Monday, March 14, 2016

चित्रकूट

चित्रकूट शब्द में चित्र का अर्थ दृश्य तथा कूट का अर्थ पर्वत होता है, अतः चित्रकूट से स्वतः ध्वनित होता है कि यह पर्वतीय दृश्यों का अनुपम केंद्र है।  वाल्मीकि रामायण एवं रामचरितमानस में वर्णित तथ्यों से यह विदित होता है कि भगवान राम जो त्रेतायुग में पृथ्वी पर अवतार लिए थे, ने अपने १४ वर्षों के वनवास के दौरान  अपने भ्राता लक्ष्मण एवं भार्या सीता के साथ लगभग ११ वर्ष चित्रकूट में ही बिताये थे। चित्रकूट में ही गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान राम से साक्षात्कार किया था एवं यहीं पर हनुमान जी की प्रेरणा से रामचरितमानस की रचना की थी। इन्हीं कारणों से इसे चित्रकूट धाम की संज्ञा दी जाती है और हिन्दुओं की धार्मिक आस्था में इसका विशेष  स्थान माना जाता है। यह भारत के प्राचीनतम धार्मिक स्थलों में से एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। चित्रकूट वस्तुतः पांच गांवों का समूह है जिसमें करवी ,सीतापुर ,कामता ,कोहली एवं नयागांव सम्मिलित हैं। 

भौगोलिक स्थिति :-

उत्तरप्रदेश राज्य में ३८.२ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले  हुए चित्रकूट जिले के अन्तर्गत मन्दाकिनी नदी के किनारे पर एक तीर्थस्थल के रूप में स्थित है। मन्दाकिनी नदी जो विन्ध्याचल पर्वत के मध्य से प्रवाहित होती हैं,के तट पर चित्रकूट बसा हुआ है। मंदाकिनी नदी को पयस्विनी भी कहा जाता है। चित्रकूट में ८ -१०  किलोमीटर के क्षेत्र में अनेकों धार्मिक स्थल व मंदिर दिखायी पड़ते हैं। चारों ओर विन्ध्य पर्वत की चोटिओं एवं सघन वन से आच्छादित चित्रकूट पहले एक कस्बे के रूप में था किन्तु अब यह एक नगर का रूप धारण कर चुका है। चित्रकूट जाने के लिए शिवरामपुर रेलवे स्टेशन अथवा कर्वी स्टेशन पर उतरना पड़ता है। दोनों स्टेशनों से चित्रकूट लगभग समान दूरी पर स्थित है। यहां से बस ,तांगे ,आटो अथवा अन्य निजी साधनों से चित्रकूट तक पहुंचा जा सकता है। मंदाकिनी नदी के किनारे स्नान हेतु कई घाट निर्मित हैं  तथा घाटों के समनान्तर कई मंदिर भी बने हुए हैं। 

पौराणिक साक्ष्य :-

ऐसी मान्यता है कि भगवान राम नेअपने भ्राता लक्ष्मण एवं भार्या सीता के साथ अपने चौदह वर्षों के वनवास अवधि में से ग्यारह वर्ष यहीं पर व्यतीत किये थे।  यहां की भील ,किरात कोल जनजातियों ने उनकी सेवा सुश्रुखा की थी। यहीं पर ऋषि अत्रि एवं सती अनसूया ने तपस्या की थी। ब्रह्मा ,विष्णु एवं महेश ने चित्रकूट में ही सती अनुसूया के यहां बालक के रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए थे। 
चित्रकूट में ही राम भरत मिलाप की ऐतिहासिक घटना भी घटित हुई थी। चित्रकूट के साथ महाकवि गोस्वामी तुलसीदास का प्रसंग भी जुड़ा हुआ है।  कहा जाता है कि जब गोस्वामी तुलसीदास जी भगवान राम के दर्शन के लिए आतुर थे तब उन्हें स्वप्न में यह आभास हुआ था कि चित्रकूट में भगवान राम उन्हें किसी दिन दर्शन देंगे। अतः वे चित्रकूट आकर मंदाकिनी नदी के किनारे प्रवास करने लगे थे और एक दिन वे नदी के तट पर बैठे हुए चन्दन घिस रहे थे तभी भगवान राम वहां उनसे चंदन लगवाने के लिए प्रगट हुए थे। 
                     चित्रकूट के घाट पर, भई  सन्तन  की भीर। 
                    तुलसिदास चंदन घिसे,तिलक देंहि रघुबीर।  
इसी कारण मंदाकिनी नदी के किनारे तुलसी मंदिर बनवाया गया था। चित्रकूट का संबंध पन्ना राज्य से भी बताया जाता है क्योंकि उस राजघराने द्वारा निर्मित कई मंदिर यहां पर स्थित हैं। कामदगिरि पर्वत के चारों ओर पत्थरों से निर्मित मार्ग जिसे कामदगिरि परिक्रमा मार्ग कहते हैं ,उसे महाराज क्षत्रसाल की पत्नी महारानी चंद्रकुँवरि ने १७५२ ई ० में छत्रसाल की मृत्यु के पश्चात उनकी स्मृति में बनवाया था। पन्ना राज्य के शासन के दौरान इसे जय सिंह पुर कहते थे। कालांतर में पन्ना के राजा अमान सिंह ने जयसिंह पुर को चित्रकूट के महन्त चरणदास को दान में दिया था। चरणदास जी ने इसे सीतापुर के नाम से बसाया जो आज भी चित्रकूट के प्रमुख कस्बे के रूप में विद्यमान है। चित्रकूट को भगवान राम की आराधना एवं भक्ति का प्रतीक स्थल माना जाता है। उत्तरभारत में पूर्णिमा को गंगा स्नान की भाँति यहां मंदाकिनी नदी में अमावस्या के दिन स्नान करना शुभ एवं पुण्यकारी  माना जाता है।  रामनवमी के दिन यहां पर विशाल मेले  का आयोजन किया जाता है। दीपावली पर यहां भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालुगण आते रहते हैं। चित्रकूट सम्प्रति एक पर्यटक स्थल के नाम से भी जाना जाने लगा है। 

प्रमुख आकर्षण :-

महर्षि वाल्मीकि ने श्रीराम को इस स्थल पर उनके वनवास के दौरान निवास करने हेतु प्रेरित किया था। तुलसीदास जी ने कहा है :-चित्रकूट गिरि करहुँ निवासू। तहँ तुम्हार सब भांति सुबासु। यहां पर पवित्र मंदाकिनी नदी जो सती अनुसुइया के तपोबल से यहां अवतरित हुई थीं ,प्रवाहित हैं। 
चित्रकूट में कामदगिरि ,कोटितीर्थ ,देवांगना ,हनुमानगढ़ी ,सीता रसोई ,राघव प्रयाग घाट आदि अनेकों धार्मिक महत्व के स्थल दृष्टिगत होते हैं। कामदगिरि का विशेष धार्मिक महत्व है क्योंकि श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की ५ किलोमीटर की परिक्रमा करते हुए अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु यहां आते हैं। कामदगिरि पर्वत पर अनेकों मंदिर बने हुए हैं। प्रसिद्ध कामतानाथ और भरत मिलाप मंदिर इसी क्षेत्र में स्थित हैं।यहां पर स्थित घाटों में चार घाट प्रमुख हैं यथा राघव प्रयागघाट , कैलाश घाट ,रामघाट व घृतकुल्या घाट। मंदाकिनी नदी के तट पर निर्मित रामघाट परबने हुए यञवेदि मंदिर में वर्ष भर धार्मिक क्रिया कलाप ,पूजा अर्चना चलती रहती है। साधु संत यहां भजन कीर्तन में मग्न होकर भगवान राम का नित्य स्मरण करते हुए देखे जा सकते हैं। सायंकाल इस घाट पर भगवान की आरती की जाती है जिसका दृश्य बहुत ही मनमोहक होता है। रामघाट से २ किलोमीटर की दूरी पर मंदाकिनी नदी के किनारे ही जानकी कुण्ड स्थित है। जनक पुत्री सीता यहीं पर स्नान करती थीं। इस कुण्ड के निकट ही राम जानकी रघुवीर का प्रसिद्ध मंदिर एवं संकटमोचन मंदिर बना हुआ है। जानकी कुण्ड से कुछ ही दूरी पर मंदाकिनी के किनारे स्फटिक शीला स्थित है। मान्यता है कि इस शिला पर सीता जी बैठती थीं जिसके कारण उनके पद चिह्न आज भी इस शिला पर विद्यमान है। एक बार जब वे इसी शिला पर खड़ी थीं तो जयंत ने कौवे का रूप धारण कर उनके पांव पर अपनी चोंच मार दी थी। इसी शिला पर सीता व राम प्रायः बैठकर प्रकृति के अनुपम सौन्दर्य का श्रीपान किया करते थे। स्फटिक शिला से ४ किलोमीटर की दूरी पर घने वन से घिरा हुआ एकांत स्थल है जिसे अनुसुइया अत्रि आश्रम के नाम से जाना जाता है। इस आश्रम के मंदिर में मुनि अत्रि ,अनुसुइया ,दत्तात्रेय और दुर्वासा मुनि की मूर्ति विराजमान है। चित्रकूट से १८ किलोमीटर की दूरी पर गुप्त गोदावरी स्थित हैं जहां दो समनान्तर गुफाएं दृष्टिगत होती हैं। एक गुफा तो काफी चौड़ी व ऊंची है किन्तु प्रवेश द्वार बहुत ही संकरा है। गुफा के अंतिम छोर पर एक तालाब स्थित है जिसे गोदावरी नदी की संज्ञा दी जाती है। दूसरी गुफा अधिक लम्बी और अपेक्षाकृत संकरी है किन्तु इसमें हमेशा जल प्रवाहित होता रहता है। कहा जाता है कि इस गुफा में भगवान राम एवं लक्ष्मण बैठकर आपस में वार्तालाप किया करते थे। पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा है जिसके पास ही हनुमान जी विशाल मूर्ति दृष्टिगत होती है। मूर्ति के सम्मुख स्थित तालाब में झरने से पानी गिरता हुआ दिखाई पड़ता है। मान्यता है कि यह धारा श्रीराम ने लंका दहन के पश्चात हनुमानजी के विश्राम के लिए बनवायी गयी थी। यहां से कुछ ही दूरी पर सीता रसोई स्थित है जहां सीता जी खाना पकाती थीं। 
चित्रकूट में ही प्रसिद्ध भरतकूप स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि भगवान राम के राज्याभिषेक के लिए भरत ने समस्त नदियों का जल एकत्रित कर यहीं पर रखा था। इसीलिए इसे भरतकूप कहा जाता है। भगवान राम की स्मृति में यहां पर एक मंदिर भी बनवाया गया था। इसके निकट ही प्रमोदवन जहां लक्ष्मी नारायण का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। कहा जाता है कि प्रमोदवन में राम और सीता प्रेमालाप  किया करते थे। यहीं पर जानकी कुण्ड भी स्थित है जहाँ पर सीता जी स्नान किया करती थीं। महाभारत काल में पांडव बंधु भी चित्रकूट में कुछ समय निवास किये थे। चित्रकूट में कुछ दिन महाराजा हर्ष भी शासन किये थे। हर्ष के पश्चात बुन्देलों ने यहां शासन किया था ततपश्चात मुगलकाल में अब्दुल हमीद नामक मुगल सरदार ने यहां हुकूमत की थीं। छत्रसाल और अब्दुल हमीद के मध्य हुए युद्ध के पश्चात हमीद पराजित हुआ था। 
चित्रकूट में लंगूर जाति के बन्दरों की बहुतायत है किन्तु वे पर्यटकों को कोई नुकसान नहीं करते हैं। यात्रियों से खानेपीने की वस्तु पाने बाद वे चुपचाप पेड़ों पर  चढ़ जाते हैं। मंदाकिनी नदी के तट पर अमावस्या के दिन स्नान करना अत्यंत फलदायी माना जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि राम, लक्ष्मण व सीता यहां पर स्नान किया करते थे। रामनवमी के दिन यहां काफी चहल पहल रहती है तथा पूरा क्षेत्र राम मय हो जाता है। चित्रकूट स्थित कोटितीर्थ के बारे में मान्यता है कि देवताओं ने यहीं पर भगवान राम के दर्शन किये थे।यहां के प्रमुख स्थल निम्न हैं :-
गुप्तगोदावरी:-चित्रकूट से १९ किलोमीटर दूर निर्मल प्राकृतिक जलस्रोतों से यह आप्लावित है। यहां दो विशाल गुफाएं हैं और इसी गुफा में एक पतली जलधारा आकर झरने के रूप में दृष्टिगत होती है। गुफा से जलधारा बाहर आकर दो कुंडों में गिरती है और  विलुप्त भी हो जाती है। इसिलए इसे गुप्त गोदावरी कहते हैं। 
कोटितीर्थ :-यह संकर्षण पर्वत पर अवस्थित है। यहां से ऊपर की ऑर चलने पर बाँकेसिद्ध ,पञ्चसरोवर नदी ,सरस्वती नदी ,यमतीर्थ ,सिद्धाश्रम व गृद्धाश्रम स्थित हैं। 
हनुमानधारा :-मंदाकिनी की एक धरा पर्वत पर जाकर हनुमानधारा कहलाती है। यह रामघाट से ४ किलोमीटर दूर तथा कोटितीर्थ के सन्निकट है। यहां तक पहुँचने के लिए ३६० सीढ़ियां चढ़नी पड़तीं हैं। यहां पंचमुखी हनुमान जी की विशाल मूर्ति स्थापित है। हनुमानधारा को दो कुंडों में एकत्रित किया जाता है किन्तु  इस जलधारा के स्रोत का आजतक पता नहीं चल पाया है। हनुमानधारा के  ऊपर की ओर सीता रसोईं स्थित है।
सती अनुसुइया आश्रम :-रामघाट से दक्षिण  की ऑर १८ किलोमीटर की दूरी पर यह आश्रम स्थित है। पूर्व में यह अत्री ऋषि अपनी धर्मपत्नी अनुसुइया के साथ निवास किये थे।
कामदगिरि :-चित्रकूट तीर्थ का प्रमुख आकर्षण कामदगिरि की परिक्रमा माना जाता है। का जाता है कि इसके दर्शन एवं परिक्रमा से समस्त मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं। इसके परिक्रमा मार्ग की परिधि ५ किलोमीटर है। और इस पर्वत पर  भगवती कामना देवी का निवास है और श्रीराम ने भी  इनकी पूजा अर्चना की थी।
प्रमोद वन :-यहां पर श्रीराम लक्ष्मण व सीता जी के साथ वन विहा किया करते थे और भगवान राम का यह प्रिय स्थल होने के कारण इसे प्रमोद वन कहा जाने लगा। 
जानकी कुण्ड :-जानकी कुंड का जीर्णोद्धार रींवा नरेश ने करवाया था तथा यहीं पर उन्होंने लक्ष्मी नारायण जी के भव्य मंदिर का निर्माण भी करवाया था। यहां पर पुत्रजीवा {पुत्रदा }का वृक्ष अभी भी स्थित है जिसकी पूजा स्त्रियां पुत्रकामना से किया करतीं हैं। 
स्फटिक शिला :-यह यहां का अत्यन्त प्राचीन धर्मस्थल है। यहां पर श्रीराम वन विहार की थकान को दूर करने हेतु विश्राम किया करते थे। इसी शीला पर राम व सीता एकसाथ विराजमान होते थे जैसाकि रामचरितमानस से स्पष्ट होता है :-
एकबार पुनि कुसुम सुहाये ,निजकर भूषन राम बनाये। 
सीतहिं पहिराए प्रभु सादर ,बैठे स्फटिक शिला पर सुन्दर।
भरतकूप :-यह झाँसी इलाहबाद रेलमार्ग पर स्थित है। कहा जाता है कि जब भरत जी श्रीराम को मनाने हेतु यहां पर आये थे तब अपने साथ समस्त तीर्थों का जल भी उनके राज्याभिषेक हेतु ले आये थे किन्तु श्रीराम द्वारा मना कर देने पर वह जल यहीं  स्थित एक कुंएं में डाल दिया गया था और तभी से यह कुँवा भरतकूप के नाम जाने लगा। 
गणेशबाग :- चित्रकूट से १० किलोमीटर दूर कर्वी -देवांगना मार्ग पर यह स्थित है। इसका निर्माण १९ वीं सदी में विनायकराव पेशवा द्वारा अपने आमोद प्रमोद हेतु करवाया।  यहां पर एक बावली ,षट्कोंनी पंचमंदिर स्थित है। इसकी स्थापत्य कला खजुराहो से मिलती जुलती है। 
बांके सिद्ध :- चित्रकूट से ११ किलोमीटर दूर तथा गणेश बाग़ से ३ किलोमीटर दक्षिण पूर्व में विंध्य पर्वत के पार्श्वभाग में यह प्राकृतिक सौंदर्य का अद्वितीय स्थल है। यह एक प्राकृतिक कन्दरा है जो एक विशाल चट्टान बीच में एक कक्ष के रूप में दृष्टिगत होता है। गुफा तक पहुँचने के लिए पक्की सीढ़ियां बनी हुईं हैं। ऊपर से निर्मल जल का झरना गुफा को आर्द्र करता हुआ कक्ष में आकर विलीन हो जाता है। 
वाल्मीकि आश्रम :-चित्रकूट से ३० किलोमीटर दूर बांदा -इलाहाबाद मार्ग पर  स्थित एक छोटी सी पहाड़ी पर अवस्थित है। इसी पर्वत पर वाल्मीकि का आश्रम बना।  पर्वत की ऊपरी छोटी पर वाल्मीकि जी की मूर्ति स्थापित है और इसी के निकट लालापुर नामक बस्ती है।       

आवागमन :-

चित्रकूट का निकटवर्ती एयरपोर्ट इलाहबाद है। खजुराहो यहां से १८५ किलोमीटर की दूरी पर है। 
देवांगना घटी के ऊपर प्लेन पर्वतीय क्षेत्र पर नवनिर्मित हवाई अड्डा तैयार किया गया है जिस पर अभी छोटे प्लेन अथवा हेलीकाप्टर उतारने की व्यवस्था उपलब्ध है।  इलाहाबाद  व लखनऊ से बस अथवा ट्रेन द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है। चित्रकूट से ८ किलोमीटर  ददोरी पर कर्वी रेलवे स्टेशन है।  इलाहबाद ,जबलपुर ,झाँसी ,दिल्ली ,हावड़ा ,आगरा ,मथुरा, लखनऊ,कानपूर ग्वालियर ,मुगलसराय ,वाराणसी ,अयोध्या आदि शहरों से यहां रेलमार्ग  द्वारा पहुंचा जा सकता है। सड़कमार्ग से भी उक्त शहरों से उत्तरप्रदेश परिवहन निगम की बसों अथवा निजी कार द्वारा सीधे यहां पहुंचा जा सकता है। दिल्ली से चित्रकूट के लिए सीधे बस सेवा उपलब्ध रहती है।     

1 comment:

  1. बहुत ही सुंदर तरीके से वर्णन आप ने किया है

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