Monday, April 11, 2016

अजमेर शरीफ

इस्लाम में सूफी संतों के योगदान एवं सभी धर्मों के प्रति आदर भाव बनाये रखने की परम्परा प्राचीन समय से ही प्रचलित रही है। इसी कड़ी को अजमेर के सूफी संतों ने आगे बढ़ाते हुए प्रेम एवं मोहब्बत के सन्देश को भारत ही नहीं बल्कि विश्व के तमाम देशों तक इसका प्रचार एवं प्रसार किया !अजमेर शरीफ में सूफी सन्त ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती साहब की दरगाह स्थित है जहां प्रतिदिन सभी धर्मों के अनुयाइयों द्वारा श्रद्धापूर्वक मन्नतें मांगकर उसकी पूर्ति के अवसर पर वहां चादर चढ़ाकर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। हिन्दू एवं मुस्लिम श्रद्धालुओं की संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि का कारण यह है कि ख्वाजा चिश्ती के आदर्शों के अनुकरण की प्रासंगिकता बढ़ती जा रही है। कहा जाता है कि सम्राट अकबर स्वयं आगरा से यहां तक की पदयात्रा करके ख्वाजा चिश्ती के  दरगाह का दर्शन किया करते थे। 

भौगोलिक स्थिति :-

अजमेर शरीफ भारत के राजस्थान प्रान्त के अजमेर जनपद में स्थित है। यहीं पर दो पहाड़ियों के मध्य आना सागर झील दरगाह से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण अजमेर शरीफ का प्राकृतिक सौन्दर्य बहुत ही मनमोहक है !अजमेर शरीफ दिल्ली से लगभग ४३८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्थान भारत के  समस्त प्रांतों एवं प्रमुख शहरों से हवाई मार्ग ,रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है। 

ऐतिहासिक साक्ष्य :-

कहा जाता है कि ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती सं ११९५ के आसपास भारत आये थे। उस समय मोहम्मद गोरी की सेना पृथ्वीराज चौहान की सेना से पराजित होकर वापस गजनी की और कूच कर रही थी और फ़ौज ने ख्वाजा साहब को भी आगे जाने से मना किया किन्तु ख्वाजा साहब यह कहकर उनकी बात को अनसुना कर दिया कि वे तो मात्र प्रेम एवं मोहब्बत का संदेश लेकर आगे बढ़ रहे हैं अतः उन्हें वापस होने की आवश्यकता नहीं है। चिश्ती साहब कुछ दिन दिल्ली में ठहरने के पश्चात अजमेर आकर यहीं अपना स्थायी निवास बना लिया !लगभग ९७ वर्ष की आयु पूर्ण होने पर  उन्होंने अपने निवास स्थान पर लोगों से मिलने के लिए मना कर दिया था और नमाज अदा करते हुए वहीं पर अपने प्राण त्याग दिए थे। ख्वाजा साहब के शुभचिंतकों एवं अनुयायियों ने उनकी मृत्यु के पश्चात उन्हें वहीं पर दफना दिया था और उनकी दरगाह को उनकी पूण्य स्मृति का प्रतीक मानते हुए वहीं पर सजदा देना आरम्भ कर दिया। यह दरगाह अजमेर शरीफ अपनी बनावट एवं विस्तार के कारण सभी अन्य दरगाहों से अलग प्रतीत होता है !दरगाह के मुख्य दरवाजे को निजामगेट के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण सन् १९११ में हैदराबाद रियासत के तत्कालीन निजाम मीर उस्मान अली खाँ ने करवाया था। मुगल सम्राट जहांगीर ने इसके शाहजहानी दरवाजे का निर्माण करवाया था और सन् १४६४ में गयासुद्दीन खिलजी दरगाह के गुंबद का निर्माण करवाया था !सुल्तान महमूद खिलजी ने बुलंद दरवाजे का निर्माण करवाकर दरगाह की शोभा में अत्यधिक वृद्धि की !इसी बुलंद दरवाजे पर प्रत्येक वर्ष ख्वाजा चिश्ती के उर्स के अवसर पर झंडा चढाकर मेले का शुभारम्भ किया जाता है। यह बुलंद दरवाजा फतेहपुर सीकरी स्थित बुलंद दरवाजे से अलग शैली में बनवाया गया है। सन् २०१५ में ख्वाजा चिश्ती का ८०० वां उर्स मनाया  गया था। ख्वाजा चिश्ती के दरगाह पर प्रतिदिन हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ एकत्रित होती है। प्रत्येक धर्म एवं सम्प्रदाय के पोषक श्रद्धालु यहां आकर अपनी मनौती मानते हैं और मनौती के पूर्ण होने पर श्रद्धापूर्वक पवित्र चादर चढ़ाकर बाबा ख्वाजा साहब के प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। धार्मिक कटटरता एवं नफरत फ़ैलाने वाले लोगों को ख्वाजा की दरगाह यह संदेश देती है कि मोहब्बत एवं भाईचारे के भाव लेकर आने वाले श्रद्धालु ही ख्वाजा की कृपा के पात्र हो सकते हैं। यहां का मुख्य पर्व उर्स कहलाता है जो इस्लाम कैलेन्डर के रजब माह की पहली से छठीं तारीख तक बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस उर्स मेले का शुभारम्भ हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा चादर चढ़ाकर किया जाता है !दरगाह के अंदर बरामदे में रखी दो देंगे बादशाह अकबर और जहाँगीर द्वारा दान दी गई थीं। तभी से इन देगों में काजू ,बादाम ,पिस्ता ,इलाइची व केसर के साथ चावल पकाकर गरीबों में बांटे जाने की परम्परा शुरू हुई थी !यहां के उर्स मेले में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है !

अन्य दर्शनीय स्थल :-

अजमेर शरीफ का मुख्य आकर्षण केंद्र ख्वाजा मोइनुद्दीन  चिश्ती का दरगाह ही है किन्तु दरगाह के निकट ही स्थित झोपड़ा जिसे "ढाई दिन का झोपड़ा " कहा जाता है ,भी एक प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल है। ऐसी मान्यता है कि पूर्व में इस झोपड़े के स्थान पर राजा बीसलदेव द्वारा निर्मित एक भव्य इमारत बनी थी जिसमें एक संस्कृत विद्यालय चलता था !मोहम्मद गोरी ने इस झोपड़े को ढाई दिन के भीतर तुड़वाकर उसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। इसी लिए इसे ढाई दिन का झोपड़ा कहा जाता है। इसी स्थान पर ख्वाजा साहब ने लगभग ३७ वर्षों तक लगातार नमाज अदा की थी !इस इमारत में दस गुम्बद एवं १२४ खम्भे बने हुए हैं। 
अजमेर शरीफ से थोड़ी ही दूरी पर जामा मस्जिद ,अकबरी मस्जिद ,मियां बाई की मस्जिद एवं शाहजहानी मस्जिद स्थित है !अजमेर में ही एक जैन मन्दिर भी स्थित है जो जैनियों के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव की पुण्य स्मृति में बनवाया गया था और इस मन्दिर में भगवान ऋषभदेव जी की विशाल मूर्ति स्थापित की गई है। 
अजमेर शरीफ स्थित दरगाह के उर्स मेले के अवसर पर विदेशों से आये हुए सूफी संतों ,फकीरों एवं कौव्वालों का जमघट लगा रहता है। मेले का प्रशासनिक नियन्त्रण राजस्थान सरकार का रहता है किन्तु इसका आयोजन दरगाह समिति द्वारा किया जाता है। प्रत्येक वर्ष विदेशी राजनयिकों का आगमन यहां होता रहता है। पाकिस्तान ,सऊदीअरब ,बगदाद, ईरान,ईराक व अफगानिस्तान के राजनेता जब भी भारत आते हैं वे यहां पर चादर चढ़ाना अपना पहला कर्तव्य समझते हैं।  

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