Wednesday, March 16, 2016

काशी

विश्व की सर्वाधिक प्राचीन नगरी काशी जिसे वाराणसी भी कहा जाता है ,भारतवर्ष के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है ! कदाचित वरुणा एवं असी नदियों के संगम स्थल पर बसने के कारण ही इसका नाम वाराणसी पड़ा ! पुराणों में इसे भगवान शिव की नगरी जिसमें साक्षात भगवान शिव निवास करते हैं ,कहा जाता है !हजारों वर्षों से काशी को भारत ही नहीं बल्कि विदेशियों द्वारा भी इसे एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल एवं पर्यटन केंद्र के रूप में माना जाता रहा है !यहां स्थित गंगा नदी में स्नान हेतु हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन यहां आते रहते हैं !प्रसिद्ध पर्यटक केंद्र के रूप में यह विदेशियों के लिए प्रमुख आकर्षण का केंद्र रहा है !इस प्राचीन नगर को बनारस के नाम से भी जाना जाता है !वाराणसी में १५०० मंदिर स्थित होने के कारण इसे मंदिरों का शहर भी कहते हैं !काशी  को अपने सुन्दर और स्वच्छ घाटों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है !
भौगोलिक स्थिति :-
वाराणसी उत्तरप्रदेश राज्य के दक्षिण पूर्व स्थित वाराणसी जिले में गंगा नदी के उत्तरी तट पर तथा वरुणा एवं असी नदी के संगम के मध्यवर्ती क्षेत्र में बसा हुआ एक प्राचीन नगर है !यह स्थल गंगा के लगभग ५ किलोमीटर के दक्षिण से उत्तर की ओर अर्धचन्द्राकार परिक्षेत्र में स्थित है !इसे काशी और बनारस नाम से भी जाना जाता है किन्तु प्रदेश सरकार ने इसे वाराणसी नाम से ही एक जिले के रूप में चिन्हांकित किया है !इस प्रकार गंगा के तट पर बसा हुआ यह शहर भारत में विगत दो हजार वर्षों से भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता तथा अध्यात्म का प्रमुख केंद्र रहा है !सारनाथ जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान का उपदेश भिक्षुओं को दिया था ,यहां से मात्र १० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ! हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में मान्यता प्राप्त होने के कारण वाराणसी भारत के प्रमुख नगरों से वायुमार्ग ,रेलमार्ग एवं सड़कमार्ग से जुड़ा हुआ है !
पौराणिक साक्ष्य :-
सर्वाधिक प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ ऋग्वेद में काशी का वर्णन "काशिरते --आप इव काशिनासंगृभीता "कथन द्वारा किया गया है !पुराणों में इसे भगवान विष्णु की पुरी आद्य वैष्णव स्थान बताया गया है कि जहाँ भगवान विष्णु आनंद अश्रु टपके थे ,वहां बिन्दुसरोवर बन गया और यहीं पर श्रीहरि बिन्दुमाधव के रूप में प्रतिष्ठित हुए थे !एक पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव ने क्रोधवश ब्रह्मा जी का पांचवा सिर धड़ से अलग कर दिया था तो वह गिरकर उनके करतल से चिपक गया और ब्रह्मा जी के बारह वर्षों तक अनेकों तीर्थस्थलों के भ्रमण के पश्चात भी उनका कटा हुआ सिर अलग नहीं हुआ किन्तु काशी में प्रवेश करते ही सिर धड़ से अलग हो गया !कहा जाता है कि जिस स्थान पर सिर उनके धड़ से अलग हुआ था उसे कपालमोचन -तीर्थ कहा गया !काशी भगवान शिव को इतनी प्रिय थी कि उन्होंने इसे अपना स्थायी निवास बनाने हेतु भगवान विष्णु से माँग लिया था !हरिवंश पुराण के अनुसार काशी को भरतवंशी राजा काश ने बसाया था किन्तु कुछ विद्वान इसे वैदिक काल से भी पूर्व बसाया गया मानते हैं !काशी का उल्लेख उपनिषदों में भी प्राप्त होता है !शुक्ल यजुर्वेद के शतपथ ब्राह्मण में काशिराज धृतराष्ट्र ,वृहदारण्यक उपनिषद में काशिराज अजातशत्रु एवं कौषीतकी उपनिषद में काशीऔर विदेह तथा गोपथ ब्राह्मण में काशी और कोसल जनपदों का वर्णन मिलता है !इस प्रकार काशी नगरी की प्राचीनता उपरोक्त कथनों से स्वयमेव पुष्ट हो जाती है !वाल्मीकि रामायण के किष्किन्धा काण्ड में सुग्रीव द्वारा वानर सेना को पूर्व दिशा की ओर भेजने के संदर्भ में काशी और कोसल जनपद का वर्णन मिलता है !महाभारत में भी काशिराज की कन्याओं का भीष्म द्वारा अपहरण किये जाने की घटना एवं महाभारत युद्ध में काशिराज द्वारा पाण्डवों के पक्ष में युद्ध करने का वर्णन प्राप्त होता है !बौद्धकाल में जातक कथाओं में भी काशी का अनेकों बार वर्णन किया जाना तथा अंगुत्तरनिकाय में काशी को भारत के सोलह महाजनपदों में से एक बताये जाने के कारण भी काशी की प्राचीनता की पुष्टि होती है !पौराणिक कथाओं के अनुसार काशी प्राचीनकाल से ही विद्या एवं व्यापार दोनों का केंद्र रहा है क्योंकि जातक कथाओं में यहां पर मूल्यवान रेशमी वस्त्रों ,सुगन्धित द्रव्यों एवं विद्या ग्रहण करने हेतु सोलह वर्ष की आयु में यहां आने का उल्लेख मिलता है !
अन्य दर्शनीय स्थल :-
काशी अपने रमणीय घाटों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है !वाराणसी में गंगा नदी के तट पर राजघाट ,दशाश्वमेध घाट ,प्रह्लाद घाट ,तुलसीघाट ,हरिश्चंद्र घाट, राजेन्द्र प्रसाद घाट ,केदार घाट, इंदिरा घाट,और विजयनगर घाट अत्यधिक सुंदर घाट यहां पर बने हुए हैं !मणिकर्णिका का प्रसिद्ध एवं प्राचीन घाट है !पुराणों में वर्णित कथानुसार यह व्ही स्थान है जहां पार्वती के कानों की मणि गंगा जी में गिर गयी थी और भगवान शिव द्वारा उसे ढूढ़ने के अथक प्रयास के बावजूद उसका पता नहीं लग पाया था !इस घटना के कारण ही इसे मणिकर्णिका घाट कहा जाता है !इस घाट पर स्नान करने अतिशय पुण्य की प्राप्ति होती है !इसी घाट के निकट श्मशान घाट स्थित है जहाँ प्रतिदिन हजारों शवों की अंत्येष्टि क्रिया की जाती है !मणिकर्णिका घाट के निकट ही भूतनाथ का भव्य मंदिर बना हुआ है जिसमें महाकाल की भव्य मूर्ति स्थापित है !दशश्व्मेध घाट के निकट जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित मान मंदिर एवं वेधशाला स्थित है ! राजघाट पर स्थित आदि केशव मंदिर सर्वाधिक प्राचीन मंदिर है !दशाश्वमेध घाट पर ब्रह्मा जी ने दस अश्वों की बलि दी थी इसी कारण इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा !
वाराणसी में वैसे तो लगभग १५०० मंदिर हैं जिनमें अधिकांश मंदिर प्राचीनकाल में बनवाये गए थे और उनका समय समय पर नवनिर्माण कराया जाता रहा है ! इन मंदिरों में विश्वनाथ मंदिर ,संकटमोचन मंदिर और दुर्गा मंदिर सर्वाधिक प्राचीन एवं विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं !काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है !हिन्दू धर्म में इस मंदिर का एक विशिष्ट स्थान है !ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का दर्शन करने एवं यहां गंगा में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है !आदि शंकराचार्य ,संत एकनाथ ,रामकृष्ण परमहंस ,स्वामी विवेकानंद ,स्वामी दयानंद एवं गोस्वामी तुलसीदास द्वारा इस मंदिर में भगवान शिव के ज्योतितलिंग के दर्शन करने का साक्ष्य मिलता है !काशी विश्वनाथ जी का मंदिर अत्यधिक प्राचीन है किन्तु वर्तमान मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होल्कर द्वारा सन १७८० में कराया गया था !बाद में महाराजा रंजीतसिंह द्वारा सन १८५३ में १००० किलोग्राम शुद्ध सोने से इसकी सज सज्जा व निर्माण करवाया गया !हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर कभी भी नष्ट नहीं हुआ है ,यहां तक किप्रलयकाल में भी भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल की नोक पर धारण कर इसकी रक्षा करते हैं और सृष्टिकाल में पुनः इसे त्रिशूल से निचे उतार देते हैं !इसी स्थल पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था और उनके शयन करने पे उनकी नाभि से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए थे जिन्होंने सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की थी !मत्स्यपुराण के अनुसार जप ,ध्यान और ज्ञान से रहित तथा दुःखों से पीड़ित जनों के लिए  ही परमगति बताया गया है !विश्वेश्वर के आनद कानन में पांच मुख्य तीर्थ यथा दशास्वमेघ ,लोलार्ककुण्ड,बिंदुमाधव ,केशव मणिकर्णिका स्थित हैं !पुण्य क्षेत्र काशी में बाबा विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग सनातन कल से हिन्दुओं के आराध्य के रूप में पूज्य रहे हैं !इस ज्योतिर्लिंग का विस्तार पांच कोस में है !पद्मपुराण में यह वर्णित है कि जिस ज्योतिर्लिंग के दर्शन ब्रह्मा एवं विष्णु ने किये थे उसे ही वेदों में काशी के नाम से वर्णित किया गया है !बाबा विश्वनाथ की पंच कोशीय यात्रा नंगे पांव भक्तों को करनी पड़ती है तथा परिक्रमा में निर्धारित नियमों का अनुपालन करना पड़ता है !सर्वप्रथम भक्त मणिकर्णिका कुण्ड एवं गंगा में स्नान करते हैं ततपश्चात परिक्रमा संकल्प हेतु ज्ञानवापी जाते हैं !यहां पर पंडों द्वारा संकल्प दिलाये जाने के बादश्रृंगार गौरी ,बाबा विश्वनाथ एवं अन्नपूर्णा जी का दर्शन करके पुनः मणिकर्णिका घाट वापस लौट आते हैं !यहां पर मणिकर्णकेश्वर महादेव एवं सिद्धविनायक का दर्शन करते हुए पंचकोशीय यात्रा प्रारम्भ करते हैं !गंगा के किनारे किनारे चलते हुए अस्सीघाट होकर नगर में प्रवेश करते हैं तथा लंका ,नरिया ,करौरी ,आदित्यनगर तथा चितईपुर होते हुए प्रथम पड़ाव कंदवा पहुंचते हैं !यहां पर कर्दमेश्वर महादेव का दर्शन -पूजन कर रात्रि विश्राम करते हैं !दुसरे दिन कंदवा से अगले पड़ाव भीमचण्डी के लिए प्रस्थान करते हैं !यहां दुर्गा मंदिर में दुर्गा जी की पूजा अर्चना करके तीसरे पड़ाव रामेश्वर के लिए आगे बढ़ते हैं !रस्ते में यात्रीगण मंदिरों में शिव पूजा करते हुए चौथे पड़ाव पांचों पंडवा पहुंचते हैं जो शिवपुर क्षेत्र में है !यहां पांचों पांडवों की मूर्तियां स्थापित हैं !यहीं पर द्रौपदी कुण्ड में स्नान  करके पांडवा का दर्शन करते हैं तथा रात्रि विश्राम के पश्चात अंतिम पड़ाव कपिलधारा की ओर अग्रसर होते हैं !यहां पर कपिलेश्वर महादेव की पूजा  कर परिक्रमा समाप्त करते हैं !
वाराणसी के नवीन मंदिरों में भारतमाता का मंदिर तथा तुलसीमानस मंदिर है !आधुनिक शिक्षा के केंद्र के रूप में काशी हिन्दू विश्व विद्यालय जिसकी स्थापना पंडित मदनमोहन मालवीय ने सन १९१६ में की थी यहीं पर स्थित है !इसके अतिरिक्त काशी विद्यापीठ ,सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्व विद्यालय एवं अनेकों संस्कृत पाठशालाएं यहां पर हैं !नवीन शताब्दी में आदि जगतगुरु शंकराचार्य ने काशी को धर्म एवं संस्कृति का प्रमुख केंद्र बना दिया !महात्मा तुलसीदास ,मधुसूदन सरस्वती और पंडित जगन्नाथ जैसे महाकवियों की भी यह कर्मस्थली `रही है !औरंगजेब की धर्मान्धता से काशी नगरी कुछ धार्मिक स्थलों को तोडा अवश्य  किन्तु भारतीय संस्कृति की अविच्छिन्न धारा आज भी काशी में प्रवाहित दिखाई पड़ती है !काशी का महत्व इसी से परिलक्षित होता है कि स्कंदपुराण के काशीखण्ड के नाम से एक पृथक खंड बनाकर इसकी महिमा का वर्णन किया गया है !काशीपुरी के बारह प्रसिद्ध नाम काशी ,वाराणसी ,अविमुक्त क्षेत्र ,आनंद कानन ,महाश्मशान ,रुद्रावास ,काशिका ,तपस्थली ,मुक्तिभूमि ,शिवपुरी ,त्रिपुरारी राजनगरी और विश्वनाथ नगरी हैं !स्वयं विश्वनाथ ने पांच कोशीय अपनी पूरी काशी को अपना ही प्रतिरूप माना है !यह पांच कोशीय क्षेत्र असी और वरुणा नदी के मध्य स्थित पांच  क्षेत्र है जिसे विश्वेश्वर नामक ज्योतिर्लिंग की संज्ञा दी गयी है !भगवान शंकर के पांच कोस की पूरी काशी में बाबा विश्वनाथ का वास माना जाता है !कहा जाता है कि जैसे सूर्यदेव एक जगह स्थित होने पर भी सर्वत्र सभी को दृष्टिगत होते हैं उसी प्रकार काशी में सर्वत्र बाबा विश्वनाथ के ही दर्शन होते हैं !
काशी में अठारहवीं शताब्दी में निर्मित दुर्गामंदिर स्थित है जिसे बंगाल की महारानी ने बनवाया था !दुर्गा मंदिर के निकट ही तुलसीमंदिर बना हुआ है जिसे रामायण के रचयता गोस्वामी तुलसीदास जी की स्मृति में बनवाया गया है !इस मंदिर की दीवारों पर रामचरितमानस की चौपाईंया अंकित हैं !नया विश्वनाथ मंदिर काशी के मुख्य आकर्षण का केंद्र है !पुराने मंदिर को जब औरंगजेब ने तुड़वा दिया था तब उसके स्थान पर नया मंदिर बनाने की परिकल्पना पंडित मदनमोहन मालवीय जी ने की !यहीं पर भारत माता  का प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है !
ऐसी लोकमान्यता है कि काशी की परिक्रमा करने से सम्पूर्ण पृथ्वी की प्रदक्षिणा का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है !तीन बार पंचकोशीय परिक्रमा सम्पन्न करने वाले भक्त के जन्म जन्मांतर के सभी पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं !यदि कोई काशी में मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसे पुनर्जन्म से मुक्ति के साथ साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है !चूँकि काशी का शाब्दिक अर्थ प्रकाश देने वाला होता है अतः काशी ज्ञान के प्रकाश को अपने चारों ओर फैलाती है!काशी की ऐसी महिमा विभिन्न धर्मग्रन्थों में बताई गयी है  !
वाराणसी को सम्प्रति एक औद्योगिक नगरी के रूप में भी जाना जाता है !वाराणसी कीगलियाँ इतनी संकरी हैं कि दोपहर के समय भी इन पर धुप नहीं आ पाती है ! वाराणसी शिक्षा का प्रमुख केंद्र भी है क्योंकि यहां स्थित बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय को अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो चुकी है !वाराणसी में यात्रियों के ठहरने के लिए अनेकों धर्मशालाएं ,आश्रमों एवं होटलों में समुचित व्यवस्था उपलब्ध है !भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र होने के कारण इसका उत्तरोत्तर विकास हेु कई योजनाएं कार्यान्वित की जा रहीं हैं !         

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