Friday, March 11, 2016

वृन्दावन

योगेश्वर श्रीकृष्ण की लीला स्थली वृन्दावन प्राचीन धार्मिक तीर्थस्थल एवं पर्यटन केन्द्र के रूप में जाना जाता है। इसे प्रणयभूमि अथवा प्रणयस्थली भी कहा जाता है। वृन्दावन को व्रज का हृदय भी कहा जाता है क्योंकि यहां पर राधा एवं कृष्ण ने अपनी दिव्य प्रेम लीला की थी। भगवान श्रीकृष्ण ,राधा एवं गोपियों ने अपने प्रेम से इस स्थली को अभिसिंचित किया था।  यहीं पर श्रीकृष्ण अपनी वंशी की मधुर तानों से राधा एवं गोपियों को भाव विह्वल कर दिया करते थे। वृन्दावन आने वाले श्रद्धालुओं को आज भी कृष्ण की वंशी की मनमोहक ध्वनि यहां पर सुनायी पड़ती है। वृन्दावन को परमधाम अथवा परमगुप्त स्थान माना जाता है। पद्मपुराण में इसे ईश्वर का साक्षात् शरीर ,पूर्ण ब्रह्म से सम्पर्क का केन्द्र स्थान तथा परमानन्द का आश्रय बताया गया है। चैतन्य महाप्रभु ,स्वामी हरिदास ,श्री महाप्रभु बल्ल्भाचार्य आदि संतों ने इस स्थली को सजाया एवं संवारा था तथा इसे विश्व की अनश्वर सम्पत्ति के रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया। भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी युवक युवतियां प्रेम रस में सराबोर होकर आज भी श्रीकृष्ण को वृन्दावन की गली -कूंचों ,खेत -खलिहानों ,कुञ्ज -लताओं और यमुना के तट पर इस कामना से खोज करते हैं कि शायद कहीं पर उन्हें योगेश्वर की मनमोहक छवि का दिव्य -दर्शन हो जाये। 

भौगोलिक स्थिति :-

उत्तरप्रदेश राज्य के मथुरा जिले में यमुना नदी के किनारे विश्वविख्यात वृन्दावन नगर बसा हुआ है। यमुना जी इसे तीनों ओर से घेर रखा है। वृन्दावन की प्राकृतिक छटा अत्यन्त ही मनमोहक है एवं  सघन कुंजों के मध्य खिले हुए मनमोहक फूलों की सुगन्ध से ऐसा प्रतीत होता है कि किसी देवलोक में हम विचरण कर रहें हैं। बसंत ऋतु के आगमन पर यहां की छटा एवं सावन भादों की हरियाली देखकर मन मुग्ध हो जाता है। वृन्दावन मथुरा से १० किलोमीटर दूर स्थित होने के कारण श्रद्धालुगण एक साथ ही दोनों धार्मिक स्थलों का दर्शन कर लेते हैं। 

पौराणिक साक्ष्य :-

पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि वृंदा देवी जो जलन्धर नामक राक्षस की पत्नी थीं ,ने भगवान विष्णु की तपस्या करके उनसे यह वरदान मांगा था कि उनके पति  जलन्धर अमर हो जाएँ। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने वृंदा को यह वरदान दिया कि जब तक तुम पातिव्रत धर्म का अनुसरण करती रहोगी तब तक तुम्हारे पति जलन्धर को कोई भी व्यक्ति नहीं मार सकेगा। यह वरदान प्राप्त होने के पश्चात जलन्धर देवताओं से युद्ध करने लगा और युद्ध में देवताओं को पराजित कर उन पर अधिकार प्राप्त कर लिया। इस घटना से भगवान विष्णु भी अपने को पराजित महशूस करने लगे और उन्होंने कपटपूर्वक जलन्धर का रूप धारण कर वृंदा के पातिव्रत धर्म को भंग कर दिया और अवसर पाकर भगवान शंकर ने जलन्धर का वध कर दिया। वास्तविकता का ज्ञान होने पर वृंदा ने भगवान विष्णु को शाप देकर सालिगराम बना दिया। देवताओं के विशेष आग्रह पर वृंदा ने विष्णु को शाप मुक्त कर दिया तब विष्णु भगवान ने वृंदा को पुनः यह वरदान दे दिया कि वह अगले जन्म में तुलसी के रूप में पृथ्वी पर जन्म लेगी और समस्त प्राणी उसकी पूजा करेंगे। कहा जाता कि वृन्दी के नाम पर ही इसका नाम वृन्दावन पड़ा।  दूसरी मान्यता यह है कि राधा के सोलह नामों में उनका एक नाम वृन्दा भी था और यही वृंदा राधा के रूप में कृष्ण से इस स्थल पर प्रणय लीला की थी। इसीलिए इसे वृन्दावन का नाम से जाना गया। 
चैतन्य महाप्रभु ने १५वीं शताब्दी में अपनी व्रजयात्रा के समय वृन्दावन तथा कृष्ण लीला से संबंधित अन्य स्थलों की पहचान अपनी दिव्यदृष्टि से की थी। इसके पश्चात शांडिल्य एवं भागुरी ऋषि के सहयोग से श्री वज्रनाभ ने यहां कहीं पर सरोवर ,कहीं पर कुण्ड और कहीं पर मन्दिरों का  नव -निर्माण करवाया। कालान्तर में श्रीकृष्ण की उक्त लीला स्थलियां  जब नष्ट होने लगीं तब महाप्रभु चैतन्य ने इन स्थलों का नवनिर्माण करवाकर इन्हें पुनः प्रकाश में लाया। आगे चलकर श्री सनातन गोस्वामी ,श्री रूप गोस्वामी ,श्री गोपाल भट्ट ,श्री रघुनाथ भट्ट ,श्री रघुनाथ गोस्वामी व श्री जीव गोस्वामी ने अथक प्रयास कर कृष्ण लीला स्थली को पुनः निर्मित करवाया। वर्तमान वृंदावन में स्थित मंदिरों का निर्माण राजा मान सिंह ने मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में किया था। मूलतः यह प्राचीन मंदिर पहले सात मंजिलों में था किन्तु औरंगजेब द्वारा ऊपर के दो मंजिल तुड़वा दिए जाने  के बाद पांच मंजिल ही शेष रह गया। कहा जाता है कि ऊपरी मंजिल पर जलता हुआ दीप मथुरा से स्पष्ट दिखायी पड़ता है। यहां के अन्य प्राचीनतम मन्दिर रंग जी का मंदिर है जिसे रंगमहल के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर दक्षिण की स्थापत्य शैली में बनाया गया था। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

नन्द गाँव ,बरसाना ,गोवर्धन और राधाकुण्ड सभी दर्शनीय स्थल एक दुसरे के सन्निकट स्थित हैं। नन्द गाँव में ही बाबा नन्द एवं माता यशोदा ने श्रीकृष्ण का लालन- पालन किया था। यह गाँव नन्दीश्वर पहाड़ी पर बसा हुआ है। कहा जाता है कि ऋषि तांडल ने कंस को यह शाप दे दिया था कि यदि तुम्हारा कोई भी दूत नन्दीश्वर पहाड़ी पर जायेगा तो वह तत्काल वहीं पर पत्थर बन जायेगा। अतः कंस के अत्याचार एवं दमनकारी नीति से बचने के लिए बाबा नन्द ने नन्दीश्वर पहाड़ी का आश्रय लिया था। नन्द बाबा के साथ अन्य लोग भी यहां बसते गए और पूरा गाँव बस गया। नन्द गाँव के निकट ही उद्धव वन है। नन्द गाँव में जहां कभी नन्द जी का महल था अब वहां पर श्रीकृष्णजी व बलराम का  भव्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए ६५ सीढियाँ पार करनी पड़ती हैं। 
बरसाना राधा जी की जन्म भूमि है। राधा महाराज वृषभानु की पुत्री थीं। नन्द गाँव से बरसाना ७-८ किलोमीटर दूर है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण जब नन्द गाँव स्थित कदम्ब के पेड़ पर चढ़कर अपनी वंशी  बजाय करते थे तो उस वंशी की धुन सुनकर राधा मोहित होकर उनके पास दौड़ी चली आती थीं। इस प्रकार राधा और कृष्ण के अमर प्रेम  के कारण  बरसाने को विश्व में प्रेमस्थल के रूप में जाना जाता है। गोवर्धन पर्वत बरसाना से २० किलोमीटर दूर है। इसे पर्वतराज की संज्ञा दी जाती है। प्रत्येक महीने की अमावस्या एवं पूर्णिमा की तिथि पर श्रद्धालु गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करते हैं। इस परिक्रमा मार्ग में गोवर्धन पर्वत के अवशेषों के साथ साथ कुसुम सरोवर ,राधाकुण्ड ,कृष्ण सरोवर ,मानसी गंगा सरोवर और मानसी गंगा स्थित हैं।  कुल मिलाकरगोवर्धन क्षेत्र की सात कोस की परिक्रमा की जाती है और पूरे मार्ग में भक्त राधे राधे और गोवर्धन महराज की जय का उदघोष करते रहते हैं। परिक्रमा नंगे पैर तथा साथ में दंडवत ,दूध की धार में लेटकर अथवा रिक्शे से सुविधानुसार की जाती है। परिक्रमा के दो मार्ग हैं ,पहली बड़ी परिक्रमा १२ किलोमीटर की दानघाटी से प्रारम्भ होकर मंदिर से थोड़ा आगे समाप्त होती है तो दूसरी परिक्रमा ९ किलोमीटर  की है।  जहाँ बड़ी परिक्रमा समाप्त होती है उसके सामने के रास्ते से शुरू होकर बस स्टैण्ड के पास होते हुए दानघाटी पर समाप्त होती है।  गोवर्धन के संबंध में एक विचित्र कथा है कि पहले व्रजवासी सुख समृद्धि के लिए इन्द्र की पूजा किया करते थे।  ग्वालबालों ने एक बार इंद्र की पूजा के स्थान पर कृष्ण की पूजा कर डाली जिससे इंद्र बहुत ही क्रोधित हो गए और उन्होंने सम्पूर्ण व्रजमण्डल में तेज बारिश कर दी। तेज आंधी  और वर्षा से प्रभावित हो व्रजमण्डल त्राहि त्राहि करने लगा। व्रजवासियों की यह दशा देखकर श्रीकृष्ण ने अपनी ऊँगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर समस्त ग्रामवासियों को उसके नीचे आश्रय दिया और उनके प्राणों की रक्षा की। इससे इन्द्र और अधिक कुपित होकर लगातार सात दिनों तक बारिश करते रहे और कृष्ण ने भी सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत को ऊँगली पर ही उठाये रखा था।  अन्ततः इन्द्र का अभिमान टूट गया और अपने  इस कृत्य के लिए उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। 
गोवर्धन से ६ किलोमीटर दूरी पर राधा कुण्ड स्थित है और उसी के निकट कृष्ण कुण्ड भी स्थित है। इस कुण्ड के बारे में कहा जाता है कि वृषासुर नामक एक मायावी राक्षस जब अपनी सींग से वहां की पहाड़ियों को खोदने लगा तथा अपने खुर से पृथ्वी को खुरचने लगा था तब श्रीकृष्ण ने उससे युद्ध कर उसका वध कर दिया था। इस बैल रुपी राक्षस की हत्या के पाप से मुक्ति के लिए राधा ने उनके पाप निवारणार्थ सभी तीर्थों की नदियों के जल में स्नान करने का सुझाव कृष्ण को दिया। तभी कृष्ण ने वहां पर दो अलग अलग कुण्ड स्थापित किया और समस्त नदियां स्वयं आकर उसमें अपना जल डाल दीं। जिस कुण्ड में राधा जी ने स्नान किया वह राधाकुण्ड एवं जिसमें कृष्ण जी ने स्नान किया वह कृष्ण कुण्ड के नाम से जाना जाने लगा !ऐसी मान्यता है कि इन कुंडों में स्नान करने से समस्त तीर्थों में स्नान करने का फल भक्तों को प्राप्त होता है। 
वृन्दावन के प्राचीन मंदिरों में बांकेबिहारी तथा राधा -माधव का मंदिर प्रमुख हैं। इन मंदिरों में राधा व कृष्ण की मूर्तियां स्थापित हैं। बांके बिहारी मंदिर का निर्माण स्वामी हरिदास ने किया था। यहीं पर कृष्ण -बलराम का एक भव्य मंदिर विदेशी पर्यटकों द्वारा बनवाया गया है। इसके अतिरिक्त जानकीवल्ल्भ मंदिर ,श्रीगोविन्द मंदिर ,रंगमन्दिर ,कांच का मंदिर ,राधा -गोविन्द मंदिर ,राधा श्याम मंदिर ,गोपेश्वर मंदिर ,युगल किशोर मंदिर ,मदनमोहन मंदिर ,मानस मंदिर ,अक्रूर मंदिर ,मीराबाई का मंदिर ,रसिक बिहारी मंदिर ,गोर दाऊ का मंदिर व अष्ट सखी मंदिर वृन्दावन के आकर्षण के प्रमुख केन्द्र हैं। निकटवर्ती धार्मिक स्थलों में श्रृंगार वन ,सेवा कुञ्ज ,चीरघाट ,रास मंडल ,वंशीवट ,वेणुकूप ,राधा बाग ,निधिवन ,द्वादश आदित्य टीला व कालियादह आदि प्रमुख हैं।  यहां पर ठहरने के लिए अनेकों धर्मशालाएं व आश्रमों में समुचित व्यवस्था उयलब्ध है। यहां स्थित होटलों में भी खान -पान व ठहरने की उत्कृष्ट व्यवस्था उपलब्ध है। प्रतिवर्ष देश एवं विदेश से लाखों पर्यटक एवं तीर्थयात्री यहाँ दर्शनार्थ आते रहते हैं। 

2 comments:

  1. धन्यवाद, बहुत अच्छा काम कर रहे हैं आप...

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  2. धन्यवाद, बहुत अच्छा काम कर रहे हैं आप...

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