Monday, March 21, 2016

अयोध्या

प्राचीन भारत में कोसल के नाम से प्रसिद्ध नगर को सम्प्रति अयोध्या के नाम से जाना जाता है। इक्ष्वाकु से श्रीरामचन्द्र तक सभी चक्रवर्ती राजाओं ने अयोध्या के सिहासन को विभूषित किया है। प्रथम बार इसे मनु ने बसाया था जैसा कि "मनुना मान्वेंद्रेण सा पुरी निर्मितां स्वयम "उक्ति से स्वतः स्पष्ट  है।   हिन्दुओं के सात पवित्र धार्मिक तीर्थस्थलों अर्थात सप्तपुरियों में से अयोध्या प्रमुख एवं प्रसिद्ध तीर्थस्थल है। प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि होने के कारण एवं प्राचीन समय से ही उच्चकोटि के संतों की साधना -भूमि के रूप में अयोध्या जानी जाती रही है। पहले यह कोसल जनपद की राजधानी थी। प्राचीन उल्लेखों के अनुसार तब इसका क्षेत्रफल ९६ वर्गमील था। इस प्राचीन नगर के अवशेष सम्प्रति खण्डहर के रूप में परिवर्तित हो गए हैं।उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि भारत के सभी प्रांतों से भी यह रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। यह नगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है। प्रतिवर्ष  यहां लाखों पर्यटक एवं  श्रद्धालु दर्शनार्थ आते रहते है। अयोध्या को साकेत एवं अवध के नाम से भी जाना जाता है। अयोध्या शब्द की व्युत्पत्ति "अ "अकार ब्रह्मा, "य" यकार विष्णु एवं "ध" धकार रूद्र के स्वरूप से हुई है। 
               अकारो ब्रह्मा च प्रोक्तं यकारो विष्णुरुच्यते। 
                धकारो  रुद्रयश्च  अयोध्या नाम  राजते। 
सम्प्रति वर्तमान अयोध्या एवं प्राचीन अयोध्या की एकरूपता केवल अयोध्या की पावन भूमि व सरयू नदी ही है। शेष सभी कुछ परिवर्तित हो चुका है।    

भौगोलिक स्थिति :- 

उत्तरप्रदेश राज्य के फ़ैजाबाद जिले के अन्तर्गत यह नगर सरयू नदी जो तीन ओर अयोध्या से घिरी हैं, के किनारे पर बसा हुआ अति प्राचीन नगर है।  अयोध्या का निकटतम हवाई अड्डा अमौसी, लखनऊ जो यहां से लगभग १४० किलोमीटर दूर है, में स्थित है।  अयोध्या का निकटतम बड़ा रेलवे स्टेशन फ़ैजाबाद हैजो उत्तरप्रदेश एवं भारत के अन्य प्रान्तों से यह रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। अयोध्या रेलवे स्टेशन पर मुगलसरायं, वाराणसी एवं लखनऊ से सीधे गाड़ियां आती हैं। यहां से सरयू जी ५-६ किलोमीटर की दूरी तथा कनकभवन ३ किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।  यह नगर राष्ट्रीय राजमार्ग व अन्य राजमार्गों से भारत के समस्त प्रमुख नगरों से भी जुड़ा हुआ है। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसों द्वारा प्रदेश के समस्त निकटवर्ती प्रमुख शहरों से सीधे यहां पहुंचा जा सकता है। गोरखपुर एवं लखनऊ से यहां राष्ट्रीय राजमार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। वाराणसी से यह ३२४ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। 

पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-

स्कन्दपुराण के अनुसार "श्रीराम धनुषाग्ररथ अयोध्या सा महापुरी "है। पौराणिक ग्रन्थों में उपलब्ध अभिलेखानुसार त्रेता युग में भगवान विष्णु ने महाराजा दशरथ के पुत्र राम के रूप में अयोध्या में जन्म लिए थे, इसीलिए वेदों में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है। रामायण में इसकी स्थापना मनु द्वारा किये जाने का उल्लेख मिलता है। तत्कालीन स्थिति के अनुसार यह सरयू के तट पर बारह योजन अर्थात लगभग १४५ किलोमीटर लम्बे  एवं तीन योजन अर्थात ३६ किलोमीटर चौड़ाई के क्षेत्र में बसा था। बहुत समय तक यह सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी रही है। जैनियों के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जन्म भी अयोध्या में ही हुआ था। वैवस्वत मनु नामक राजा के चौसठवीं पीढ़ी में महाराज दशरथ के पुत्र के रूप में भगवान राम ने यहां जन्म लिया था। मनु ,इक्ष्वाकु ,भगीरथ ,रघु ,दिलीप ,हरिश्चंद्र एवं राम जैसे सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी होने का गौरव अयोध्या को प्राप्त है। राजा इक्ष्वाकु के गुरु वशिष्ठ द्वारा सरयू नदी को मानसरोवर से अयोध्या तक ले आने का उल्लेख पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि इस नगर में कोई नदी न होने के कारण वशिष्ठ ने अपने पिता ब्रह्मा जी को तप द्वारा प्रसन्न किया और ब्रह्मा के वरदान से उन्होंने ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को मानसरोवर से सरयू नदी को अयोध्या तक ले आये। मुख्यरूप से अयोध्या श्रीराम की जन्म भूमि होने के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। भगवान श्रीराम की लीला के अतिरिक्त यहां श्रीहरि के अन्य सात प्राकट्य हुए थे जिन्हें सप्तहरि के नाम से जाना जाता है। त्रेतायुग में भगवान राम ने यहां अश्वमेध यज्ञ किया था। लगभग ३०० वर्ष पूर्व उसी स्थल पर कुल्लू के राजा ने  एक विशाल मंदिर बनवाया जिसका इन्दौर की रानी अहिल्याबाई ने वर्ष १७८४ में नवनिर्माण करवाया था। 
अयोध्या त्रेतायुग से अबतक ऋषियों एवं मुनियों की पवित्र तपस्थली रही है। इन ऋषियों एवं संतों ने ही अपनी इसी साधना स्थल पर अनेकों आश्रमों एवं मन्दिरों का निर्माण करवाया। ऐसे संतों में अनत श्री विभूषित स्वामी रामचरण दास "करुणासिंधु जी महराज ",स्वामी रामप्र्रसादाचार्य ,स्वामी युगलानन्य  शरण जी ,स्वामी मनीराम दास जी,स्वामी श्री रघुनाथ दास जी ,श्री जानकीवर शरण एवं श्री उमापति प्रमुख हैं। अयोध्या को वर्तमान स्वरूप में ले आने तथा इसे सवारने का बहुत बड़ा श्रेय स्वामी रामचरण दास "करुणासिंधु जी महराज "को दिया जाता है। 

प्रसिद्ध मन्दिर एवं घाट :-

   यहां निर्मित नागेश्वर मंदिर शिव जी का अत्यन्त प्राचीन मन्दिर है। अयोध्या के अन्य दर्शनीय स्थलों में श्रीराम मन्दिर, श्रीरामजन्मभूमि, हनुमान गढ़ी, लालसाहब ,वाल्मीकि मन्दिर, बिड़ला मंदिर, कनकभवन, जानकी घाट, विश्व विराट विजय राघव मंदिर, बड़े हनुमान, राम शिला स्थल, तुलसी उद्यान, राजसदन, चारधाम मंदिर, देवकाली मंदिर, श्रीराम हर्षण कुञ्ज, सिद्ध हनुमान बाग राजद्वार, जैन मंदिर, श्रीराम मन्त्रार्थ मण्डपम्, काले राम  मंदिर नाटूकोट्टईमंदिर, मणि पर्वत एवं राम पौड़ी आदि मुख्य हैं ।
 हनुमान गढ़ी :-अयोध्या का प्रमुख आकर्षण  केन्द्र हनुमानगढ़ी जो इसके मध्य भाग में स्थित है,को माना जाता है।  इस स्थल पर श्रीहनुमान जी का एक विशाल मन्दिर बना हुआ है,जहाँ प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु दर्शनार्थ उपस्थित होते हैं । लगभग साठ सीढ़ियां चढ़ने के बाद यहां हनुमान जी के दर्शन होते हैं।  श्रीहनुमान जी के यहां विराजमान होने सन्दर्भ में बताया जाता है कि पहले श्रीहनुमान जी यहां एक गुफा में रहते थे और रामजन्मभूमि तथा रामकोट की यहीं से रक्षा किया करते थे किन्तु बाद में मंदिर बनवाकर इसमें बाल हनुमान एवं माता अन्जिनी की प्रतिमा स्थापित कर दी गयी। श्रद्धालुगण यहां पर श्रीहनुमान जी की बैठी हुई मूर्ति के दर्शन करके अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति कर लेते हैं। यहाँ पूर्व में स्थित रामकोट जो अब नष्ट हो चुका है ,के अवशेष  भाग पर यह मंदिर निर्मित है। इसके दक्षिण भाग में सुग्रीवटीला,अंगदटीला स्थित है।    
 राम जन्मभूमि :- हनुमानगढ़ी के निकट ही राघवजी का मन्दिर बना हुआ है। मुख्यतः यह भगवान राम चन्द्र जी का जन्मस्थान है। इस मन्दिर में केवल  राघवजी की मूर्ति स्थापित है माँ सीता की नहीं। यहां स्थित राम के प्राचीन मंदिर को बाबर ने मस्जिद के रूप में परिवर्तित करवा दिया था किन्तु लगभग १५ वर्ष पूर्व वह मस्जिद ध्वस्त हो गई  थी और अब उसके स्थान पर श्रीराम के भव्य मंदिर के निर्माण का मामला उच्च्तम न्यायालय में लम्बित है। प्राचीन राम मंदिर के स्थान पर सम्प्रति एक छोटा सा राम मंदिर बना हुआ है। जन्मभूमि के निकट कई अन्य मंदिर बने हुए हैं जैसे सीता रसोई ,चौबीस अवतार ,रंगमहल आनंद भवन ,कोपभवन साक्षीगोपाल आदि।   
  नागेश्वरनाथ मंदिर :-सरयू नदी के तट पर स्थित स्वर्गद्वार घाट पर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक नागेश्वर नाथ जी का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है।  कहा जाता है कि इस मंदिर को भगवान राम के पुत्र कुश ने बनवाया था। शिवरात्रि पर्व पर यहां पर विशेष पूजा -अर्चना की जाती है।
 जानकी घाट :- अयोध्या के पूर्व से पश्चिम की ओर चलने पर क्रमशः रामघाट ,जानकीघाट ,नयाघाट ,रूपकला घाट ,धोरहरो घाट ,अहिल्याबाई घाट ,जटाई घाट ,शिवाला घाट ,गंगा महल स्वर्गद्वार लक्ष्मण घाट ,सहस्रधारा ,ऋणमोचन घाट मिलते हैं। इनमें जानकी घाट अत्यन्त प्राचीन एवं प्रसिद्ध घाट माना जाता है। यहां स्थित मंदिरों का नवनिर्माण श्री रामचरण दास "करुणासिन्धु जी "ने करवाया था। सैकड़ों दर्शनार्थी प्रतिदिन यहां किशोरीजी की प्रतिमा के समक्ष श्रद्धासुमन चढाते हैं।  
कनकभवन :-    हनुमान गढ़ी के निकट ही विशाल कनकभवन स्थित है जिसमें भगवान राम एवं सीता जी की स्वर्णमुकुट से सुसज्जित भव्य मूर्तियाँ स्थापित हैं। इसे टीकमगढ़ की रानी ने वर्ष १८९१ में बनवाया था। इसके अतिरिक़्त महत्वपूर्ण पौराणिक भवन जैसे वाल्मीकि रामायण भवन ,दशरथ महल ,लवकुश भवन ,कैकेयी कोपभवन ,रंगमहल ,वेदभवन ,सुमित्रा भवन ,आनन्द भवन ,इच्छा भवन यहां पर स्थित हैं।इसे श्रीराम का अंतःपुर अथवा सीताजी का महल भी कहा जाता है। कहा जाता है कि कैकेयी ने इसे सीताजी को मुंहदिखाई में भेंट की थी।  
 स्वर्गद्वार घाट :-सरयू नदी के किनारे पर स्वर्गद्वार घाट स्थित है जिसके बारे में बताया जाता है कि यहां पर स्नान ,दान ,पूजा -अर्चना करने से सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
लक्ष्मण किला व घाट:-  सरयू नदी के पश्चिमी भाग में घाटों एवं मंदिरों का एक विशाल समूह देखा जाता है जिसमें ,रामघाट ,दशरथघाट ,भरतघाट ,शत्रुध्नघाट,लक्ष्मण घाट ,मांडवी घाट,अहिल्या घाट ,उर्मिला घाट,सीताघाट प्रमुख हैं। इन घाटों के उत्तर दिशा में लक्ष्मण किला स्थित है। लक्ष्मण घाट से लक्ष्मण के स्वर्ग प्रस्थान करने का प्रसंग जुड़ा हुआ है।  इसी घाट पर सहस्रधारा नामक दिव्यस्थल तथा लक्ष्मण मन्दिर स्थित है।
दर्शनेश्वर- हनुमानगढ़ी के निकट ही अयोध्या नरेश का महल स्थित है और इसकी वाटिका में महादेव जी का भव्य मंदिर बना हुआ है। 
 राम मन्दिर के निकट ही लक्ष्मण  मन्दिर भी स्थित है। अहिल्यबाई घाट पर श्रीगंगानाथ जी का मन्दिर बना हुआ  है। अयोध्या में ही प्रसिद्ध जानकी घाट एवं अनेकों अन्य मंदिर स्थित हैं।
 यहां के कुछ मंदिरों का नवनिर्माण स्वामी रामचरण दास "करुणासिंधु जी महराज "ने करवाया था। सरयू तट पर ही वासुदेव घाट स्थित है जहां पर मनु ने मत्स्य भगवान के दर्शन किये थे। इसके अतिरिक़्त इन घाटों के निकट ही लक्ष्मी नारायण मन्दिर ,उदासीन मन्दिर ,अवधबिहारी मंदिर ,रामभरत मिलाप मंदिर,राम जन्म भूमि मन्दिर ,राम कचहरी ,चारधाम मंदिर ,हनुमान मन्दिर व दशरथ भवन स्थित हैं। अयोध्या में जैन मन्दिर भी अत्यधिक लोकप्रिय हैं क्योंकि पांच तीर्थंकरों की जन्मभूमि पर उनके नाम से अलग अलग मंदिर बनवाए गए हैं। श्रीराम नवमी ,सावन झूला तथा श्रीराम विवाह का उत्सव यहां बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।
निकटवर्ती स्थल :--
सोनखर:- अयोध्या के निकट स्थित यह स्थान महाराजा रघु के कोषागार के रूप में जाना जाता है। कुबेर देवता यहां पर कभी स्वर्ण वर्षा  की थी इसीलिए इसे सोनखर कहा जाने लगा। 
सूर्यकुण्ड :-रामघाट से लगभग ८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक विशाल सरोवर है और इसी के निकट सूर्य नारायण मंदिर बना हुआ है। 
नन्दीग्राम :-फ़ैजाबाद शहर से थोड़ी ही दूरी पर किन्तु अयोध्या से २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह वही कस्बा है जहां राम के वनवास अवधि में भरत ने तपस्या की थी। 
गुप्तारघाट :-सरयू नदी के तट पर अयोध्या से १६ किलोमीटर दूर यह स्थल सरयू -स्नान के लिए प्रसिद्ध है।  इसी घाट पर गुप्तहरी मंदिर स्थित हैतथा यहां से ३ किलोमीटर की दूरी पर निर्मलकुंड व निर्मलनाथ महादेव का मंदिर बना हुआ है।
दशरथ तीर्थ :-रामघाट से १२ किलोमीटर दूरी पर स्थित स्थल जहां महाराजा दशरथ जी का अंतिम संस्कार किया गया था। 
जनकौरा :-जैसाकि  नाम से ही ध्वनित होता है कि महाराजा जनक जब कभी अयोध्या आते थे तब वे इसी स्थान पर अपना शिविर लगाते थे। यह फ़ैजाबाद -सुल्तानपुर सड़कमार्ग पर अयोध्या से १८ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसे जनौरा के नाम से भी जाना जाता है।  
अयोध्या में श्रीराम नवमी के अवसर पर विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इसके अतिरिक्त श्रावण शुक्ल पक्ष में श्रवण मेला  आयोजित होता है। कार्तिक पूर्णिमा पर सरयू स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है। यहां ठहरने के लिए सैकड़ों होटल ,गेस्टहाउस व धर्मशालायें  उपलब्ध हैं।        

1 comment:

  1. अयोध्या दर्शनीय स्थल में सबसे प्रसिद्ध स्थल है - राम की पैड़ी, मणि पर्वत, भरत कुंड आदि.

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