Wednesday, April 20, 2016

उज्जैन { महाकालेश्वर }

हिन्दू धर्म शास्त्रों एवं पुराणों में उज्जैन को उज्जयिनी एवं अवन्तिका के नाम से सम्बोधित किया गया है। उज्जैन स्थित महाकालेश्वर को बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसका विस्तृत माहात्म्य पुराणों में मिलता है। संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध कवि कालिदास एवं हिंदी साहित्य के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी महाकालेश्वर मंदिर का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है।यह उज्जैन राजा विक्रमादित्य  की राजधानी भी रही है। भारतवर्ष की काल गणना के केंद्र बिन्दु माने जाने के संदर्भ में भी उज्जैन का उल्लेख मिलता है। महाकाल भगवान शंकर जो आदिदेव माने जाते हैं ,को महाकालेश्वर के रूप में उज्जैन का स्वामी व संरक्षक माना गया है। उज्जैन नगरी हिन्दू धर्म की सात पुरियों में से एक पुरी होने के साथ साथ द्वादश ज्योतिर्लिंगों ,इक्यावन शक्तिपीठों में प्रमुख मानी जाती है। भारतवर्ष में जिन चार स्थानों पर प्रत्येक १२ वर्ष के अंतराल में महाकुंभ ,६ वर्ष के अंतराल में अर्धकुम्भ आयोजित होता है ,उनमें उज्जैन भी सम्मिलित है। यहाँ पर १२ वर्ष के अंतराल पर लगने वाले महाकुंभ को सिंहस्थ कुम्भ की संज्ञा दी जाती है। वर्ष २०१६ में मार्च से  अप्रैल माह तक यहाँ सिंहस्थ कुम्भ का आयोजन हुआ जिसमें देश एवं विदेश से लाखों श्रद्धालुओं ने क्षिप्रा नदी में स्नान एवं महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल के दर्शन किये। 

भौगोलिक स्थिति :-

भारत के मध्यप्रदेश राज्य उज्जैन नगर स्थित है और यहां पर क्षिप्रा नदी के पावन तट पर महाकालेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है। भारतीय ज्योतिष में देशान्तर की शून्य रेखा का प्रारम्भ उज्जैन नगर से ही माना गया है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से उज्जैन की दूरी १८४ किलोमीटर है।  भारत की राजधानी दिल्ली से उज्जैन ९२९ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उज्जैन देश के प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग ,रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है। भोपाल से यहां तक रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग से पहुंचा जा सकता है।उज्जैन जंक्शन के लिए दिल्ली ,चेन्नई ,मुम्बई, जयपुर,जम्मू,हरिद्वार,भोपाल,खण्डवा आदि स्थानों से सीधी रेल सेवाएं प्रतिदिन उपलब्ध हैं। सड़क मार्ग द्वारा मध्यप्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इन्दौर से उज्जैन की दूरी ५० किलोमीटर है। उज्जैन के लिए निकटम हवाई अड्डा इंदौर है।  

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

पुराणों में उज्जयिनी एवं अवन्तिका नगर का उल्लेख मिलता है। यह दोनों नाम उज्जैन नगर का प्राचीन नाम के संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है। शिवपुराण में वर्णित कथा के अनुसार उज्जैन नगर में स्थित हरसिद्ध देवी का मन्दिर को इक्यावन शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है क्योंकि यहां पर मां सती की कुहनी गिरी थी। उज्जैन को पृथ्वी का नाभिस्थल भी कहा जाता है और यहां स्थित महाकालेश्वर को उज्जैन नगरी का स्वामी माना जाता है। महाकालेश्वर मन्दिर में स्थापित की गई महाकाल की दक्षिण मुखी प्रतिमा की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और प्रतिदिन प्रातःकाल जले हुए मुर्दे की राख से महाकाल की प्रतिमा पर लेपन  कर उनकी  आरती की जाती है जिसे भस्म आरती के नाम से जाना जाता है। महाकालेश्वर मन्दिर में स्थित महाकाल लिंग को द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग माने जाने के कारण ही महाकाल की पूजा की जाती है। ऐतिहासिक विभिन्न काल जैसे शुंग ,कुषाण ,,सातवाहन ,गुप्त एवं परिहार काल में समय समय पर इस मंदिर का जीर्णोद्धार होता रहा है। वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार राणो  जी सिंधिया काल में मालवा के सूबेदार रामचन्द्र बाबा शेणवी द्वारा करवाया गया था। महाकाल की दक्षिण मुखी प्रतिमा की पूजा विशेष रूप से तांत्रिक परम्परा के अनुयायियों द्वारा की जाती है।  इसीलिए  प्रतिदिन भस्म आरती की जाती है।  नौवीं एवं दसवीं शताब्दी में परमार राजाओं के समय में उज्जैन नगर की सर्वाधिक उन्नति हुई थी। दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश के आक्रमण के पश्चात उज्जैन मुगल शासकों के अधीन हो गया था और कहा जाता है कि इस आक्रमण से महाकालेश्वर का मंदिर पूरी तरह नष्ट हो गया था। सन् १७५० ई ० में मराठा शासकों ने इस मंदिर का पुनरोद्धार करवाया था। उज्जैन को राजा विक्रमादित्य के शासन काल में राजधानी बनने का गौरव प्राप्त है। महाकालेश्वर मन्दिर के पीछे स्थित विक्रम टेकरी टीले के संबन्ध में बताया जाता है कि इस टीले के अन्दर महाराजा विक्रमादित्य का सिंहासन व अन्य बहुमूल्य बस्तुएं दब गईं थीं। इसकी जानकारी तब हुआ जब राजा भोज के कार्यकाल में इसी टीले पर एक अनपढ़ व्यक्ति द्वारा बुद्धिमत्तापूर्ण न्याय देते हुए देखा गया तब इस टीले की रहस्यात्मक शक्ति की जानकारी प्राप्त करने हेतु राजा भोज द्वारा उसकी खुदायी करवाई गई और खुदायी करने पर उसके अन्दर से राजा विक्रमादित्य का सिंहासन निकला। सिंहासन की ही चमत्कारी शक्ति के कारण इस टीले पर बैठने वाले अनपढ़ व्यक्ति द्वारा न्याय दिए जाने की सम्भावना मानते हुए राजा भोज स्वयं उस पर बैठने हेतु ज्योंहि उद्द्यत हुए तभी सिंहासन से आवाज आयी कि यदि तुम राजा विक्रमादित्य की समस्त योग्यताएं रखते हो तभी सिंहासन पर बैठ सकते हो अन्यथा नहीं। राजा भोज  विक्रमादित्य की समस्त योग्यताओं को पूर्ण करने का संकल्प लेते हुए सिंहासन पर बैठ गए। कहा जाता है कि राजा भोज की मृत्यु के पश्चात पुनः वह सिंहासन उसी टीले में समाहित हो गया। बाद में कई बार उसकी खुदाई करने का प्रयास किया गया किन्तु खुदाई में केवल बड़े बड़े सांप निकलते देखकर खुदाई बंद कर देनी पड़ी। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

उज्जैन नगरी का प्रमुख आकर्षण केंद्र महाकालेश्वर का मंदिर माना जाता है किन्तु इसके निकट हरसिद्ध मार्ग पर स्थित गणेश मंदिर में गणेश जी की कलात्मक भव्य मूर्ति स्थापित की गई है।  इसके परिसर में ही सप्तधातु की पंचमुखी हनुमान प्रतिमा ,नवग्रह मंदिर तथा कृष्ण -यशोदा की प्रतिमा स्थापित की गई है। उज्जैन में ही प्रसिद्ध मंगलनाथ जी का मंदिर भी स्थित है। पौराणिक मान्यता के अनुसार उज्जैन नगरी को मंगल कारक माने जाने के कारण जिनकी कुण्डली में मंगल भारी होता है वे इसकी शांति हेतु यहां आकर विशेष पूजा पाठ  करवाते हैं। यह मंदिर बहुत प्राचीन प्रतीत होता है। कहा जाता है कि सिंधिया राजघराने ने इसका पुनरोद्धार करवाया था। यहां के प्राचीन एवं महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में हरसिद्ध देवी के मंदिर को विशेष मान्यता दी जाती है। कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य प्रतिदिन इस मंदिर में पूजा किया करते थे।  हरसिद्ध देवी की गणना इक्यावन शक्तिपीठों में की जाती है क्योंकि यहां पर सती की कोहनी आकर गिरी थी। यहां गोपाल मंदिर उज्जैन नगर के मध्य में स्थित है।  इसका निर्माण सन् १८३३ ई ० में महारानी बायजाबाई ने करवाया था। इसमें भगवान कृष्ण की प्रतिमा स्थापित है तथा मंदिर का दरवाजा चांदी की धातु से बनवाया गया है।  गढ़ कलिका देवी का प्रसिद्ध मंदिर अवंतिका नगरी क्षेत्र में स्थित है। कहा जाता है कि महाकवि कालिदास इनके बहुत बड़े उपासक थे। इस मंदिर का जीर्णोद्धार सम्राट हर्षवर्धन द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर में मां काली की भव्य मूर्ति के दर्शन हेतु प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु यहां आते रहते हैं। यह तांत्रिकों की सिद्ध देवी मानी जाती हैं। उज्जैन में ही चिन्तामन गणेश जी का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है जो उज्जैन का सर्वाधिक प्राचीन मंदिर माना जाता है। यहां गणेश जी की पूजा करके श्रद्धालु अपने व्यावसायिक कार्यों  शुभारम्भ करते हैं क्योंकि गणेश को विघ्नहर्ता एवं मंगलकारक माना गया है।  समस्त चिंताओं एवं कष्टों को हरने वाले भगवान गणेश को अखिल ब्रह्माण्ड का रक्षक भी माना जाता है।  यह मंदिर फतेहाबाद रेलवे लाइन पर क्षिप्रा नदी के उस पार बना हुआ है। 
उज्जैन में ही ग्यारहवीं शताब्दी के मंदिर के अवशेष को सम्प्रति भर्तिहरी गुफा के नाम से जाना जाता है। अवंतिका  नगरीय क्षेत्र में ही स्थित काल भैरव के मंदिर का निर्माण राजा भद्रसेन द्वारा करवाए जाने का वर्णन मिलता है। काल भैरव की पूजा में शराब चढ़ायी जाती है। चूँकि यह स्थल  शिव के उपासकों के कापालिक सम्प्रदाय से जुड़ा माना जाता है अतः यहां विक्रांत भैरव मंदिर में तंत्र साधना एवं मंत्र साधना की जाती है। यह मंदिर सम्राट विक्रमादित्य के कार्यकाल में बनवाया गया बताया जाता है। इस मंदिर काल भैरव की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है। उज्जैन नगर के कार्तिक चौक में जगदीश मंदिर स्थित है जो अत्यधिक प्राचीन एवं विशाल होने के साथ ही साथ आकर्षक एवं मनमोहक भी है !इसमें भगवान जगन्नाथ के साथ बलभद्र एवं सुभद्रा की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं !प्रतिवर्ष यहां रथयात्रा निकालकर श्रद्धालुगण इन्हें अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।  कहा जाता है कि सिंहस्थ कुम्भ के दौरान यहां स्नान करने से समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। 
उज्जैन में प्रत्येक बारह वर्ष के अन्तराल में आयोजित होने वाले महाकुंभ को सिंहस्थ कुम्भ की संज्ञा दी जाती है। यह योग तब बनता है जब वृहस्पति सिंह राशि में होते हैं। सिंहस्थ कुम्भ मेले का शुभारम्भ चैत्रमास की पूर्णिमा से होता है और वैशाख मॉस की पूर्णिमा तक चलता है।  देश एवं विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां स्नान हेतु आते हैं। प्रयाग ,नासिक एवं हरिद्वार में लगने वाले कुम्भ की भांति यहां भी कुम्भ मेल आयोजित होता है किन्तु यहां आयोजित महाकुंभ को आस्था का पर्व मानते हुए सिंहस्थ कुम्भ की संज्ञा दी जाती है। उज्जैन में मेषराशि में सूर्य और सिंह राशि में गुरु के आने पर सिंहस्थ कुम्भ का योग बनता है। यहां पर इस आयोजन की परम्परा बहुत ही प्राचीन काल से चली आ रही है। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के समय जिन राशियों में सूर्य ,चन्द्र एवं गुरु की स्थिति थी वैसा ही संयोग उत्पन्न होने पर सिंहस्थ कुम्भ का योग बनता है। चूँकि अमृत कलश की रक्षा  उस समय सूर्य ,गुरु एवं चन्द्रमा द्वारा की गई थी। अतः इन्हीं ग्रहों की उक्त विशिष्ट स्थितियों में ही सिंहस्थ कुम्भ के मेले का आयोजन एवं क्षिप्रा नदी में स्नान करने की परम्परा शदियों से पचलित रही है।  

1 comment:

  1. उज्जैन के दर्शनीय स्थल में सबसे खास महाकालेश्वर मंदिर है. यह मंदिर भगवान् शिव का मंदिर है, इस मंदिर में एक दक्षिण शिवलिंग भी मौजूद है.

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