पश्चिमी बंगाल क्षेत्र की प्रसिद्ध देवी तारा की पूजा का प्रमुख केंद्र होने के कारण इस स्थल को तारापीठ के नाम से जाना जाता है। यह एक प्रसिद्ध सिद्धपीठ भी है तथा पुराणों में इसे इक्यावन शक्तिपीठों में से एक पवित्र शक्तिपीठ माना गया है। पंडित रामकृष्ण परमहंस के समकालीन वामाक्षेपा तारापीठ के सिद्ध अघोरी संत उनके परमभक्त थे। इसके निकट ही बकरेश्वर ,बालहाटेश्वर ,बन्दीकेश्वरी एवं फुलोरादेवी अन्य तीन शक्तिपीठ भी वीरभूमि जिले में ही स्थित है। हिन्दुओं के लिए यह तीर्थस्थल बंगाल प्रान्त में सर्वाधिक महत्व रखता है। दुर्गापूजा एवं नवरात्रि के पर्व पर यहां हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ यहां एकत्रित होती है। प्राचीनकाल में इसे कामकोटि भी कहा जाता था एवं तंत्र -मंत्र साधना हेतु यह स्थल प्रसिद्ध है।ऐसी मान्यता है कि यहां पर देवी के जागृत रूप का दर्शन किया जाता है।
भौगोलिक स्थिति :-
भारत के पश्चिम बंगाल प्रान्त के वीरभूमि जिले के अंतर्गत सिद्धपीठ तारापीठ स्थित है। यह वीरभूमि का एक छोटा सा शहर है। यह पूर्वी रेलवे के रामपुर हाल्ट स्टेशन से ५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां तक पहुँचने के लिए हवाईमार्ग ,रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। वीरभूमि सड़कमार्ग द्वारा पश्चिम बंगाल के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। वीरभूमि जिले में द्वारिका नदी के किनारे यह तीर्थस्थल स्थित है। यहां स्थित मंदिर के ऊपरी भाग में सुंदर और चौकोर शिखर बना हुआ है और इसी के नीचे मां की चमत्कारी मूर्ति स्थापित की गई है। मंदिर के चारों ओर कोई भी निर्माण कार्य नहीं किया गया बल्कि आसपास केवल पेड़ पौधे व मैदान स्थित हैं। यहां मंदिर में मां का केवल मुख ही दिखायी पड़ता है। इनकी आरती में शव की ताजी भस्म का प्रयोग किया जाता है तथा दर्शन का समय रात्रि में ९ बजे से ९. ३० बजे तक ही होता है। मंदिर का गर्भगृह अत्यन्त संकरा है इसलिए इसमें एकसाथ ९ - १० व्यक्ति ही जा सकते हैं। इस मंदिर में मां को केवल पुष्प ही चढ़ाया जाता है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
एक पौराणिक कथा के अनुसार सती के पिता महाराजा दक्ष ने जब यज्ञ में भगवान शिव एवं माता सती को आमन्त्रित नहीं किया तथा सती वहां बिना बुलाए ही पहुँच गईं तब उनका अपमान किया गया जिससे दुःखी होकर क्रोधवश सती ने यञकुण्ड में कूदकर आत्मदाह कर लिया था। भगवान शिव को जब यह ज्ञात हुआ तब वे दुःख और क्रोधवश यञ को भंग कर दिया था और सती के शव को अपने कन्धे पर रखकर इधर उधर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में घूमने लगे थे तभी भगवान विष्णु ने सती के शव को अपने सुदर्शन चक्र से कई टुकड़े कर दिए। उन्हीं टुकड़ों में से एक टुकड़ा अर्थात नेत्रभाग इस स्थान पर आकर गिरा था। इसीलिए इसे तारापीठ की संज्ञा दी गयी। इस कथा के अनुसार सती के नेत्रों के तारक बत्तीस योजन के त्रिकोण का निर्माण करते हुए तीन स्थानों पर गिरे थे। वैद्यनाथ धाम के उत्तरी दिशा में उत्तर वाहिनी द्वारिका नदी के पूर्वी तट पर महाश्मशान में श्वेत शिमूल वृक्ष के मूलस्थान में सती का तीसरा ऊर्ध्व नेत्र गिरा था जिसे उग्रतारा पीठ कहा गया। मिथिला के पूर्व दक्षिणी कोने में भागीरथी के उत्तर दिशा में और त्रियुगी नदी के पूर्व दिशा में सती के बांयें नेत्र की मणि गिरी थी जिसे नील सरस्वती तारापीठ कहा गया तथा बंगुडा जिले के अन्तर्गत करतोया नदी के पश्चिम में दाहिने नेत्र की मणि गिरी थी तो इसे एक जटातारा और भवानी तारापीठ के नाम से जाना गया। तारापीठ का सम्बन्ध गौतमबुद्ध के बुद्धावतार से भी माना जाता है। यहां तारा की उपासना तिब्बती बौद्ध सम्प्रदाय में अत्यधिक प्रचलित है।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
पश्चिम बंगाल में इस स्थल का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। तारापीठ में एक लम्बा एवं सँकरा बाजार है और उसी के मध्य में तारा मां का मुख्य मन्दिर स्थित है। इसी बाजार में निगमानंद सिद्ध पीठ,वामाक्षेपा समाधि मंदिर,साधु वामा मिशन,श्री वामाक्षेपा बाबा आश्रम एवं वामदेव मंदिर स्थित है। यहीं पर तारापीठ के ठीक सामने महाश्मशान स्थित है। वामाक्षेपा उन्नीसवीं सदी के एक प्रसिद्ध संत थे जो तारापीठ के उपासक और साधक के रूप में जाने जाते थे। इसके निकट ही द्वारिका नदी प्रवाहित होतीं हैं। महाश्मशान में तारा देवी का पादपद मंदिर बना हुआ है और मंदिर के निकट ही वामाक्षेपा की समाधि बनी हुई है। कहा जाता है कि महाश्मशान में मां तारा ने वामाक्षेपा को स्वयं दर्शन दिए थे इसीलिए वे सिद्ध संत माने जाते हैं। तारापीठ में ही मुण्डमलिनीतला स्थित है जहां मां तारा की मूर्ति स्थापित की गई है। इस स्थल के सम्बन्ध में मान्यता है कि मां तारा अपने गले की मुंडमाला यहां रखकर द्वारिका नदी में स्नान किया करतीं थीं और स्नान करने के पश्चात पुनः वह मुण्डमाला धारण कर लेती थीं। इसीलिए इसका नाम मुण्डमलिनीतला पड़ा । यह स्थल मुख्य तारापीठ मंदिर से २५० मीटर की दूरी पर स्थित है।
तारापीठ बाजार में अनेकों दुकानें बनी हुई हैं जहां मां तारा के पूजन सामग्री हमेशा उपलब्ध रहती है। यहां पर ठहरने के लिए अनेकों धर्मशालाएं व होटल बने हुए हैं जिनमें मामूली चंदा देकर ठहरा जा सकता है। यहां स्थित होटलों एवं धर्मशालाओं में भोजन की समुचित व्यवस्था उपलब्ध है। यहां स्थित बाजार में स्थित दुकानों में पूजन सामग्री के अतिरिक्त अन्य वस्तुएं भी मिल जाती हैं। यहां स्थित दुकानों का संचालन प्रायः महिलाएं ही करतीं हैं। नवरात्रि व दुर्गापूजा के अवसर पर यहां विशेष धूमधाम देखने को मिलती है।
No comments:
Post a Comment