Thursday, May 26, 2016

महालक्ष्मी मन्दिर

 आदिमाया महालक्ष्मी का प्रसिद्ध मन्दिर जो  कोल्हापुर में स्थित है तथा जिसे दक्षिण की काशी के नाम से भी जाना जाता है, को  एक शक्तिपीठ के रूप  में जाना जाता है।  कहा जाता है कि श्रद्धालुओं की समस्त मनोकामनाएं यहां महालक्ष्मी के दर्शन मात्र से ही पूर्ण हो जाती हैं। जगतजननी जगदम्बा को समर्पित यह मंदिर बहुत ही प्राचीन एवं भव्य मंदिर है। यहां के निवासीगण इस स्थल को भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी जी का निवास मानते हुए स्वयं को अत्यधिक गौरवशाली महशूस करते हैं। इसे दक्षिण की काशी की संज्ञा इसलिए दी जाती है क्योंकि काशी की भाँति कोल्हापुर में भी सैकड़ों मंदिर विभिन्न देवी देवताओं की स्मृति में बने हुए हैं। 

भौगोलिक स्थिति :-

भारत के महाराष्ट्र प्रान्त में कोल्हापुर शहर में महालक्ष्मी जी का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है।यह कोल्हापुर नगर के मध्य में ब्रह्मगिरि स्थल पर अन्य मंदिरों तथा बौद्ध स्तूपों के बीच अवस्थित है।  इस मंदिर की भव्यता ,प्राचीनता एवं माहात्म्य के कारण ही यह भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में जाना जाता है। इस मंदिर के चारों ओर चारों दिशाओं में चार विशाल दरवाजे बने हुए हैं। पश्चिमी दिशा में स्थित दरवाजा महाद्वार कहलाता है। कोल्हापुर मुम्बई से बंगलौर सड़कमार्ग द्वारा पूना से बस द्वारा १४६ मील चलकर पहुंचा जा सकता है। यहां का नजदीकी हवाई अड्डा बेलगाँव है जो कोल्हापुर से १५० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। रेलमार्ग द्वारा यह भारत के सभी प्रमुख नगरों से जुड़ा हुआ है। पुणे से कोल्हापुर रेलमार्ग पर कोल्हापुर रेलवे स्टेशन पड़ता है।कोल्हापुर  के लिए मुंबई से रेल द्वारा मिराज होकर अथवा महाराष्ट्र एक्सप्रेस से पंहुचा जा सकता है।  कोल्हापुर नगर पुणे-बंगलौर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या- ४ पर स्थित है और कोल्हापुर से मुम्बई ,पणजी ,मिराज ,सांगली ,पुणे ,सतारा ,सावंतवाडी ,सोलापुर और अन्य शहरों से राज्य परिवहन की नियमित बसों के द्वारा यहां तक पहुंचा जा सकता है। 

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

स्कन्दपुराण में इसे करवीर क्षेत्र कहा गया है क्योंकि मां लक्ष्मी नित्य निवास करतीं हैं :-
क्षेत्रं वै करवीराख्यं क्षेत्रं लक्ष्मी विनिर्मितम्। 
तत्क्षेत्रे हि महत्पुष्पं दर्शनात पापनाशनम्।  
कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मन्दिर को आदि महामाया मंदिर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां स्थित महालक्ष्मी का मंदिर बहुत अधिक प्राचीन एवं सिद्धपीठ के रूप में विश्व प्रसिद्ध है। पुराणों के अनुसार इस शक्तिपीठ में शक्तिमात्ता लक्ष्मी विराजमान होकर जनकल्याण के लिए अपने भक्तजनों का परिपालन करती आयीं हैं। कन्नड़ के चालुक्य साम्राज्य के शासनकाल में लगभग ७०० ई० पू० इस मंदिर का निर्माण होना बताया जाता है। यहाँ  एक काले पत्थर के विशाल चबूतरे पर देवी महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थित है जिन्हें चार हाथ और सिर पर भव्य एवं भारी मुकुट धारण किये हुए प्रदर्शित किया गया है। कहा जाता है कि इस मुकुट का वजन ४० किलोग्राम है।  महालक्ष्मी की मूर्ति की ऊँचाई ४ फिट है तथा मंदिर की दीवार पर श्रीयंत्र का चित्र खुद हुआ है। मूर्ति के चारों हाथों में अपने निचले दाहिने हाथ में मातलुंगफल ,ऊपरी दाहिने हाथ में गदा ,ऊपरी बाएं हाथ में ढाल और निचले बांयें हाथ में जलपात्र कटोरा लिए हुए हैं। देवी के मुकुट में भगवान विष्णु के शेषनाग का चित्र बना हुआ है और मूर्ति के पीछे देवी के वाहन शेर की प्रतिमा बनी हुई है। 
यह मन्दिर द्रविण शैली में काले  मजबूत पत्थरों से बना हुआ है और इस मंदिर के निर्माण में लकड़ी का प्रयोग बिल्कुल नहीं हुआ है।  शायद इसीलिए यह विगत १५०० वर्षों से  यथावत दिखाई पड़ता है। इस मंदिर की लम्बाई २०० फिट और चौड़ाई १५० फिट है। मूल मंदिर की ऊँचाई ६५ फिट है और इसके अन्दर स्थित नवग्रहों ,सूर्य ,महिषासुरमर्धिनि,विट्ठल रखमाई,शिवजी ,विष्णुजी ,तुलजाभवानी आदि देवी देवताओं की प्रतिमाएं बनी हुई हैं।  इनमें से कुछ प्रतिमाएं ११ वीं शदी की भी हैं। कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी को कुछ विद्वान विष्णुजी की पत्नी लक्ष्मी अथवा शिव जी की पत्नी पार्वती  न मानकर इन्हें आदिमाया जगदम्बा एवं जगतजननी की मूर्ति मानते हैं जो सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति का कारण हैं। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

महालक्ष्मी मन्दिर परिसर के आँगन में स्थित मणिकर्णिका कुण्ड के तट पर विशेश्वर महादेव जी का प्राचीन मन्दिर बना हुआ है। महालक्ष्मी मन्दिर के परिसर में ही विठ्ठल,सत्यनारायण,गौरी शंकर,काशी विश्वेश्वर, सिद्धेश्वर,दत्तात्रेय,नवग्रह,मुक्तेश्वरी,शाकम्बरी,कुंडलेश्वर,केदारलिंग,आदि कई छोटे छोटे मंदिर व धार्मिक स्थल बने हुए हैं। महालक्ष्मी मंदिर की दीवारों पर चौसठ योगिनियों की नृत्य मुद्रा में अनेक मूर्तियां बनायी गईं हैं।
त्रयंवुली मंदिर:-कोल्हापुर से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक पहाड़ी पर त्रयंवुली मंदिर स्थित है जो महालक्ष्मी मंदिर के बाद दूसरा महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है। कहा जाता है कि त्रयंवुली महालक्ष्मी की छोटी बहन थीं। इसी पहाड़ी पर अन्य कई छोटे छोटे मंदिर बने हुए हैं। दक्षिणी कोल्हापुर के वारलिंगे गाँव में देवी कात्यायनी का मंदिर बना हुआ है जो यहां से १२ किलोमीटर की दूरी पर है। कोल्हापुर के घाट व तालाब बहुत ही  भव्य एवं सुन्दर बने हुए हैं। रंकाला नामक तालाब इतना भव्य है कि उसकी परिधि ५ किलोमीटर की है। कपिल तीर्थ व पद्मालय प्राचीनकाल के तालाब अब पाट दिए गए हैं। 
काशी विश्वेशवर मन्दिर :- यह यहां का प्रसिद्ध मंदिर है जो महालक्ष्मी मंदिर के उत्तर में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण छठी शताब्दी में करवाया गया था और इसका विस्तार राजा गोंडाडिक्स ने किया था । कहा जाता है कि  ऋषि अगस्ति ,लोपमुद्रा ,राजा प्रहलाद,और राजा इंद्रसेन भगवान शिव के दर्शन करने हेतु यहां पधारे थे। मंदिर के निर्माण के पूर्व यहां काशी और मणिकनिका नामक दो तालाब थे जिसमें से मणिकनिका तालाब के स्थान पर अब महालक्ष्मी उद्यान बनवा दिया गया है।
जोतिबा मंदिर:- कोल्हापुर से उत्तर में स्थित पहाड़ी पर जोतिबा मंदिर स्थित है जिसका निर्माण १७३० ई में नवाजीसवा ने करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला प्राचीन शैली की है और यहां स्थित प्रतिमा चार भुजाधारी है। जोतिबा को भैरव का पुनर्जन्म माना जाता है। भैरव ने महालक्ष्मी एवं रत्नासुर के मध्य हुए युद्ध में महालक्ष्मी का साथ दिया था। पहले इसका नाम रत्नगिरि था किन्तु स्थानीय लोगों ने बाद में इसे जोतिबा की संज्ञा दे दी।
महालक्ष्मी मंदिर के पश्चिम में स्थित रनकला झील पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र मानी जाती है। इस झील का निर्माण महाराजा छत्रपति शाहू जी ने करवाया था। कोल्हापुर मंदिरों का नगर तथा दक्षिण की काशी इसीलिए कही जाती है क्योंकि यहां पर सैकड़ों देवी देवताओं के मंदिर बने हुए हैं। यहां स्थित महालक्ष्मी मंदिर के सम्बन्ध में बताया जाता है कि सूर्य भगवान प्रत्येक वर्ष दो बार महालक्ष्मी के चरण स्पर्श करके उनकी पूजा करने हेतु यहां उपस्थित होते  हैं। रथसप्तमी के अवसर पर यह विशेष योग बनता है। प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में भी यह योग देखा जाता है। यह आयोजन तीन दिन तक चलता है। प्रथम दिन सूर्य की किरणें देवी के चरणों पर पड़तीं हैं ,दूसरे दिन प्रतिमा के मध्य भाग को स्पर्श करतीं हैं और तीसरे दिन देवी के मुखमण्डल को प्रकाशमय करतीं हैं। जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा अपनी इष्ट देवी के निमित्त यहां पर पद्मावती मंदिर का निर्माण करवाया गया है। यहीं पर समाधि मंदिर रानीबाग के निकट स्थित है। यहां पर शम्भाजी ,शिवाजी एवं ताराबाई  की समाधियां बनी हुईं हैं। यहां स्थित गुफाओं में पावला एवं चैत्य प्रमुख हैं।    

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