Tuesday, March 8, 2016

गंगासागर

गंगा नदी हिमालय की श्रृंखलाओं से निकलकर पश्चिम बंगाल की दक्षिणी सीमा पर स्थित सागर बंगाल की खाड़ी में जिस स्थान पर मिलती हैं ,उसे गंगा सागर के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः गंगा सागर एक वन द्वीप समूह है जिसमें मनमोहक वृक्ष देखे जाते हैं। प्राचीन काल में इसे ही पाताल लोक के नाम से जाना जाता था। इसे सागर द्वीप अथवा गंगासागर संगम भी कहते हैं। 

भौगोलिक स्थिति :-

पश्चिम बंगाल राज्य में बंगाल की खाड़ी के कांटिनेंटल शेल्फ में कलकत्ता से लगभग १५० किलोमीटर दक्षिण स्थित यह द्वीप समूह स्थित है।  इसका कुल क्षेत्रफल ३०० वर्ग किलोमीटर है। इसमें लगभग ४३ गांव आते हैं जिनकी जनसंख्या लगभग १६०००० है। यहीं पर गंगा नदी सागर में विलीन होती हैं। गंगा नदी के डेल्टा के रूप में विकसित गंगा सागर बहुत ही मनमोहक स्थान है। इस द्वीप में ही अनेकों नहरें ,छोटी छोटी नदियां व अन्य जलमार्ग देखे जा सकते हैं। हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थस्थान गंगा सागर इसी द्वीप समूह में स्थित है। प्रायः तीर्थ यात्री कलकत्ता से नाव अथवा स्ट्रीमर के द्वारा गंगा सागर तक पहुँचते हैं। कलकत्ता से दक्षिण में ३० किलोमीटर दूरी पर स्थित डायमण्ड हार्वर स्टेशन से भी नाव व जहाज गंगासागर तक जाते हैं। 

पौराणिक साक्ष्य :-

कहा जाता है कि राजा भगीरथ के साठ हजार पूर्वज कपिल ऋषि के शाप से जलकर राख हो गए थे। अतः भगीरथ अपने साठ हजार पितरों की मुक्ति एवं उद्धार के लिए भगवान शंकर की घोर तपस्या करके माँ गंगा को धरती पर ले आये थे। भगवान शिव ने अपनी जटाओं से गंगा को जब छोड़ा तब गंगा राजा भगीरथ के पीछे पीछे चल पड़ी और हिमालय से हरिद्वार के मैदानी क्षेत्र होते हुए काशी एवं प्रयाग तक पहुंची और प्रयाग से सीधे कलकत्ता पहुँच गयीं। कलकत्ता से आगे की ओर डायमंड हार्वर होते हुए गंगा सागर जहाँ कपिल मुनि का आश्रम था ,वहां पर भगीरथ के ६०००० पितरों की राख को बहाते हुए उनका उद्धार किया था और अन्ततः बंगाल की खाड़ी में स्थित गंगा सागर में समाहित हो गयीं। इसीलिए इस स्थल का नाम गंगासागर पड़ा। कलकत्ता में गंगा नदी को हुगली नदी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर गंगा जी का कोई मंदिर नहीं है, केवल डेढ़ दो किलोमीटर का स्थान सुरक्षित अवश्य है जहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। पहले यहां कपिल मुनि का आश्रम था किन्तु अब वह आश्रम भी गंगा का बहाव के साथ सागर में विलीन हो चुका है। कपिल मुनि के आश्रम में जो भी मूर्तियां थीं उन्हें कलकत्ता में सुरक्षित रख दिया जाता है। मेले कुछ दिन पूर्व पुरोहित उसे वहां से लाकर इस स्थान पर पुनः रख देते हैं। इस प्रकार यहां पर अस्थायी मंदिर ही दृष्टिगोचर होता है। प्रायः यह क्षेत्र जलमग्न रहता है केवल चौथे वर्ष ही इस स्थल पर मेले का आयोजन हो पाता  है। इसी कारण कहा जाता है कि बाकी  तीरथ बार बार गंगा सागर एक बार। 
र्ष १९७३ में कपिल ऋषि का एक नया मंदिर बनवाया गया जिसमें कपिल मुनि की मूर्ति रखी गयी है। इस मूर्ति के एक तरफ राजा भगीरथ को गोद में लिए हुए गंगा जी की मूर्ति है तो दूसरी तरफ राजा सगर एवं हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है। इसके अतिरिक्त आचार्य कपिलानन्द जी का आश्रम ,महादेव मन्दिर ,योगेन्द्र मठ ,शिव शक्ति महानिर्वाण आश्रम और भारत सेवा संघ का विशाल मंदिर है। 
गंगा सागर में मेले के दिनों में लाखों श्रद्धालु यहां पर दर्शन के लिए पहुँचते हैं तथा शेष दिनों यहां सन्नाटा छाया रहता है।यहां बहुत कम साधु सन्त स्थायी रूप से निवास करते हैं क्योंकि सम्पूर्ण क्षेत्र वनस्पतियों ,पेड़ पौधों से आच्छादित रहता है।  यहां का प्रमुख मेला मकर संक्रान्ति को आयोजित होता है और इसी दिन गंगा सागर में स्नान का पावन पर्व मनाया जाता है और तीन दिन तक पवित्र स्नान का कार्यक्रम चलता है। यहां स्नान करने का फल अन्य तीर्थों के सम्मिलित पुण्य के बराबर माना  जाता है। कहा जाता है कि गंगा सागर में एक बार स्नान करने पर १० अश्वमेघ यज्ञ और एक हजार गाय  दान करने के बराबर का फल मिलता है। जहां पर गंगा सागर मेले का आयोजन होता है वहां से कुछ ही दूरी पर वामनखल स्थान है जहां एक प्राचीन मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर के निकट बुड़बुड़िर तट पर विशालाक्षी का भव्य मंदिर बना हुआ है।  

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