Wednesday, March 9, 2016

ऋषिकेश

ऋषिकेश हरिद्वार से लगभग २५ किलोमीटर तथा देहरादून से ४१ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल माना जाता है। गंगोत्री ,यमुनोत्री ,केदारनाथ ,बद्रीनाथ धाम जाने के लिए यात्री ऋषिकेश होकर ही वहां पहुँचते हैं। यह उत्तराखण्ड राज्य के देहरादून जिले में स्थित है। यह गढ़वाल हिमालय के प्रवेश द्वार के रूप में प्रसिद्ध है और हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा हुआ यह नगर धार्मिक महत्व के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। 

भौगोलिक स्थिति :-

गंगा नदी जहां पर्वतीय क्षेत्र को छोड़कर मैदानी क्षेत्र की ओर अग्रसर होती हैं उस स्थल को ऋषिकेश के नाम से जाना जाता है। इसे हिमालय का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यह समुद्रतल से १३६० फिट की ऊँचाई पर स्थित है। ऋषिकेश को हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। हिमालय की निचली पहाड़ियों में स्थित यह स्थल प्रकृतिक सौन्दर्य एवं योग साधना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। ऋषिकेश निकटवर्ती राज्यों के प्रमुख शहरों से रेलमार्ग ,सड़कमार्ग एवं वायुमार्ग से जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश से १८ किलोमीटर की दूरी पर देहरादून के निकट जॉलीग्रांट हवाईअड्डा स्थित है !एयर इंडिया ,जेट एवं स्पाइस जेट की फ्लाइटें इसे दिल्ली से संबद्ध करती हैं। ऋषिकेश निकटतम रेलवे स्टेशन है जो शहर से ५ किलोमीटर की दूरी पर है। यह देश के प्रमुख रेलवे स्टेशनों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली के कश्मीरी गेट से डीलक्स बसें तथा उत्तरप्रदेश के प्रमुख नगरों से उत्तरप्रदेश परिवहन निगम की बसों द्वारा अथवा निजी साधनों से सड़क मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है। 

पौराणिक साक्ष्य :-

वैसे तो ऋषिकेश के संबंध में अनेकों धार्मिक  कथाएं प्रचलित हैं किन्तु यह कहा जाता है कि समुद्र  मन्थन के दौरान जब समुद्र से विष निकला था तो भगवान शिव ने इसी स्थान पर उस विष का पान किया था जिसके कारण  उनका गला नीला पड़  गया था।  इसीलिए  उन्हें नीलकण्ठ के नाम से जाना जाने लगा। दूसरी कथा है कि भगवान राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के दौरान यहां के घने जंगलों में कुछ समय व्यतीत किया था। इसका प्रमाण यह है कि लक्ष्मण द्वारा निर्मित लक्ष्मण झूला यहां आज भी विद्यमान है। सन १९३९ ई ० में लक्ष्मण झूले का नवनिर्माण कराया गया बताया जाता है। यह भी कहा जाता है कि ऋषि राभ्या ने यहीं पर कठोर तपस्या करके भगवान का साक्षात दर्शन किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने ऋषिकेश के रूप में यहां अवतार लिया था इसी कारण इस स्थल को ऋषिकेश के नाम से जाना गया। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

यहां स्थित लक्ष्मण झूले को ऋषिकेश का प्रमुख आकर्षण माना जाता है क्योंकि यह झूला गंगा के एक तट से दूसरे तट को बिना किसी खम्भे के जोड़ता है। इस झूलेदार पुल पर चलने पर यह हिलता हुआ प्रतीत होता है। कहा जाता है कि लक्ष्मण ने गंगा पार करने हेतु अपने बाण चलाकर इस पुल का निर्माण किया था। लगभग ४५० फिट लम्बे इस झूले के निकट ही लक्ष्मण और रघुनाथ जी का मंदिर बना हुआ है। लक्ष्मण झूले से गुजरते समय माँ गंगा की धारा एवं निकटवर्ती पर्वत चोटिओं का दर्शन अत्यन्त मनमोहक लगता है।इसके  निकट स्थित शिवानंद आश्रम एवं स्वर्गाश्रम के मध्य स्थित राम झूला भी गंगा को पार करने हेतु पुल के रूप में दृष्टिगत होता है। ऋषिकेश में गंगा स्नान हेतु त्रिवेणी घाट बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि इस घाट पर गंगा यमुना व सरस्वती नदी का संगम होता है। इसी घाट से गंगा दाहिनी ओर मुड़कर आगे हरिद्वार की ओर अग्रसर होती हैं। 
ऋषिकेश के मध्य भाग में पाचीन भरत मंदिर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यहां पर दसरथ पुत्र भरत ने तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें यह वरदान दिया था कि उनकी मूर्ति को यहां पर भरत मूर्ति के नाम से जाना जायेगा। मुख्य मंदिर में प्रविष्ट होने के पूर्व सात दालान पर करने पड़ते हैं जिसमें पहले दालान के नीचे हमेशा जल बहता हुआ मिलता है जो यात्रियों  के पग धोता रहता है। यहीं पर एक संस्कृत विद्यालय भी स्थित है। भरत मंदिर से थोड़ी दूर पूर्व की ओर चलने पर कुब्जा भृक नामक घाट है जिसमें तीन विभिन्न स्रोतों से पानी आता रहता है। इसीलिए इसे त्रिवेणी कहते हैं। त्रिवेणी घाट के दक्षिण में रघुनाथ मंदिर बना हुआ है। परमार्थ निकेतन घाट इसी के निकट स्थित है जो स्वामी विशुद्धानन्द जी द्वारा बनवाया गया था। परमार्थ निकेतन आश्रम को काली कमली वाले बाबा के आश्रम के नाम से भी जाना जाता है। लक्ष्मण झूले द्वारा गंगा को पार करते समय कैलाश निकेतन मंदिर भी निकट ही दिखाई पड़ता है। १२ खण्डों में बना हुआ यह प्राचीन मंदिर अपनी स्थापत्य शैली के कारण अन्य मंदिरों से भिन्न प्रतीत होता है। ऋषिकेश से २२ किलोमीटर दूरी पर ३००० वर्ष पुरानी वशिष्ठ गुफा स्थित है जो बद्रीनाथ एवं केदारनाथ मार्ग स्थित है। आज भी इस गुफा में सन्तों को समाधिस्थ ध्यान मुद्रा में देखा जा सकता है। इस गुफा के भीतर एक शिवलिंग भी बना हुआ है। 
रामझूला पार करते समय गीता भवन जिसे सन १९५० में गोयन्दका जी ने बनवाया था ,स्थित है। यहां पर रामायण एवं महाभारत काल के चित्रों से सजी हुई दीवारें विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। गीता प्रेस गोरखपुर की प्रमुख शाखा एवं आयुर्वेदिक चिकित्सालय भी इसके प्रांगण में स्थित है। लक्ष्मण झूले निकट ही लक्ष्मण जी का प्राचीन मन्दिर बना हुआ है तथा मंदिर के निकट ही सिद्धपीठ स्वर्गनिवास मंदिर एवं गंगा मंदिर बने हुए हैं। गंगा मन्दिर में अनेकों देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर में भूमिगत शिवपुरी है जहां  ब्रह्मा ,शिव ,पार्वती ,राम -लक्ष्मण आदि की मूर्तियां स्थापित हैं। लक्ष्मण झूले से २ किलोमीटर की दूरी पर मुनि की रेती नामक स्थान है।   
स्वर्गाश्रम ऋषिकेश का प्रमुख आकर्षण है क्योंकि यहां भगवान के २४ अवतारों की मूर्तियों के साथ पौराणिक कथाओं के चित्र अंकित किये गए हैं। परमार्थ निकेतन में भी इसी प्रकार के चित्र देखने को मिलते हैं। ऋषिकेश से लक्ष्मण झूला की ओर जाते समय गंगा तट पर एक बहुत बड़ा गुरुद्वारा बना हुआ है जहां सिख धर्म के अनुयायियों के ठहरने आदि के लिए समुचित व्यवस्था उपलब्ध रहती है। ऋषिकेश से थोड़ी ही दूर पर लगभग ५५०० फिट की ऊँचाई पर स्वर्गाश्रम की पहाड़िओं पर नीलकण्ठ महादेव का मंदिर स्थित है। कहा जाता है  कि भगवान शंकर ने समुद्र मंथन के दौरान निकले हुए विष का पान इसी स्थान पर किया था। ऋषिकेश की यात्रा करते समय नीलकण्ठ महादेव के इस मंदिर का दर्शन श्रद्धालुगण अवश्य करते हैं। इस मंदिर के परिसर में एक झरना भी दिखाई पड़ता है जिसमें भक्तगण स्नान करके नीलकण्ठ महादेव का दर्शन करते हैं। 
ऋषिकेश में यात्रियों  के ठहरने के लिए समुचित व्यवस्था धर्मशालाओं एवं होटलों में उपलब्ध रहती है। यहां केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन ही होटलों में उपलब्ध होता है। यहां स्थित अनेकों आश्रमों में दिन रात भजन कीर्तन चलते रहते हैं जिससे यहां का वातावरण आध्यात्मिक आनन्द प्राप्त करने के अनुकूल रहता है। आश्रमों में यात्रियों के ठहरने व भोजनादि की अच्छी व्यवस्था रहती है। सायंकाल गंगा आरती का दृश्य बहुत ही मनमोहक लगता है इसीलिए  देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी प्रतिदिन हजारों  श्रद्धालु यहां आत्मशांति हेतु आते रहते हैं। प्रशासन की ओर से भी यात्रियों के आवागमन की समुचित व्यवस्था की जाती है। उत्तरांचल राज्य की परिवहन निगम की बसें तीर्थयात्रियों को उनके गन्तव्य तक ले जाती रहती हैं। निकटवर्ती दर्शनीय स्थलों तक जाने के लिए किराये की जीप व कार हमेशा उपलब्ध रहती हैं। 
ऋषिकेश को योग की राजधानी भी कहा जाता है क्योंकि यहां स्थित प्रत्येक आश्रम में योग का शिक्षण एवं प्रशिक्षण दिया जाता रहता है। ऋषिकेश में धार्मिक पुस्तकों ,पूजन सामग्री एवं हस्त शिल्प के सामानों की अनेकों दूकानें देखने को मिलती हैं। अन्य सामग्री यथा कड़ी एवं सूती वस्त्र ,गढ़वाल वूल एवं क्राफ्ट की भी दूकानें दृष्टिगत होती हैं जहां पर उत्तम श्रेणी के सामानों का क्रय किया जा सकता है।  

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