Sunday, May 22, 2016

नान्देड़ साहिब

सिक्ख मतावलम्बी भारत ही नहीं बल्कि विश्व के लगभग सभी देशों में फैले हुए हैं और जहां जहां भी वे सम्प्रति प्रवास कर रहे हैं वहां वहां अपने धार्मिक स्थल भी स्थापित किये हैं।  सिक्खों के पांच महान तख्तों में श्री नान्देड़ साहिब एक प्रमुख तख्त माना जाता है। कहा जाता है कि गुरु गोविन्द सिंह जी ने जीवनभर अत्याचार एवं अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किये थे तथा उन्होंने सिक्ख धर्म को मानवता के संदेश के रूप में प्रतिष्ठित किया था और उन्होंने जीवनपर्यंत संघर्ष करते हुए सिक्खगुरु के गुरुतर भार का निर्वहन किया तथा अंत में नांदेड़ में ही अपने शरीर का परित्याग कर दिया था। उन्हीं की पुण्यस्मृति में नान्देड़ साहिब को सिक्खधर्म के तीर्थस्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया गया। इसी कारण सम्प्रति राज्य सरकार ने भी इसे पवित्र शहर की मान्यता प्रदान कर दी है।  सम्प्रति नान्देड़ स्थित सचखण्ड गुरुद्वारा देश एवं विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र बन गया है। 

भौगोलिक स्थिति :-

भारतवर्ष के महाराष्ट्र प्रान्त में दककन के पठारी क्षेत्र में गोदावरी नदी के तट पर बसा हुआ नांदेड़ शहर सम्प्रति महाराष्ट्र राज्य के प्रमुख शहरों में से एक माना जाता है। महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पश्चात इसी शहर को महत्ता प्रदान की गई है। नंदातट के कारण इसे नांदेड़ शहर की संज्ञा दी गई थी। प्रारम्भ में यह नन्दीग्राम के नाम से जाना जाता था। यहां तक पहुंचने के लिए वायुमार्ग ,रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। औरंगाबाद हवाई अड्डा यहां का निकटतम हवाई अड्डा है जो देश के अनेक घरेलू  हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है।  मुंबई से यहां तक पहुँचने के लिए प्रतिदिन हवाई सेवाएं उपलब्ध रहतीं हैं। नांदेड़ रेलवे स्टेशन मुंबई,पुणे,बंगलौर,दिल्ली, अमृतसर,भोपाल,इंदौर,आगरा,हैदराबाद,जयपुर,अजमेर, औरंगाबाद एवं नासिक शहरों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। यह शहर सड़कमार्ग से भी राज्य के समस्त नगरों से जुड़ा हुआ है। राज्य परिवहन की बसें एवं निजी बसें मुंबई,पुणे एवं हैदराबाद शहरों से नियमित रूप से चलायी जाती हैं। नान्देड़ मुंबई शहर से ६५० किलोमीटर और हैदराबाद से २७० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

सातवीं शताब्दी ई पू० नंदातट मगध साम्राज्य की सीमा थी और यहां सातवाहनों ,चालुक्यों ,राष्ट्रकूटों एवं देवगिरी के यादवों का शासन काफी समय तक रहा और मध्यकाल में वहमनी,निजामशाही,मुगल एवं मराठा शासकों ने यहां पर शासन किया था। आजादी के पूर्व आधुनिक काल में यह हैदराबाद के निजामों एवं अंग्रेजों के अधिकार क्षेत्र में रहा। प्राचीनकाल में यह शहर वेदान्त,शास्त्रीय संगीत,नाटक,कला एवं साहित्य का प्रमुख केंद्र रहा था। सिक्ख तीर्थस्थल के रूप में इसकी चर्चा विशेषरूप से होती है। यहां पर स्थित गुरुद्वारा पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह द्वारा १८३० से १८३९ के मध्य बनवाया गया था। यह गुरुद्वारा सिक्खों के पांच महान तख्तों में से एक है। सचखण्ड श्री हुजूर अवचलनगर साहिब गुरुद्वारा पंजाब के स्वर्णमंदिर के समान बना हुआ है। इसी स्थल पर सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी ने प्राण त्याग किये थे। सचखण्ड गुरुद्वारा के सम्बन्ध में कहा जाता है कि भाई जैताजी जब अपने पूज्य पिता का शीश लेकर आनंदपुर पहुंचे थे तब उन्होंने इसे ईश्वर का विधान मानते हुए एवं तत्कालीन परिस्थितियों के दृष्टिगत नाहन {पऔंटा साहिब } चले जाना उचित समझा था किन्तु बाईधार के राजपूतों ने वहां जाकर लड़ाई प्रारम्भ कर दी और भंगानी के किनारे भयंकर युद्ध हुआ जिसमें बाईधारी को हार खानी पड़ी। इसके बाद नान्देड़,हुसैनी,आनंदपुर साहिब,चमकोट और मुक्तसर की लड़ाइयों का सामना करना पड़ा। गुरूजी ने आनंदपुर के २८ साल प्रवास के दौरान कुल १४ युद्ध लड़े ततपश्चात १७०८ ई में दक्षिण भारत चले गए और वहां पर औरंगजेब की मृत्यु के बाद उनके पुत्रों के मध्य छिड़े युद्ध में बहादुरशाह की सहायता उन्हें करनी पड़ी। उन्होंने आगरा के निकट खालसा कौम ने भाई दयासिंह के नेतृत्व में लड़ाई लड़ी। इसी मध्य बहादुरशाह के भाई कमबक्श ने बगावत कर दी।    बहादुरशाह गुरु जी को साथ लेकर दक्षिण की तरफ नांदेड़ आ गए और यहीं पर गोदावरी नदी के किनारे गुरूजी ने अपना डेरा दाल दिया तथा वहीं से बहादुरशाह  गुरूजी से आज्ञा लेकर हैदराबाद वापस चला गया।इसके बाद यहीं पर गुरूजी ने सर्वप्रथम अपनी तपस्थली के रूप में सचखण्ड साहिब को प्रगट करके एक तख़्त की स्थापना कर दी। यहीं गुरुग्रन्थ साहिब को श्रद्धासुमन अर्पित किये तथा कार्तिक सुदी पंचमी १७६५ विक्रम संवत को नांदेड़ में ही अपने शरीर त्यागकर समाधिस्थ हो गए। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

नांदेड़ नगर में स्थित सचखण्ड गुरुद्वारा तथा उसी के निकट बने हुए अन्य आठ गुरुद्वारे यहां के प्रमुख आकर्षण के केंद्र हैं। इसके अतिरिक्त माहुर में स्थापित हिन्दू धर्म की प्रधान शक्तिपीठ को भी एक तीर्थस्थल के रूप में माना जाता है।
रेणुका देवी का मन्दिर :- माहुर गाँव  से २ किलोमीटर की दूरी पर रेणुका देवी का प्रसिद्ध मन्दिर बना हुआ है जो एक पहाड़ी पर स्थित है। इसकी नींव देवगिरी के यादव वंश के राजा ने आठ नौ सौ वर्ष पूर्व डाली थी। दशहरा के पर्व पर यहां एक विशाल मेले का आयोजन करके माता रेणुका देवी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। देवी रेणुका भगवान परशुराम जी की माता थीं। 
नांदेड़ में ही बिलोली की मस्जिद जिसका निर्माण १७ वीं शताब्दी के अंत में हजरत नवाब सरफराज खां ने करवाया था ,स्थित है। नांदेड़ शहर के मध्य में बना हुआ कंधार का किला भी यहां का प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। इस किले की स्थापना राष्ट्रकूट राजा कृष्ण तृतीय ने करवाया था। 
मालेगाँव :- यहीं पर स्थित मालेगाँव जिसे तालुका लोहा के नाम से भी जाना जाता है ,नांदेड़ से ५७ किलोमीटर की दूरी पर है। भगवान खानदोवा की पुण्य स्मृति में एक मेला  यहां पर प्रतिवर्ष आयोजित होता है और इसे  ही मालेगांव यात्रा भी कहा जाता है।
सिद्धेश्वर मन्दिर :यहां के देगलूर तालुक में स्थित होटटल में सिद्धेश्वर का प्रसिद्ध मन्दिर बना हुआ है जो चालुक्य काल में पत्थरों को काटकर विधिवत उसे तराशकर बनवाया गया है।
नांदेड़ का किला:- यहीं पर नांदेड़ का किला नांदेड़ रेलवे स्टेशन से ४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो तीन ओर से गोदावरी नदी से घिरा  हुआ है। किले के भीतर एक विशाल बगीचा एवं एक भव्य फौव्वारा बना हुआ है। यहीं पर उनकेश्वर नामक एक गर्म पानी का झरना पेंगांग नदी के तट पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यह प्राकृतिक झरना अनेक रसायनों से युक्त है, इसीलिए इसमें स्नान करने से त्वचारोग तत्काल ठीक हो जाता है। 

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