Friday, May 20, 2016

नासिक

नासिक को भारत का एक प्रमुख पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। भगवान श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान माता सीता एवं लक्ष्मण के साथ यहां काफी दिनों तक प्रवास किया था। यह स्थल पावन गोदावरी नदी जो भारत की सात पवित्र नदियों में से एक मानी जाती हैं ,का उदगम स्थल भी माना जाता है। यहां पर सांकेतिक रूप से अनेकों तीर्थ विद्यमान बताये जाते हैं और यहां पर प्रत्येक बारह वर्ष के पश्चात कुम्भ मेले का आयोजन होता है। नासिक के अतिरिक्त प्रयाग {इलाहबाद },उज्जैन एवं हरिद्वार में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। यहां के कुम्भ मेले में लाखों श्रद्धालु गोदावरी के पवित्र जल में स्नान करते हैं तथा आत्मशुद्धि प्राप्त करके समस्त पापों से मुक्त हो जाते है। यहां पर शिवरात्रि का पर्व भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहां गोदावरी के तट पर निर्मित घाट बहुत ही सुन्दर,स्वच्छ एवं आकर्षक हैं। नासिक शहर का अधिकांश भाग नासिक पंचवटी कहलाता है। यहां पर हिन्दू धर्म के कई मंदिर बने हुए हैं और त्यौहारों के समय इन मंदिरों में बहुत अधिक भीड़ देखने को मिलती है। इसीलिए नासिक को हिन्दू तीर्थयात्रियों का प्रमुख केंद्र माना जाता है। 

भौगोलिक स्थिति :-

भारतवर्ष के महाराष्ट्र राज्य में नासिक शहर के अन्तर्गत यह तीर्थस्थल गोदावरी के पावन तट पर स्थित है। यह महाराष्ट्र के उत्तर पश्चिम में स्थित मुम्बई से लगभग १५० किलोमीटर और पुणे से लगभग २०५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नासिक शहर का मुख्य भाग पंचवटी में स्थित है। यह समुद्रतल  से ५६५ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसका निकटवर्ती अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा मुंबई है जो नासिक शहर से २०० किलोमीटर की दूरी पर है। हवाई अड्डे से यहां तक प्रीपेड टैक्सी अथवा बस द्वारा पहुंचा जा सकता है। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन नासिक रोड है और यह महाराष्ट्र के प्रमुख शहरों से रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है। रेलमार्ग से यहां तक पहुँचने के लिए मुंबई से नागपुर,कलकत्ता,बिहार और उत्तरप्रदेश की ओर जाने वाली किसी भी ट्रेन से नासिक रोड रेलवे स्टेशन पर उतरकर पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से मुंबई रेलमार्ग पर भी नासिक रोड रेलवे स्टेशन पड़ता है और यहां से नासिक तीर्थस्थल मात्र ६ किलोमीटर व पंचवटी ८ किलोमीटर दूर पड़ता है जहां से तांगा, टैक्सी अथवा बस द्वारा आसानी से यहां पहुंचा जा सकता है। 

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

नासिक को आस्था का तीर्थस्थल एवं शहर माना जाता है।  पुराणों में बताया गया है कि सतयुग में यहां पर भगवान ब्रह्माजी ने पद्मासन में स्थित होकर भगवान विष्णु की तपस्या की थी इसीलिए इसे पदमनगर भी कहते हैं। त्रेतायुग में लक्ष्मण ने सूपर्णखा की नाक यहीं पर काटी थी अतः इसे नासिक की संज्ञा प्रदान की गई और खरदूषण एवं त्रिशिर नामक राक्षसों के निवास के कारण इसे त्रिकण्टक कहा गया। द्वापर में राजा जनक द्वारा यहां यज्ञ किये जाने के कारण इसे जनकस्थली कहा जाता था। नासिक को हरिहर क्षेत्र भी कहा जाता है क्योंकि जालंधर राक्षस की पत्नी वृन्दा के श्राप से भगवान विष्णु जब सालिग्राम हो गए थे तब उन्होंने यहीं पर आकर गोदावरी में स्नान करके अपने पूर्व रूप को प्राप्त किया था। यह भी कहा जाता है कि ब्रह्माजी अपने पांच मुखों में से चार मुखों से वेदपाठ करते थे और पांचवे मुख्य से भगवान विष्णु की निंदा किया करते थे। यह देखकर भगवान शिव ने ब्रह्मा के पांचवे मुख्य को अपने त्रिशूल से काट दिया था और वे ब्रह्महत्या के भागी बन गए थे। इससे निवारण के लिए वे घूमते हुए ऐसे स्थान पर जा पहुंचे जहां एक बछड़ा अपनी मां से यह कह रहा था कि आज मालिक जब मेरे गले में रस्सी बांधने आएगा तब मैं उसे अपनी सींगों से मार डालूंगा। गाय ने उसे समझाते हुए कहा कि ऐसा करोगे तब तुम्हें ब्रह्महत्या का पाप लगेगा। बछड़े ने तुरंत उत्तर दिया कि ब्रह्महत्या के  मुक्त करने वाला तीर्थ मुझे मालूम है। ऐसा सुनकर भगवन शिव कुछ देर वहीं ठहर गए और जब वह बछड़ा अपने मालिक को मारकर भागने लगा तब तब उन्होंने उसका पीछा किया और पीछा करते हुए वे नासिक के पंचवटी तीर्थ आ गए और वहां रामतीर्थ करुणा संगम में बछड़े के साथ साथ स्नान करके पापमुक्त हो गए। तभी से शिवजी वहां कपालेश्वर के रूप में निवास करने लगे किन्तु बछड़े को अपना गुरु मानते हुए उसे अपने पास में स्थान नहीं दिया। कपालेश्वर ही ऐसा स्थान है जहां शिवजी  के साथ नंदी की प्रतिमा स्थापित नहीं है। 
नासिक के सम्बन्ध में एक अन्य कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार समुद्रमंथन से निकले चौदह रत्नों में एक अमृतकलश भी था जिसे प्राप्त करने हेतु देवताओं एवं राक्षसों में भयंकर युद्ध हुआ तभी इन्द्रपुत्र जयन्त  वह अमृतकलश लेकर कहीं दूर भाग गया था और जिन जिन स्थानों पर उसने विश्राम किया था वहां वहां अमृत की कुछ बुँदे जमीन पर टपक गईं थीं। यह चारों स्थान प्रयाग,नासिक,उज्जैन एवं हरिद्वार था। कहते हैं कि यहां पर देवताओं एवं राक्षसों के मध्य बारह दिन तक युद्ध चला था। अतः इन बारह दिनों को बारह वर्ष के समतुल्य मानते हुए इन चारों स्थानों पर बारह वर्ष के अंतराल में कुम्भ मेले का आयोजन होने लगा। 
नासिक में पितृतर्पण एवं श्राद्ध करने का बड़ा महत्व बताया गया है। इसीलिए यहां पर श्रीराम ने अपने पिता का श्राद्ध जिस स्थान पर किया था उस स्थल को रामकुण्ड अथवा रामतीर्थ के नाम से जाना गया। यह भी कहा जाता है कि गंगावतरण के समय गंगा के प्रचण्ड वेग को रोकने हेतु गौतम ऋषि ने कुश का एक तिनका मार्ग में डालकर उसके वेग को पाताललोक की ओर मोड़ दिया था। वास्तविकता का ज्ञान होने पर गौतम ऋषि भगवान विष्णु से अनुरोध किया तब विष्णुजी ने अपने सुदर्शन चक्र चलाकर पाताल लोक से गंगाजी को वापस ले आया। जिस स्थान पर उन्होंने सुदर्शन चक्र से प्रहार किया था वह स्थल चक्रतीर्थ के नाम से जाना गया। 
ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार नासिक कभी शक्तिशाली सातवाहन राजाओं की राजधानी भी थी। मुगलकाल में नासिक को गुलशनबाद के नाम से जाना जाता था।  नासिक ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था तथा आंबेडकर ने १९३२ ई में नासिक के कालेराम मंदिर में अस्पृश्यों के प्रवेश हेतु एक आंदोलन यहीं से चलाया था। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

गोदावरी के दक्षिणी किनारे पर स्थित शहर को नासिक तथा उत्तरी किनारे पर स्थित भूभाग को नासिक पंचवटी के नाम से जाना जाता है।
 नासिक पंचवटी:- नासिक पंचवटी में रामकुण्ड ,सीताकुण्ड,लक्ष्मणकुण्ड एवं धनुषकुण्ड स्थित हैं जिनमें रामकुण्ड को सर्वाधिक महत्व देते हुए उसे रामतीर्थ की संज्ञा दी गई। यहां स्थित पावन गोदावरी के दोनों तटों पर अनेक मंदिर बने हुए हैं। पंचवटी शहर के उत्तरी भाग में स्थित है जहां पर भगवान राम ने सीता व लक्ष्मण के साथ कुछ समय तक निवास किया था और यहीं से सीता जी को रावण ने अपहृत किया था। सूपर्णखा की नाक लक्ष्मण ने यहीं पर काटी थी।  इसीलिए यहां पर सीतागुम्फा स्थित है। 
सुदरनारायन मंदिर:-  मंदिर यहां पर अहिल्याबाई होलकर सेतु के निकट स्थित है। इसकी स्थापना गंगाधर यशवंतचूड ने १७५६ ई में करवाया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है और उन्हें सुंदर नारायण के नाम से जाना जाता है।
 मोदकेश्वर गणेश मंदिर:-यहीं पर स्थित मोदकेश्वर गणेश मंदिर में स्थापित गणेश की मूर्ति के समबन्ध में बताया जाता है कि यह मूर्ति स्वयं धरती से निकली थी।  
 कालेराम मंदिर :-यहां पंचवटी में स्थित कालेराम मंदिर का निर्माण गोपिकाबाई पेशवा ने १७९४ ई में करवाया था। इस मंदिर की वास्तुकला त्र्यम्बकेश्वर मंदिर के समान है तथा इसका निर्माण काले पत्थरों से किया गया है।
सोमेश्वर मंदिर:- यहां पर स्थित सोमेश्वर मंदिर नासिक के प्राचीन मंदिरों में से एक है। इसमें महादेव सोमेश्वर की प्रतिमा स्थापित है और यह मंदिर गंगापुर रोड पर नासिक शहर से ६ किलोमीटर की दूरी पर है। गंगाजी एवं गोदावरी के मंदिर :-नासिक में रामकुण्ड के निकट गंगाजी एवं गोदावरी के मंदिर स्थित हैं। गोदावरी के मंदिर का कपाट बारह वर्ष में एक बार खुलता है। 
अन्य मन्दिर :- यहां स्थित अन्य मंदिरों में कपालेश्वर मंदिर, राम मंदिर,शारदा चन्द्र मंदिर ,मणिलीश्वर मंदिर रामेश्वर सुंदर मंदिर ,उमा माहेश्वर मंदिर ,नीलकंठेश्वर मंदिर ,गोराराम मंदिर,मुरलीधर मंदिर ,तिलमाहेश्वर मंदिर एवं भद्रकाली मंदिर प्रमुख हैं। 
नासिक में लगने वाले कुम्भ को सिंहस्थ के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि सूर्य जब सिंह राशि में होता है तब नासिक में सिंहस्थ होता है।  इसे ही कुम्भ मेला  भी कहा जाता है जो बारह वर्ष में एक बार आयोजित होता है। इस मेले का आयोजन महाराष्ट्र पर्यटन निगम द्वारा किया जाता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु आकर यहां गोदावरी के पावन जल में स्नान करते हैं। मेले में राज्य सरकार की ओर से विशेष प्रबंध किया जाता है। यहां पर स्थित घाट बहुत ही सुन्दर व साफ दिखायी पड़ते हैं। महाशिव रात्रि का पर्व यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। अगस्त मास में श्रावण पूर्णिमा ,सितम्बर मास में भद्रापद अमवस्या को  यहां विशेष आयोजन होता है। यहां के कीर्तिकला मंदिर में कृष्ण जयन्ती महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यहां पर ठहरने के लिए होटल नटराज व ताज रेजीडेंसी उपयुक्त माने जाते हैं।            

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