Thursday, March 10, 2016

मथुरा

मथुरा उत्तरप्रदेश राज्य का एक जिला तथा प्रमुख धार्मिक महत्व का तीर्थस्थल एवं प्राचीन नगर के  रूप में जाना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की जन्म भूमि के कारण विशेष रूप से यह प्रसिद्ध है। इस प्रकार इसे एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में जाना जाता है। यह आदिकाल से ही प्राचीन भारतीय संस्कृति ,धर्म ,दर्शन ,कला एवं साहित्य का केंद्र रहा है। महाकवि सूरदास ,संगीताचार्य स्वामी हरिदास ,स्वामी दयानन्द के गुरु स्वामी विरजानन्द एवं महाकवि रसखान की कर्मस्थली भी मथुरा ही थी। उत्तरप्रदेश के प्रमुख शहर आगरा से मात्र ५७ किलोमीटर की दूरी पर यह स्थित है। देश की राजधानी दिल्ली से इसकी दूरी १४१ किलोमीटर है। यहां श्रीकृष्ण के जन्म स्थान होने के कारण श्रीकृष्ण से संबंधित अनेकों मंदिर दृष्टिगत होते हैं। देश एवं विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां प्रतिवर्ष इसके दर्शन के लिए आते रहते हैं। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर विशेष मेले का आयोजन होता है जिसमें बहुत अधिक संख्या में पर्यटक भाग लेते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन यहां स्थित मंदिरों को बहुत ही आकर्षक ढंग से सजाया जाता है तथा भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। 

भौगोलिक स्थिति :-

उत्तरप्रदेश  राज्य के मथुरा जिले में स्थित मथुरा एक प्राचीन नगर है। मथुरा एवं वृन्दावन के मध्य यमुना नदी प्रवाहित हैं जो दोनों शहरों की सीमा रेखा निर्धारित करती हैं। मथुरा से मात्र २६ किलोमीटर की दूरी पर गोवर्धन पर्वत स्थित है। मथुरा नगर आगरा से दिल्ली की ओर ५८ किलोमीटर उत्तर पश्चिम एवं दिल्ली से आगरा की ओर १४५ किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में यमुना नदी के किनारे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या २ पर स्थित है। 

पौराणिक साक्ष्य :-

वाल्मीकि रामायण में मथुरा को मधुपुर एवं मधु दानव नगर के नाम से सम्बोधित किया गया है। मधुनगरी ,शूरसेन नगरी तथा मधुरा के नाम से भी इसे जाना जाता है। प्राचीन काल में यह आर्यावर्त के रूप में प्रसिद्ध था किन्तु गंगा यमुना की प्राचीन संस्कृति की संवाहक यह नगरी श्रीकृष्ण की जन्म भूमि एवं उनकी बालक्रीड़ा- स्थल के कारण  विशेष रूप से विख्यात है। पूर्व में यह लवणासुर की राजधानी भी थी। लवणासुर जो मधुदानव का पुत्र था ,का वध शत्रुघ्न ने किया था। अतः मधुपुरी अथवा मथुरा रामायण काल में ही बसाये जाने का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता है। मधु दानव के पुत्र लवणासुर ने इसे सजाया एवं संवारा था। इस प्रकार प्राचीन काल से अबतक विभिन्न नामों से विभूषित हो रही मथुरा नगरी का धार्मिक महत्व कृष्ण जन्म भूमि के कारण ही अधिक है। 

निकटवर्ती दर्शनीय स्थल :-

मथुरा नगर के चारों ओर चार शिव मन्दिर स्थापित हैं यथा पूर्व में पिपलेश्वर ,दक्षिण में रंगेश्वर ,उत्तर में गोकर्णेश्वर और पश्चिम में भूतेश्वर महादेव का मंदिर। इसीलिए इसे वाराह भूतेश्वर क्षेत्र भी कहा जाता है। श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ ने श्री केशवदेव जी की मूर्ति यहां पर स्थापित की थी किन्तु औरंगजेब द्वारा उसे तुड़वाकर मस्जिद का निर्माण करवा दिया गया था। कालान्तर में मस्जिद के पीछे एक नया केशवदेव का मंदिर बनवा दिया गया। मथुरा में ही कंकाली देवी का मंदिर कंकाली टीले पर स्थित है। कहा जाता है कि जब कंस ने कंकाली को देवकी की पुत्री समझकर उसका वध करना चाहा तो वह उसके हाथ से छूटकरवह  आकाश की ओर चली गयी थी। इसीलिए प्राचीन केशवदेव मंदिर में देवकी और वसुदेव दोनों की मूर्तियां स्थापित की गयी थी। सम्प्रति यहां पर श्रीपरख जी द्वारा निर्मित द्वारकाधीश का प्रसिद्ध मंदिर निर्मित है। इस मंदिर के अतिरिक़्त गोविन्द जी का मंदिर ,किशोरीरमन जी का मंदिर स्थित हैं। वसुदेव घाट पर गोवर्धन नाथ जी का मंदिर ,मदनमोहन जी का मंदिर एवं बिहारी जी का मंदिर बना हुआ है। 
भगवान श्रीकृष्ण जहां पर बचपन में बाल- क्रीड़ा किया करते थे वह स्थान गोकुल यहां से थोड़ी ही दूर पर स्थित है। इसी स्थान पर श्रीकृष्ण माखन चुराया करते थे तथा ग्वाल बाल के साथ गाय चराया करते थे। विश्राम घाट या विश्रांत घाट यहां का बहुत ही मनमोहक स्थल है। विश्रांतिक तीर्थ ,असिकुण्डा तीर्थ ,बैकुण्ठ तीर्थ ,कालिंजर तीर्थ एवं चक्रतीर्थ नाम से पांच प्रसिद्ध मंदिरों वर्णन मिलता है। विश्रांत घाट से थोड़ी दूर पर पीछे की ओर श्री रामानुज सम्प्रदाय का नारायण जी एवं कंसखार यहीं पर स्थित हैं। रामजी द्वारे में श्री रामजी का मंदिर है जिसमें अष्टभुजी श्रीगोपाल जी की मूर्ति स्थापित है। रामनवमी के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है। इसी के निकट विष्णु जी का मंदिर ,बंगाली घाट पर मदनमोहन मंदिर व गोकुलेश मंदिर स्थित हैं। मथुरा के पश्चिमी भाग में एक ऊंचे टीले पर महाविद्या का मंदिर तथा सुंदर कुण्ड एवं पशुपति महादेव का मंदिर है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में यहां सरस्वती जी प्रवाहित होती थी जो गोकर्णेश्वर  के निकट यमुना जी में मिल जाती थीं। पौराणिक कथा के अनुसार जब एक सर्प नन्द बाबा को निगलने के लिए उद्द्यत हो गया था तब श्री कृष्ण ने सर्प को ऐसी लात मारी कि वह अपने असली रूप सुदर्शन विद्याधर के रूप में प्रगट हो गया। यहीं पर चामुण्डा का मंदिर भी स्थित है।  
चामुण्डा से मथुरा की ओर आगे बढ़ने पर अंबरीश  टीला जहां राजा अंबरीश ने तप किया था ,दिखाई पड़ता है। सम्प्रति यहां पर जाहरपीर का मठ व हनुमान जी का मंदिर दिखाई पड़ता है। मथुरा के पास नृसिंह गढ़ जहां नरहरि ने ४०० वर्षों तक तपस्यारत  होकर शरीर त्याग किया था ,स्थित है। मथुरा से २६ किलोमीटर दूरी पर गोवर्धन स्थान है। कहा जाता है कि जब इन्द्र के प्रकोप से वहां पर मूसलाधार बरसात होने लगी थी तब मथुरा वासियों ने इस आपदा से रक्षा के लिए श्रीकृष्ण से अनुरोध किया था। कई दिनों से हो रही बारिश से मथुरावासियों को राहत दिलाने हेतु श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी ऊँगली पर उठा लिया था और समस्त मथुरावासियों को उसके नीचे खड़ा करके इंद्र के प्रकोप से उनकी रक्षा की थी। 
मथुरा से लगभग ४८ किलोमीटर दूर बरसाना स्थान है जहां राधा ने जन्म लिया था । बरसाने की होली सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। लोक रीति से होली मनाने का अपना निराला ढंग बरसाने में ही देखने को मिलता है जिसे लट्ठमार होली के नाम से जाना जाता है। लट्ठमार होली में औरतें रंग ,गुलाल एवं अबीर एक दूसरे पे डालते हुए लाठी से पुरुषों पर वार करती हैं और पुरुष नाचते गाते हुए अपने को लाठी के प्रहार से अपने को बचने का प्रयास करते हैं।होली के त्यौहार पर इस लट्ठमार होली को देखने लिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग यहां पर एकत्रित होते हैं। 
मथुरा से १० किलोमीटर की दूरी पर वृंदावन प्रसिद्ध धार्मिक स्थल स्थित है। वृन्दावन में ही कृष्ण गोपियों के साथ रास लीला करते थे तथा माखन से भरी मटकी फोड़कर उन्हें छकाया करते थे। यमुना में स्नान करती हुई गोपियों के कपड़े चुराकर एकांत में वृक्षों पर टांगकर उनकी हंसी उड़ाए जाने की घटना यहीं पर हुई थी। यहीं पर सन १५९० में निर्मित श्रीकृष्ण का भव्य मंदिर यहीं पर स्थित है। प्रत्येक एकादशी एवं अक्षय नवमी को मथुरा की परिक्रमा श्रद्धालुगण श्रद्धापूर्वक करते हैं। देवशयनी एवं देवोत्थानी एकादशी को मथुरा गरुण एवं गोविन्द वृन्दावन की एक साथ परिक्रमा की जाती है जिसे २१ कोसी परिक्रमा के नाम से जाना जाता है।   

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