मंजिलों में बनवायी गई है। इसके प्रथम मंजिल में गुरुग्रन्थ साहिब ,गुरु गोविन्द सिंह जी के अस्त्र शस्त्र तथा गुरु तेग बहादुर की खड़ाऊं व अन्य वस्तुएं रखी गईं हैं। दूसरे मंजिल पर अजायब घर स्थित है। तीसरे मंजिल पर अमृतपान तथा धार्मिक व वैवाहिक संस्कार करने की व्यवस्था की गई है। चौथी मंजिल पर पत्थर पर खुदी हुई गुरु ग्रन्थ साहिब तथा अन्य हस्तलिपियाँ सुरक्षित रखीं गई हैं। गुरु गोविन्द सिंह की बाल क्रीड़ा व बचपन से संबंधित वस्तुएं भी यहीं पर सुरक्षित रखीं गईं हैं।
ऐतिहासिक साक्ष्य :-
गुरुद्वारा श्री हरमिंदर पटना साहिब गुरु गोविंद सिंह जी की जन्मस्थली तथा गुरु तेग बहादुर सिंह जी के यहां कुछ दिन प्रवास करने के कारण उन्हीं की स्मृति में इसका निर्माण करवाया गया था। गुरु तेग बहादुर जब बंगाल और असम की यात्रा कर रहे थे तो कुछ दिन यहां इसी स्थान पर निवास किये थे। इनके साथ माता गुजरी एवं मामा किरपाल सिंह जी भी थे। यहीं पर परिवार के सदस्यों को छोड़कर वे आगे बढ़ गए थे। कहा जाता है कि पहले यह स्थान गुरु नानकदेव के भक्त सलिसरायँ जौहरी का निवास स्थल था। जब गुरु साहिब यहां पर पहुंचे थे तब से अबतक यहां उनकी उपस्थिति बनी रही है। गुरु तेग बहादुर सिंह के असम की ओर फेरी पर जाने के पश्चात बालक गोविन्द राय का जन्म यहीं पर माता गुजरी के कोख से हुआ था। बालक गोविन्द राय यहां पर ६ वर्ष तक रहे थे। माता गुजरी का कुंआ आज भी यहां पर मौजूद है। गोविन्द राय ही आगे चलकर गुरु गोविन्द सिंह के नाम से जाने गए। गोविन्द सिंह को सैन्य जीवन के प्रति रूचि उनके दादा गुरु हरगोविन्द सिंह द्वारा जागृत की गई थी तथा शिक्षा दीक्षा भी उन्हीं की सरक्षता में दी गई थी। उन्हें अनेक भाषाओँ जैसे फ़ारसी ,अरबी संस्कृत व पंजाबी का सम्यक ज्ञान था और उन्होंने देश की स्वतंत्रता व सिक्ख धर्म की रक्षा के लिए सिक्खों का एक संगठन यहीं पर तैयार किया था।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
पांच प्रमुख तख्तों में से एक तख़्त होने का गौरव इसको प्राप्त है। यह स्थल दुनिया भर के सिक्ख धर्मावलम्बियों के लिए पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है। गुरु नानक देव की वाणी एवं उपदेश से प्रभावित श्री सलिसरायं जौहरी ने अपने महल को धर्मशाला का रूप देते हुए सिक्ख धर्म का प्रचार प्रसार प्रारम्भ किया था। बाद में भवन के इस हिस्से को मिलाकर वर्तमान गुरुद्वारे का निर्माण करवाया गया। गुंबदनुमा इस गुरुद्वारे में प्रकाश उत्सव के अवसर पर देश विदेश से श्रद्धालुओं का आगमन यहां होता रहता है। गुरुद्वारा पटना साहिब परिसर में ही गुरु गोविन्द सिंह जी का बाल लीला स्थल बना हुआ है। इसे मैनी संगत के नाम से भी जाना जाता है। पटना साहिब से ६-७ किलोमीटर की दूरी पर गुरु की बाग स्थित है जिसमें पहली बार उन्होंने अपने पिता गुरु तेग बहादुर सिंह से मुलाक़ात की थी। इसी बाग़ में एक कुंआ है जिसमें पुत्र प्राप्ति की कामना से स्त्रियां स्नान किया करती हैं। पटना साहिब के इस स्थल से कई चमत्कारिक घटनाओं का संबन्ध बताया जाता है। इसी स्थल पर गुरु गोविन्द सिंह के दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुएं सुरक्षित रखीं गईं हैं जैसे सिंहासन ,उनके द्वारा हस्ताक्षरित गुरु ग्रन्थ साहिब ,गंगाजी का कुंड, थम्प साहिब आदि। पटना साहिब से २० किलोमीटर दूर स्थित दानापुर में गुरु जी ने पंजाब जाते समय किंचित विश्राम किया था तथा जमना देवी का आतिथ्य भी स्वीकार किया था। कहा जाता है कि जब गुरु गोविन्द सिंह यहां पहुंचे थे तब उनके आगमन का समाचार सुनकर काफी भीड़ एकत्रित हो गई और जमना देवी द्वारा बनवायी गई खिचड़ी उनके लिए कम पड गई। जब गुरु जी को यह मालुम हुआ तब उन्होंने ऐसी कृपा की कि वह हांडी जिसमें खिचड़ी रखी थी अंत तक खाली नहीं हुई। अब इस स्थल को गुरु द्वारा हांड़ी साहिब के नाम से जाना जाता है। गुरु गोविन्द सिंह जी एक ऐसे महापुरुष के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने उस समय की परिस्थितियों का सामना करते हुए आतंकवादियों को उखाड़ फेंका था तथा धर्म एवं न्याय की प्रतिष्ठा की थी। इसीलिए सिक्ख धर्म के अनुयायिओं में वे अवतारी पुरुष माने जाते हैं।
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