द्वारिका धाम हिन्दुओं के पावन तीर्थस्थलों में एक प्रमुख तीर्थस्थल तथा चारों धामों में से एक प्रमुख धाम के रूप में जाना जाता है। इसे सप्तपुरियों में प्रमुख पुरी के रूप में भी माना जाता है। प्राचीन काल में यह भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी थी। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के परलोकगमन के पश्चात द्वारिकापुरी समुद्र में समाहित हो गई थी केवल द्वारिकाधीश का मुख्य मन्दिर ही यहां पर शेष रह गया था। सम्प्रति द्वारिका के नाम से मुख्य रूप से दो स्थान जाने जाते हैं। प्रथम गोमती द्वारिका एवं दूसरा बेट द्वारिका। हिन्दू धर्म गर्न्थों के अनुसार द्वारिका को भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी राजधानी बनाकर इसे अपने कार्यक्षेत्र के रूप में मान्यता प्रदान की थी। आधुनिक द्वारिका एक शहर के रूप में विकसित हो चुका है। इसके चारों ओर लम्बी एवं ऊंची एक चहरदीवारी बना दी गई है और इस चहरदीवारी के भीतर सैकड़ों छोटे बड़े मन्दिर बने हुए हैं। आधुनिक द्वारिका में गोमती द्वारिका एवं बेट द्वारिका के संयुक्त क्षेत्र आते हैं। यहां स्थित गोमती नामक एक बड़े तालाब के नाम पर इसे गोमती द्वारिका की संज्ञा दी गई है। पुराणों में वर्णित मुख्य द्वारिका के संबन्ध में शोधकर्ताओं ने काफी प्रयास करके उसके मूल रूप का पता लगाने का प्रयास किया किन्तु अभी तक वैज्ञानिक किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाए हैं। वर्ष २००५ में भारतीय नौ सेना के सहयोग से भी एक अभियान प्रारम्भ किया गया किन्तु इस अभियान में भी केवल समुद्र के अन्दर से कुछ पत्थर ही मिल पाए हैं। अभी तक यह सिद्ध नहीं हो पाया है कि ये वही पत्थर हैं जिनसे भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारिकापुरी को बसाया था। यद्यपि अभी भी वैज्ञानिकों का प्रयास जारी है और वे द्वारिका के तटवर्ती समुद्र में इसके समा जाने के रहस्य से पर्दा उठाने का अथक प्रयास कर रहें हैं।
भौगोलिक स्थिति :-
पश्चिमोत्तर भारत के गुजरात प्रान्त में द्वारिका जिले के अन्तर्गत यह पवित्र तीर्थस्थल स्थित है। भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित इस शहर को हजारों वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण द्वारा बनवाया गया था। सम्प्रति द्वारिका के दक्षिण में स्थित एक विशाल तालाब जिसे गोमती तालाब कहते हैं ,के नाम से इस गोमती द्वारिका के नाम से जाना जाता है। यद्यपि द्वारिका एक छोटा सा शहर है किन्तु इसका प्राकृतिक सौन्दर्य बहुत ही मनमोहक है। एक ओर पश्चिमी तट पर समुद्र की लहरें क्रीड़ा करती हैं तो दूसरी तरफ तटवर्ती समुद्र में कुछ दूरी तक एक बाड़ लगा दी गई है। इस बाड़ के अन्दर कई मंदिर बने हुए हैं। यह स्थल देश के प्रमुख शहरों से वायुमार्ग ,रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
पौराणिक साक्ष्य के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण मथुरा में जन्म लिए थे किन्तु इनका लालन पालन गोकुल में माता यशोदा व नन्दबाबा द्वारा किया गया था। इनकी बाल -लीला गोकुल की धरती पर हुई थी किन्तु श्रीकृष्ण का कार्यक्षेत्र द्वारिकापुरी ही थी। यहीं से भगवान श्रीकृष्ण ने सम्पूर्ण भारतवर्ष पर शासन किया करते थे। यहीं से पाण्डवों की सहायता कर कुरुक्षेत्र में महाभारत के युद्ध का संचालन किया था और शिशुपाल एवं दुर्योधन जैसे अधर्मी राजाओं का विनाश किया था। श्रीकृष्ण ने द्वारिका को ही अपनी कर्मभूमि एवं शासकीय राजधानी घोषित की थी। इस प्रकार द्वारिका एक धार्मिक महत्व का पुनीत स्थल माना जाता है। द्वापर में विश्वकर्मा द्वारा लगभग पांच योजन में इस द्वारिकापुरी का निर्माण करवाया गया था। यहां पर द्वारिकाधीश ,रणछोर ,टीकमजी महराज ,वासुदेव ,प्रद्युम्न एवं अनिरुद्ध जी के प्रसिद्ध मंदिर स्थापित किये गए हैं। श्रीकृष्ण की आठ प्रमुख महारानियों के स्नान के लिए ज्ञानतीर्थ ,बलभद्रतीर्थ ,कृष्ण कुंड ,गोमती तीर्थ आदि का निर्माण करवाया गया था।
द्वारिका धाम पश्चिमी रेलवे शाखा के अंतर्गत सुरेंद्रनगर ओखा जंकशन निकट द्वारिका रेलवे स्टेशन के समीप स्थित है। एक रेलवे लाइन मेहसना स्टेशन से दिल्ली -अहमदाबाद रेलमार्ग की ओर सुरेंद्रनगर होकर जाती है। द्वारिका धाम द्वारिका रेलवे स्टेशन से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। समुद्रमार्ग द्वारा बम्बई से ओखा बन्दरगाह पहुंचकर द्वारिकाधाम आसानी से पहुंचा जा सकता है।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
द्वारिका धाम परिक्षेत्र में मुख्य मंदिर द्वारिकाधीश जी का मंदिर है किन्तु यहां पर अन्य मंदिर अथवा धार्मिक महत्व के स्थल भी दर्शनीय हैं जो निम्नवत हैं :-
गोमतीतीर्थ :-पश्चिमी एवं दक्षिणी द्वारिका के समानान्तर उस स्थल जहां समुद्र का जल विद्यमान है ,को गोमती तीर्थ कहा जाता है। यह कोई नदी नहीं है बल्कि समुद्र -जल से आच्छादित क्षेत्र है। इसके उत्तरी किनारे पर स्नान के लिए नौ घाट निर्मित हैं जिन्हें संगमघाट ,नारायण घाट ,वासुदेव घाट ,गऊघाट ,पार्वतीघाट ,पांडव घाट ,ब्रह्मघाट सुधन घाट और सरकारी घाट के नाम से जाना जाता है। संगमघाट गोमतीतीर्थ एवं समुद्र के कार्नर पर स्थित है। इस घाट पर संगमनरायन मंदिर स्थित है। वासुदेव घाट पर हनुमानजी का मंदिर एवं नृसिंह देव जी का मंदिर बना हुआ है।
निष्पाप सरोवर :-गोमती सरोवर पर स्थित नौ घाटों पर श्रद्धालुओं द्वारा स्नान किया जाता है। सरकारी घाट के निकट स्थित निष्पाप सरोवर अथवा कुंड में भी स्नानार्थी स्नान कर अपने को शुद्ध करते हैं। इस स्थल पर पिण्डदान क्रिया भी सम्पन्न की जाता है। यहां पर स्नान करके श्रद्धालु गोमतीतीर्थ की ओर प्रस्थान करते हैं। इसके सम्मुख गोवर्धन नाथ एवं वल्ल्भाचार्य महाप्रभु के मंदिर तथा पांच मीठे जल के कुएं स्थित हैं।
रणछोर जी मन्दिर :-यह स्थल द्वारिका धाम का प्रमुख धार्मिक केंद्र माना जाता है। गोमती तीर्थ के सन्निकट स्थित इस मंदिर तक पहुँचने के पूर्व श्रद्धालुगण निष्पाप कुंड में स्नान करने के उपरांत यहीं पर स्थित पांच कुओं के पानी से कुल्ला अथवा आचमन करते हैं, तब रणछोर मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। मार्ग में श्रीकृष्ण जी ,गोमती माता और महालक्ष्मी के मंदिर पड़ते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को गुजरात में रणछोर जी के नाम से जाना जाता है। सम्मुख श्रीकृष्ण जी की चार फुट ऊंची मूर्ति बनी हुई है जो चांदी के सिंहासन पर विराजमान है। यह मूर्ति काले पत्थर की बनी हुई है और हीरे मोती से इसका अलंकरण किया गया है। सोने की ग्यारह मालाएं गले में तथा कीमती पीले वस्त्र से मूर्ति अलंकृत की गई है। चतुर्भुजी श्रीकृष्ण जी के एक हाथ में शंख ,एक में सुदर्शन चक्र ,एक में गदा तथा एक हाथ में कमल का फूल स्थित है। श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण की परिक्रमा कर उनपर तुलसी पत्र चढ़ाते हैं। वे इस परिक्रमा के पश्चात मंदिर की भी परिक्रमा किया करते हैं। इस मंदिर के पांचवें तल पर अम्बा जी की मूर्ति रखी गई है। मंदिर के उत्तर में भगवान त्रिविक्रम मंदिर के निकट राजा बलि एवं सनकादि की छोटी मूर्तियां विराजमान हैं और मंदिर के उत्तर में प्रद्युम्न जी एवं पूर्व में दुर्वासा जी का मंदिर बना हुआ है। मोक्षद्वार के पश्चिम में कुशेश्वर शिव का मंदिर स्थित है जिसे मोक्षद्वार कहा जाता है। कुशेश्वर मंदिर के पास अम्बाजी एवं देवकी माता के मंदिर हैं तथा राधा ,रुक्मिणी ,सत्यभामा एवं जामवंती के छोटे छोटे मंदिर वहीं पर बने हुए हैं। रणछोर जी के दर्शन के बाद मंदिर की भी परिक्रमा की जाती है। मंदिर की दोहरी दीवार के मध्य से यह परिक्रमा सम्पन्न करनी पड़ती है। रणछोर मंदिर के सामने १०० फुट ऊंचा एवं काफी लम्बा -चौड़ा एक जगमोहन बना हुआ है जो पांच मंजिला होने के साथ साथ साठ खम्भों पर टिका हुआ है। दुर्वासा एवं त्रिभुवन मंदिर भी यहीं पर स्थित है। कुशेश्वर मंदिर के दक्षिण में ६ अन्य मंदिर बने हुए हैं जिनमें अम्बाजी व देवकी माता मंदिर प्रमुख हैं। दक्षिण में भगवान का भण्डारा व शारदा मठ स्थित है।
चक्रतीर्थ :-संगमघाट के उत्तर में समुद्र के ऊपर एक घाट बना हुआ है जिसे चक्रतीर्थ कहा जाता है। इसके निकट ही रत्नेश्वर मंदिर और आगे की ओर सिद्धनाथ महादेव का मंदिर है और इसी के सम्मुख स्थित बावली को ज्ञानकुण्ड के नाम से जाना जाता है। इससे आगे बढ़ने पर जुनीराम बाड़ी स्थित है जिसमें राम लक्ष्मण व सीता की मूर्तियां स्थापित हैं। इसी के निकट स्थित सौमित्रि बावली को लक्ष्मण जी की बावली के नाम से भी जाना जाता है। यही पर काली माता और आशापुरी माता की मूर्तियां स्थापित हैं। इन सभी मन्दिरों के दर्शन करते हुए श्रद्धालु कैलाशकुंड आते हैं जहां सूर्यनारायण जी के मंदिर के दर्शन होते हैं। इन सभी मंदिरों की परिक्रमा के पश्चात पुनः निष्पाप कुंड आकर परिक्रमा को पूर्ण किया जाता है।
द्वारिका धाम में ही नागेश्वर गोपी तालाब के निकट स्थित है। यहां की जमीन पीले रँग की है और इसी पीली मिटटी को गोपी चन्दन कहा जाता है। गोपी तालाब से तीन मील आगे स्थित नागेश्वर मंदिर में शिव एवं मां पार्वती की मूर्तियां रखीं हैं। बेट द्वारिका टापू में भगवान द्वारिकाधीश मंदिर से सात किलोमीटर की दूरी पर चौरासी धुना नामक प्राचीन एवं ऐतिहासिक तीर्थस्थल स्थित है। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी के चारों मानसिक पुत्रों सनक ,सनंदन ,सनतकुमार ,और सनातन ने ब्रह्मा जी की सृष्टि रचना की आज्ञा को न मानकर यहां पर उदासीन सम्प्रदाय की स्थापना की थी। इन्हीं उदासीन संतों ने यहीं पर चौरासी धुना स्थापित करके साधना व तप किया था और ब्रह्मा जी के एक धुनें की महिमा एक लाख बताते हुए चौरासी धुनों के प्रतिस्वरुप चौरासी लाख योनियाँ निर्मित करने का सांकेतिक उपदेश दिया था। इसीलिए इसे चौरासी धुना कहा जाता है।
शंख तालाब :-रणछोर मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर शंख तालाब स्थित है जहां श्रीकृष्ण जी ने शंख नामक राक्षस का वध किया था। इसी के किनारे पर शंख नारायण मंदिर बना हुआ है। शंख तालाब में स्नान करके श्रद्धालु शंख नारायण मंदिर में भगवान के दर्शन करते हैं। बेट द्वारिका से समुद्र मार्ग पर बिदावल बन्दरगाह से तीन चार किलोमीटर पर सोमनाथ भट्टल कस्बा मिलता है जहां बहुत बड़ी धर्मशाला स्थित है तथा निकट ही कई अन्य मंदिर बने हुए हैं। यहां से कुछ ही दूरी पर हिरण्य ,सरस्वती एवं कपिला नदियों का संगम स्थित है जहां श्रीकृष्ण जी ने शरीर त्याग किया था।
द्वारिका को सभी तीर्थों में उत्तम माना जाता है इसीलिए कहा जाता है कि जो श्रद्धालु यहां पर जाकर होम,जप,दान ,स्नान और तप करता है, वह अक्षय फलदायक हो जाता है। मनुष्य जब तक द्वारिका धाम जाकर भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन नहीं कर लेता तभी तक उसका शरीर कलुषित रहता है और जो वहां जाकर श्रीकृष्ण के दर्शन कर लेता है उसे साक्षात् मुक्ति मिल जाती है।
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