तिरुपति बालाजी को दक्षिण भारत का हिदुओं का एक प्रमुख धार्मिक स्थल माना जाता है। उत्तर भारत में इसे बालाजी के नाम से सम्बोधित किया जाता है। दक्षिण भारत में सर्वाधिक प्रसिद्ध तीर्थस्थलों में इसकी गणना की जाती है। यह भारत का सबसे अधिक वैभवशाली एवं समृद्ध मंदिर माना जाता है क्योंकि यहां आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या सर्वाधिक है और प्रतिवर्ष यहां करोड़ों की धनराशि चढ़ावे के रूप में चढ़ाई जाती है। यह तीर्थस्थल तिरुमलै या वेंकटाचल पर्वत जो सात पर्वतों का समूह है ,के सातवें पर्वत पर स्थित है। इस सम्पूर्ण पर्वत समूह को भगवान विष्णु का वैकुण्ठधाम कहा जाता है। यहां तक पहुँचने के लिए छ पर्वत समूह को पार करके सातवें पर्वत पर तिरुपति बालाजी का मंदिर मिलता है। प्रभु वेंकटेश्वर अथवा बालाजी को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पर अपने मनोरथ की पूर्ति हेतु बालाजी के दर्शन के लिए आते हैं। इसीलिए इसे तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है। तिरुपति का अर्थ लक्ष्मीपति अर्थात भगवान विष्णु होता है. अतः यहां स्थित भगवान विष्णु की मूर्ति को तिरुपति बालाजी कहा जाता है।
भौगोलिक स्थिति :-
तिरुपति बालाजी भारतवर्ष के आन्ध्रप्रदेश राज्य में त्रिचूर अथवा चित्तूर जनपद में स्थित है। यह समुद्रतल से ३२०० फिट पर स्थित तिरुमला की पहाड़ियों पर बना हुआ है। वेंकटेश्वर मंदिर बहुत ही भव्य एवं आकर्षक बना हुआ है। यहां तक पहुँचने के लिए ११ किलोमीटर की यात्रा नंगे पांव पैदल चलकर तिरुमलै के पर्वत पर चढ़ना पड़ता है। मद्रास से रेल द्वारा आरकोनम होते हुए सीधे तिरुपति नगर तक पहुंचा जा सकता है। यहां तक पहुँचने के लिए रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग दोनों उपलब्ध है। आंध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद से इसकी दूरी ५८७ किलोमीटर है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
तिरुपति बालाजी के सम्बन्ध में कहा जाता है कि प्रभु बालाजी अथवा वेंकटेश्वर जी भगवान विष्णु के अवतार हैं। भगवान विष्णु ने कुछ समय तक यहां स्थित पुष्कर सरोवर के किनारे निवास किया था। यह सरोवर तिरुमलै पहाड़ी पर स्थित है और तिरुपति के चारों ओर फैली सात पहाड़ियां शेषनाग के सात फनों का प्रतिनिधित्व करती हैं। अतः शेषनाग शैय्या पर लेटे हुए भगवान विष्णु को इस पावन स्थल पर तिरुपति अर्थात लक्ष्मीपति विष्णु के नाम से जाना जाता है। एक अन्य कथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार ११ वीं शताब्दी में संत रामानुज तिरुपति की इस सातवीं पहाड़ी पर जब पहुंचे थे तब प्रभु तिरुपति उनके समक्ष प्रकट होकर उन्हें आशीर्वाद दिया था। आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद वे १२० वर्षों तक जीवित रहते हुए पूरे भारत में भ्रमण करके भगवान वेंकटेश्वर की महिमा का गुणगान किया था। बैकुंठ एकादशी के दिन श्रद्धालु यहां एकत्र होकर भगवान वेंकटेश के दर्शन करते हैं। मान्यता है कि यहां आने पर श्रद्धालु जन्म मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जाते है। तमिल के संगम साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम के नाम से भी सम्बोधित किया गया है। तिरुपति के इतिहास के संदर्भ में काफी मतभेद है किन्तु इतना प्रमाण अवश्य मिलता है कि यह ५ वीं शताब्दी तक एक प्रमुख धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका था। चोल, होयसल एवं विजयनगर के राजाओं द्वारा इस मंदिर के निर्माण में आर्थिक योगदान करने का उल्लेख मिलता है। इसका स्पष्ट प्रमाण ९ वीं शताब्दी से प्राप्त होने लगता है जब कांचीपुरम के शासक पल्लवों ने इस पर अपना अधिकार कर लिया था। १५ वीं शताब्दी में विजयनगर के शासनकाल में इसकी ख्याति मंद अवश्य हो गई थी किन्तु १५ वीं शताब्दी के बाद इसकी ख्याति तेजी से दूर दूर तक फैलने लगी थी। सन् १८४३ से १९३३ तक अंग्रेजों के शासनकाल में इस मंदिर का प्रबन्धकार्य हातिराम जी मठ ने सम्भाल रखा था। सन् १९३३ ई ० में इस मंदिर का प्रबंधन मद्रास सरकार के हाथ में चला गया और एक स्वतंत्र प्रबंधन समिति "तिरुमाला तिरुपति :"को सौंप दी गई। आंध्रप्रदेश के राज्य बनने के बाद इस समिति का पुनर्गठन हुआ और एक प्रशासनिक सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नियुक्त कर दिया गया।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
यहां का मुख्य मंदिर तिरुपति वेंकटेश्वर मंदिर है जो तीन परकोटों के अंदर स्थित है तथा उसके गर्भगृह में काले रंग के पत्थर की भगवान विष्णु की भव्य मूर्ति स्थापित है। सवा दो मीटर ऊंची इस मूर्ति का पूर्ण दर्शन शुक्रवार को प्रातः अभिषेक के समय किया जा सकता है। यहां स्थित बालाजी की मूर्ति की आँखों को हमेशा चन्दन के लेप से ढका रखते हैं ताकि उनके तेज से लोगों को बचाया जा सके। यहां पर केशदान करने का बड़ा महत्व है। महिलाएं भी यहां आकर अपने केश भगवान तिरुपति को चढातीं हैं। यहां स्थित अन्य मंदिरों में वराह स्वामी मंदिर प्रमुख है जो तिरुमला के उत्तर में पुष्करिणी सरोवर के किनारे पर बना हुआ है। कहा जाता है कि तिरुमलै अपने आदि रूप में वराह क्षेत्र ही था और वराह स्वामी की अनुमति से भगवान वेंकटेश्वर ने अपना यहां निवास स्थान बनाया था। ब्रह्मपुराण के अनुसार नैवेद्यम सर्वप्रथम वराह स्वामी को चढ़ाना चाहिए और वेंकटेश्वर मंदिर जाने के पूर्व वराह स्वामी का दर्शन आवश्यक बताया गया है। यहां इनके आदि वराह रूप का दर्शन किया जाता है। पुष्करिणी के उत्तर पूर्व में श्रीवेदी अंजनेय स्वामी का मंदिर वराह स्वामी के मंदिर के सम्मुख स्थित है। यहां पर हनुमान जयन्ती बड़े धूमधाम से मनायी जाती है। यहां स्थित ध्यानम मंदिर वास्तव में वेंकटेश्वर संग्रहालय है। सन् १९८० ई ० में इसका निर्माण हुआ था और इसमें पत्थर और लकड़ी की बनी वस्तुएं,पूजा सामग्री व अन्य वस्तुएं प्रदर्शित की गईं हैं। गोविंदराज स्वामी जो भगवान बालाजी के बड़े भ्राता थे ,का मंदिर यहां का प्रमुख आकर्षण है। इसका गोपुरम बहुत ही भव्य बनाया गया है। इसका निर्माण संत रामानुज ने ११३० ई में किया था। श्री कोदण्डरास्वामी का मंदिर तिरुपति के मध्य में बना हुआ है। यहां पर सीता ,राम एवं लक्ष्मण की पूजा की जाती है। इसका निर्माण चोल राजा ने १० वीं शताब्दी में करवाया था। यह अंजनेय स्वामी मंदिर के ठीक सामने और उसी के उपभाग के रूप में स्थित है। श्री कपिलेश्वर स्वामी मंदिर तिरुपति का एकमात्र शिव मंदिर है जो तिरुपति से ३ किलोमीटर की दूरी पर है। यहां पर कपिलातीर्थं नामक एक झरना है जहां महाशिवरात्रि ,महाब्रह्मोत्त्सव ,खण्ड षष्ठी और अन्नभिषेकम बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। तिरुपति से १२ किलोमीटर पश्चिम में श्री निवासमंगापुरम में श्री कल्याण वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर बना हुआ है। कहा जाता है कि पद्मावती से शादी के बाद तिरुमला जाने के पूर्व भगवान वेंकटेश्वर यहां पर ठहरे थे। श्रीवेद नारायण स्वामी मंदिर तिरुपति से ७० किलोमीटर दूर नगलपुरम में स्थित है। भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लेकर सोमकुड्डु नामक राक्षस का वध यहीं पर किया था। यहां के गर्भगृह में विष्णु की मत्स्यावतार की प्रतिमा विराजमान है जिसके दोनों ओर श्रीदेवी एवं भूदेवी स्थित हैं। इसका निर्माण विजयदेव के राजा कृष्ण्देव राय ने करवाया था। श्री वेनुगोपाल स्वामी मंदिर तिरुपति से ५८ किलोमीटर की दूरी पर कर्वेटि नगरम में स्थित है जहां भगवान वेणुगोपाल की प्रतिमा के साथ साथ रुक्मिणी ,अम्मवरु व सत्यभामा की मूर्तियां स्थापित हैं। श्री प्रसन्ना वेंकटेश्वर स्वामी भी यहीं पर स्थित है। यहां पर स्थित स्वामी पुष्करिणी सरोवर के जल का प्रयोग मंदिर के कार्यों हेतु किया जाता है और दर्शनार्थियों द्वारा स्नान भी इसी में किया जाता है। तिरुपति मंदिर से ३ किलोमीटर की दूरी पर आकाशगंगा जलप्रपात है जिसके जल से भगवान को स्नान करवाया जाता है। बालाजी मंदिर के निकट टी टी डी गार्डन स्थित है जिसका क्षेत्रफल ४६० एकड़ है और इसी के बगीचे से मंदिर की आवश्यक्ताओं की पूर्ति की जाती है तथा इसी बगीचे के फूलों से भगवान के मंडप सजाए जाते हैं।
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