भारत के दक्षिण भाग में समुद्रतट के किनारे स्थित कन्याकुमारी को हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थल माना जाता है। यहां पर मां पार्वती जी ने अपने आराध्यदेव शिव जी को प्रसन्न करने हेतु घोर तपस्या की थी और उन्हीं की पुण्य स्मृति में यहां पर एक शक्तिपीठ की भी स्थापना की गई थी जिसे सम्प्रति कन्याकुमारी मन्दिर के नाम से जाना जाता है। यहां पर शक्तिस्वरूपा भद्रकाली के साक्षात् दर्शन होते हैं।चूँकि पार्वती जी का उपनाम कन्याकुमारी भी है इसीलिए यहां स्थित मंदिर में कन्याकुमारी की भव्य एवं विशाल मूर्ति स्थापित की गई है। कन्याकुमारी स्थल प्राचीनकाल से ही भारतीय कला,संस्कृति एवं सभ्यता का परिचायक रहा है। भारत के सुन्दरतम पर्यटक केंद्र के रूप में इसकी गणना की जाती है क्योंकि दूर दूर तक फैली समुद्र की विशाल लहरों के मध्य यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का अप्रतिम दृश्य देखने हेतु श्रद्धालु भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी यहां आते रहते हैं। यहां पर सूर्य बंगाल की खाड़ी से उदित होकर अरबसागर की ओर अस्त हो जाते हैं। समुद्र की बीच पर फैली हुई रंग विरंगी रेत इसकी सुंदरता में अतिशय श्रीवृद्धि कर देती हैं। यहीं पर समुद्र के किनारे विवेकानन्द रॉक स्थित है जिसपर स्वामी विवेकानन्द के जीवन से संबन्धित वस्तुएं व उनकी स्मृतियों को संजोया गया है एवं उनसे सम्बंधित घटनाओं का सजीव चित्रण किया गया है। यहां पर तीन महासागरों यथा हिन्द महासागर,अरब महासागर एवं बंगाल की खाड़ी के संगमस्थल पर श्रद्धालुगण पवित्र स्नान करते हैं।
भौगोलिक स्थिति :-
भारत के तमिलनाडु प्रान्त के सुदूर दक्षिणी तट पर बसा हुआ एवं भारत -भूमि के अंतिम किनारे पर समुद्रतट से लगा हुआ कन्याकुमारी शहर स्थित है। इसके पूर्व में बंगाल की खाड़ी ,पश्चिम में अरब महासागर और दक्षिण में हिन्द महासागर स्थित है। कन्याकुमारी को इन्हीं तीन महासागरों का संगमस्थल कहा जाता है। इस तीर्थस्थल तक पहुँचने के लिए हवाईमार्ग ,रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग तीनों साधन उपलब्ध हैं। यहां का निकटतम हवाईअड्डा त्रिवेंद्रम है। भारत के किसी भी स्थान से रेलमार्ग द्वारा त्रिवेंद्रम उतरकर त्रिवेंद्रम से दूसरी रेलवे लाइन से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है।यह तमिलनाडु के अन्य नगरों से सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है।पहले कन्याकुमारी केरल प्रान्त में था किन्तु सन १९५७ ई० में यह तमिलनाडु में सम्मिलित हो गया था वर्तमान में यह तमिलनाडु के एक जिले के रूप में जाना जाता है। प्राचीनकाल में हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक के विशाल भूभाग पर भरत नामक राजा राज्य करते थे।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
कन्याकुमारी के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार माता सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा कराये जा रहे यज्ञ के हवनकुंड में अपनी आहुति दे देने के पश्चात राजा विंध्याचल में यहां उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया था। यहां इनका नाम पार्वती रखा गया था। पार्वतीजी ने भगवान शिव को पुनः अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए यहीं पर उनकी घोर तपस्या की थी। पार्वती के तपस्यारत होने की सूचना नारद द्वारा जब भगवान शिव को प्राप्त हुई तब भगवान शिव ने राजा विध्याचल के घर जा करके उनकी पुत्री पार्वती का हाथ माँगा। राजा विंध्याचल ने शिवजी के प्रस्ताव को स्वीकार कर पार्वती का विवाह शिव जी के साथ करने की तैयारी करने लगे। भगवान शिव जब अपनी बारात लेकर राजा विंध्याचल के घर पहुंचे तब नाच गाने एवं अधिक भीड़ के कारण विवाह की शुभमुहूर्त बीत गयी थी और ऐसी स्थित में उनका विवाह शुभमुहूर्त में सम्पन्न होने में कठिनाई उत्पन्न हो गई। नारदजी ने राजा को समझाया कि भगवान शिव अखिल ब्रह्माण्ड के अधिपति हैं। अतः उनके विवाह के लिए किसी लग्न की आवशयकता नहीं है, तब राजा ने पार्वती जी का विवाह शिवजी के साथ करने को उद्यत हुए। इसीलिए इस स्थान को कन्याकुमारी के नाम से जाना गया। एक दूसरी घटना का वर्णन भी पुराणों में मिलता है जिसके अनुसार शिव ने वाणासुरन नामक असुर को यह वरदान दे दिया था कि उसका वध किसी कुंवारी कन्या के हाथ होगा। उसी समय राजा भरत ने अपने आठ पुत्रों एवं एकमात्र कुमारी नामक कन्या को अपने साम्राज्य के बराबर- बराबर भाग को उन्हें शासन करने हेतु दे दिया था जिसमें भारत का दक्षिणी भाग पुत्री को मिला था। पुत्री ने इस भूभाग पर सफलतापूर्वक शासन किया किन्तु उसकी सुंदरता से मोहित होकर वाणासुरन ने उसके साथ विवाह करने का प्रस्ताव रख दिया जबकि पुत्री भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी। राजा की पुत्री कुमारी ने उसका प्रस्ताव इस शर्त के साथ स्वीकार कर लिया कि यदि बाणासुरन उसे युद्ध में हरा देगा तब यह विवाह संभव हो सकता है। वाणासुरन ने शर्त स्वीकार करके कुमारी के साथ युद्ध किया और कुमारी कन्या के हाथ मारा गया। कहा जाता है कि कुमारी के नाम पर ही बाद में इस स्थान का नाम कन्याकुमारी रखा गया। कन्याकुमारी में फैली हुई रंग विरंगी रेत के सम्बन्ध में बताया जाता है कि कुमारी एवं शिवजी के विवाह की तैयारी के सभी सामान यहां पर रंग बिरंगी रेत में परिवर्तित हो गए थे।
यहां पर समुद्रतट से थोड़ी दूरी पर समुद्र के मध्य एक छोटी सी पहाड़ी स्थित है और उसी पहाड़ी की एक शिला पर पार्वती जी के चरण चिह्न आज भी मौजूद हैं। पार्वती जी ने जहां पर तपस्या की थी, उस स्थान को अब विवेकानंद रॉक के नाम से जाना जाता है और इसी रॉक पर विवेकानंद का स्मारक बना हुआ है। स्मारक के निकट ही स्वामी राम कृष्ण परमहंस व उनकी पत्नी सरोदा देवी का मंदिर बना हुआ है।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
यहां का मुख्य आकर्षण का केंद्र कन्याकुमारी मंदिर एवं विवेकानंद रॉक स्थित उनका स्मारक माना जाता है।
गांधी स्मारक :- कन्याकुमारी मंदिर के निकट स्थित स्थल जहां से गांधीजी की अस्थियां सागर में प्रवाहित की गईं थीं, पर गांधी स्मारक बना हुआ है।इस स्मारक का निर्माण सन् १९५२ में किया गया था। इस स्मारक का निर्माण इस प्रकार से किया गया था कि गांधीजी के जन्म दिवस पर सूर्य की किरणे उस स्थल पर पड़ें जहां उनकी राख रखी गई थी।
विवेकानंद स्मारक :- यहां पर समुद्र के किनारे स्थित घाट से आगे बांयी ओर एक बड़ी चट्टान स्थित है जिसे श्रीपाद शीला के नाम से जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद जब कन्याकुमारी आये थे तब वे समुद्र में तैरकर उस शिला तक पहुंचे थे और उसी शिला पर तीन दिन एवं तीन रात उपवास करते हुए आत्मचिन्तन किया था। इसी शिला पर विवेकानंद की भव्य प्रतिमा स्थापित करते हुए एक स्मारक बनवाया गया है। इसे विवेकानंद स्मारक के नाम से जाना जाता है। इसी के निकट विवेकानंद रॉक मेमोरियल बना हुआ है जिसे विवेकानंद मंडपम एवं श्रीपद मंडपम दो भाग में विभक्त किये गए हैं।
कन्याकुमारी अम्मन मंदिर :- मां पार्वती जी को समर्पित सागर के मुहाने के दांयीं ओर कन्याकुमारी अम्मन नामक एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है जो तीनों सागरों के संगम पर स्थित है। यहां से ५०० मीटर की दूरी पर स्थित त्रिवेणी संगम में स्नान करके दर्शनार्थी इस मंदिर में दर्शनार्थ प्रविष्ट होते हैं। यहीं पर अमर तमिल कवि तिरुवल्लूर की ९५ फिट ऊंची प्रतिमा ३८ फिट ऊंचे चबूतरे के आधार पर स्थापित है। कन्याकुमारी अम्मन
कन्याकुमारी अम्मन मंदिर :- मां पार्वती जी को समर्पित सागर के मुहाने के दांयीं ओर कन्याकुमारी अम्मन नामक एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है जो तीनों सागरों के संगम पर स्थित है। यहां से ५०० मीटर की दूरी पर स्थित त्रिवेणी संगम में स्नान करके दर्शनार्थी इस मंदिर में दर्शनार्थ प्रविष्ट होते हैं। यहीं पर अमर तमिल कवि तिरुवल्लूर की ९५ फिट ऊंची प्रतिमा ३८ फिट ऊंचे चबूतरे के आधार पर स्थापित है। कन्याकुमारी अम्मन
थानुमलायन मंदिर :- कन्याकुमारी से १२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित सुचिन्द्रम नामक छोटे से गाँव में थानुमलायन मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में स्थापित हनुमान जी की ६ मीटर ऊंची मूर्ति बहुत ही भव्य व आकर्षक दिखाई पड़ती है। मंदिर के गर्भगृह में ब्रह्माजी, विष्णुजी एवं महेशजी की मूर्तियां स्थापित हैं। कन्याकुमारी से २० किलोमीटर की दूरी पर नागराज मंदिर स्थित है जो नागदेव समर्पित है।
यहीं पर भगवान शिव व विष्णु जी के दो अन्य मंदिर बने हुए हैं। कन्याकुमारी से ४५ किलोमीटर दूर स्थित पदनामवुरम महल त्रावणकोर के राजा द्वारा बनवाया गया था। कन्याकुमारी से १३७ किलोमीटर की दूरी पर कोईटालम नामक झरना स्थित है जिसका जल औषधीय गुणों से परिपूर्ण माना जाता है।
सुब्रमण्यम मंदिर :- कन्याकुमारी से ८५ किलोमीटर दूर तिरुचेंदूर में भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित एक मंदिर बना हुआ है जो बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित है। कन्याकुमारी से ही ३४ किलोमीटर की दूरी पर उदयगिरि किला स्थित है जिसका निर्माण राजा मरतंड वर्मा द्वारा १७२९ -१७५८ ई० के दौरान किया था।
सुब्रमण्यम मंदिर :- कन्याकुमारी से ८५ किलोमीटर दूर तिरुचेंदूर में भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित एक मंदिर बना हुआ है जो बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित है। कन्याकुमारी से ही ३४ किलोमीटर की दूरी पर उदयगिरि किला स्थित है जिसका निर्माण राजा मरतंड वर्मा द्वारा १७२९ -१७५८ ई० के दौरान किया था।
कन्याकुमारी की यात्रा बहुत ही आनंददायक एवं अविस्मरणीय होती है क्योंकि यहां आने पर तीर्थस्थल के दर्शन के साथ साथ पर्यटन का भी भरपूर आनंद लिया जा सकता है। यहां पर ठहरने के लिए होटल एवं धर्मशालाओं की समुचित व्यवस्था उपलब्ध है।
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