भगवान शिव के पंचतत्वलिंगों में आकाशतत्वलिंग की मान्यता यहां स्थित नटराज मंदिर को प्राप्त है। चिदम्बरम शब्द चित एवं अम्बरम् दो शब्दों से बना है। चित का अर्थ चेतना एवं अम्बरम् का अर्थ आकाश होता है। चिदम्बरम प्राचीन तीर्थस्थल को भगवान शिव का क्रीड़ा -स्थल माना जाता है। यहां पर विष्वविख्यात एवं अत्यन्त दुर्लभ भगवान शिव की तांडव मुद्रा में नटराज की भव्यमूर्ति विद्यमान है। यह वही नटराज की मूर्ति है जो पाणिनि को व्याकरण के चौदह सूत्रों के सूत्रपात हेतु प्रेरित किया था तथा सनकादि मुनि को द्वैत एवं अद्वैत का ब्रह्मज्ञान प्रदान किया था। प्रातः ११ बजे भगवान शिव के अभिषेक के समय एवं रात्रि में दर्शनार्थी यहां स्थित स्फटिक मणि मूर्ति के दर्शन करते हैं। नटराज को नटेश्वर की भी संज्ञा दी गई है। यहां स्थित नटराज की मूर्ति पूर्णतयः स्वर्ण धातु की बनी हुई है और नटराज के रूप में भगवान शिव को नृत्य करते हुए प्रदर्शित किया गया है।
भगवान शिव यहां नटराज के रूप में अपने दाएँ हाथ को अभयमुद्रा में ऊपर उठाये हुए तथा एक पैर को ज्वालाओं के चक्र में रखकर दुसरे पैर से एक राक्षस को दबाये हुए दीखते हैं। मूर्ति के समक्ष लगे पर्दे को उठाने पर ॐ के आकार में कई दर्पण एक साथ जगमगाने जिसे चिदम्बरम रहस्य के नाम से सम्बोधित किया जाता है और इसे ही आकाशलिंगम का दर्शन माना जाता है। यह तीर्थस्थल शैव सम्प्रदाय का प्रमुख धार्मिक केंद्र है। इस मन्दिर के शिखर पर भरतमुनि के नाट्यशास्त्र पर आधारित भरतनाट्यम शैली की १०८ मुद्राओं में नर्तक एवं नर्तकियों की मूर्तियां चित्रित की गई हैं।
भौगोलिक स्थिति :-
भारतवर्ष के दक्षिणी पूर्वी प्रान्त तमिलनाडु के कुड्डालोर जनपद में यह दक्षिण भारत का प्रसिद्ध तीर्थस्थल स्थित है। कुड्डालोर पांडिचेरी से दक्षिण की ओर लगभग ७८ किलोमीटर की दूरी पर है और कुड्डालोर से ६० किलोमीटर की दूरी पर चिदम्बरम धर्मस्थल स्थित है।यह समुद्रतट से ५ किलोमीटर की दूरी पर कावेरी नदी के तट पर स्थित है। यहां स्थित प्रमुख मंदिर में कोई भी मूर्ति स्थापित नहीं है बल्कि दूसरे मंदिर में नटराज की भव्य एवं आकर्षक मूर्ति स्थापित है । शहर के मध्य में ४० एकड़ क्षेत्र में चिदम्बरम के मंदिर का पूरा परिक्षेत्र फैला हुआ है। यह भगवान शिव नटराज एवं भगवान गोविंदराज पेरुमल को समर्पित एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक मंदिर है। इस परिक्षेत्र में शैव एवं वैष्णव दोनों के देवता एक ही स्थान पर प्रतिष्ठित हैं। यहां आवागमन के साधनों में सड़कमार्ग एवं रेलमार्ग प्रमुख हैं। तमिलनाडु के प्रमुख शहरों से नियमित बस सेवा उपलब्ध है। यह मंदिर मद्रास से लगभग २४२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
हिन्दू धर्मशास्त्रों में चिदम्बरम को यहां के पांच पवित्र शिव मंदिरों में प्रमुख बताया गया है। इन पांच मंदिरों में प्रत्येक मंदिर पांच प्राकृतिक तत्वों में से किसी एक तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। चिदंबरम आकाश का प्रतिनिधित्व करता है और इस श्रेणी के चार अन्य मंदिर थिरुवनाई कवल जम्बुकेश्वरा जल का ,कांची एकाम्बेश्वरा पृथ्वी का ,थिरुवन्नामलाई अरुनाचलेस्वरा अग्नि को और कालहस्ती नाथर वायु का प्रतिनिधित्व करता है। चिदम्बरम के सम्बन्ध में पुराणों में बताया गया है कि भगवान शिव यहां के थिलाई वनम में प्रवास किये थे और थिलाई के जंगलों को ऋषियों एवं साधुओं की तपस्थली भी बताई जाती है। कहते हैं कि यहां भगवान पितचातंदर भिक्षुक के रूप में भ्रमण किया करते थे और उनके पीछे मोहिनी रूप में भगवान विष्णु भी सहचरी के रूप में चलतीं थीं। ऋषिगण एवं उनकी पत्नियां मोहक भिक्षुक और उनकी सहचरी की आभा पर मोहित हो जतिन थीं। अपनी पत्नियों को मोहित देखकर ऋषिगण क्रोधवश जादुई शक्तियों जैसे सर्पों ,नागों का आह्वान करते तब भगवान उन सर्पों को उठाकर अपने गले आभूषण के रूप में धारण कर लेते थे। पुनः ऋषिगण अपनी शक्तियों से जब बाघ उत्पन्न करते तो भगवान उसकी खाल निकालकर अपने कमर में धारण कर लेते। यह देखकर अन्ततः ऋषिगण एक शक्तिशाली राक्षस मुयालकन को उत्पन्न किया तब भगवान शिव उसकी पीठ पर सवार होकर आनंद तांडव करते हुए अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हो जाते तब ऋषिगण वास्तविकता को जानकर भगवान के समक्ष समर्पण कर देते। आनंद तांडव के सम्बन्ध में बताया जाता है कि अधिशेष सर्प जो विष्णु अवतार में भगवान विष्णु की शैय्या के रूप में विराजते हैं और वे आनंद तांडव देखने को अतिआतुर होते तब भगवान उन्हें थिलाई के वन में पतंजिलि के साध्विक रूप में भेज देते थे और वे वहां भगवान शिव की पूजा करते थे और वहीं पर भगवान शिव इन दोनों ऋषियों के लिए अपने शाश्वत आनंद का प्रदर्शन नटराज के रूप में करते थे। चिदम्बरम मंदिर में भगवान शिव अपने तीन स्वरूप यथा रूप ,अर्द्धरूप और आकर रहित स्वरूप में विराजमान बताए जाते हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
मुख्य रूप से यह स्थल चिदम्बरम मंदिर के लिए ही विश्व विख्यात है। इस मंदिर के भीतर एक भव्य सभागृह बना हुआ है जिनमें चोल एवं पाडिया राजाओं की कतिपय विजयगाथाएं चित्रित हैं। इस मंदिर में हजारों खम्भे बने हुए हैं तथा सभागृह की लम्बाई १०४ मीटर एवं चौड़ाई ४३ मीटर बताई जाती है। चित्र सभागृह में ही आकाशलिंगम एवं कनक सभागृह में नटराज की स्वर्ण निर्मित मूर्ति स्थापित है। नटराज मंदिर के बाहर परिक्षेत्र में ही शिव गंगा सरोवर स्थित है और उसी के निकट पार्वती जी का मंदिर बना हुआ है। इसे शिवकाम सुन्दरी भी कहा जाता है। पार्वती मंदिर के निकट सुब्रह्मण्यम का विश्व प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। मंदिर के परिसर में अन्य कतिपय छोटे धार्मिक स्थल बने हुए हैं। चिदम्बरम मंदिर के अन्दर और बाहर परिसर में अनेकों जलनिकय अर्थात थीर्थम उपलब्ध हैं। चिदम्बरम को पञ्चकूपस्थलों में से एक माना जाता है जहां भगवान की पूजा उनके अवतार के रूप में होती है। चिदम्बरम के गर्भगृह में नटराज के रूप में विराजित मानवरूपी देवता को सकल थिरूपेंनी, चन्द्रमौलेश्वर के स्फटिक लिंग के रूप में अर्धमानव रुपी देवता को निष्कला थिरुमेंनी और रिक्त पड़े स्थान के रूप में आकार रहित देवता बताया जाता है। यहां के अन्य धार्मिक स्थलों में प्रसिद्ध स्थान थिरुआदिमूलनाथर है जहां ऋषि पतंजिलि शिवलिंगम की पूजा करते थे। अरुबाथथूभूवर को शिव के ६३ प्रमुख भक्तों का निवास स्थान माना जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य कई छोटे धार्मिक स्थल यहां पर स्थित हैं।
यहां का दूसरा मुख्य मंदिर गोविंदराज मंदिर है जिसमें भगवान विष्णु की आकर्षक एवं भव्य शेषशायी मूर्ति अवस्थित है। इस मंदिर प्रांगण में कई सभास्थल हैं जिनमें अनेक देवी देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं। प्रांगण में ही शिवगंगा नामक एक पवित्र कुंड है जिसके जल में औषधीय गन पाया जाता है।
चिदम्बरम मंदिर के निकटवर्ती अन्य मंदिरों में वरेमादेवि मंदिर नगर से १५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नगर से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्टेशन से थोड़ी ही दूरी पर एक प्राचीन शिव मंदिर स्थित है जहां विभिषित ऋषि ने शिव जी की आराधना की थी। श्रीमुण्यम मंदिर नगर से २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसमें वाराह की भव्य मूर्ति स्थापित है। इसके अतिरिक्त श्रीदेवी ,भूदेवी ,बालकृष्ण भगवान की प्रतिमाएं स्थापित की गईं हैं। शिवली व काटमनार गुड़ी मंदिर नगर से १५ किलोमीटर की दूरी पर है जिसमें श्री विष्णुवा वीरनारायण की मूर्ति स्थापित की गई है। नगर से ३० किलोमीटर की दूरी पर स्थित केतु मंदिर में नवग्रह केतु की मूर्ति स्थापित है।
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