हिन्दू धर्म में गया एक ऐसा पवित्र तीर्थस्थल है जहां पर श्रद्धालुओं द्वारा अपने पितरों की दिवंगत आत्मा की शांति एवं मुक्ति के लिए पिंडदान अथवा तर्पण क्रिया की जाती है। वैसे तो भारतवर्ष में अनेकों ऐसे तीर्थस्थल एवं पवित्र नदियां हैं जिनके किनारे पितरों को पिण्डदान दिया जाता है ,किन्तु गया में आकर पितरों को पिण्डदान दिया जाना सर्वोत्कृष्ट माना जाता है। इसीलिए प्रत्येक वर्ष क्वार माह के पितृ पक्ष में भारत के समस्त प्रांतों से लोग यहां आकर गया स्थित प्रेत शिला पर पिण्डदान देकर अपने पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति अथवा उद्धार की कामना किया करते हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान राम ,भीष्म पितामह ,युधिष्ठिर तथा भगवान श्रीकृष्ण ने अपने पितरों की आत्मा की मुक्ति हेतु यहां आकर पिण्डदान क्रिया सम्पन्न किये थे।
भौगोलिक स्थिति :-
भारतवर्ष के बिहार प्रान्त में झारखंड एवं बिहार की सीमा पर गंगा की सहायक नदी फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर बसा हुआ गया एक अत्यन्त प्राचीन नगर है। यह बोधगया से १२ किलोमीटर तथा पटना शहर से १०० किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। गर्मी के दिनों में यहां पर अत्यधिक गर्मी पड़ती है और ठंड के दिनों औसत ठंड पड़ती है। यहां पर सामान्य वर्षा होती है। बिहार एवं झारखण्ड राज्य का एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा गया में ही स्थित है। यहां स्थित गया रेलवे जंक्सन बिहार का दूसरा बड़ा स्टेशन है। गया से पटना कोलकत्ता ,पुरी ,बनारस ,चेन्नई ,मुंबई नईदिल्ली ,नागपुर एवं गुवाहाटी आदि स्टेशनों के लिए सीधी ट्रेन उपलब्ध हैं। गया राजधानी पटना और राजगीर ,रांची ,बनारस आदि शहरों के लिए बसें जाती हैं। यहां गांधी मैदान बस स्टैण्ड फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है और यहां से बोधगया के लिए प्रतिदिन बसें जाती हैं।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
प्रसिद्ध तीर्थस्थल गया के नामकरण के सन्दर्भ में वायुपुराण में स्पष्ट बताया गया है कि गयासुर नामक शक्तिशाली एवं धार्मिक व्यक्ति जब ऋषि शुक्राचार्य से समस्त विद्याएँ सीखने के पश्चात भगवान विष्णु की घोर तपस्या की थी, तब तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे यह वरदान दिया था कि जो व्यक्ति तुम्हारा दर्शन करेगा वह सीधे स्वर्गलोक चला जायेगा। इस प्रकार के वरदान से भयाक्रान्त यमराज अन्य देवताओं एवं ब्रह्मा जी के साथ भगवान विष्णु के पास आये और गयासुर को दिए गए वरदान को निष्क्रिय करने की प्रार्थना की। विष्णु जी ने उनका आदर करते हुए कहा कि यदि ब्रह्मा जी स्वयं गयासुर के शरीर पर यज्ञ करें तो गयासुर को दिए गए वरदान को निष्क्रिय किया जा सकता है। ब्रह्मा जी द्वारा यज्ञ करने के पश्चात भी जब गयासुर जीवित बचा रहा तब भगवान विष्णु ने गयासुर के शिर पर एक धर्मशिला स्थापित कर उसपर अपने पांव रखते हुए अपनी गदा से उसपर प्रहार किया और गयासुर को जीवनमुक्ति प्रदान की। अपनी मृत्यु से पूर्व गयासुर ने भगवान विष्णु से यह प्रार्थना की कि उसे यह वरदान दें कि वह यहां पर उस शिला के रूप में सदैव वास करें तथा समस्त देवता भी इसी शिला पर विदयमान रहें और इस स्थल को उसके नाम से जाना जाये। जो व्यक्ति यहां आकर इस शिला पर पितरों का पिंडदान करें उसके पितर नरकलोक और प्रेतयोनि से मुक्त होकर सीधे स्वर्ग लोक चले जाएँ। गयासुर की अंतिम इच्छा का समादर करते हुए भगवान विष्णु ने तथास्तु कहकर उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। तभी से इस स्थल का नाम गयासुर पड़ गया।
उपरोक्त सन्दर्भ में ही एक अन्य कथा के अनुसार विशालपुरी के विशाल नामक राजा के कोई सन्तान न होने से दुःखी होकर गया आये और यहां पर अपने पितरों की आत्मा की शांति हेतु पिण्डदान किया था। पिण्डदान प्राप्त कर उनके पितर अत्यधिक प्रसन्न हुए और राजा विशाल को यह आशीर्वाद दिया कि शीघ्र ही तुम सन्तान की प्राप्ति करोगे। कुछ दिनों बाद विशाल के घर सचमुच एक पुत्र ने जन्म लिया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम ने भी गया आकर अपने पिता राजा दशरथ को जब पिण्डदान दे रहे थे तब दशरथ ने अपने हाथ फैलाकर उस पिण्डदान को ग्रहण करने की चेष्टा की थी किन्तु पिण्डदान उनके हाथ पर न गिरकर रूद्रशिला पर गिर गया था। रूद्रशिला पर पिण्डदान पड़ने से दशरथ की आत्मा सीधे स्वर्ग की ओर यह कहते हुए प्रस्थान की कि पुत्र तुमने अच्छा ही किया जो पिण्डदान मेरे हाथ पर नहीं दिया अन्यथा मैं मुक्त न हो पाता। भगवान श्रीकृष्ण ,भीष्म पितामह ,युधिष्ठिर आदि महापुरुषों ने भी गया आकर अपने पितरों को पिण्डदान दिया था।
गया का उल्लेख महाकाव्य रामायण में भी मिलता है। गया मौर्यकाल में एक महत्वपूर्ण नगर माना जाता था। खुदाई के दौरान सम्राट अशोक से संबंधित आदेशपत्र यहां प्राप्त हुआ था। मध्यकाल में यह मुगल सम्राटों के अधीन था। मुगल शासन के उपरांत गया पर अनेक क्षेत्रीय राजाओं ने शासन किया था। सन् १७८७ ई ० में होल्कर वंश की महारानी अहिल्याबाई ने यहां पर विष्णुपद मंदिर का निर्माण करवाया था। दंत कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु के पाँव के निशान पर इस मन्दिर का निर्माण करवाया गया था।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
गया में मुख्य रूप से फल्गु नदी के किनारे विष्णुवद मन्दिर में भगवान विष्णु के चरण चिह्न एक शिला पर स्थापित किया गया है और इसके मुख्य द्वार पर श्रीहनुमान जी की विशाल मूर्ति स्थित है। यह मन्दिर ३० मीटर ऊँचा है तथा इसमें आठ खम्भे निर्मित हैं और इन खम्भों पर चांदी की परत चढ़ायी गई है। मंदिर के गर्भ गृह में भगवान विष्णु के ४० सेंटीमीटर लम्बे पांव के निशान दिखलायी पड़ते हैं। इस मंदिर का नवनिर्माण महारानी अहिल्याबाई ने सन् १७८७ ई ० में करवाया था। पितृपक्ष में यहां बहुत अधिक भीड़ देखने को मिलती है। इस मन्दिर के निकट ही सूर्यमन्दिर व सूर्यकुण्ड स्थित हैं। गया शहर के चरों ओर मनमोहक पर्वत चोटियों के दर्शन होते हैं और इन्हीं पहाड़ियों मध्य ब्रह्मयोनि ,रामशिला तथा प्रेतशिला स्थित हैं। गया में जामा मस्जिद जो बिहार की सबसे बड़ी मस्जिद है ,भी स्थित है। यह मस्जिद लगभग २०० वर्ष पुरानी है तथा इसमें हजारों लोग एक साथ नमाज अदा कर सकते हैं। गया से १० किलोमीटर की दूरी पर विथोशरीफ इस्लाम धर्म का एक अन्य धार्मिक स्थल स्थित है।
गया से २० किलोमीटर उत्तर और बेलागंज से १० किलोमीटर पूर्व में बानावर की पहाड़ियाँ हैं तथा इसके ऊपर भगवान शिव का एक प्राचीन मन्दिर बना हुआ है। सावन के महीने में हजारों श्रद्धालु यहां पर भगवान शिव को जलाभिषेक करते हैं। कहा जाता है कि इस मंदिर को बाणासुर ने बनवाया था और सम्राट अशोक ने इसकी मरम्मत करवायी थी। इसी के नीचे सतघरवा गुफा स्थित है। गया से २५ किलोमीटर पूरब में स्थित चोबार गाँव में भी भगवान शिव का एक विशाल मन्दिर निर्मित है। इस मंदिर की यह विशेषता है कि इसमें भगवान शिव का कितना ही जलाभिषेक क्यों न किया जाये किन्तु उसके जल का कहीं पता नहीं चल पाता। वैज्ञानिकों द्वारा परीक्षण करने पर भी यह आज तक रहस्य ही बना हुआ है। गया में ही कोटेश्वर नाथ जी का एक प्राचीन शिव मंदिर मोरहर नदी के किनारे पर स्थित है। यहां प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के पर्व पर मेले का आयोजन किया जाता है। यहां तक पहुँचने हेतु गया से ३० किलोमीटर उत्तर पटना -गया मार्ग पर स्थित मखदुमपुर से पाइपगहा समसारा होते हुए यात्रा करनी पड़ती है। गया से पाईपगहा के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है।
गया स्थित ब्रह्मयोनि पहाड़ी पर चढ़ने हेतु ४४० सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं और तब शिखर पर भगवान शिव के दर्शन करने पड़ते हैं। एक विशाल बरगद के नीचे बने इस मन्दिर में पिण्डदान किया जाता है। इस मंदिर का उल्लेख रामायण में भी किया गया है। कहा जाता है कि फल्गु नदी पहले इसी पहाड़ी के ऊपर से बहतीं थी किन्तु देवी सीता के शाप के कारण अब यह नदी पहाड़ी के नीचे की ओर से बहती हैं। यह पहाड़ी हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थल माना जाता है। यहां से थोड़ी दूरी पर मंगला गौरी का मां शक्ति को समर्पित प्रसिद्ध मंदिर स्थित है जो १८ महाशक्तिपीठों में से एक है। यहां पूजा अर्चना करने पर श्रद्धालुओं की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इसके परिवेश में ही मां काली ,गणेश ,हनुमान तथा भगवान शिव के मंदिर भी स्थित हैं। गया स्थित पुनपुन नदी में पहला पिण्डदान दिया जाता है। यहां के अन्य धार्मिक स्थलों में पितृहार्या महादेव मंदिर ,राम लक्ष्मण मंदिर ,दुःख हरनी देवी ,कामवाली देवी एवं उत्तर मानस आदि प्रमुख हैं।
गया में विष्णु पदयोनि एवं ब्रह्मशिला के मध्य एक प्राचीन अक्षयवट स्थित है जिसके बारे में कहा जाता है कि इस वृक्ष की सत्यभाषिता से प्रसन्न होकर सीता जी ने इसे अक्षयवट होने का वरदान दिया था। बताया जाता है कि यह वृक्ष त्रेतायुग से अबतक उसी रूप में यहां स्थित है। इस अक्षयवट के नीचे अंतिम पिण्डदान दिया जाता है। यहीं पर स्थित प्रेतशिला पर पिण्डदान देने से पितरों की प्रेतयोनि से उद्धार हो जाता है ,ऐसी मान्यता बतायी जाती है।