गंगोत्री की भाँति यमुनोत्री भी हिन्दू धर्म का एक ऐसा पवित्र तीर्थस्थल है जो धार्मिक आस्था के साथ साथ अपने अनुपम प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए भी जाना जाता है। यद्यपि यहां स्थित प्राचीन मन्दिर भूकम्प के प्रभाव से नष्ट हो चुके हैं किन्तु इसका अस्तित्व बनाये रखने हेतु इसका पुनर्निर्माण कराया गया। यहां का मुख्य मन्दिर यमुना देवी का मन्दिर है। यह चारों धामों में से प्रथम धाम कहा जाने वाला पावन धर्मस्थल है और यहीं से एक किलोमीटर ऊपर कालिन्दी पर्वत समूह से यमुना नदी निकली हुई हैं।
भौगोलिक स्थिति :-
उत्तराखण्ड राज्य में उत्तरकाशी जिले में स्थित यह पावन स्थल समुद्रतल से १०००० फुट की ऊँचाई पर गढ़वाल मण्डल की हिमालय श्रृंखलाओं में स्थित है। चूँकि कालिन्दी पर्वत श्रृंखलायें एक दुर्गम क्षेत्र है अतः यहां तक पहुँचना प्रायः दुष्कर होता है। ऋषिकेश से २ किलोमीटर दूर मुनि की रेती से एक मार्ग गंगोत्री एवं यमुनोत्री के लिए जाता है और मार्ग दूसरा बद्रीनाथ एवं केदारनाथ के लिए जाता है। टिहरी से मुख्यतः तीन मार्ग निकलते हैं प्रथम मार्ग देवप्रयाग की ओर, द्वितीय मार्ग उत्तरकाशी की ओर एवं तृतीय मार्ग श्रीनगर की ओर निकलता है।टिहरी से ३७ किलोमीटर की दूरी पर धरासू से एक मार्ग उत्तरकाशी होते हुए गंगोत्री के लिए जाता है और दूसरा मार्ग हनुमान चट्टी होते हुए यमुनोत्री की ओर जाता है। धरासू से २४ किलोमीटर दूरी पर स्यानचट्टी गांव है जो घने जंगल के मध्य बसा हुआ है। स्यानचट्टी से ५ किलोमीटर की दूरी पर हनुमानचट्टी है। मोटर मार्ग यहीं पर समाप्त हो जाता है अतः ७ किलोमीटर पैदल चलकर जमनाबाई कुण्ड होते हुए आगे ६ किलोमीटर की यात्रा पैदल चलकर यमुनोत्री तक पहुंचा जा सकता है जबकि हल्के वाहनों से जानकीचट्टी तक ही पहुंचा जा सकता है। यमुनोत्री मन्दिर ३२३५ मीटर की ऊँचाई पर स्थित है जिसके प्रांगण में एक विशाल शिला स्तम्भ जिसे दिव्यशिला के नाम से जाना जाता है ,स्थित है।प्रत्येक वर्ष मई से अक्टूबर के मध्य यहां दर्शनार्थ यात्री आते हैं। यमुनोत्री तक पहुँचने के लिए ऋषिकेश १५ मील ,रिष्कष से देवप्रयाग ४४ मील देवप्रयाग से खरसोला १० मील ,खरसोला से टेहरी २४ मील ,टेहरी से धरासू २४ मील ,धरासू से डंडलगांव १७ मील ,डंडलगांव से गंगैनी ४ मील ,गंगैनी से हनुमानचट्टी १५ मील हनुमानचट्टी से यमुनोत्री ८ मील अर्थात कुल १६२ मील चलकर यहां तक पहुंचा जा सकता है।
पौराणिक साक्ष्य :-
यमुनोत्री तीर्थस्थली यमुना नदी के उदगम स्थल से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जो गढ़वाल हिमालय के पश्चिमी भाग में पड़ता है। यमुनोत्री का उदगम स्थल प्रायः हिमाच्छादित रहता है। यहां पर एक झील और हिमनद चंपासर ग्लेशियर समुद्रतल से ४४२१ मीटर की ऊँचाई पर कालिंदी पर्वत पर स्थित है। यहां स्थित मन्दिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के राजा प्रतापशाह द्वारा कराया गया था। पौराणिक आख्यानों के अनुसार असित मुनि की पर्णकुटी इसी स्थान पर थी। अत्यधिक वृद्धावस्था में जब असित मुनि निकटवर्ती सप्तऋषि कुंड सरोवर में स्नान करने में अस्मर्थ हो गए थे तब उनकी अपार श्रद्धा के कारण यमुना जी यहां स्वयं प्रकट हो गईं थीं और उन्हें स्नान करने का अवसर प्रदान किया था। यह स्थान सम्प्रति यमुनोत्री के नाम से जाना जाता है। यमुनोत्री में गर्म पानी के कई कुण्ड हैं जिनके गर्म पानी में कपड़े में बंधा हुआ आलू व चावल आदि खाद्य सामग्री को पकाया जाता है। इसी पके हुए प्रसाद को मंदिर में चढ़ाया जाता है और इसे ही श्रद्धालुगण अपने घर ले जाते हैं। माह मई -जून में अपेक्षाकृत यहां पर अधिक भीड़ देखने को मिलती है। अतः प्रकृति के वरदान स्वरूप एक तरफ यमुनोत्री की शीतलधारा और दूसरी तरफ गर्म जल के कुण्ड को देखकर श्रद्धालु आश्चर्यचकित हो जाते हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल :-
यमुना देवी के मन्दिर तक चढ़ाई का मार्ग अत्यधिक दुर्गम व रोमांचकारी है। चढ़ाई के समय आस पास की पर्वतीय चोटियों एवं घने जंगल की हरियाली मन को सहज ही आकर्षित कर लेती हैं। ऋषिकेश से सड़क मार्ग द्वारा २२० किलोमीटर की दूरी तय करके यमुनोत्री तक पहुंचा जा सकता है। यहां पर चढ़ाई के लिए तीर्थयात्रियों को कुली एवं किराए की पालकी आसानी से मिल जाती हैं। मुख्य मंदिर के आस पास कई अन्य मंदिर भी बने हुए हैं। मंदिर के पास ही स्नान के लिए गर्म जल के सोते एवं कुण्ड उपलब्ध हैं। इन कुण्डों में सूर्यकुण्ड सर्वप्रमुख कुण्ड है। यमुनोत्री का मुख्य मन्दिर मां यमुना को समर्पित है। अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर यमुनोत्री का कपाट खुलता है और दीपावली के पर्व पर कपाट बन्द हो जाता है। सूर्यकुण्ड के निकट ही एक शिला दिव्यशिला के नाम से स्थित है। मां यमुना के दर्शन एवं पूजन के पूर्व इस शिला का भी पूजन किया जाता है।
यमुनोत्री धाम में गर्मी की ऋतु में दिन का अधिकतम तापमान २० सेंटीग्रेड होने के कारण मौसम सुहाना और रात्रि में न्यूनतम तापमान ०६ सेंटीग्रेड होने के कारण अपेक्षाकृत सर्दी पड़ती है। यात्रियों को ठहरने व विश्राम के लिए कई धर्मशालाएं व निजी विश्रामगृह यहां पर उपलब्ध हैं। यहां पर हिन्दी ,अंग्रेजी एवं गढ़वाली भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं। तीर्थयात्रा का उपयुक्त समय अप्रैल से नवंबर का महीना माना जाता है। दिसंबर से मार्च तक यहां का पूरा क्षेत्र हिमाच्छादित रहता है।
यमुनोत्री की यात्रा हेतु देहरादून स्थित जौलीग्रांट निकटतम हवाई अड्डा है। सड़कमार्ग द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 1 ए होकर २१० किलोमीटर चलकर यमुनोत्री तक पहुंचा जा सकता है। रेलमार्ग द्वारा निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जहां से २३१ किलोमीटर मार्ग संख्या 1 ए पर चलकर टैक्सी अथवा निजी कार से यहां पहुंचा जा सकता है। ऋषिकेश से बस अथवा टैक्सी द्वारा नरेंद्रनगर होते हुए २२८ किलोमीटर यात्रा करके फूलचट्टी तक पहुंचकर आगे की ८ किलोमीटर की यात्रा पैदल चढ़ाई चढ़कर सम्पन्न की जाती है। मार्ग संख्या २ ए द्वारा हरिद्वार से ऋषिकेश होते हुए फूलचट्टी तक २५२ किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है। फूलचट्टी से ८ किलोमीटर पैदल चढ़ाई चढ़कर यमुनोत्री के दर्शन किये जा सकते हैं। मार्ग पर आस पास गगनचुम्बी मनमोहक बर्फीली चोटियों के दर्शन होते हैं।