Monday, April 4, 2016

कैलाश मानसरोवर

   हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं से चारों ओर से घिरा हुआ कैलाश पर्वत दूरस्थ एक विशाल शिवलिंग की मनमोहक आकृति को प्रतिबिम्बित करता है। हिन्दू धर्म -ग्रन्थों के अनुसार कैलाश पर्वत को भगवान शिव एवं मां पार्वती के आवास स्थल "दिव्यधाम "तथा भगवान शिव की तपस्थली के रूप में जाना जाता है। कैलाश पर्वत के निकट ही लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर एक बहुत बडी तालाबनुमा झील स्थित है जिसे मानसरोवर की संज्ञा दी जाती है। बताया जाता है कि माता सती की दाहिनी हथेली इसी मानसरोवर में आकर गिरी थी जिसके कारण इसे इक्यावन शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। इस प्रकार कैलाश पर्वत से मानसरोवर तक के पूरे परिक्षेत्र को कैलाश मानसरोवर की संज्ञा दी जाती है और इसी परिक्षेत्र की परिक्रमा /यात्रा कैलाश मानसरोवर यात्रा के नाम से जाना जाता है। कैलाश मानसरोवर हिन्दू धर्म का अत्यन्त प्राचीन एवं पवित्र धार्मिक स्थल होने के कारण इसे प्रसिद्ध तीर्थस्थल की मान्यता प्रदान की गई। पुराणो ,उपनिषदों एवं अन्य धार्मिक गर्न्थों में इसके महात्म्य एवं पुण्यता के संबन्ध में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। स्कन्दपुराण में तो कैलाश पर्वत के स्मरण मात्र को ही अत्यधिक फलदायी बताया गया है। इस प्रकार कैलाश मानसरोवर को भारतीय संस्कृति एवं धर्म दोनों की प्राण -चेतना का प्रतीक माना जाता है। यहीं पर जैन धर्म के संस्थापक व उनके प्रथम गुरु द्वारा आत्मज्ञान प्राप्त किया गया था। 

भौगोलिक स्थिति :-

कैलाश पर्वत समुद्रतल से लगभग ६७४० मीटर की ऊँचाई पर सम्प्रति तिब्ब्त में स्थित है किन्तु प्राचीन काल में यह आर्यावर्त भारत का ही अंग था। उत्तराखण्ड के कुमायूँ मंडल में इसका आंशिक भाग स्थित होने एवं इसी मंडल से होकर यात्रा मार्ग गुजरने के कारण इसे हिन्दू धर्म का प्रधान केंद्र माना जाता है। कैलाश पर्वत से एक जलधारा निकटवर्ती झील में गिरती है और आगे चलकर नदी का रूप धारण कर चार विभिन्न दिशाओं की ओर प्रवाहित होती हैं। उत्तर की ओर सिंह मुख नदी ,पूर्व की ओर अश्व्मुख नदी ,दक्षिण की ओर मयुरमुख  नदी और पश्चिम की ओर गजमुख नदी के नाम से जाना जाता है। हिन्दुओं द्वारा कैलाश पर्वत को सृष्टि एवं ब्रह्माण्ड का प्रधान केन्द्र माना जाता है। पुराणों में इसका चित्रण ८४००० मील ऊंचे विलक्षण विश्व स्तम्भ के रूप में किया गया है जिसके चारों ओर परिक्रमा सम्पन्न की जाती है। कैलाश पर्वत शिखर पर भगवान शिव एवं मां पार्वती निवास करती हैं जबकि मानसरोवर  तिब्ब्त के पठार पर स्थित तालाबनुमा एक झील है जिसमें मां सती के दाहिने हाथ की हथेली आकर गिरी थी। अतः कैलाश एवं मानसरोवर दोनों का अलग अलग धार्मिक महत्व है और दोनों पृथक स्थल हैं। दोनों स्थलों के मध्य केवल २५ किलोमीटर का अन्तर अवश्य है किन्तु दोनों हिमालय की श्रृंखलाओं में ही स्थित हैं। इन दोनों के संयुक्त स्थल की यात्रा को कैलाश मानसरोवर यात्रा की संज्ञा दी जाती है। 

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

पौराणिक आख्यानों के अनुसार लंकापति रावण यहां स्थित राक्षस ताल में खड़े होकर भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और यहीं पर कुछ दूर स्थित मानसरोवर ताल में माता सती की दाहिनी हथेली गिरने के कारण इसे शक्तिपीठ की मान्यता दी जाती है।  यहां स्थित कैलाश पर्वत जो दूर से देखने पर शिवलिंग जैसा दिखाई पड़ता है ,की परिक्रमा करके भक्तगण पुण्यलाभ प्राप्त करते हैं। मानसरोवर का जल बहुत अधिक ठंडा नहीं होता जिसके कारण इसमें आसानी से स्नान किया जा सकता है। इस मानसरोवर में पाए जाने वाले हँस पानी और दूध को अलग अलग करने की सामर्थ्य रखते थे किन्तु सम्प्रति अब हँस दिखलायी नहीं पड़ते हैं। सम्भवतः पूर्व में यहां पर हँस पाए जाते रहे होंगे। श्रीमदभागवत कथा के अनुसार मानसरोवर में अप्सराएँ नग्न होकर स्नान किया करती थीं कहा जाता है कि एक बार शुक्र मुनि निर्वस्त्र होकर सामने की ओर से तथा व्यास मुनि पीछे की ओर से गुजर रहे थे तभी अप्सराएँ शुक्र मुनि को देखकर लज्जित नहीं हुई किन्तु व्यास मुनि जो वस्त्र धारण किये हुए थे ,को देखकर अप्सराएँ लज्जा महशूस  करने लगीं और उन्होंने अपने वस्त्र शीघ्रता से अपने शरीर पर डालने लगीं। यह देखकर चकित व्यास मुनि के द्वारा कारण पूछने पर अप्सराओं ने कहा कि आपके मन में स्त्री पुरुष के भेद देखकर ही हम लज्जित हो गए। 

कैलाश मानसरोवर -यात्रा :-

कैलाश मानसरोवर की यात्रा हमें भारत के प्राचीन आध्यात्मिक गौरवपूर्ण इतिहास का अनुस्मरण कराती हैं क्योंकि प्राचीनकाल से ही आर्य सभ्यता के चरम  उत्कर्ष के रूप में कैलाश पर्वत को जाना जाता रहा है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा प्रायः अल्मोड़ा से जून माह के दूसरेसप्ताह में आरम्भ होती है। सम्प्रति चीन से होकर एक नए रास्ते से भी यात्रा का शुभारम्भ हुआ है। अल्मोड़ा से कैलाश मानसरोवर की दूरी २३८ मील है और इस मार्ग से यात्रा के दौरान पड़ने वाले स्थानों को निम्न तालिका के माध्यम से समझा जा सकता है :--
स्थान ---------दूरी {मील में }----ऊँचाई {फिट }--------------
अल्मोड़ा          ०                      ५०००                              यात्रा का शुभारम्भ स्थल 
बर्चीना             ८                      ६०००                                  डाकबंगला 
धौल्चिन         ६                       ६०००                                    पोस्ट आफिस 
कनारचिन      ४                      ६०००                                     डाकबंगला 
शेरा घाट          ६                      ६०००                                      --------
गनई                ६                      ६०००                                      डाकबंगला
झलटोला          ६                      ६०००                                     विश्रामस्थल 
बेरीनाग            ६                     ७०००                                      डाकबंगला,पोस्ट आफिस 
भाल                 १०                    ३०००                                           पोस्ट आफिस 
डीडीहाट            ८                     ५५००                                       डाकबंगला
अस्कट              ९                     ५०००                               डाकबंगला,पोस्ट आफिस 
बलवाकोट        १२                   ३०००                                   विश्रामस्थल 
धारचूला            ११                   ३०००                                   विश्रामस्थल 
खेला                  १०                   ५५००                                पोस्ट आफिस 
चौबास                 ८                 ९०००                                   ------------
गल्लागाद            ११                ८०००                                आधी यात्रा पूर्ण 
मेलपा                   ५                ७२००                                 ख़राब मार्ग 
बुडी                        ७              ९५००                                ----------------
गर्व्यांग                  ६             १०५००                                डाकबंगला ,  पोस्ट आफिस 
कालापानी            १०           १२०००                                 जोखिमपूर्ण मार्ग 
सोनचम                ६              १५०००                               हिमाच्छादित स्थल 
लियुलेह पास        ६             १६७५०                               कोई विश्राम स्थल नहीं 
टकलाकत मंडी      ६             १३०००                                  '"
रंगन                       ५            १४४००                                   "
गुरलापास              १०           १६२००                               कैलाश की झलक 
मानसरोवर            १०           १४९००                               झील की स्थिति
जगुम्बगुहा              ८           १५०००                                अच्छा मार्ग ,विश्राम स्थल 
बरखा                       ८           १५०००                                      "
दार्चिनमंदिर            ६             १५०००                              कैलाश पर्वत स्पष्ट दिखाई पड़ता है। 
खण्डिगुणवा            ६              १५०००                                 "
डरफु                       ८              १५०००                             कैलाश पर्वत स्पष्ट दिखाई पड़ता है। 
गौरीकुण्ड                २              १८६००                            स्नान स्थल ,विश्राम स्थल 
कैलाश पर्वत             ०               २२०२८                       हिमाच्छादित स्थल      
वैसे तो कैलाश मानसरोवर की यात्रा अत्यन्त  कठिन है और इस यात्रा हेतु काफी धन भी व्यय  करना पड़ता है किन्तु  उत्सुक श्रद्धालु आसानी से यह यात्रा सम्पन्न कर  लेते हैं। अस्वस्थ व्यक्ति अथवा अधिक बूढ़े लोग यहां तक पहुँचने में कठिनाई महशूस कर सकते हैं।  यह यात्रा भारत सरकार एवं चीन सरकार के संयुक्त प्रयास एवं सहमति से सम्भव हो पाती है क्योंकि इसका अधिकाँश क्षेत्र तिब्ब्त में होने के कारण चीन सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। अतः भारत की सीमा समाप्त होने के उपरान्त यात्रियों की आगे की यात्रा की व्यवस्था व यात्रियों की देखरेख चीन सरकार के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के संरक्षण में होता है। इस यात्रा के लिये  प्रत्येक वर्ष चीन के नई  दिल्ली स्थित दूतावास में आवेदन करना पड़ता है और यात्रा की निर्धारित शर्तों को पूर्ण करने के पश्चात वर्षा ऋतु में यह यात्रा प्रारम्भ होती है क्योंकि ऐसे समय में मौसम  साफ मिलते हैं। कुमायूं मण्डल के पिथौरागढ़ जनपद के अन्तिम किनारे पर स्थित तिब्ब्त सीमा तक इस यात्रा को कुमायूं विकास मण्डल विभाग के द्वारा सम्पन्न करवाई जाती है और आगे की यात्रा का उत्तरदायित्व चीन सरकार का होता है। 
कैलाश पर्वत श्रृंखलाओं पर कठिन चढ़ाई चढ़कर हिमाच्छादित चोटी पर स्थित डोलमापास के सन्निकट गौरीकुण्ड नामक प्रसिद्ध सरोवर मिलता है। कहा जाता है कि मां पार्वती जी यहां पर जल क्रीड़ा किया करती थीं। यह स्थान चारों ओर से सफेद बर्फ से आच्छादित दिखलाई पड़ता है। सरोवर की ऊपरी परत अत्यधिक सर्दी पड़ने के कारण कठोर व पारदर्शी दिखलायी पड़ती है !मानसरोवर का प्राकृतिक सौन्दर्य अवर्णनीय है क्योंकि जो भी यात्री यहां की यात्रा सम्पन्न कर  लेता है वह शब्दों में इसका वर्णन करने में सर्वथा असमर्थ दिखलायी पड़ता है.स्वीडन के प्रसिद्ध विद्वान स्वेन हेडिन के शब्दों में "प्रतिक्षण नई नई स्फूर्ति प्रदान करने वाले इस स्वर्गीय सरोवर के अनुपम दृश्य को कभी तृप्त न हुए बिना देख देखकर मैं यहीं पर जीवन बिताना और मर जाना चाहता हूँ। "
प्राचीनकाल में यह देवताओं एवं ऋषियों ,मुनियों की तपस्थली के रूप में जाना जाता था। सामान्य लोग यहां तक नहीं पहुँच पाते थे किन्तु भारत सरकार व चीन सरकार के संयुक्त प्रयास से अब यहां तक पहुँचने के लिए सड़कों का निर्माण करा दिया गया है जिसके कारण सम्प्रति श्रद्धालु आसानी से यहां पहुँच सकते हैं। यहां की यात्रा हेतु पर्याप्त ऊनी वस्त्र ,विंडचीटर्स आदि की व्यवस्था करनी पड़ती है क्योंकि ऊपरी क्षेत्र में ठंडी हवाओं का सामना करना पड़ता है। पर्याप्त खाद्य सामग्री ,औषधियां आदि भी इस यात्रा के दौरान रखना पड़ता है क्योंकि दुर्गम क्षेत्र होने के कारण वहां पर इनकी उपलब्धि नहीं हो पाती है। यात्रा के पूर्व यात्री को चिकत्सीय परीक्षण कराना अनिवार्य होता है। चीन सरकार द्वारा केवल तकलाकोट में ठहरने के दौरान यात्रियों हेतु भोजन की व्यवस्था की जाती है। नौ दिन की इस यात्रा में यात्रियों को आंशिक रूप से पकी हुई खाद्य सामग्री अथवा सूखे फल साथ में ले जाना चाहिए। प्राकृतिक दृश्यों की तस्वीर खींचने हेतु कैमरा व मोबाईल साथ में ले जा सकते हैं। इस प्रकार कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा एक अविस्मरणीय धार्मिक यात्रा के रूप में सम्पूर्ण  विश्व प्रसिद्ध है।        

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