हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग बैजनाथ धाम को भी माना जाता है। इस स्थल को वैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है। बैजनाथ का प्रसिद्ध शिव मन्दिर जिस स्थल पर स्थित है उसे देवघर अर्थात देवताओं के घर के नाम से जाना जाता है।यहां पर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख ज्योतिर्लिंग तथा एक सिद्धपीठ की मान्यता भी दी जाती है। भगवान शिव के इस प्रसिद्ध मन्दिर को बाबा बैजनाथ की भी संज्ञा दी जाती है। कहा जाता है कि यहां पर भगवान शिव को जलाभिषेक करने वाले श्रद्धालुओं की समस्त मनोकामनाएं स्वतः पूर्ण हो जाती हैं। इसी कारण यहां स्थापित ज्योतिर्लिंग को कामनालिंग के नाम से भी जाना जाता है। इस स्थल को इक्यावन शक्तिपीठों में प्रमुख एक सिद्धपीठ के रूप में माना जाता है।
भौगोलिक स्थिति :-
मध्यभारत के झारखण्ड राज्य में सन्थाल परगना देवघर जनपद के अन्तर्गत देवघर नामक स्थल पर बाबा बैजनाथ का प्रसिद्ध प्राचीन मन्दिर स्थित है। यह स्थल पटना रेलवे लाइन पर चितरंजन से ८६ किलोमीटर की दूरी पर जसडीह जंक्सन के सन्निकट स्थित है। जसडीह जंक्सन से एक रेलवे लाइन बैजनाथ धाम की ओर जाती है और इसी रेलवे लाइन पर ६ किलोमीटर की दूरी पर बैजनाथ धाम स्थित है। जसडीह से सड़कमार्ग से ऑटो रिक्शा ,बस अथवा निजी वाहन से यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है।इसका निकटम हवाई अड्डा रांची है। बैजनाथ धाम पहले बिहार राज्य में स्थित था किन्तु राज्यों के पुनर्गठन के कारण सम्प्रति यह झारखण्ड राज्य में आ गया है। बिहार एवं झारखण्ड प्रान्त के प्रमुख शहरों से यह सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। महाशिवरात्रि के पर्व पर श्रद्धालु सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर १०५ किलोमीटर पैदल यात्रा करते हुए एवं बम भोले की जयघोष के साथ बैजनाथ मंदिर में भगवान शिव को जलाभिषेक करते हैं।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
बैजनाथ मन्दिर में स्थापित भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग का संबन्ध लंकाधिपति रावण से माना जाता है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार राक्षसराज रावण भगवान शंकर को लंका में निवास कराने के उद्देश्य से कैलाश पर्वत पर जाकर उनकी घोर तपस्या की थी। तपस्या के दौरान उसने क्रमशः अपना एक एक सिर काटकर शिव को अर्पित करना आरम्भ किया तो दसवें सिर काटने के पूर्व भगवान शिव उस पर प्रसन्न हो गए और पूर्व में काटे गए नौ सिरों को वापस प्रतिस्थापित करते हुए उससे वरदान माँगने को कहा। रावण ने भगवान शिव को लंका में निवास करने की अपनी इच्छा प्रकट करते हुए अनुरोध किया, तब भगवान शिव ने उसे एक कामलिंग इस शर्त के साथ दिया कि यदि इस लिंग को वह पृथ्वी पर रखेगा तो यह उसी स्थल पर स्थायी रूप से स्थापित हो जायेगा। रावण शिवलिंग को लेकर कैलाश पर्वत से लंका की ओर प्रस्थान किया किन्तु रास्ते में एक जगह हरीतकी वन में{वर्तमान में बैजनाथ }लघुशंका से निवृत्ति होना पड़ गया तो वह वहाँ उपस्थित एक ब्राह्मण { साधु वेशधारी भगवान विष्णु} को वह शिवलिंग सौंपकर लघुशंका करने वहां से कुछ दूर चला गया। लघुशंका से वापस आने पर उसने देखा कि वह साधुवेशधारी ब्राह्मण साधु वहाँ से गायब हो चुका है किन्तु शिवलिंग वहीं पर पृथ्वी पर रखा हुआ है। रावण शिवलिंग को पुनः पृथ्वी से उठाने लगा किन्तु वह शिवलिंग उससे उठाया नहीं जा सका। अंततः निराश होकर क्रोधवश उसने उस शिवलिंग पर अपना अंगूठा रखते हुए उसे पृथ्वी में धंसाने का प्रयत्न करते हुए लंका की ओर बढ़ गया। वहां से रावण के चले जाने के पश्चात ब्रह्मा ,विष्णु आदि अन्य देवता के साथ वहां उपस्थित होकर उस शिवलिंग की विधिवत पूजा की और उसी स्थल हरीतकी वन में उसकी स्थापना कर दी। बाद में रावण ने पुनः शिव की तपस्या की तब भगवान शिव प्रकट होकर यह कहा कि रावण तुमने मेरी शर्त की अवहेलना की है, अतः अब यह शिवलिंग यहीं स्थापित माना जायेगा किन्तु मेरे साथ तुम्हारा नाम जोड़कर इन्हें सम्बोधित अवश्य किया जायेगा। इस प्रकार उस ज्योतिर्लिंग को रावणेश्वर बैजनाथ की संज्ञा दी गई।
बैजनाथ धाम के नामकरण के संदर्भ में एक लोक कथा के अनुसार बैजू नामक एक भील प्रमुख अपने जानवर चराते समय प्रतिदिन दोपहर के भोजन के पूर्व यहां स्थित शिवलिंग डण्डे से प्रहार करने का नियम बना लिया था। एक दिन उसकी गाय जंगल में कहीं खो गई थी और उसको ढूढ़ने में शाम हो गई थी इसी कारण उस दिन शिवलिंग पर डंडा नहीं मार सका था। रात्रि में भोजन के समय उसे याद आया तब वह भोजन छोड़कर उस स्थल पर गया और शिवलिंग पर डण्डा मार ही रहा था कि भगवान शिव उसके नियम की कटिबद्धता देखकर प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वरदान मांगने को कहा। बैजू शिवजी को देखकर सहजभाव से बोला कि प्रभु मेरी इच्छा है कि आपको मेरे नाम से जाना जाये। शिव तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। इस घटना के बाद से उस शिवलिंग को बैजू के नाथ बैजनाथ के नाम से जाना जाने लगा। वर्तमान में इस स्थल पर एक भव्य मंदिर बना हुआ है जिसके गर्भगृह में भगवान शिव का वह ज्योतिर्लिंग स्थापित है। प्रत्येकवर्ष श्रावण मास में यहां मेले का आयोजन होता है तथा देवघर से १०५ किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित सुल्तानगंज से गंगा जल भरकर श्रद्धालुगण पैदल चलकर देवघर स्थित बाबा बैजनाथ का जलाभिषेक करते हैं। श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को यहां कावंरियों की विशेष भीड़ देखने को मिलती है और बम भोले के उच्च स्वर से पूरा परिक्षेत्र गूंज उठता है।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
बैजनाथ धाम का मुख्य आकर्षण केन्द्र बैजनाथ मन्दिर जहां बाबा भोलेनाथ की पवित्र ज्योतिर्लिंग स्थापित है ,माना जाता है। इस मंदिर के निकट ही एक विशाल तालाब स्थित है। बाबा बैजनाथ का मुख्य मंदिर अत्यन्त प्राचीन है जिसके आस पास अन्य मंदिर भी बने हुए हैं। शिव मंदिर से सम्बद्ध मां पार्वती जी का मंदिर स्थापित है जिसमें भगवान शिव के साथ साथ मां पार्वती की भी पूजा अर्चना की जाती है। बैजनाथ धाम परिसर में ही कई अन्य धार्मिक स्थल जैसे जगत जननी मन्दिर ,सिद्धिदाता गणेश मन्दिर एवं मुख्य मंदिर के चारों ओर बने हुए २२ अन्य देवी देवताओं के मन्दिर प्रमुख हैं। मुख्य मंदिर के उत्तर की ओर शिवगंगा नदी प्रवाहित हैं। यहां के अन्य धार्मिक स्थलों में युगल मंदिर ,त्रिकुटाचल पर्वत ,तपोवन ,नंदन पर्वत ,रामकृष्ण विद्यापीठ ,मुख्य बासुकिनाथ मंदिर तथा ठाकुर अनुकूल चन्द्र चक्रवर्ती का सत्संग आश्रम प्रमुख हैं। सत्संग आश्रम बैजनाथ मंदिर से ३-४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यह राधास्वामी पंथ का पवित्र स्थल है। इनके अनुयायी इन्हें कल्कि अवतार भी मानते हैं।
बैजनाथ की पावन यात्रा श्रावण मास से प्रारम्भ होती है। सर्वप्रथम श्रद्धालु सुल्तानगंज से अपने पात्रों में गंगाजल भरते हैं ततपश्चात उसे अपने कांवर में रखकर १०५ किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हुए बैजनाथ मंदिर और बासुकिनाथ की ओर बढ़ते हैं। इस यात्रा के दौरान वे अपनी कांवर को जमीन पर नहीं रखते बल्कि नैत्यिक क्रिया अथवा अन्य आवश्यक कार्य हेतु कुछ समय के लिए उसे अपने सहयोगियों को सौंप देते हैं। श्रद्धालुगण बैजनाथ के दर्शन के साथ ही साथ प्रसिद्ध शिव मंदिर बासुकिनाथ के भी दर्शन करते हैं। बासुकिनाथ देवघर से ४२ किलोमीटर की दूरी पर जरमुण्डी गाँव में स्थित हैं। बाबा बैजनाथ परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में ही तीन अन्य मंदिर बने हुए हैं जिन्हें बैजू मंदिर के नाम से जाना जाता है।
देश- विदेश के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा हुआ दिखाई पड़ता है किन्तु बैजनाथ परिसर में स्थित शिव मंदिरों में पंचशूल लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि रावण पंचशूल से ही अपनी नगरी लंका की सुरक्षा किया करता था और यहां स्थित शिवलिंग रावण के सौजन्य से प्रतिस्थापित हुआ था ,अतः इन मंदिरों में पंचशूल लगाए जाने की प्रथा है। यहां प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से दो दिन पूर्व पंचशूल उतार लिए जाते हैं और उसे श्रद्धालुओं को दर्शन एवं स्पर्श हेतु सौंप दिया जाता है। महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व उसकी विधिवत पूजा करके पुनः मंदिरों के शीर्ष पर यथावत स्थापित कर दिया जाता है। महाशिवरात्रि को शिव मंदिर एवं पार्वती मंदिर का नया गठबन्धन किया जाता है, ततपश्चात श्रद्धालुओं को पूजा अर्चना व जलाभिषेक करने की अनुमति दी जाती है।
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