Wednesday, April 13, 2016

माउन्ट आबू

   भारत की उत्तरी पश्चिमी  पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित माउन्ट आबू सम्प्रति एक हिल स्टेशन के रूप में विशेष रूप से प्रसिद्ध है किन्तु प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईशवरीय विश्व विद्यालय का मुख्यालय होने के कारण इसे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति भी प्राप्त हो चुकी है।  इस स्थल को हिन्दू धर्म का एक पवित्र केंद्र होने के साथ ही साथ जैन धर्म के पूजा स्थल के रूप में भी जाना जाता है।  पूर्व में इसे अबुर्दगिरि अथवा अबुर्दाचल के नाम से जाना जाता था किन्तु कालान्तर में इसे मात्र आबू की संज्ञा देते हुए पर्वतीय प्राकृतिक सौन्दर्य की प्रधानता के कारण माउन्ट शब्द जोड़ते हुए माउंट आबू के नाम से जाना जाने लगा। पूर्व में कभी यहाँ ३३ करोड़ देवता निवास करते थे और यहीं पर धरती की रक्षा के लिए अग्निकुंड से चार अग्निकुलों की उत्पत्ति हुई थी। 

भौगोलिक स्थिति :- 

माउन्ट आबू अरावली की पहाड़ियों के सर्वोच्च शिखर आबू पर्वत पर समुद्र तल से १२२० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। माउन्ट आबू राजस्थान प्रान्त के सिरोही जनपद में स्थित एकमात्र पहाड़ी नगर है। अपने अविस्मरणीय सूर्यास्त के दृश्य एवं दिलवाड़ा जैन मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध आबू हरे भरे जंगलों के मध्य अरावली पर्वत माला की सबसे ऊंची चोटी पर दिल्ली से ७६० किलोमीटर तथा ,अहमदाबाद से २१४ किलोमीटर ,उदयपुर से १८५ किलोमीटर एवं आबू रोड से २८ किलोमीटर दूर स्थित है।   यह अरावली पर्वत श्रेणियों के दक्षिण पश्चिम किनारे पर ग्रेनाइट शिलाओं के एक पिंड के रूप में स्थित आबू पर्वत पश्चिमी बनास नदी की लगभग १० किलोमीटर संकरी घाटियों द्वारा अन्य पर्वत श्रेणियों से अलग हो जाता है। पर्वत के ऊपरी भाग में ऐतिहासिक स्मारकों ,धार्मिक तीर्थ मंदिरों एवं कला भवनों में शिल्प चित्र ,स्थापत्य कलाओं की स्थायी निधियां विदयमान हैं। यहां की एक गुफा में भृगु के पदचिह्न अंकित हैं। यह नगर राजस्थान के अन्य नगरों से बिलकुल भिन्न है क्योंकि यहां पर न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न ही कम वर्षा होती है। यहां की जलवायु स्वास्थ्यवर्धक मानी जाती है। यहां का निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर है जो मात्र १८५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उदयपुर से माउन्ट आबू पहुंचने के लिए बस अथवा टैक्सी की सेवाएं ली जाती हैं। यह देश के अन्य प्रमुख शहरों से सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। दिल्ली के कश्मीरी गेट से सीधी बस सेवा उपलब्ध है तथा राजस्थान के प्रमुख शहरों से राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों से भी यहां पहुंचा जा सकता है।  

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण जी अपने द्वारिका प्रस्थान के दौरान माउन्ट आबू में कुछ समय विश्राम किये थे। माउन्ट आबू में ही वशिष्ठ मुनि के तप करने के कारण यहीं पर उनके नाम से ही एक आश्रम बना हुआ है। कहा जाता है कि पहले यहां एक गढ्ढा था जिसमें वशिष्ठ मुनि की कामधेनु गाय फिसलकर गिर गई थी और वशिष्ठ मुनि के अनुरोध पर मां सरस्वती जी ने इस गड्ढे को जल से भर दिया था  तभी कामधेनु जल में तैरकर गड्ढे से बाहर निकल पाई थी। पुनः वशिष्ठ मुनि द्वारा भगवान शिव की स्तुति करने पर शिव ने अपने वाहन नन्दी को भेजकर कैलाश पर्वत की एक लघु श्रृंखला की स्थापना करवायी थी। अर्बुदा नामक सर्प द्वारा नन्दी को अपनी पीठ पर बैठाकर वशिष्ठ मुनि के आश्रम तक ले आया गया था सम्भवतः इसीलिए इस स्थान को अर्बुदांचल अथवा अर्बुदगिरि भी कहा जाता है। तभी वशिष्ठ मुनि ने अर्बुदा  को यह वरदान दिया था कि तुम पैंतीस करोड़ देवताओं के साथ सदैव यहीं पर निवास करोगे। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहां मां दुर्गा अर्बुदा देवी के रूप में प्रगट हुईं थीं।  इसी कारण इसे अर्बुदागिरि अथवा अर्बुदांचल कहा जाता है। यहां स्थित एक गुफा में अर्बुदा देवी का मन्दिर बना हुआ है। इस मन्दिर के निकट ही संत सरोवर तथा नीलकंठ एवं हनुमान जी का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है। 
माउन्ट आबू प्राचीनकाल से ही साधु -सन्तों का निवास स्थान व तपस्थली रही है। ऋषि वशिष्ठ ने असुरों के संहार के लिए यहां एक यज्ञ करवाया था। माउन्ट आबू कुछ समय तक चौहान साम्राज्य का भी अंग रहा है और बाद में सिरोही के महाराजा ने माउन्ट आबू को राजपूताना हेडक्वार्टर के लिए अंग्रेजों को सौंप दिया था। ब्रिटिशकाल में माउन्ट आबू का उपयोग मैदानों की गर्मी से राहत पाने के लिए हिलस्टेशन के रूप में किंचित समय के लिए विश्राम करने के लिए  किया जाने लगा था। इसी लिए यहां का हिलस्टेशन बहुत ही खूबसूरत व आकर्षक बनाया गया था। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

माउन्ट आबू हिन्दू तथा जैन धर्म का प्रारम्भ से ही प्रमुख तीर्थस्थल माना  जाता रहा है। यहां स्थित ऐतिहासिक दिलवाड़ा मन्दिर अपने बनावट व प्राकृतिक खूबसूरती के कारण श्रद्धालुओं एवं विदेशी पर्यटकों के विशेष आकर्षण का केन्द्र बन गया है। जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर का यह आवास स्थल रहा है और इसी लिए कालान्तर में इसे जैन धर्म के प्रमुख तीर्थस्थल की मान्यता प्रदान की गई। यहां पर उच्चकोटि के संगमरमर से बनवाये गए पांचों मंदिरों की दीवारों ,छतों एवं स्तम्भों की वास्तुकला उच्चकोटि की है। यहां स्थित विमलशाह एवं तेजपाल मन्दिर अपनी वास्तुकला एवं मूर्तिकला के लिए विश्व प्रसिद्ध है !अन्य जैन मंदिरों में लुनावासी जैन मंदिर है जिसे वास्तुपाल एवं तेजपाल नामक दो मंत्रियों ने सन् १३१३ ई० में बनवाया था इसमें जैन के २३ वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है। चौथा मंदिर पीतलहार मंदिर है जिसमें भगवान ऋषभदेव की मूर्ति स्थापित की गई है और पांचवा  खतरवासी  मंदिर है जिसमें जैन तीर्थंकर भगवान चिन्तामणि पार्शवनाथ की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है।   
यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में नक्खी झील ,गांधी वाटिका ,श्रीरघुनाथ मंदिर ,मेढक चट्टान ,नन रॉक ,वैलेजवाक प्रमुख हैं। नक्खी झील के दक्षिण पश्चिम में स्थित सूर्यास्त दर्शन स्थल से अविस्मरणीय एवं अद्वितीय सूर्यास्त का दृश्य दिखायी पड़ता है। यहां क्षितिजीय सूर्यास्त का आनन्द लेने हेतु सीढियाँ बनी हुई हैं !पहाड़ी के इस अंतिम सिरे के बाद नीचे हजारों मीटर नीचा मैदान है जहां लाल पीले रंग का गोलाकार सूर्य अदृश्य होता हुआ सुदूर जंगलों खोता हुआ दिखाई पड़ता है। यहां स्थित देव आंगन में भगवान विष्णु का एक छोटा सा मंदिर है। इससे आगे चलने पर करोड़ी ध्वज नामक प्राचीन सूर्यमन्दिर मिलता है !नक्खी झील के दायीं ओर विवेकानंद उद्यान ,भारतमाता नयन स्थल मिलता है। यहीं पर नीलकंठ महादेव का ऐतिहासिक वृहदाकार शिवलिंग से प्रतिष्ठित मंदिर स्थित है !नक्खी झील से उत्तर पश्चिम में आबू पर्वत के अंतिम किनारे अनादर गांव में हनीमून प्वाइंट है। इसी के पास गणेश मंदिर बना हुआ है। मुख्य बाजार के पास कुमा खेड़ा मार्ग पर शिवलिंग  के आकर का शंकर मठ स्थित है। आबू कोर्ट रोड पर डेढ़ किलोमीटर आगे हनुमान मंदिर एवं यहां से ५ किलोमीटर दूरी पर गोमुख एवं वशिष्ठ आश्रम स्थित है। व्यास तीर्थ ,नागतीर्थ ,जमदाग्नि आश्रम लख चौरासी ,ओम शांति भवन ,संत सरोवर ,अबुर्दा देवी मंदिर एवं बिहारी जी का मंदिर स्थित है। 
माउन्ट आबू में प्राकृतिक सौन्दर्य से मन को सहज ही मोह लेने वाली वनस्थली है जो समतल माउन्ट आबू पर पर्यटन के लिए सर्वथा उपयुक्त होने के कारण विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रही है !यहां पर प्रतिदिन सैलानियों का आवागमन एवं मेले आदि के आयोजन से वातावरण में चहल पहल बनी रहती है !जाड़े एवं गर्मी की ऋतुओं में समान रूप से श्रद्धालुओं एवं पर्यटकों का आवागमन होता रहता है। 
यहां स्थित दिलवाड़ा मंदिर माउन्ट आबू से १५ किलोमीटर दूर  गुरुशिखर पर्वत पर स्थित है।  यहां स्थित सभी मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं एवं तेरहवीं शताब्दी के मध्य का माना जाता है। दिलवाड़ा मंदिर की स्थापत्य कला एवं वास्तुकला दोनों अतुलनीय है !दिलवाड़ा मंदिर से ८ किलोमीटर दूर अचलगढ़ किला व मंदिर स्थित है। इसके अतिरिक्त माउन्ट आबू में नक्की झील ,गोमुख मन्दिर व माउन्ट आबू वन्य जीव अभ्यारण्य अन्य दर्शनीय स्थल हैं। यहां की एक गुफा में भगवान दत्तात्रेय का प्रसिद्ध मंदिर बना हुआ है। यहीं पर माता अनुसुईया एवं अत्रि ऋषि की तपस्थली भी दृष्टिगत होती है। निकट ही भगवान शंकर का एक भव्य मंदिर गुफा में बना हुआ है। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने यहां पर वशिष्ठ ऋषि को अंचलेष्वर महादेव के रूप में दर्शन दिया था इसी कारण यहां पर भगवान अंचलेष्वर की पूजा की जाती है। माउन्ट आबू के अन्य दर्शनीय स्थलों में मंदाकिनी कुंड ,भृगु आश्रम ,भर्तृहरि की गुफा ,मान सिंह की समाधि व श्वेति कुंड प्रमुख हैं जो अचलेश्वर महादेव मंदिर के आस पास ही स्थित हैं। यहां से थोड़ी दूर पर राम गुफा कुंड ,दुलेश्वर महादेव मंदिर ,महावीर स्तम्भ ,चम्पा गुफा ,व्यास तीर्थ ,गणेश मंदिर ,अम्बिका मंदिर  स्थित हैं। यमदग्नि आश्रम ,गौतम आश्रम व वशिष्ठ आश्रम इन्हीं ऋषियों की तपस्थली के प्रतीक के रूप में यहां पर आज भी मौजूद हैं।      

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