अमरनाथ धाम हिन्दुओं का एक ऐसा तीर्थस्थल है जिसे हिमालय की गोद में हिन्दू- धर्म के उच्च शिखर पर फहरा रही धर्म- पताका के रूप में जाना जाता है !यद्यपि बाबा अमरनाथ की यात्रा बहुत ही कठिन एवं दुर्गम है फिर भी प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालुओं इस हिम निर्मित प्राकृतिक शिवलिंग जिसे अमरनाथ के नाम से जाना जाता है ,के दर्शन हेतु पहुँचने की तत्परता एवं स्पर्धा में निरन्तर वृद्धि होती जा रही है।
भौगोलिक स्थिति :-
हिन्दुओं का प्रमुख तीर्थस्थल अमरनाथ धाम जम्मू एवं कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर पूर्व में समुद्र तल १३६०० फुट की ऊँचाई पर एक पवित्र गुफा में स्थित है !यह गुफा लगभग ६० फुट लम्बी ,३० फुट चौड़ी एवं ५ फुट ऊंची है !यह पवित्र गुफा चारों ओर से हिमाच्छादित है !गुफा के भीतर हिम से निर्मित एक विशाल शिवलिंग दृष्टिगत होता है। इसी गुफा में सफेद कबूतरों का एक जोड़ा कभी कभी दिखाई पड़ता था। यहां दृष्टिगत शिवलिंग को हिमानी स्वम्भू शिवलिंग भी कहा जाता है। अमरनाथ की यात्रा आषाढ़ पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर पूरे सावन महीने तक की जाती है क्योंकि इस समय यात्रा के लिए मौसम अनुकूल होता है !अमरनाथ गुफा की सम्पूर्ण परिधि १५० फुट है और गुफा के भीतर जलकण हमेशा टपकते रहते हैं। इन्हीं टपकती हुई बूंदों की सतत क्रिया से प्राकृतिक शिव लिंग का स्वतः निर्माण होता है। प्राकृतिक शिवलिंग १० फुट लम्बा एवं ४-५ फुट चौड़ा दृष्टिगत होता है। यद्यपि प्रत्येक वर्ष आकार में किंचित परिवर्तन अवश्य होता रहता है क्योंकि चन्द्रमा के आकार के घटने -बढ़ने के साथ ही साथ इसका आकार भी घटता -बढ़ता रहता है !श्रावण पूर्णिमा के दिन यह शिवलिंग अपने पूर्णाकार में देखा जा सकता है !अतः श्रावण पूर्णिमा के पहले ही श्रद्धालु अमरनाथ की यात्रा हेतु पंजीकरण करा लेते हैं !
पौराणिक साक्ष्य :-
ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव अपने हिमालय प्रवास के दौरान इसी गुफा में तपस्या की थी और इसी स्थल पर माता पार्वती को अमरकथा सुनाई थी। कथा सुनाते समय सफेद कबूतर का एक जोडे ने गुफा में कहीं एकांत छिपकर अमरकथा का श्रवण कर लिया था। इसी कथाश्रवण के प्रभाव से शुकदेव ऋषि अमर हो गए थे। अमरनाथ गुफा में यदि कोई श्रद्धालु इन सफेद कबूतरों का दर्शन संयोगवश कर लेता है तो वह उसे साक्षात भगवान शिव एवं पार्वती का दर्शन मानकर वह अपने को धन्य मान लेता है।
कुछ विद्वानों का यह भी अभिमत है कि भगवान शिव जब माँ पार्वती को अमरकथा सुनाने हेतु इस गुफा की ओर प्रस्थान कर रहे थे तो उन्होंने अपने शरीर पर लिपटे हुए नागों में से कुछ को अनंतनाग में ,मस्तक पर स्थित चन्दन को चंदनबाड़ी में ,अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले में लिपटे हुए शेषनाग को शेषनाग स्थल पर छोड़ दिया था। इसी कारण इनके नाम से ही इन स्थलों का नामकरण कर दिया गया। अमरनाथ यात्रा के दौरान उक्त स्थान आज भी उसी रूप में विद्यमान हैं। सोलहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में एक मुसलमान चरवाहे ने सर्वप्रथम इस प्राकृतिक शिवलिंग का दर्शन किया था और उसके द्वारा ही अन्य स्थानीय लोगों को इस संबन्ध में बताया गया था तभी से बाबा अमरनाथ के प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन की परम्परा आरम्भ हुई जो आजतक यथावत श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्रबिन्दु बना हुआ है।
अमरनाथ यात्रा :-
अमरनाथ गुफा तक पहुँचने के लिए सम्प्रति दो मार्ग उपलब्ध हैं। प्रथम मार्ग पहलगाम होकर और द्वितीय मार्ग सोनमर्ग /बलटाल होकर। इन दोनों स्थानों से सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। पहलगाम से यात्रा आरम्भ करना अपेक्षाकृत सरल व आरामदायक माना जाता है। रोमांच एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रेमी लोग इसी मार्ग का चयन करते हैं। यद्यपि अमरनाथ की यात्रा काफी कठिन और उसके मार्ग अत्यधिक दुर्गम हैं ,फिरभी श्रद्धालुओं की आस्था उन्हें वहां तक निर्विघ्न पहुंचा ही देती है। अमरनाथ गुफा आसपास का तापमान शून्य डिग्री से काफी नीचे होता है। इसीलिये उपयुक्त यात्रा का समय माह अगस्त माना गया है। पठानकोट से आगे की यात्रा करने पर सर्वप्रथम चक्की नदी का पुल और रावी का लहराता हुआ दरिया मिलता है। जम्मू शहर से ३१५ किलोमीटर की दूरी पर पहलगाम स्थित है जहाँ से अमरनाथ गुफा के लिए यात्रा प्रारम्भ होती है !यहांतक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग से बस द्वारा अथवा निजी वाहन से पहुंचा जा सकता है। पहलगाम प्रसिद्ध पर्यटक स्थल भी है। अतः यहां से चारों ओर हिमाच्छादित चोटियों के मध्य स्थित घाटियों के दर्शन होते हैं। पहलगाम में धर्मशालाएं ,होटल एवं जम्मू सरकार की ओर से लंगर आदि की व्यवस्था उपलब्ध है। अमरनाथ गुफा की ओर यहीं से पैदल यात्रा आरम्भ की जाती है। यात्रा का पहला पड़ाव चंदनवाड़ी पड़ता है जो पहलगाम से १६ किलोमीटर दूर है !यात्री यहां किञ्चित विश्राम करके आगे की ओर बढ़ते हैं !ठण्ड से बचने तथा थकान के
बाद यहां रात्रि विश्राम हेतु कैंप की व्यवस्था रहती है। चंदनवाड़ी से पिस्सूघाटी की ओर बढ़ने पर लिददर नदी के किनारे किनारे आसानी से चढ़ाई चढ़ ली जाती है किन्तु आगे की यात्रा अपेक्षाकृत कठिन हो जाती है। चंदनवाड़ी से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्द शेषनाग नामक दूसरा पड़ाव है। शेषनाग तक पहुँचने में श्रद्धालुओं को अपेक्षाकृत अधिक थकान का अनुभव होने लगता है। यहां पर पर्वतों के मध्य नीले पानी की एक झील है जिसकी लम्बाई लगभग डेढ़ किलोमीटर है। चूँकि भगवान शिव ने अमरकथा सुनाने के पूर्व यहींपर शेषनाग का परित्याग किया था अतः ऐसा माना जाता है कि इसी झील में शेषनाग निवास करने लगे। लोगों का यह भी कहना है कि २४ घंटे में एकबार वे जल से ऊपर उठकर दर्शन दे देते हैं। यात्री यहां रात्रि विश्राम करके तीसरे दिन की यात्रा को आगे बढ़ाते हैं। शेषनाग से अगला पड़ाव पंचतरणी है जो ८ किलोमीटर की दूरी पर है !यहांतक पहुँचने के लिए वैववेल टॉप एवं महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता है। महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का मार्ग स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। यहीं पर पांच छोटी छोटी नदियां बहती हैं इसीलिए इसे पंचतरणी कहते हैं। पंचतरणी चारों ओर से बर्फ से आच्छादित है। समुद्रतल से १३५०० फुट की ऊँचाई होने के कारण यहां का तापमान शून्य से काफी नीचे होता है फलस्वरूप बर्फीली हवाओं से अत्यधिक ठंड का अनुभव होने लगता है !यहां पर आक्सीजन की कमी का भी अनुभव होने लगता है !कुछ यात्री उसी दिन अमरनाथ गुफा पहुंचकर वापस पंचतरणी लौट आते हैं तथा कुछ लोग पंचतरणी में विश्राम करके अगले दिन अमरनाथ गुफा की ओर प्रस्थान करते हैं !इस यात्रा के दौरान मार्ग में बर्फ जमी हुई मिलती है !इस मार्ग से यात्रा करने में तीन दिन लगते हैं। दूसरा मार्ग बालटल होकर १४ किलोमीटर दूरी तय करके अमरनाथ गुफा तक पहुँच जा सकता है जिसमें दो दिन लग जाते है। किराये के घोड़े से जाने वाले श्रद्धालु उसी दिन वापस आ जाते हैं। बलटाल जम्मू से ४०० किलोमीटर दूर है। जम्मू से ऊधमपुर के रास्ते बस द्वारा भी पहुंचा जा सकता है किन्तु यह मार्ग जोखिम भरा है इसीलिए भारत सरकार इस मार्ग से यात्रा का उत्तरदायित्व यात्रियों पर छोड़ दिया है।
अमरनाथ यात्रा में भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु भाग लेते हैं। यहाँ पर अन्य तीर्थस्थानों की भांति पण्डे ,भिखारी एवं पुरोहितों की ठेकेदारी देखने को नहीं मिलती है। किसी प्रकार के मोलभाव अथवा धार्मिक आस्था पर प्रतिकूल असर डालने वाली परिस्थितियां यहां दृष्टिगत नहीं होती हैं। प्रत्येक पड़ाव पर आत्मीयता ,सेवाभाव व सहयोग का प्रदर्शन दृष्टिगत होता है। जलपान हेतु धार्मिक संस्थाओं के लंगर यहां पर उपलब्ध है।
अमरनाथ धाम को तीर्थों का तीर्थ माना जाता है ! इस यात्रा में स्वर्गारोहण का आनंद भक्तों को प्राप्त होता है !बृद्ध एवं बीमार व्यक्तियों को इस यात्रा हेतु किराये के घोड़े व पालकी आदि का सहारा ले लेना चाहिए एवं सर्दी से बचने हेतु पर्याप्त व्यवस्था करके ही यात्रा प्रारम्भ करनी चाहिए।
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