भारतवर्ष के प्रमुख धार्मिक स्थलों में प्रयाग जिसे सम्प्रति इलाहबाद नगर के नाम से सम्बोधित किया जाता है ,को प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में माना जाता है।इसे सभी तीर्थस्थलों का अधिपति माना जाता है तथा त्रिस्थली में भी यह प्रमुख तीर्थ माना जाता है। भगवान ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि के पश्चात प्रथम यज्ञ यहां पर सम्पन्न कराये जाने के कारण आर्यकाल में इसे प्रयाग की संज्ञा दी गयी। प्रयाग भारतवर्ष का अत्यंत प्राचीन नगर है क्योंकि वेद एवं पुराणों में इस आशय का विस्तृत वर्णन मिलता है। इसे संगम नगरी ,कुम्भ नगरी तथा तीर्थराज के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। प्रयाग शताध्यायी के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि काशी ,मथुरा ,अयोध्या आदि सप्तपुरियां तीर्थराज प्रयाग की पटरानियाँ हैं जिसमें काशी को प्रमुख पटरानी के रूप में जाना जाता है। मूल सम्राट अकबर ने प्रयाग की धार्मिक ,सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक चेतना को परिमार्जित करने का प्रयास किया था जिसके कारण उसने इस नगरी को ईश्वर या अल्लाह का वास मानते हुए इसे इलहवास की संज्ञा दी। बाद में अंग्रेजों ने उच्चारण में त्रुटि के कारण इसे इलाहाबाद के नाम से सम्बोधित किया। प्रयाग में प्रत्येक वर्ष कुम्भ मेला ,प्रत्येक छठे वर्ष अर्धकुम्भ मेला एवं बारहवें वर्ष महाकुम्भ मेला आयोजित होता है।
भौगोलिक स्थिति :-
प्रयाग उत्तरप्रदेश राज्य में गंगा ,यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के संगम स्थल पर बसा हुआ एक प्राचीन धार्मिक नगर है। अपनी प्राचीनता ,वैभव एवं धार्मिक गतिविधियों के कारण विश्व प्रसिद्ध इस नगर को अबतक अनेकों परिवर्तन का सामना करना पड़ा है। गंगा और यमुना नदी के बहाव में हुए परिवर्तन तथा उनके द्वारा निर्मित कछारी क्षेत्र में विस्तार के कारण इसका भौगोलिक स्वरूप भी तदनुसार परिवर्तित होता रहा है क्योंकि गंगा तट पर स्थित भरद्वाज आश्रम जो कभी संगम स्थल के निकट था आज वह इलाहबाद के मध्य में स्थित हो गया है। इलाहांबाद भारत के प्रमुख नगरों से वायुमार्ग ,रेलमार्ग तथा सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है।अतः आवागमन के साधन सर्वसुलभ हैं। अंतिम हिन्दू सम्राट हर्षवर्धन के कार्यकाल में प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ६३४ ई ० में यहां भ्रमण हेतु आया था और उसने अपने संस्मरण में यहां की धार्मिक ,सामाजिक एवं ऐतिहासिक स्वरूप का विस्तृत वर्णन किया था। यहां स्थित संगम का निकटतम रेलवे स्टेशन,प्रयाग, पयाग घाट , इलाहाबाद, इलाहाबाद सिटी ,नैनी एवं झूंसी है। जो यात्री बम्बई ,कलकत्ता जबलपुर से आते हैं उन्हें नैनी में उतरना चाहिए और जो यात्री पूर्वी रेलवे से अयोध्या फ़ैजाबाद होकर आते हैं उन्हें प्रयाग एवं जो बनारस ,गाजीपुर ,छपरा ,बलिया की ओर से आते हैं उन्हें झूंसी स्टेशन पर उतरना सुविधाजनक होगा। कुंभमेले के दौरान एक अस्थायी रेलवे स्टेशन प्रयागघाट भी संचालित होता है।
पौराणिक साक्ष्य :-
सर्वप्रथम प्रयाग का उल्लेख वेद एवं पुराणों में प्राप्त होता है जिसमें इसकी पवित्रता का उल्लेख गंगा ,यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के मिलन स्थल संगम की महिमा मंडन के रूप में प्राप्त होता है। तीर्थराज प्रयाग के माहात्म्य के संदर्भ में बताया जाता है कि जब समस्त देवताओं ने सप्तद्वीप ,सप्त समुद्र ,सप्तकुल पर्वत ,सप्तपुरियों ,समस्त तीर्थों एवं समस्त पावन नदियों को तराजू के एक पलड़े पर रखा गया और दूसरे पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग को रखा गया तब यह परिलक्षित हुआ कि प्रयागराज का पक्ष भारी पड़ रहा है। सामान्यतः गंगा के उदगम श्रोत गोमुख से प्रयाग तक के मार्ग में जितनी भी नदियां गंगा से मिली हैं उनके मिलन स्थल को प्रयाग के नाम से सम्बोधित किया गया जैसे देवप्रयाग ,कर्णप्रयाग रुद्रप्रयाग आदि किन्तु गंगा नदी में जहां यमुना एवं अदृश्य सरस्वती नदी आकर मिली हैं अतः उस संगम स्थल को प्रयागराज के नाम से सम्बोधित किया गया। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में प्रयाग-महिमा के संदर्भ में निम्नवत वर्णन किया है:-
को कहि सकहिं प्रयाग प्रभाऊ ,कलुषपुंज कुंजर मृगराउ।
सकल कामप्रद तीरथराऊ ,वेद विदित जग प्रगट प्रभाऊ।।
ऐतिहासिक साक्ष्य :-
प्रागैतिहासिक काल में प्रयाग और विन्ध्याचल पर्वत के मध्य स्थित बेलनघाटी में पुरापाषाण ,मध्यपाषाण और नवपाषाण काल के प्राप्त हुए अवशेषों से प्रयाग के ऐतिहासिक स्वरूप का परिचय मिलता है। आर्यकाल में सरस्वती नदी के प्रवाहित होने एवं प्रयाग में आकर गंगा नदी से मिलने की पुष्टि भी होती है। सिन्धुघाटी सभ्यता के पश्चात नगरीकरण गंगा के मैदानी क्षेत्रों में ही आरम्भ हुआ। उत्तरवैदिक काल के प्रमुख नगर कौशाम्बी की स्थिति का परिचय भी इसी से मिलता है। महात्मा बुद्ध के समय १६ महाजनपदों में से एक महाजनपद वत्स की राजधानी कौशाम्बी ही थी। मौर्यकालीन इतिहास से विदित होता है कि उस समय उज्जयनी ,पाटलिपुत्र ,तक्षशिला ,कौशाम्बी व प्रयाग विकसित नगरों की श्रेणी में थे। यहां प्राप्त मौर्यसम्राट अशोक के स्तम्भ लेखों में तीन शासकों के लेख खुदे हुए हैं। गुप्तकाल में प्रयाग गुप्त शासकों की राजधानी रही है। समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा विरचित प्रयाग पशस्ति भी उसी स्तम्भ पर अंकित की गयी थी। इसी प्रकार चन्द्रगुप्त एवं स्कन्दगुप्त के स्तम्भलेख में प्रयाग -महिमा का वर्णन प्राप्त होता है। सम्राट हर्षवर्धन के समय प्रयाग अपने चरमोत्कर्ष पर था क्योंकि हर्षवर्धन के साथ प्रयाग के कुम्भ मेले में आये हुए चीनी यात्री ह्वेनसांग ने लिखा है कि "इस काल में पाटलिपुत्र और वैशाली पतनावस्था में थे ,इसके विपरीत दोआब में प्रयाग और कन्नौज महत्वपूर्ण हो गए थे। कहा जाता है कि ततसमय प्रयाग में आयोजित महामोक्ष परिषद में सम्राट हर्ष ने अपने शरीर के वस्त्रों को छोड़कर सर्वस्व यहीं पर दान कर दिया था। प्रयाग के कुम्भ मेले के आयोजन का प्रथम ऐतिहासिक अभिलेख हर्ष काल में ही प्राप्त हुआ था।
घाट एवं मंदिर :-
प्रयाग अपने घाटों एवं मंदिरों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध घाट दशाश्वमेध घाट पर धर्मराज युधिष्ठिर ने दस यज्ञ संपादित किये थे और अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति एवं मुक्ति हेतु पूजा अर्चना की थी। अन्य प्रसिद्ध घाट रामघाट झूंसी में स्थित है। कहा जाता है कि भगवान राम के पूर्वज इला ने यहां पर शासन किया था और उनकी सन्तान पुरुरवा और गन्धर्व इसी घाट पर अग्निहोत्र किये थे। यमुना नदी का जल जिस स्थल पर स्थिर हो जाता है उसके निकट ही त्रिवेणी घाट है जो धार्मिक अनुष्ठानों एवं स्नान के लिए प्रसिद्ध है। त्रिवेणी घाट से थोड़ी दूर पर जहां गंगा व यमुना का जल मिलता है ,वहां संगम घाट स्थित है। संगमघाट के पहले ही किलाघाट है। अकबर द्वारा निर्मित किले की प्राचीर जहां पर यमुना के जल को स्पर्श करती है,उसे ही किला घाट कहते हैं।
किलेघाट से संगमघाट तक जाने के लिए नाव यहीं पर मिलती है और संगमघाट पर स्नान के पश्चात वापस यहीं पर छोड़ना पड़ता है। इसी घाट से पश्चिम की ओर सरस्वतीघाट है। अन्य घाटों में रसूलाबाद घाट ,नारायण आश्रम घाट ,शिवकुटी घाट प्रसिद्ध घाट हैं जहां श्रद्धालु स्नानादि करके गंगा माँ की पूजा -अर्चना किया करते हैं। संगम से ८ किलोमीटर की दूरी पर दुर्वासा का मंदिर स्थित है।
प्रयाग में मंदिरों की भी संख्या बहुत अधिक है। यहां के प्रमुख मंदिरों में दशाश्वमेघ मंदिर ,हनुमान मन्दिर ,शंकराचार्य मंदिर, अलोपीबाग स्थित अलोपी माँ का मंदिर,सिविल लाइन्स स्थित हनुमान मन्दिर ,शिवकुटी स्थित शिवमन्दिर एवं नारायण आश्रम स्थित कतिपय मंदिर प्रमुख हैं। इसके अतिरिक़्त गंगा एवं यमुना नदी के तट पर कई छोटे छोटे मंदिर स्थित हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
प्रयाग में संगम तट पर स्थित अकबर द्वारा निर्मित प्राचीन किले का ऐतिहासिक महत्व सर्वविदित है। ऐसी मान्यता है कि इस किले को सम्राट अशोक द्वारा बनवाया गया था जिसे कालान्तर में अकबर ने इसका नवनिर्माण कराकर वर्तमान स्वरूप प्रदान किया गया। इस किले के परिक्षेत्र में अशोक स्तम्भ ,जोधाबाई महल ,पातालपुरी मन्दिर ,सरस्वती कूप अक्षयवट एवं सीतामढी दर्शनीय स्थल हैं। सरस्वती कूप में अदृश्य सरस्वती के जल का दर्शन श्रद्धालुगण अवश्य करते हैं। खुशरोबाग जहाँ का अमरुद विश्व प्रसिद्ध है ,इलाहबाद नगर के मध्य में इलाहाबाद रेलवे स्टेशन के सन्निकट स्थित है। खुशरोबाग में खुशरू की माँ एवं बहन की कब्रें एवं मक़बरा स्थित है। छठवें तीर्थंकर भगवान पद्मप्रभ की जन्मस्थली कौशाम्बी ,भक्ति आन्दोलन के सूत्रधार रामानंद की जन्मभूमि प्रयाग ही है। भारद्वाज ऋषि का आश्रम आनन्द भवन के निकट स्थित है। यहीं से थोड़ी दूर अलोपीबाग में अलोपी देवी का मंदिर व प्रसिद्ध सिद्धपीठ स्थित है। सीता समाहित स्थल के रूप में यहां सीतामढ़ी एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है।
भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में इलाहाबाद कीमहत्वपूर्ण भूमिका रही है। पंडित मोतीलाल नेहरू का निवास स्थान जो अब आनंद भवन के नाम से जाना जाता है, यहीं पर स्थित है। भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अधिवेशन सन १८८८ ,१८९२ ,एवं १९१० में यहीं पर सम्पन्न हुए थे। महारानी विक्टोरिया द्वारा अपना घोषणा पत्र यहीं मिंटो पार्क में तत्कालीन वायसराय लार्ड केनिंग द्वारा पढ़ा गया था। अल्फ्रेड पार्क जहां प्रसिद्ध क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद अंग्रेजों से मुठभेड़ करते हुए शहीद हुए थे, कंपनीबाग में स्थित है। इलाहाबाद में हाईकोर्ट ,महालेखाकार कार्यालय ,राष्ट्रीय संग्रहालय ,इलाहाबाद विश्व विद्यालय ,हिंदी साहित्य सम्मेलन आदि अन्य दर्शनीय स्थल हैं। रामायण काल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल श्रृंगवेरपुर यहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। भारद्वाज ऋषि व श्रृंगी ऋषि का आश्रम भी यहीं पर स्थित है। प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल कौशाम्बी जो कभी इलाहाबाद जिले में ही था किन्तु अब पृथक जिला बन गया है ,यहां से थोड़ी दूर पर स्थित है।प्रयाग से २५ किलोमीटर की दूरी पर लाक्षागृह जहां दुर्योधन ने धोखे से पांडवों को जलाने का प्रयास किया था ,स्थित है।यहीं से लगभग ४० किलोमीटर की दूरी पर सीतामढ़ी गांव है जहां वाल्मीकि आश्रम में लवकुश ने जन्म लिया था , स्थित है ।
प्रयाग का प्रमुख आकर्षण केन्द्र यहां का संगमस्थल है जहां प्रतिवर्ष कुम्भमेला,छठवें वर्ष अर्ध कुम्भमेला एवं बारहवें वर्ष महाकुम्भ मेला आयोजित किया जाता है। इस मेले में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु ,साधु -सन्त एवं विद्वान यहां एकत्रित होते हैं और लगभग एक माह तक कुम्भनगरी बसाकर अपने धार्मिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान का प्रचार- प्रसार करते हैं। एक माह तक यहां पर श्रद्धालुगण कल्पवास हेतु नित्य गंगा स्नान ,प्रवचन व अन्य धार्मिक क्रियाकलापों में भाग लेते हैं। महाकुम्भ के आयोजन पर एक लघुभारत का दर्शन एक माह के लिए यहां पर होता है। पद्मपुराण के अनुसार प्रयाग में माघ मास के दौरान तीन दिन तक लगातार संगम स्नान करने का फल एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने से अधिक माना जाता है। कुम्भ ,अर्धकुम्भ एवं महाकुम्भ मेले के समय प्रशासन द्वारा यात्रिओं के ठहरने ,खानपान व आवागमन की विशेष व्यवस्था की जाती है। इन मेलों में कभी कभी इतनी अधिक संख्या में श्रद्धालु आ जाते हैं कि प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा जाती है और कोई न कोई अप्रिय घटना घटित हो जाती है।
No comments:
Post a Comment