Wednesday, March 30, 2016

गंगोत्री

मुख्यतः गंगोत्री को गंगा नदी के उदगम स्थल के रूप में जाना जाता है। इसे हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ के रूप में  भी मान्यता प्राप्त है। प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु एवं पर्यटक यहां दर्शनार्थ आते रहते हैं। भागीरथी नदी के किनारे बने गंगोत्री धाम मंदिर का निर्माण अठारहवीं शताब्दी में गोरखा रेजीमेन्ट के जनरल अमरसिंह द्वारा किया गया था। यमुनोत्री की भाँति ही गंगोत्री का मंदिर भी अक्षय तृतीया  के पर्व पर श्रद्धालु भक्तों के दर्शनार्थ खोल जाता है और दीपावली को कपाट बंद कर दिए जाते हैं। यहां से शिवलिंग ,सुदर्शन ,भागीरथी तथा केदारडोम की हिमाच्छादित चोटियां स्पष्ट देखी जा सकती हैं। 

भौगोलिक स्थिति :-

उत्तराखण्ड राज्य के हिमालय श्रंखला क्षेत्र में समुद्र तल से ३२०० मीटर की ऊँचाई पर गंगोत्री धाम स्थित है। उत्तरकाशी से १०० किलोमीटर दूर स्थित गंगोत्री धाम  को प्राकृतिक सौन्दर्य एवं आस्था का प्रमुख केंद्र माना जाता है। गंगोत्री मन्दिर का पुनरोद्धार जयपुर राजघराने के राजा माधो सिंह ने बींसवी शताब्दी में करवाया था। इस मन्दिर के आस-पास अनेकों आश्रम ,धर्मशालाएं एवं होटल बने हुए हैं जिनमें यात्रियों के ठहरने की समुचित व्यवस्था उपलब्ध है। इससे थोड़ी ही दूर पर गौरीकुण्ड एवं केदारकुण्ड स्थित हैं। मन्दिर से १८ किलोमीटर की दूरी पर गोमुख जो गंगा नदी का उदगम स्थल है ,स्थित है। भागीरथी घाटी जो भोज वृक्षों से घिरी हुई है ,के उत्तरी भाग में शिवलिंग एवं सतोपथ की चोटियां दिखलायी पड़ती हैं। घाटी के बाहर केदारगंगा तथा भागीरथी होते हुए जल गंगा नदी में प्रवाहित होता है। नदी के दोनों किनारों पर कई मन्दिर बने हुए हैं। यह वही  स्थल है जहाँ से गंगा हिमखण्डों के गर्भ से बाहर अाकर अपनीआगे की यात्रा आरम्भ करती हैं।यमुनोत्री से गंगोत्री तक पहुँचने के लिए ८ मील चलकर हनुमानचट्टी और हनुमानचट्टी से १७ मील चलकर सिमली ,सिमली से कोरी ११ मील ,कोरी से उत्तरकाशी १० मील ,उत्तरकाशी से झाला ३८ मील ,झाला से भैरवघाटी १० मील और भैरवघाटी से ६ मील चलकर गंगोत्री पहुंचा जा सकता है।  

पौराणिक साक्ष्य एवं कथायें :-

पौराणिक कथाओं से विदित होता है कि भगवान श्रीराम के पूर्वज राजा भगीरथ यहीं पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। इसी स्थान पर १८ वीं शताब्दी में एक मंदिर का निर्माण हुआ था और मां गंगा इसी स्थान से चलकर मैदानी क्षेत्र में आगे बढ़ती हैं। कहा जाता है कि महाभारत युद्ध में मारे गए अपने परिवार के सदस्यों की मुक्ति के लिए पाण्डवों ने इसी स्थान पर एक  बहुत बड़ा यज्ञ किया था।  गंगोत्री का  यह पावन मन्दिर सफेद ग्रेनाइट के बीस फिट ऊंचे पत्थरों से निर्मित है। 
गंगोत्री स्थल पर दृष्टिपात करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो भगवान शिव यहां पर अपनी जटाओं को बिखेरते हुए आज भी तपस्यारत हैं। भगवान शिव की जटाओं से गंगा के उदगम की अनुभूति भी यहां आने पर होती है जैसाकि पौराणिक आख्यानों में राजा भगीरथ के प्रयास /अनुरोध पर भगवान शिव द्वारा अपनी जटाओं से गंगा को छोड़ने का प्रसंग मिलता है। मंदिर के आस-पास गंगोत्री नगर का विकास ७०० वर्ष पूर्व का बताया जाता है। चूँकि पहले चारधामों की यात्रा पैदल ही श्रद्धालु पूर्ण करते थे और उन दिनों चढ़ाई भी कठिन थी।  इसीलिए वर्ष १९८० में गंगोत्री में सड़कों का निर्माण किया गया और धीरे धीरे शहर का उत्तरोत्तर विकास भी होता गया जिसके कारण यात्रा भी अपेक्षाकृत सरल व सुगम हो गई। सर्दियों में जब गंगा जी के जल का स्तर नीचे चला जाता है तब वहां पावन शिवलिंग के दर्शन होने लगते हैं। गंगोत्री के निकट श्याम प्रयाग ,धराली तथा मुखवा गांव स्थित है। कहा जाता है कि जब गंगोत्री मन्दिर का निर्माण नहीं हुआ था, तब तीन चार महीनों के लिए इन गांवों से देवी देवताओं की मूर्तियां यहां एक शिलाखण्ड पर रख दी जाती थीं जिसका दर्शन श्रद्धालुगण किया करते थे और शीत ऋतु आने के पूर्व ही उसे वहीं पर वापस पहुंचा दिया जाता था। 

गंगोत्री यात्रा का समय :-

प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर माह के मध्य दर्शनार्थी यहां उपस्थित होते हैं। ग्रीष्म ऋतु का मौसम यहां पर अत्यन्त सुहावना हो जाता है किन्तु रात्रि के समय सर्दी का अनुभव अवश्य होता है। यहां का न्यूनतम तापमान ६ सेंटीग्रेड तथा अधिकतम तापमान २० सेंटीग्रेड रहता है। दिसंबर से मार्च तक यह क्षेत्र हिमाच्छादित रहता है और तापमान शून्य डिग्री से नीचे चला जाता है। देवदार के वृक्षों से घिरी हुई घाटियों के मध्य गंगा का प्रवाह अत्यन्त मनोहारी लगने लगता है। गंगोत्री से १९ किलोमीटर दूर ३८९२ मीटर की ऊँचाई पर गोमुख स्थित है जो भागीरथी नदी का उदगम स्थल माना जाता है। मान्यता है कि इसके ठंडे जल में स्नान करने से सभी व्याधियां और पाप स्वतः समाप्त हो जाते हैं। गंगोत्री से गोमुख तक की यात्रा पैदल अथवा टट्टुओं पर सवार होकर की जा सकती है। चढ़ाई अधिक कठिन नहीं है। अतः पैदल चलकर भी उसी दिन वापस आया जा सकता है। गोमुख २५ किलोमीटर लम्बा ,४ किलोमीटर चौड़ा एवं लगभग ४० मीटर ऊँचा है। इसी गोमुख में स्थित एक गुफा से भागीरथी नदी का अवतरण होता है। 

जीवजन्तु एवं वनस्पतियाँ :-

मुख्य रूप से यहां पर बलूत ,कुराँस एवं नील देवदार के वृक्ष पाए जाते हैं। गंगोत्री क्षेत्र में प्रायः लंगूर लाल बन्दर ,चीते ,हिरण ,कस्तूरी मृग ,भूरे भालू ,लोमणी ,सेरो, मृग ,साही व तहर देखे जाते हैं। विभिन्न रंग के मनमोहक पक्षी यथा हंसोड़ ,कोकल ,तीतर ,सारिकाएं ,साखिये ,मोनाल पक्षी दिखलायी पड़ते हैं। यहां के स्थानीय निवासी गढ़वाली हैं जो स्थानीय भाषा के अतिरिक्त हिंदी ,अंग्रेजी भी बोल लेते हैं। यहां स्थित भोजवासा में कभी भोजपत्रों का घना जंगल हुआ करता था इसीलिए इसे भोजवासा के नाम से भी जाना जाता है। हजारों वर्ष पूर्व जब कागज का अविष्कार नहीं हुआ था तब भोजपत्र पर ही लिखा जाता था। अब भोजपत्र के जंगल यत्र तत्र  ही दिखलायी पड़ते हैं। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

गंगोत्री के निकट बसे हुए मुखवा गांव के लोग इस मन्दिर के पुजारी नियुक्त किये जाते हैं। इसके निकट ही मार्कण्डेयपुरी जहां मार्कण्डेय मुनि ने तप किया था तथा मातंग ऋषि यहां वर्षों बिना कुछ खाये पिए तपस्या किया करते थे। गंगोत्री से ९ किलोमीटर दूर भैरों घटी है जहां तेज बहाव के साथ भागीरथी आगे बढ़ती हुई दिखाई पड़ती हैं। यहां से भृगु पर्वत श्रृंखला सुदर्शन मातृ तथा चीड़वाला चोटियां स्पष्ट दिखायी पड़ती हैं। गंगोत्री के निकट ही २० किलोमीटर की दूरी पर हर्षिल नामक स्थान भागीरथी नदी के किनारे जलन घाटी के संगम पर स्थित है। बसपा घाटी से हर्षिल दर्रे के द्वारा यह जुड़ा हुआ है। मातृ एवं कैलाश चोटी के अतिरिक्त श्रीकण्ठ की चोटी यहां दूर दूर तक फैली हुई हैं। यह क्षेत्र मीठे सेव व वनस्पतियों के लिए प्रसिद्ध है। गंगोत्री के निकट २५ किलोमीटर की दूरी पर नन्दनवन तपोवन स्थित है। यहां से शिवलिंग चोटी का मनोरम दृश्य देखा जा सकता है। 
वैसे तो गंगोत्री का इतिहास बहुत ही पुराना है किन्तु ऐतिहासिक साक्ष्य के अनुसार यह ७०० वर्ष से अधिक पूर्ण प्रतीत होता है। इसे मुखवा एवं मतंग ऋषि की तपस्थली के रूप में जाना जाता है। गंगोत्री से ९ किलोमीटर दूर गंगोत्री चिरवासा ,१४ किलोमीटर दूर गंगोत्री भोजवासा स्थित है। यहां से १४ किलोमीटर की दूरी पर केदारताल स्थित है जहां मनोरम झील के दर्शन होते हैं। यह झील पूर्णतयः साफ सुथरी एवं इसका जल अत्यन्त स्वच्छ दिखायी पड़ता है। शीतऋतु  के प्रारम्भ में देवी गंगा अपने निवास स्थान मुखवा गांव की ओर प्रस्थान करती हैं  और अक्षय द्वितीया के दिन वापस आ जाती हैं। इसके अगले दिन अक्षय तृतीया से यहां उत्सव प्रारम्भ हो जाता है। समुद्रतट से ऊँचाई बहुत अधिक होने के कारण यहां माह अक्टूबर के पश्चात भारी हिमपात होता है और हिमपात के कारण ही आवागमन के सभी रास्ते बन्द हो जाते हैं।    

1 comment:

  1. अच्छी जानकारी है। स्पष्ट तरीके से समझाया है। मेरे लेख को भी देखें गंगोत्री धाम

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