Sunday, February 28, 2016

बद्रीनाथ धाम

बद्रीनाथ धाम हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। पुराणों में हिन्दू धर्म के चार धामों का वर्णन मिलता है जिसमें बद्रीनाथ धाम प्रमुख है। बद्रीनाथ मन्दिर में भगवान विष्णु की मूर्ति को बद्रीनाथ के रूप में स्थापित किया गया है। इसीलिए इसे बद्रीनाथ अथवा बदरी नारायण मंदिर भी कहा जाता है। हिमाच्छादित हिमालय पर्वत से घिर हुआ बद्रीनाथ  सम्पूर्ण परिक्षेत्र धरती का स्वर्ग कहलाता है।
चारधाम यात्रा के लिए कुछ दर्शनार्थी पहले काशी ,द्वारका व रामेश्वरम धाम की यात्रा करते हैं तो कुछ बद्रीनाथ जी के दर्शन के बाद इन तीनों धामों की यात्रा करते हैं। उत्तराखण्ड यात्रा के अन्तर्गत बद्रीनाथ ,केदारनाथ ,गंगोत्री ,यमुनोत्री एवं कैलाश मानसरोवर के दर्शन श्रद्धालुगण करते हैं। इस परिक्षेत्र में प्रवेश हेतु कई मार्ग चिह्नित हैं यथा कोटद्वार ,काठगोदाम ,अल्मोड़ा एवं हरिद्वार जहां से यात्रा आरम्भ की जा सकती है किन्तु प्रायः लोग हरिद्वार होकर ही बद्रीनाथ की यात्रा किया करते हैं।  
 यात्रियों के विश्राम हेतु यहां पर्याप्त धर्मशालाएं उपलब्ध हैं।  वर्ष २०१६ में बद्रीनाथ धाम के यात्रियों की सुविधा के लिए१०,००० यात्रियों के ठहरने के लिए व्यवस्था जिला प्रशासन द्वारा की जा रही है। चारधाम यात्रामार्ग पर २४ घंटे हाइवे पेट्रोलिंग की जाएगी एवं यात्रियों की सुविधा हेतु बायोमीट्रिक फोटो पंजीकरण क्रय जायेगा।  

भौगोलिक स्थिति :-

उत्तराखण्ड राज्य के गढ़वाल क्षेत्र में समुद्र तल से ३१३३ मीटर की ऊँचाई पर ऋषि गंगा एवं अलकनन्दा नदी के संगम पर स्थित बद्रीनाथ धाम हिन्दू धर्म एवं आस्था का बहुत बड़ा केन्द्र है।उत्तराखण्ड को तपोभूमि अथवा भूबैकुंठ  के नाम से भी जाना जाता है।   उत्तरी हिमालय की पहाड़ियों में स्थित यह पञ्च बदरी में से एक बदरी है। यह ऋषिकेश से २९४ किलोमीटर उत्तर दिशा में स्थित है। इसके दोनों ओर नर और नारायण की पर्वत श्रृंखलाएँ हैं तथा हिमाच्छादित नीलकंठ की मनमोहक चोटी यहां से स्पष्ट दिखायी पड़ती है। बदरीनाथ मन्दिर अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है एवं यहां निर्मित मंदिरों में बौद्ध वास्तुकला प्रतिबिम्बित होती है। बद्रीनाथ मंदिर के सामने गर्म पानी का एक कुण्ड है जिसे तप्तकुण्ड के नाम से जाना जाता है। दर्शनार्थी बद्रीनाथ के दर्शन के पूर्व इसी कुण्ड में स्नान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस कुण्ड के जल में हिमालय की अनेकों औषधियों एवं खनिज पदार्थों का मिश्रण पाया जाता है जिसके कारण ही इसमें स्नान करने से असाध्य रोगों से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। यहीं पर धार्मिक अनुष्ठानों एवं पूजा हेतु एक वर्गाकार चबूतरा बनाया गया है जिसे ब्रह्मकपाल के नाम से जाना जाता है। कुछ दूरी पर भगवान विष्णु के पैरों के निशान जिसे चरणपादुका कहते हैं ,दिखाई पड़ता है। बद्रीनाथ धाम से ५ किलोमीटर पर एक गाँव है जिसे माणा गांव के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि यहीं पर स्थित व्यास गुफा में चारों वेदों के मंत्रों को चार भागों में विभक्त किया गया था और कई पुराणों की रचना भी इसी क्षेत्र में की गयी थी। यहां तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग  का प्रयोग किया जाता है।हरिद्वार से बद्रीनाथ की कुल दूरी १८३ मील है। इस मार्ग में हरिद्वार से ऋषिकेश १५ मील ,ऋषिकेश से देवप्रयाग ४४ मील ,देवप्रयाग से श्रीनगर १९ मील ,श्रीनगर से रुद्रप्रयाग १८ मील ,रुद्रप्रयाग से कर्णप्रयाग २० मील,कर्णप्रयाग से नन्दप्रयाग १३ मील ,नंदप्रयाग से चमोली ६ मील ,चमोली से पीपलकोटी ८ मील ,पीपलकोटी से जोशीमठ २१ मील ,जोशीमठ से पांडुकेश्वर ८ मील ,पांडुकेश्वर से बद्रीनाथ ११ मील दूरी पर स्थित है। दूसरा मार्ग कोटद्वार से पुरी ५७ मील तथा पूरी से श्रीनगर १९ मील चलकर मार्ग संख्या _१ से बद्रीनाथ पहुंचा जा सकता है।  

पौराणिक साक्ष्य :

ऐसी पौराणिक मान्यता है कि जब गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था तो आगे चलकर वह १२ 
विभिन्न धाराओं में विभक्त हो गयीं थी। बद्रीनाथ धाम की धारा अलकनंदा के नाम से जानी  गयीं।बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य द्वारा कराया गया था। बद्रीनाथ धाम में एक मंदिर ऐसा भी है जिसमें बद्रीनाथ अथवा विष्णु की वेदी बनी हुई है। बद्रीनाथ की मूर्ति का निर्माण शालिग्राम शिला से किया गया था जो चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में अवस्थित हैं। मान्यता है कि जब भारत में बौद्ध धर्म का प्रचार -प्रसार प्रारम्भ हुआ था तब बौद्ध के अनुयायिओं ने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा अर्चना करने लगे थे। आदि शंकराचार्य के समय में बौद्ध तिब्बत की ओर प्रयाण करते समय उस मूर्ति को अलकनंदा नदी में फेंक दिए थे जिसे आदि शंकराचार्य ने अलकनंदा से बाहर निकालकर उसकी पुनर्स्थापना की थी। इसलिए यहां नर नारायण विग्रह की पूजा की जाती है और एक अखण्ड ज्योति का प्रज्ज्वलन भी किया जाता है। अत्यधिक शीत के कारण अलकनंदा नदी में श्रद्धालु स्नान न करके निकटवर्ती तप्तकुंड के गरम पानी में स्नान करते हैं। बद्रीनाथ धाम में वनतुलसी की माला ,चने की कच्ची दाल ,गरी का गोला व मिश्री का सम्मिलित प्रसाद मंदिरों में चढ़ाया जाता है। 
कहा जाता है कि नीलकण्ठ पर्वत के सन्निकट भगवान विष्णु  बाल रूप में अवतरित हुए थे तथा अलकनंदा नदी के समीप ही क्रीड़ा करने लगे थे। बाल रूप भगवान विष्णु के रोने की आवाज सुनकर माँ पार्वती का  हृदय द्रवित हो गया था और वे भगवान शिव के साथ वहाँ प्रगट होकर बालक विष्णु से रोने का कारण पूंछा तो बालक ने ध्यान करने योग्य उपयुक्त स्थान की मांग की। भगवान शिव व पार्वती ने इसी स्थल को ध्यान करने योग्य उपयुक्त स्थान बताते हुए बालक विष्णु को वहीं पर ध्यान लगाने का आदेश दिया। यही स्थान  आगे चलकर बद्रीनाथ धाम के नाम से जाना गया। यह भी मान्यता है कि भगवान विष्णु जब यहां पर ध्यान मुद्रा में तपस्यारत थे तो अचानक हिमपात होने लगा था जिससे उनका सम्पूर्ण शरीर बर्फ से ढक गया। माता लक्ष्मी इस घटना से द्रवित होकर उन्होंने वेर के वृक्ष का रूप धारण करके समस्त बर्फ को अपने ऊपर धारण कर लिया था। कालान्तर में  भगवान विष्णु ने जब अपनी तपस्या पूर्ण कर ली तब उन्होंने देखा कि माँ लक्ष्मी ने वेर  के वृक्ष के रूप में सम्पूर्ण बर्फ को अपने ऊपर धारण कर लिया है तो भगवान विष्णु ने उनको भी अपने बराबर तपस्या का हकदार मानते हुए यह वरदान दिया कि मेरे साथ ही माँ लक्ष्मी की भी पूजा अर्चना श्रद्धालुओं द्वारा की जाएगी। इसी समय उन्होंने अपने को बद्रीनाथ नाम से जाना जाये ऐसी घोषणा भी की। भगवान विष्णु ने जिस स्थान पर तपस्या की थी वह स्थान तप्तकुंड के नाम से जाना गया तथा प्रत्येक मौसम में यहां गर्म धारा बहने लगी। तप्तकुंड के निकट ही चरणपादुका ,शेषनेत्र ताल ,व्यासगुफा ,गणेशगुफा व भीमपुल स्थित हैं।  
बद्रीनाथ मंदिर के कपाट प्रत्येक वर्ष मई महीने में खुलते हैं और नवम्बर महीने के तीसरे सप्ताह में बंद हो जाते हैं। ऐसा मौसम के कारण होता है। 

प्रमुख दर्शनीय स्थल :-

१- अलकनंदा नदी के किनारे स्थित तप्तकुण्ड जिसमें गर्म पानी में स्नान कर श्रद्धालु भगवान बद्रीनाथ जी का दर्शन करते हैं। 
२-शेषनाग के प्रतिबिम्ब स्वरूप शिलाखण्ड जिसे शेषनेत्र के नाम से जाना जाता है ,यहां से ४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 
३- चरणपादुका जो भगवान विष्णु के चरण चिह्न के रूप में जानी जाती है ,यहीं पर थोड़ी दूर पर स्थित है। 
४ -ब्रह्मकपाल जो एक समतल वर्गाकार चबूतरा है ,इसके निकट ही स्थित है। 
५- नीलकण्ठ का  हिमाच्छादित शिखर यहां से स्पष्ट दिखाई पड़ता है। 
६- अलकनंदा नदी का उदगम स्थल अलकापुरी जो कुबेर का निवास स्थान  भी माना जाता है ,यहां से थोड़ी दूर पर ही स्थित है। 
७- सतोपंथ जहां से महाराज युधिष्ठिर ने सशरीर स्वर्गारोहण किया था ,कुछ ही दूर पर स्थित है। 
८- सरस्वती नदी जो माणा गाँव में दृश्य हैं ,इसके सन्निकट स्थित हैं। 
९- भगवान विष्णु के तपस्या से उनकी जंघा से उत्पन्न उर्वशी का मन्दिर बामणी गाँव में स्थित है। 
१०-वसुधारा जहां अष्ट वसुओं ने तपस्या की थी ,माणा गाँव से ८ किलोमीटर दूर स्थित है। 
११- लक्ष्मी वन माँ लक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध वन यहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। 
१२- भीमपुल सरस्वती नदी पर स्थित है जिसका निर्माण पाण्डु -पुत्र भीम ने करवाया था ,यहीं पर है। 
१३- वेदव्यास गुफा व गणेश गुफा यहीं पर स्थित है जहाँ उपनिषदों की रचना हुई थी। 
१४-माता मूर्ति मन्दिर जो भगवान बद्रीनाथ की माता के रूप में पूज्य हैं ,का विशाल मंदिर यहीं पर स्थित है। 
बद्री नाथ धाम यात्रा के समय चारों ओर पर्वत श्रृंखलाएँ व मनमोहक घाटियो  के दर्शन होते हैं। यहां दुर्गम पहाड़ियों पर सँकरे मार्ग से छोटे वाहनों से ही पहुंचा जा सकता है। बद्रीनाथ धाम से ऊपर की ओर नारायण पर्वत पर दृष्टि डालने पर ऐसा प्रतीत होता है कि शेषनाग का फन बद्रीनाथ धाम पर प्रतिबिम्बित हो रहा है।इस यात्रा के दौरान प्राकृतिक दृश्य, शुद्ध हवा ,एवं स्वच्छ वातावरण का अनुभव अपने आप में अविस्मरणीय होता है।  श्रद्धालु इस यात्रा की समाप्ति पर अपने समस्त पापों से मुक्ति तथा आध्यात्मिक उपलब्धि के चरमोत्कर्ष की अनुभूति करते हैं और अंततः मोक्ष प्राप्त करते हैं।  कहा जाता है कि इस यात्रा का दौरान भगवान बद्रीनाथ जी की निम्नांकित स्तुति करते हुए यात्रा करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं :---
पवन मन्द ,सुगन्ध शीतल ,हेम मन्दिर शोभितम। 
निकट गंगा ,बहत निर्मल ,श्री बद्रीनाथ विश्वाम्भरम्। 
शेष सुमिरन ,करत निशिदिन,धरत ध्यान माहेश्वरम्। 
वेद , ब्रह्मा करत स्तुति , श्री बद्रीनाथ विश्वाम्भरम्। 
शक्ति गौरी ,गणेश शारद ,नारद मुनि उच्चारणम्। 
योग ध्यान अपार लीला ,श्री बद्रीनाथ विश्वाम्भरम्। 
इन्द्र, चन्द्र, कुबेर, दिनकर ,धूप दीप  प्रकाशितम। 
सिद्ध मुनिजन,करत जयज,श्री बद्रीनाथ विश्वाम्भरम्। 
यक्ष ,किन्नर करत कौतुक ,ज्ञान गन्धर्व प्रकाशितम। 
श्री लक्ष्मी कमला चँवर डोले,श्री बद्रीनाथ विश्वाम्भरम्। 
श्रीबद्रीनाथ की पढत स्तुति होत पाप विनाशनम। 
कोटि तीर्थ  भयो  पुण्य, प्राप्त  यह  फलदायकम  

1 comment:

  1. बद्रीनाथ 2000 से अधिक वर्षों से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है और मंदिर में बौद्ध वास्तुशिल्प प्रभाव से पता चलता है कि बद्रीनाथ भी बहुत शुरुआती समय से बौद्धों द्वारा वंदित थे। तीर्थ के निकट तप्तकुंड का गर्म पानी का झरना है, जिसमें तीर्थयात्री श्री बद्रीनाथ धाम की पूजा करने से पहले डुबकी लगाते हैं।

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