भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग को ओमकारेश्वर के नाम से जाना जाता है। इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण नर्मदा नदी से स्वतः हुआ माना जाता है। शिवपुरी अथवा मन्धाता नामक द्वीप पर स्थित होने तथा इस द्वीप की आकृति ॐ के आकार में होने के कारण यहां पर स्थित ज्योतिर्लिंग को ओमकारेश्वर की संज्ञा दी गई। ओमकारेश्वर मन्दिर में एक तरफ भगवान शिव का ओमकारेश्वर लिंग स्थापित है तो दूसरी तरफ मां पार्वती व गणेश जी की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके प्रांगण में मुनि शुकदेव की प्रतिमा तथा नन्दी की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है। यह मंदिर दो मंजिला है। इसकी दूसरी मंजिल पर महाकालेश्वर की प्रतिमा स्थापित है। इसका भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र कहलाता है जिसमें ६८ तीर्थ सम्मिलित माने जाते हैं। कहा जाता है कि यहां पर ३१ करोड़ देवता नित्य निवास करते हैं तथा दो ज्योतिस्वरूप लिंग सहित १०८ अन्य शिवलिंग स्थापित हैं। यहां से थोड़ी दूर पर स्थापित दुसरे शिवलिंग को अमलेश्वर अथवा अमरेश्वर की संज्ञा दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि यहां सर्वप्रथम भगवान शंकर ॐ के रूप में होकर ओमकारेश्वर कहलाये तथा दूसरा उसी पार्थिव लिंग से उत्पन्न होने के कारण अमलेश्वर कहलाए।
भौगोलिक स्थिति :-
ओमकारेश्वर भारतवर्ष के मध्यप्रदेश प्रान्त के खंडवा जनपद में स्थित हैं। यह तीर्थस्थल नर्मदा नदी के मध्य में मन्धाता अथवा शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित है। चूँकि यह द्वीप हिन्दुओं के पवित्र शब्द ॐ के आकार का है सम्भवतः इसी कारण इन्हें ओमकारेश्वर की संज्ञा दी जाती है। ओमकारेश्वर के निकटवर्ती गांव मोरटक्का यहां से लगभग २० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां स्थित नर्मदा नदी पर विश्व की सर्वाधिक बड़ी बांध परियोजना का निर्माण किया जा रहा है। मध्यप्रदेश के खंडवा शहर से यह ७२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। खंडवा से ६० किलोमीटर की दूरी पर ओमकारेश्वर रोड रेलवे स्टेशन है तथा १२ किलोमीटर चलकर ओमकारेश्वर तक पहुंचा जा सकता है। यह भारत के प्रमुख शहरों से रेल तथा सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है।पूर्णा,जयपुर,इंदौर,अकोला,खण्डवा से सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। अन्य स्थलों से यहां पहुँचने के लिए रेल द्वारा इंदौर या खण्डवा होकर पहुंच जा सकता है। रेल ओंकारेश्वर रोड स्टेशन पर उतारती है और यहां से १२ किलोमीटर की दूरी पर ओंकारेश्वर मन्दिर स्थित है। इदौर तक यह स्थल वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है। उज्जैन से खंडवा जाने वाली रेलवे लाइन पर मोरटक्का नामक स्टेशन पर उतरकर १० किलोमीटर पैदल चलकर यहां तक पहुँचा जा सकता है।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
कोटिरुद्रसंहिता के अनुसार ओंकार तीर्थ में ज्योतिर्लिंग परमेश्वर है। ओंकार तीर्थ में होने के कारण ही इसे ओमकारेश्वर कहा गया। यहां स्थित शिवलिंग गढ़ा हुआ लिंग नहीं है।महान पुण्यतम अमरेश्वर तीर्थ सदा सैकड़ों देवताओं तथा ऋषि संघों द्वारा पोषित है। अतएव यह महान एवं पवित्र तीर्थ है। यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के खण्डवा जिले में मोरटक्का {ओमकारेश्वर रेलवे स्टेशन }से मात्र १२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
ओंकारेश्वर नगरी का प्राचीन नाम मन्धाता माना जाता है क्योंकि राजा मान्धाता ने नर्मदा नदी के किनारे स्थित पर्वत पर घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। तभी भगवान शिव वहां प्रगट होकर उन्हें यह वरदान दिए थे कि वे सदैव यहां निवास करेंगे तथा यह स्थल तीर्थस्थल के रूप में जाना जायेगा। इसी कारण इसे ओंकार मान्धाता के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि देवी अहिल्याबाई होलकर यहां पर नित्य मृत्तिका के अट्ठारह सहस्त्र शिवलिंग बनवाकर शिवलिंग की पूजा किया करती थीं और पूजन के पश्चात उस मृत्तिका शिवलिंग का विसर्जन नर्मदा नदी में कर देती थीं।
मन्धाता के दक्षिण में ज्योतिर्लिंग अमरेश्वर स्थित हैं। यहां स्थित मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई द्वारा करवाया गया था। कहा जाता है कि विन्ध्याचल पर्वत द्वारा भगवान शिव के पार्थिव पूजन निरन्तर ६ माह तक किये जाने से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे तथा उसी समय वहां उपस्थित अन्य देवताओं एवं ऋषियों के अनुरोध पर ओंकार शिवलिंग के दो टुकड़े कर पहले टुकड़े में भगवान शिव के ॐ स्वरूप तथा दुसरे टुकड़े में उनके पार्थिव लिंग से उत्पन्न अमरेश्वर शिवलिंग की मान्यता दे दी गई।नर्मदा तट पर स्थित इस क्षेत्र का उल्लेख हरिवंश पुराण में माहिष्मती के नाम से हुआ है। विंध्य एवं ऋक्षवत पर्वतों के मध्य इस क्षेत्र को मन्धाता के पुत्र मुचुकुन्द ने बसाया था। ओमकार पर्वत के दोनों ओर रेवा एवं कावेरी नदी इसे रमणीक बनाती हैं।
मन्धाता के दक्षिण में ज्योतिर्लिंग अमरेश्वर स्थित हैं। यहां स्थित मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई द्वारा करवाया गया था। कहा जाता है कि विन्ध्याचल पर्वत द्वारा भगवान शिव के पार्थिव पूजन निरन्तर ६ माह तक किये जाने से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे तथा उसी समय वहां उपस्थित अन्य देवताओं एवं ऋषियों के अनुरोध पर ओंकार शिवलिंग के दो टुकड़े कर पहले टुकड़े में भगवान शिव के ॐ स्वरूप तथा दुसरे टुकड़े में उनके पार्थिव लिंग से उत्पन्न अमरेश्वर शिवलिंग की मान्यता दे दी गई।नर्मदा तट पर स्थित इस क्षेत्र का उल्लेख हरिवंश पुराण में माहिष्मती के नाम से हुआ है। विंध्य एवं ऋक्षवत पर्वतों के मध्य इस क्षेत्र को मन्धाता के पुत्र मुचुकुन्द ने बसाया था। ओमकार पर्वत के दोनों ओर रेवा एवं कावेरी नदी इसे रमणीक बनाती हैं।
ओमकारेश्वर मंदिर में कुबेर ने भी शिव की घोर तपस्या की थी तथा शिवलिंग स्थापना भी करवायी थी जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें देवताओं के धनपति की पदवी प्रदान की थी। कहा जाता है कि भगवान शिव ने कुबेर को अलग से स्नान करने के लिए अपनी जटा से कावेरी नदी प्रवाहित कर दी थी जो ओंकार पर्वत से आगे चलकर नर्मदा नदी में ही मिल जाती हैं। इन दोनों नदियों के संगम स्थल पर धनतेरस के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है और धनतेरस की सुबह कुबेर एवं महालक्ष्मी महायज्ञ नर्मदा के तट पर करायी जाती है। ओमकारेश्वर स्थल पर यज्ञ करने से अत्यधिक पुण्य की प्राप्ति होती है। श्रद्धालुगण यहां से वितरित लक्ष्मी वृद्धि पैकेट को अपने घर लाकर दीपावली के दिन उसे अपनी तिजोरी में रख देते हैं ताकि घर में सुख समृद्धि बनी रहे। ओमकारेश्वर मंदिर के जलमग्न हो जाने के कारण भक्त श्री चैतराम द्वारा यहां बाँध और अमलेश्वर मंदिर के मध्य एक नवीन मन्दिर का निर्माण सन् २००६ -०७ में करवाया गया।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
यहां विष्णुपुरी में एक ज्योतिर्लिंग अवस्थित है जिसे अमलेश्वर अथवा परमेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। इसी के निकट विष्णु भगवान का एक प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यहां स्थित अन्य मंदिरों में गणपति जी ,कार्तिक जी ,मारुती जी ,अघोरेश्वर लिंग ,ब्रह्मकेश्वर लिंग ,गंगेश्वर लिंग नीलकंठेश्वर प्रमुख हैं। नर्मदा की दोनों धाराएं कावेरी एवं नर्मदा जहां मन्धाता द्वीप को घेरती हुई एक जगह पर मिलती हैं उसे संगम स्थल कहा जाता है। यहीं पर राजा मुचुकुन्द का किला भी स्थित है। यहां स्थित विभक्त स्थल में नर्मदा की दोनों धाराएं विभक्त हो जाती हैं। इसी के निकट चउबीस अवतार और पशुपति नाथ जी का मंदिर स्थित है। इसके आगे कुबेरेश्वर मंदिर,च्यवन ऋषि का आश्रम स्थित है।
ओंकारेश्वर एवं अमलेश्वर ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त ओमकारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में चौबीस अवतार ,माता घाट ,सीता वाटिका ,धावड़ी कुंड ,मार्कण्डेय सन्यास आश्रम ,अन्नपूर्णा आश्रम ,बड़े हनुमान ,मार्कण्डेय शीला ,खेड़ापति हनुमान ,ओंकार मठ ,माता आनन्दमयी आश्रम ,ऋणमुक्तेश्वर महादेव ,गायत्री माता मन्दिर ,विज्ञानशला ,सिद्धनाथ गौरी सोमनाथ ,वैष्णो देवी मंदिर ,काशी विश्व्नाथ,नरसिंह टेकरी ,कुबेरेश्वर महादेव ,चंद्रमौलेश्वर महादेव आदि के मन्दिर दर्शनीय हैं। नर्मदा क्षेत्र में ओमकारेश्वर को सर्वश्रेष्ठ तीर्थ माना जाता है। शास्त्रों में यह वर्णित है कि सभी तीर्थ यात्रा सम्पन्न करने के पश्चात श्रद्धालु जब तक ओमकारेश्वर तीर्थस्थल आकर समस्त तीर्थों से लाए गए जल से इनका अभिषेक नहीं करते, तब तक अन्य सभी तीर्थों की यात्रा सफल व पुण्यदायी नहीं मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि गंगा नदी में सात दिन एवं यमुना नदी में पन्द्रह दिन किये गए स्नान का पुण्य नर्मदा नदी के बराबर होता है। इस प्रकार नर्मदा नदी का विशेष महात्म्य बताया गया है।
ओमकारेश्वर शिवलिंग स्वयम्भू है क्योंकि यह किसी मनुष्य के द्वारा निर्मित नहीं है। प्रायः यह चारों ओर से जलमग्न रहते हैं। अन्य मंदिरों में लिंग की स्थापना गर्भगृह के मध्य गुम्बद के नीचे होती है किन्तु ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में स्थापित नहीं है और न ही इनके ऊपर शिखर अथवा गुम्बद बनाया गया है। ओमकारेश्वर मंदिर के दूसरे मंजिल पर भगवान महाकालेश्वर की मूर्ति स्थापित है। ओमकारेश्वर मंदिर में बने हुए स्थानीय ॐ और इसमें बने हुए चन्द्रबिन्दु का जो स्थान है वही स्थान ओंकार पर्वत पर बने ओमकारेश्वर मंदिर का है। इस मंदिर में भगवान शिव को चने की दाल चढाने की परम्परा पूर्व से यथावत चली आ रही है और यही प्रसाद के रूप में भक्तों में वितरित किया जाता है।
ओम्कारेश्वर की यात्रा बस द्वारा विष्णुपुरी तक की जा सकती है और यहां से नाव द्वारा मान्धाता द्वीप पहुंचा जा सकता है। नर्मदा नदी के किनारे स्नान हेतु पक्के घाट निर्मित हैं जहां स्नान करके श्रद्धालु ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करते हैं। मार्ग में मुक्तेश्वर ,ज्वालेश्वर ,केदारेश्वर ,गणेश व कालिका माता के मंदिरों में स्थापित उनकी मूर्तियों के दर्शन होते हैं। ओमकारेश्वर के दर्शन मात्र से परमधाम की प्राप्ति होती है एवं सभी मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
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