उत्तराखण्ड राज्य में स्थित हरिद्वार एक जिला होने के साथ साथ भारत का प्रमुख धार्मिक तीर्थ -स्थल व प्राचीन नगर है। हरिद्वार का शाब्दिक अर्थ विन्यास करने पर हरि अर्थात विष्णु एवं द्वार का अर्थ प्रवेश स्थल से यह स्वतः ध्वनित होता है कि यह तीर्थस्थल ईश्वर का प्रवेश द्वार है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक प्रमुख स्थल है। हिमालय श्रृंखला के गोमुख स्थल अर्थात गंगोत्री हिमनद से २५३ किलोमीटर की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में ही मैदानी क्षेत्र की ओर अग्रसर होती हैं। इसलिए इसे मैदानी क्षेत्र का प्रवेश द्वार एवं गंगा द्वार भी कहा जाता है। हरिद्वार की प्राकृतिक छटा बहुत ही मनमोहक है क्योंकि यहां से उत्तर की ओर पर्वत चोटियां प्रारम्भ हो जाती हैं एवं दक्षिण में मैदानी क्षेत्र। इस प्रकार पर्वत एवं मैदान के संगम स्थल के रूप में हरिद्वार विशेष आकर्षण का केन्द्र माना जाता है। प्रत्येक वर्ष भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु इस पवित्र तीर्थस्थल का दर्शन करने आते रहते हैं। यहाँ प्रत्येक ६ वर्ष बाद कुम्भ एवं १२ वर्ष बाद महाकुम्भ का मेला आयोजित होता है।
भौगोलिक स्थिति :-
हरिद्वार शहर ३१३९ मीटर की ऊंचाई पर गंगा नदी के तट पर बसा हुआ हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल है। यह भारत का प्रथम शहर है जहां गंगा पर्वतों से निकलकर मैदान में प्रविष्ट होती हैं। वर्षाकाल में गंगा नदी के जल में मिटटी का मिश्रण देखने को मिलता है किन्तु अन्य ऋतुओं में गंगा का जल साफ व स्वच्छ रहता है। २३६० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से घिरा हुआ हरिद्वार जिला उत्तराखण्ड राज्य के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित है। यह समुद्रतल से २५० मीटर की ऊंचाई पर है। इसके उत्तर पूर्व में शिवालिक की पहाड़ियाँ तथा दक्षिण में गंगा नदी प्रवाहित होती हैं। पहले यह शहर उत्तरप्रदेश राज्य के सहारनपुर मण्डल में था किन्तु २४ सितंबर १९९८ को उत्तरप्रदेश पुनर्गठन विधेयक १९९८ एवं सन २००० में भारतीय संघीय विधान उत्तरप्रदेश पुनर्गठन अधिनियम २००० के पारित होने के उपरान्त ९ नवंबर २००० को भारतीय गणराज्य के २७ वें नवगठित राज्य उत्तराखण्ड नाम से अस्तित्व में आया। पूर्व में इसे उत्तराञ्चल के नाम से जाना जाता था।
पौराणिक साक्ष्य :-
पौराणिक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि ब्रह्माण्ड के निर्माण से पूर्व देवताओं और असुरों के बीच सम्पन्न हुए समुद्र मंथन के दौरान धन्वन्तरी नामक एक अप्सरा प्रकट हुई थी जिसके सिर पर अमृतकलश था। अमृत-पान को लेकर दोनों पक्षों में काफी वाद विवाद एवं युद्ध की स्थिति उत्पन्न होने पर दोनों पक्षों द्वारा उस अप्सरा का पीछा करते समय अमृत कलश से अमृत की कुछ बूँदें जिन चार स्थानों पर गिरी थीं उनमें से हरिद्वार भी एक स्थान था। अन्य स्थान उज्जैन ,नासिक एवं प्रयाग है। इन चारों स्थानों पर कुम्भ एवं महाकुम्भ का मेला आयोजित होता है। देश एवं विदेश से करोड़ों पर्यटक एवं तीर्थयात्री इस समारोह में भाग लेते हैं एवं गंगा नदी के तट पर विधि विधान पूर्वक स्नानादि करते है। हरिद्वार में जिस स्थान पर अमृत की बूँदें गिरी थीं वह स्थान हर की पैड़ी के निकट ब्रह्मकुण्ड बताया जाता है। हर की पैड़ी का तात्पर्य ईश्वर के पवित्र पग से है। यह हरिद्वार का सर्वाधिक पवित्र घाट है जहां लोग श्रद्धापूर्वक स्नान करके मोक्ष प्राप्त करने की कामना करते हैं। हरिद्वार प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का प्रतीक स्थल भी है। पौराणिक आख्यानों में कपिलस्थान ,गंगाद्वार और मायापुरी के नाम से इसका वर्णन मिलता है। हरिद्वार को चारधाम यात्रा का प्रवेशद्वार भी माना जाता है क्योंकि यहीं से होकर बद्रीनाथ ,केदारनाथ, एवं यमुनोत्री की तीर्थयात्रा सम्पन्न की जाती है।
महाभारत के वन पर्व में धौम्य ऋषि ने युधिष्ठिर को भारत के तीर्थ स्थानों के बारे में विस्तार पूर्वक बताते हुए हरिद्वार व कनखल के संबन्ध में जानकारी दी थी। यहीं पर कपिल ऋषि का आश्रम भी स्थित है। इसीलिए इसे कपिलस्थान भी कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्यवंशी राजा सगर के प्रपौत्र राजा भगीरथ ने सतयुग में कठोर तपस्या करके अपने ६०००० पूर्वजों की मुक्ति के लिए तथा कपिल ऋषि के शाप से मुक्त होने के लिए गंगा जी को पृथ्वी पर ले आये थे। यही कारण है कि आज भी लोग पितरों की चिता की राख अथवा पिंड को गंगा में प्रवाहित कर उनकी मुक्ति कामना करते हैं। हर की पैड़ी की दीवार पर भगवान विष्णु के पद चिह्न एक शिला पर आज भी देखा जा सकता है। गंगा जी की धारा हमेशा इस पत्थर को स्पर्श करती रहती हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने संस्मरण में हर की पैड़ी की विधिवत चर्चा की है।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
हरिद्वार से २४ किलोमीटर की दूरी पर ऋषिकेश तीर्थस्थल स्थित है। प्रायः हरिद्वार आने वाले श्रद्धालु ऋषिकेश अवश्य जाते हैं। यहां पर प्रत्येक १२ वर्ष में महाकुम्भ एवं ६ वर्ष बाद कुम्भ का मेला आयोजित होता आया है जिसमें करोड़ों लोग भाग लेते हैं। वैसे तो यहां पर असंख्य मंदिर हैं लेकिन सर्वाधिक प्रसिद्ध व प्राचीन मंदिरों में दक्षेश्वर मंदिर प्रमुख है जिसका निर्माण १३ वीं शताब्दी के आरम्भ में होना बताया जाता है। हर की पैड़ी के निकट स्थित इस मंदिर के संबन्ध में बताया जाता है कि भगवान विष्णु स्वयं यहां पर आये थे क्योंकि यहां स्थित एक शिला पर उनके पद चिह्न अभी भी मौजूद है। अन्य महत्वपूर्ण मंदिर मनसादेवी ,गुरु गोरखनाथ मंदिर ,पशुपति महादेव ,हनुमान मंदिर ,मायादेवी मंदिर ,नीलेश्वर ,गौरीशंकर ,चंडीदेवी ,विल्केश्वर महादेव ,भोलागिरी आश्रम ,नारायणी शिला व भैरवनाथ मंदिर हैं। नवनिर्मित मंदिरों में गायत्री मंदिर ,शान्तिकुञ्ज आश्रम ,भारत माता मंदिर, पतञ्जिली योगपीठ के मंदिर हैं। हरिद्वार में सप्तऋषि आश्रम ,आर्य वानप्रस्थ आश्रम एवं परमार्थ आश्रम भी स्थित हैं जहां हमेशा भजन कीर्तन चलता रहता है।
हर की पैड़ी हरिद्वार का प्रमुख दर्शनीय स्थल है जहां सायंकाल गंगा आरती का दृश्य श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। हर की पैड़ी पर गंगा के साफ व स्वच्छ जल में स्नान करने हेतु लाखों श्रद्धालु यहां प्रति वर्ष आते रहते हैं। इस घाट का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने पहली शताब्दी ई० पू ० अपने भ्राता भ्रिथारी की स्मृति में किया था। कहा जाता है कि भ्रिथारी ने यहां पर कठोर तपस्या की थी और यहीं पर उनके स्वर्गवास के उपरांत राजा विक्रमादित्य ने उन्हीं के नाम पर इसका निर्माण करवाया था। बाद में इस घाट को हर की पैड़ी के नाम से जाना जाने लगा। हर की पैड़ी में ही ब्रह्मकुण्ड का पवित्र घाट भी स्थित है। चंडी देवी का मन्दिर यहां से ६ किलोमीटर दूर नीलपर्वत के शिखर पर निर्मित है जिसे कश्मीर के राजा सुचत सिंह द्वारा सन १९२९ ई ० में बनवाया गया था। हरिद्वार में ठहरने के लिए अनेकों धर्मशालाएं ,होटल व आश्रम बने हुए हैं जहां पर्यटक विश्राम करके हरिद्वार के अन्य दर्शनीय स्थलों का दर्शन करते हैं। यहीं पर गुरु कांगड़ी विश्वविद्यालय ,विश्व संस्कृत विद्यालय व देव संस्कृति विश्वविद्यालय स्थित हैं।
परिवहन सुविधाएँ :-
हरिद्वार दिल्ली से २२२ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह रेलमार्ग एवं सड़क मार्ग से भारत के प्रमुख नगरों से जुड़ा हुआ है। राष्ट्रिय राजमार्ग संख्या ५८ दिल्ली से मानापस को जोड़ता है। निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांटदेहरादून में स्थित है। नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से भी रेल मार्ग अथवा सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। अत्यधिक धार्मिक महत्व के कारण हरिद्वार में वर्ष भर कई धार्मिक त्योहारों जैसे सोमवती अमावस्या ,गंगा दशहरा ,गुघल मेला आयोजित होते रहते हैं। हरिद्वार में हिन्दू वंशावलियों की पंजिका जिसमें पूर्वजों के सात पीढ़ी की जानकारी व विवरण उपलब्ध रहते हैं, पंडों द्वारा सुरक्षित रखी गयी है जो लोगों द्वारा पूंछे जाने पर उन्हें अवगत कराया जाता है। हरिद्वार से ३० किलोमीटर दूरी पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की ,१४ किलोमीटर दूरी पर कालेज ऑव इंजीनियरिंग स्थित हैं। यहीं पर ब्रह्मवर्चस् शोध संस्थान शान्तिकुञ्ज आश्रम में स्थित है जहां पर धर्म एवं विज्ञानं के समन्वयपरक तथ्यों का विष्लेषण कर अखंड ज्योति नामक मासिक पत्रिका के माध्यम से लोगों को अवगत कराया जाता है।
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