माँ काली ,माँ सरस्वती एवं माँ लक्ष्मी की समन्वित शक्ति स्वरूपा त्रिकुटा देवी जिन्हें माँ वैष्णवी के नाम से जाना जाता है ,का मन्दिर हिन्दू आस्था का एक ऐसा प्रतीक है जहाँ प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु माँ के जयकारे लगाते हुए दुर्गम पहार्डियों पर चढ़कर पहुंचते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु माँ के चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। इस स्थान को हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ की मान्यता दी जाती है। ऐसी मान्यता है कि कोई श्रद्धालु भक्त यदि सच्चे मन से माँ के दरबार में उपस्थित होता है तो उसकी सम्पूर्ण मनोकामनाएं स्वतः पूर्ण हो जाती हैं। त्रिकूट पर्वत पर एक गुफा में माँ वैष्णवी के मंदिर को हिन्दुओं की पवित्र आस्था के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। माँ वैष्णवी का मंदिर त्रिकूट पर्वत पर स्थित होने के कारण इसे अदभुत प्राकृतिक सौन्दर्य का भी केन्द्र माना जाता है।
भौगोलिक स्थिति :-
माँ वैष्णवी देवी का मंदिर जम्मू एवं कश्मीर राज्य के जम्मू जिले में जम्मू से ५० किलोमीटर दूर स्थित कटरा गावं जो अब कटरा शहर के नाम से जाना जाता है ,के समीप कटरा से १२ किलोमीटर दूर माणिक नामक पहाड़ी पर स्थित है। मन्दिर जिस गुफा में स्थित है वह गुफा ६० फिट लम्बी ,३० फिट चौड़ी एवं ५ फिट ऊंची है !इस गुफा के चारों ओर बर्फ से आच्छादित पहाड़ियां हैं।
माँ वैष्णों देवी की यात्रा का आरम्भ जम्मू से होता है। जम्मू तक आप हवाई जहाज ,रेल ,बस ,टैक्सी अथवा निजी वाहन से पहुँच सकते हैं। जम्मू ब्राड गेज लाइन से सम्बद्ध है। रेलवे स्टेशन ऊधमपुर से कटरा तक नये रेलमार्ग से ट्रेन द्वारा भी पहुँच सकते हैं। रेल द्वारा जम्मू पहुंचकर वहां से तक पहुंचा जा सकता है। रेल द्वारा जम्मू पहुंचकर यात्री बस के द्वारा केवल दो घण्टे में कटरा पहुँच जाता है। जम्मू से कटरा ५२ किलोमीटर की दूरी पर है। गर्मियों के समय जब श्रद्धालुओं की संख्या में अतिशय वृद्धि हो जाती है ,तब दिल्ली से जम्मू के लिए रेल विभाग द्वारा विशेष रेलगाडियां भी चलायी जाती हैं। जम्मू भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग १ ए पर स्थित है। उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से सीधे बस या टैक्सी द्वारा भी आप कटरा तक पहुँच सकते हैं। कटरा से १४ किलोमीटर खड़ी चढ़ाई पर माता वैष्णों देवी की पवित्र गुफा स्थित है और इससे ३ किलोमीटर दूरी पर भैरवनाथजी का मंदिर है। यात्री को कटरा से ही मां के दर्शन की निःशुल्क पर्ची निर्गत करवा लेनी चाहिए।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
माता वैष्णों देवी के संबन्ध में दो कथाएँ प्रचलित हैं। हिन्दू महाकाव्य के अनुसार माँ वैष्ण्वीदेवी भारत के दक्षिणी भाग में रत्नाकर सागर के घर में जन्म ली थीं। इस बालिका के जन्म से अत्यधिक प्रसन्न होकर इसके मातापिता ने बालिका की इच्छा का समादर करते हुए उसका लालन पालन उसी के अनुसार किया। देवी बालिका का नाम त्रिकुटा रखा गया। जब बालिका ९ वर्ष की थी तो उसने अपने पिता रत्नाकर सागर से समुद्र के किनारे तपस्या करने की अनुमति लेकर तपस्या प्रारम्भ कर दी। भगवान राम जब माँ सीता की खोज में समुद्रतट पर पहुंचे थे तभी उन्होंने वहां तपस्यारत बालिका त्रिकुटा को देखा तब भगवान राम उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की गुफा में बैठकर तपस्या करने का परामर्श उसे दिया था। त्रिकुटा ने इस आदेश का पालन करते हुए माणिक पहाड़ियों की एक गुफा में बैठकर तपस्या प्रारम्भ कर दी।
द्वितीय कथा माँ वैष्णों के परम भक्त श्रीधर से जुडी है जो वर्तमान कटरा से २ किलोमीटर दूर पर स्थित हँसली गांव में रहते थे। मान्यता है कि माँ ने एक बालिका के रूप में उन्हें स्वप्न-दर्शन दिया था और श्रीधर को गाँव में एक बड़ा भंडारा करने की प्रेरणा दी थी। माँ के आदेश पर श्रीधर ने समस्त ग्रामवासियों एवं आसपास के साधुसन्तों को भण्डारे में आने के लिए आमंत्रित किया। कहते हैं कि इसी भंडारे में श्रीधर ने भैरवनाथ को भी उनके शिष्यों सहित आमंत्रित कर लिया था। भैरवनाथ ने भंडारे में खीरपूरी की जगह मांस-मदिरा की मांग करने पर श्रीधर ने असहमति व्यक्त कर दी थी। पुनः भैरवनाथ के हठ करने पर अपने भक्त की इज्जत बचाये रखने हेतु माँ ने कन्या का रूप धारणकर भंडारे में उपस्थित हुईं और भैरवनाथ को समझा बुझाकर हठ छोड़ने की सलाह दी। भैरवनाथ ने अहंकार में कन्या की बात को अनसुना करके उसे पकड़कर सबक सिखाने का प्रयास किया। ऐसा देखकर कन्या त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और एक गुफा में छिपकर हनुमानजी से प्रार्थना करने लगी कि वे भैरवनाथ को नौ माह तक उससे द्वंदयुद्ध करके रोके रखें। भैरवनाथ से दूर भागते समय माता ने एक बाण भी चलाया था जिसके फलस्वरूप जल की एक धारा प्रकट हो गयी थी जिसे बाणगंगा के नाम से जाना गया। बाणगंगा के किनारे आज भी माता के पदचिह्न देखने को मिलता है। नौ माह तक माता ने गुफा में घोर तपस्या करके आध्यात्मिक ज्ञान और दैवी शक्तियां प्राप्त की और अंत में भैरवनाथ द्वारा तपस्या भंग करने के प्रयास सफल होने पर उन्होंने महकाली का रूप धारण करके उसका वध कर दिया।
अपनी मृत्यु के पूर्व भैरवनाथ ने माता की दैवीय शक्ति को पहचानते हुए यह आग्रह किया था कि वे उसे क्षमा कर दें। उसके आग्रह पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए उसे यह वरदान दिया कि तीर्थयात्री उनके दर्शन के पश्चात भैरवनाथ के दर्शन अवश्य करेंगे तभी उनको पुण्य की प्राप्ति होगी। वरदान देने के पश्चात माता ने तीन पिंडों से युक्त चट्टान का रूप धारण कर सदा के लिए ध्यानमग्न हो गयीं। श्रीधर पण्डित माँ की पास पहुंचकर विधिविधान से पिण्डों की पूजा अर्चना की जिससे प्रसन्न होकर माता प्रकट हुई और उन्हें अपनी पूजा के लिए अधिकृत कर दिया। तभी से श्रीधर व उनके वंशज आजतक माँ वैष्णों देवी पूजा करते आ रहे हैं।
वैष्णों देवी यात्रा के प्रमुख पड़ाव :-
माता वैष्णों देवी मन्दिर तक पहुँचने हेतु स्थानीय यात्रा कटरा से प्रारम्भ होती है। भारत के समस्त राज्यों से आये हुए श्रद्धालु यहां पर किंचित विश्राम करके पहाड़ियों की सीधी चढ़ाई जो लगभग १२ किलोमीटर है ,प्रारम्भ करते हैं। असमर्थ व्यक्ति व बच्चों को चढ़ाई के लिए पालकी ,पिट्ठू या किराये के घोड़े की व्यवस्था भी रहती है। यात्रा प्रारम्भ करते समय माता के दर्शन हेतु निःशुल्क यात्रा पर्ची निर्गत की जाती है जिसकी अवधि ६ घंटे होती है। उचित होगा कि पर्ची निर्गत होने के तुरन्त बाद चढ़ाई की यात्रा प्रारम्भ करना चाहिए। यात्रा पर्ची की प्रथम इन्ट्री बाणगंगा चेकप्वाइंट पर होती है और यहीं पर सामान आदि की चेकिंग की जाती है, ततपश्चात आगे की चढ़ाई प्रारम्भ कर सकते हैं। यदि पर्ची निर्गत होने के ६ घंटे तक चेकपोस्ट पर इंट्री नहीं करा पाये तो यात्रा पर्ची स्वतः निरस्त मान ली जाती है और पुनः यात्रा पर्ची निर्गत कराना पड़ता है।
यहां पर भगवती वैष्णों मां के दर्शन तीन भव्य पिण्डियों के रूप में होते हैं जो क्रमशः महाकाली ,महालक्ष्मी एवम महासरस्वती के दर्शन माने जाते हैं। प्रातः एवम सायंकाल दोनों समय पिण्डियों का स्नान ,श्रृंगार पूजन तथा आरती की जाती है। इन तीनों देवियों ने समय समय पर अवतार लेकर दुष्टों का संहार किया है।
यात्रा के दौरान जगह जगह पर विश्रामस्थल व जलपान आदि की व्यवस्था रहती है। जगह जगह पर क्लार्क रूम की सुविधा भी उपलब्ध रहती है जिसमें आप अपना सामान निर्धारित शुल्क पर सुरक्षित रखकर आगे की यात्रा को सरल व सुगम बना सकते हैं। कम समय में आरामदायक यात्रा हेतु हेलीकाप्टर सुविधा भी उपलब्ध है। इसके लिए ७००रुपये से १०००रुपये तक खर्च करके कटरा से सांझीछत तक हेलीकाप्टर से पहुँच सकते हैं। अर्धक्वाँरी से मंदिर तक की चढ़ाई हेतु बैटरीकार सेवा भी प्रारम्भ हो चुकी है। छोटे बच्चों एवं वृद्ध व्यक्तियों को मंदिर तक चढ़ाने हेतु स्थानीय व्यक्ति भी निर्धारित शुल्क पर उपलब्ध रहते हैं।
विश्रामस्थल :-
माँ के मन्दिर तक पहुँचने वाले यात्रियों के लिए जम्मू ,कटरा भवन के निकटवर्ती स्थानों पर माँ वैष्णों देवी श्राइनबोर्ड की कई धर्मशालाएं व होटल भी हैं जिनमें ठहरकर यात्रा की थकान मिटाकर आगे बढ़ा जा सकता है। सुविधा हेतु इनकी पूर्व बुकिंग कराना आवश्यक होता है। माँ वैष्णों देवी का मुख्य मेला /उत्सव नवरात्रि में आयोजित होता है। इन नौ दिनों में लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन करते हैं। अधिक भीड़ होने पर नियंत्रण के लिए यात्रा पर्ची निर्गत करने की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ती है। नवरात्रि में देवी की आराधना व दर्शन विशेष फलदायी माना जाता है। श्रीत्रिकूटा देवी को ही वैष्णों देवी के नाम से जाना जाता है क्योंकि ऐसी मान्यता है कि त्रिकुटा देवी की उत्त्पत्ति भगवान विष्णु से हुई है। ऐसी मान्यता है कि जो श्रद्धालु देवी के दर्शन कर लेते हैं उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। कुछ श्रद्धालु अपनी यथेष्ट मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु मनौती भी मानते हैं और इच्छा पूर्ण होने पर पुनः जाकर मंदिर में भेंट आदि चढ़ाकर उसकी प्रतिपूर्ति करते हैं।
निकटवर्ती दर्शनीय स्थल :-
जम्मू एवं कटरा के निकट कई दर्शनीय स्थल व हिल स्टेशन हैं जहां आप प्राकृतिक सौंदर्य की अनुभूति कर सकते हैं। मन्दिर से ३ किलोमीटर की दूरी पर भैरोनाथ का मन्दिर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि जिस स्थान माँ वैष्णों देवी ने अहंकारी भैरवनाथ का वध किया था वह स्थान भवन के नाम से जाना जाता है। इस स्थान पर माँ काली ,माँ सरस्वती व माँ लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित है जिसके समन्वित स्वरूप माँ वैष्णों देवी के नाम से जाना जाता है। भैरोनाथ का वध करने पर उसका सिर ३ किलोमीटर दूर जिस स्थान पर गिरा था वहां पर भैरोनाथ का मंदिर स्थापित है क्योंकि भैरवनाथ के पश्चाताप करने पर माँ ने उसे यह वरदान दिया था कि मेरे दर्शन तब तक पूर्ण नहीं होंगे जब तक श्रद्धालु मेरे दर्शन के पश्चात भैरवनाथ के दर्शन नहीं कर लेते।
यात्रा के समय सावधानियाँ :-
सम्प्रति माता वैष्णों देवी मंदिर तक पहुंचने में कोई विशेष कठिनाई नहीं होती क्योंकि यह स्थान सीधे वायुमार्ग ,रेलमार्ग व सड़कमार्ग से जुड़ गया है। चूंकि माँ का मंदिर दुर्गम पहाड़ियों के मध्य एक गुफा में स्थित है जहाँ सर्दियों में तापमान -३ से -५ डिग्री तक पहुँच जाता है और चट्टानों के टूटने का खतरा भी बना रहता है ,अतः किंचित सावधानी बरतते हुए अनुकूल मौसम में यात्रा करना श्रेयस्कर होगा। ह्रदय रोग व उक्त रक्त चाप से पीड़ित व्यक्तियों को चढ़ाई के लिए सीढ़ियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। चूँकि यह मन्दिर लगभग ५२०० फिट की ऊंचाई पर स्थित है, अतः यात्रा के दौरान उलटी अथवा चक्कर आने की संभावना बनी रहती है। इसके लिए अपने साथ औषधियाँ लेकर ही यात्रा करना उपयुक्त होगा। यथासम्भव यात्रा के दौरान कम से कम सामान लेकर चढ़ाई आरम्भ करनी चाहिए ताकि अनावश्यक श्रम से बचा जा सके। कमजोर ,अस्वस्थ व बूढ़े व्यक्तियों को चढ़ाई के समय छड़ी अथवा लाठी का सहारा लेना चाहिए। यात्रा के दौरान ट्रैकिंग शूज का प्रयोग आरामदायक होगा। सम्पूर्ण यात्रा के दौरान केवल माँ के दिव्य स्वरूप का ध्यान करते हुए एवं जयकारे लगाते हुए चढ़ाई करने से आध्यात्मिक शक्ति का स्वतः संचय हो जाता है जिससे आपके अन्दर अप्रत्याशित उत्साह का संचरण हो जायेगा।
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