Thursday, April 7, 2016

पुष्कर

हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल पुष्कर भगवान ब्रह्माजी की पुण्य स्मृति में निर्मित ब्रह्मा मन्दिर एवं प्रतिवर्ष यहां आयोजित होने वाले विशाल धार्मिक मेले के कारण प्रसिद्ध है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां आयोजित मेले का आनन्द लेने हेतु हजारों की संख्या में विदेशी पर्यटक आते हैं। पुष्कर को देवताओं का अत्यधिक प्रिय स्थल माना जाता है।  कहा जाता है कि यहां पर प्रतिदिन तीनों सन्ध्याओं पर दस करोड़ तीर्थ स्वयं उपस्थित हो जाते हैं एवं जगत के रचईता तथा सृष्टिकर्ता भगवान ब्रह्मा जी भी स्वयं यहां पर निवास किया करते हैं। अतः ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति एक बार पुष्कर सरोवर में स्नान एवं भगवान ब्रह्मा के दर्शन कर लेता है उसे सीधे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है तथा सांसारिक कष्टों से उसे सहज मुक्ति मिल जाती है।  पुष्कर के उदभव और महत्ता के संबन्ध में पद्मपुराण में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। भगवान ब्रह्मा द्वारा यहां पर विशाल यज्ञ -क्रिया सम्पन्न किया जाने के कारण यहां पर ब्रह्माजी का मन्दिर बनवाया गया है !सम्पूर्ण भारत में पुष्कर ही एक ऐसा स्थान है जहाँ पर ब्रह्माजी का मन्दिर स्थापित है। यह मन्दिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है। यद्यपि मुगलकाल में यहां के मुख्य मन्दिरों को औरंगजेब द्वारा तोड़वा दिया गया था किन्तु बाद में स्थानीय राजपूत राजाओं द्वारा इसका पुनर्निर्माण करा दिया गया था। 

भौगोलिक स्थिति :-

भारतवर्ष के राजस्थान प्रान्त में यह प्रसिद्ध तीर्थस्थल स्थित है। यह तीर्थस्थल अजमेर से ११ किलोमीटर दूर है। इस तीर्थस्थल का प्रमुख आकर्षण पुष्कर सरोवर है जहां स्नान करने के पश्चात दर्शनार्थी भगवान ब्रह्माजी के प्रसिद्ध मन्दिर का दर्शन करते हैं। पुष्कर सरोवर से ही सरस्वती नदी निकलकर आगे जाकर साबरमती में लूनी नदी के नाम से जानी जाती हैं।  पुष्कर सरोवर को कैलाश मानसरोवर के समतुल्य तीर्थ की मान्यता प्राप्त है। इस स्थल पर कार्तिक पूर्णिम की तिथि को एक बहुत बड़ा मेल आयोजित होता है जिसमें विदेशों से सर्वाधिक दर्शनार्थी /पर्यटक सम्मिलित होते हैं। राज्य प्रशासन द्वारा आयोजित इस मेले में कला ,संस्कृति एवं पर्यटन विभाग द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। यह स्थान रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग से राज्य के प्रमुख शहरों से सम्बद्ध है। 

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

हिन्दू धर्म में जिस प्रकार प्रयाग को तीर्थराज की संज्ञा दी जाती है ठीक उसी प्रकार पुष्कर को समस्त तीर्थों का मुख मानते हुए इसे पुष्करराज के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इसकी गिनती पंचतीर्थों एवं पञ्च सरोवरों में भी की जाती है। पुराणों में इसके तीन  भागों का वर्णन मिलता है ,प्रथम ज्येष्ठ पुष्कर जिसके संरक्षक  देवता भगवान ब्रह्माजी हैं ,द्वितीय मध्यम पुष्कर जिसके संरक्षक अधिष्ठाता भगवान विष्णुजी हैं एवं तृतीय लघु पुष्कर जिसके संरक्षक व अधिष्ठाता भगवान रूद्र हैं। ज्येष्ठ पुष्कर में ब्रह्मा जी ने अपने यज्ञ की वेदिका स्थापित की थी। अतः इन तीनों पुष्करों की परिक्रमा करके श्रद्धालुगण अपने को धन्य मानते हैं। इन तीनों पुष्करों की आपस की दूरी अधिक है और प्रत्येक पुष्कर की परिक्रमा के दौरान मार्ग में अनेकों मन्दिर एवं ऋषि -मुनियों की तपस्थली तथा आश्रम दृष्टिगत होते हैं। पुष्कर का प्रमुख मन्दिर ब्रह्माजी का मन्दिर है जो पुष्कर सरोवर से थोड़ी ही दूर पर स्थित है। 
ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि जब ब्रह्मा के मानस पुत्र नारद द्वारा सृष्टिकर्म में सहयोग करने से असहमति व्यक्त कर दी गयी थी तब ब्रह्माजी ने क्रोधित होकर उन्हें यह शाप दे दिया था कि "तुमने मेरी आज्ञा की अवहेलना की है अतः मेरे शाप से तुम्हारा समस्त ज्ञान नष्ट हो जायेगा और तुम गन्धर्व योनि को प्राप्त करके कामिनियों के वशीभूत हो जाओगे। "  यह शाप सुनकर दुःखी मन से नारद ने भी ब्रह्मा जी को यह शाप दिया कि" तात ,आपने बिना किसी कारण एवं सोच विचार के मुझे शाप दिया है अतः मैं भी आपको शाप देता हूँ कि तीन कल्पों तक लोक में आपकी पूजा नहीं होगी और आपके मंत्र ,श्लोक एवं कवच आदि का लॉप हो जायेगा।  "  कहा जाता है कि उक्त शाप के कारण ही ब्रह्माजी की पूजा अन्यत्र कहीं नहीं की जाती है केवल पुष्कर में ही वर्ष में एक बार उनकी पूजा अर्चना की जाती है। 
पुष्कर का उल्लेख वाल्मीकि रामायण के सर्ग ६२ श्लोक संख्या २८ में विश्वामित्र के यहां तप करने के सन्दर्भ में मिलता है तथा सर्ग ६३ श्लोक संख्या १५ में अप्सरा मेनका द्वारा यहां स्थित पुष्कर सरोवर में स्नान करने का वर्णन किया गया है। बौद्धकाल में निर्मित साँची स्तूप के दान लेखों में ऐसे दान दाताओं के नाम उल्लिखित हैं जो पुष्कर के निवासी थे। पाण्डुलेन गुफा के लेख में ऊष्मदवत्त जो प्रसिद्ध राजा नहपाण का दामाद था ,के पुष्कर आने एवं  उसके द्वारा यहां ३००० गायों तथा एक गाँव दान में दिए जाने का उल्लेख मिलता है। पुष्कर में प्राप्त कई प्राचीन लेखों से यह भी पुष्टि होती है कि सन ९२५ ई ० से १०१० ई ० के मध्य पुष्कर तीर्थस्थल के रूप में प्रसिद्ध हो गया था। पुराणों में इस तीर्थ का कई स्थानों पर वर्णन किया गया है और पंचतीर्थों में कुरुक्षेत्र ,गंगा ,गया और प्रभास के साथ पांचवा पंचतीर्थ पुष्कर को बताया गया है। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

दर्शनार्थियों के स्नान हेतु पुष्कर सरोवर पर कई पक्के घाट जैसे कपालमोचन घाट ,यक्ष घाट ,गौघाट ,रामघाट ,बदरी घाट ,ब्रह्मघाट ,एवं कोटितीर्थ घाट बनाए गए हैं। यहां रत्नागिरि की तलहटी में स्थित ब्रह्माजी के मन्दिरमें  ब्रह्माजी की मूर्ति के बांयी ओर मां गायत्री तथा दांयी ओर मां सावित्री जी की मूर्तियां स्थापित की गईं हैं। इसके अतिरिक्त यहां रंगराज जी का मन्दिर ,वाराह मन्दिर ,आत्मेश्वर महादेव मन्दिर ,नृसिंहदेव मंदिर बने हुए हैं। श्रीरंगराज जी का मन्दिरदक्षिण भारतीय वास्तुकला में बनाया गया है तथा यह कहा जाता है कि इसे ऐसे व्यक्ति बनवाया था जिसे कोई गड़ा हुआ धन मिल गया था। नृसिंहदेव मन्दिर में भगवान विष्णु द्वारा नृसिंह रूप में हिरण्याकशयप का वध करते हुए भव्य मूर्ति स्थापित की गई है। वाराह मन्दिर के संबन्ध में बताया जाता है कि सृष्टि के समय पृथ्वी को जब हिरण्याक्ष नामक राक्षस चुराकर पाताल में छिपा दिया था तब भगवान विष्णु ने वाराह का रूप धारण कर अपने दांतों पर पृथ्वी को पाताल लोक से वापस ले आया था। इसी घटना का चित्रण इस मंदिर में किया गया है। ब्रह्मा मन्दिर का निर्माण ग्वालियर के महाजन गोकुल प्राक ने करवाया था !इस मन्दिर की लाट लाल रंग की है तथा इसमें  ब्रह्मा जी के वाहन हंस की आकृति भी दृष्टिगत होती है। इसके निकट ही एक मंदिर में सनकादि की मूर्तियां तथा नारद की मूर्ति स्थापित की गई है। एक अन्य मन्दिर में हाथी पर आसीन कुबेर तथा नारद की मूर्तियां रखी गईं हैं। 
पुष्कर का मुख्य आकर्षण पुष्कर मेले को भी माना जाता है। इसी मेले में पशुमेला जिसमें श्रेष्ठ नस्लों के पशुओं का क्रय -विक्रय किया जाता है ,आयोजित किया जाता है। यह मेला  रेत के विशाल मैदान पर आयोजित होता है जिसमें पंक्तिबद्ध अनेकों विभिन्न दुकानें ,खाने- पीने के स्टाल ,सर्कस ,झूले व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के मंच लगवाए जाते हैं। इस पशुमेले में श्रेष्ठ नस्ल के पशुओं को पुरस्कृत भी किया जाता है।   

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