Tuesday, February 23, 2016

चामुण्डा देवी

चामुण्डा देवी ५१ शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्तिपीठ है। यहां पर वर्ष भर श्रद्धालु चामुण्डा देवी के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करने हेतु आते रहते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर आने वाले भक्तों की समस्त मनोकामनाएं दर्शन मात्र से ही पूर्ण हो जाती हैं। चामुंडा देवी का मन्दिर माता काली को समर्पित है। चूँकि माता काली शक्ति और संहार की देवी हैं इसीलिए चंड  और मुंड के संहार करने के कारण इन्हें चामुण्डा देवी की संज्ञा दी जाती है। अतः इस मंदिर में स्थापित शक्तिस्वरूपा माँ काली की पूजा चामुण्डा देवी के रूप में की जाती है। इसी कारण इन्हें शिवशक्ति के प्रमुख केंद्र के रूप में मान्यता दी जाती है। 

भौगोलिक स्थिति :-

चामुंडा देवी का प्रसिद्ध मन्दिर हिमांचल प्रदेश के काँगड़ा जिले में ज्वाला जी के मंदिर से कुछ ही दूर पर स्थित है। यह मंदिर समुद्र तल से १००० मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहां से हिमालय की हिमाच्छादित चोटियां स्पष्ट दिखाई पड़ती हैं। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एवं सम जलवायु के कारण भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों श्रद्धालु प्रत्येक वर्ष यहां आते हैं। यह मंदिर धर्मशाला से १५ किलोमीटर दूर बँकर नदी के किनारे पर स्थित है। यहां पहुँचने के लिए कई मार्ग हैं किन्तु श्रद्धालु काँगड़ा के पहले ज्वालाजी का दर्शन करते हुए चामुण्डा देवी का दर्शन करते हैं। ज्वालाजी से डेढ़ दो घंटे की यात्रा करके चामुण्डा देवी पहुँचा जा सकता है। चामुण्डा देवी तक पहुँचने का दूसरा मार्ग पठानकोट से छोटी लाइन रेलमार्ग द्वारा है जो पपरोला तक जाती है।  पठानकोट -पपरोला के मध्य में आप चामुण्डा देवी रेलवे स्टेशन पर उतरकर मंदिर तक आसानी से पहुँच सकते हैं। सड़कमार्ग से बस अथवा निजी वाहन से भी पहुंचा जा सकता है। बस द्वारा पठानकोट से धर्मशाला होकर भी यहां पहुँच जा सकता है। चूंकि पठानकोट प्रमुख राज्यों से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा है अतः रेल द्वारा आसानी से यात्रा की जा सकती है। 
चामुण्डा देवी का मंदिर पहाड़ियों के मध्य स्थित है। अतः पर्वतीय सौन्दर्य का आनन्द लेते हुए चामुण्डा देवी का दर्शन किया जा सकता है। हरीभरी वादियों ,कल -कल की ध्वनि करते हुए झरने सहज ही मन को आकर्षित कर लेते हैं। वायु मार्ग से पहुँचने के लिए हवाई अड्डा गूगल में स्थित है !गूगल से २८ किलोमीटर की दूरी पर चामुण्डा देवी का मंदिर है। यहां से टैक्सी अथवा बस के द्वारा पहुँचा जा सकता है। सड़क मार्ग से हिमाचल प्रदेश के पर्यटन विभाग की बसें हमेशा उपलब्ध रहतीं हैं। चामुण्डा देवी धर्मशाला से १५ किलोमीटर एवं ज्वालाजी से ५५ किलोमीटर दूर हैं। अतः श्रद्धालु इन दोनों तीर्थस्थलों की यात्रा आसानी से एकसाथ कर सकतें हैं। शीतकाल में यहां काफी सर्दी पड़ती है जिसके कारण तापमान शून्य से काफी नीचे पहुँच जाता है। अतः गर्म कपड़े लेकर ही यहां की यात्रा करना सुविधापूर्ण होगा। अप्रैल से अक्टूबर तक मौसम अपेक्षाकृत गर्म होता है लेकिन रात में सर्दी का अहसास होता है। जनवरी से मार्च तक यहां की यात्रा के लिए उपयुक्त समय माना  जाता है.

पौराणिक कथा एवं साक्ष्य :-

दुर्गा शप्तशती में माँ चामुण्डा देवी का वर्णन किया गया है। जब शुम्भ और निशुम्भ नामक दो दैत्यों का देव और मानव पर अत्याचार बहुत अधिक बढ़ गया था एवं देवतागण  अधिक परेशान थे ऐसे समय में देवता और मानव मिलकर देवी दुर्गा की आराधना की। आराधना से प्रसन्न होकर माँ दुर्गा ने शुम्भ और निशुम्भ से उनकी रक्षा करने का वचन दिया। कहा जाता है कि एक बार शुम्भ और निशुम्भ के दूतों ने माँ कौशिकी को पहचान लिया और शुम्भ और निशुम्भ को इसकी जानकारी दी इस पर शुम्भ और निशुम्भ ने अपना एक दूत माँ  कौशिकी के पास यह सन्देश लेकर भेजा कि शुम्भ व निशुम्भ चूंकि तीनों लोकों के राजा हैं अतः वे उनकी रानी बनने को तैयार हो जाएँ। सन्देश सुनकर माता ने उसी दूत से यह कहा कि उन्हें मालूम है कि वे दोनों बहुत शक्तिशाली हैं किन्तु उनके प्रस्ताव स्वीकार करने के पूर्व मेरी यह शर्त उस तक पहुंचा दो कि मैं उसी से विवाह करूगी जो युद्ध में मुझे पराजित कर देगा। दूत वापस आकर माँ द्वारा बतायी गयी शर्त से शुम्भ और निशुम्भ को अवगत कराया। माँ का सन्देश सुनकर दोनों बहुत क्रोधित हुए और माँ द्वारा लगाई गयी शर्त की हंसी उड़ाई।
शुम्भ और निशुम्भ ने चण्ड और मुण्ड  नामक दो असुरों को यह आदेश दिया कि वे कौशिकी के केश खींचते हुए उसके पास ले आयें। चण्ड और मुण्ड दोनों अपने स्वामी के आदेश का पालन करने हेतु कौशिकी के निकट गए और उन्हें अपने साथ चलने को कहा। माँ कौशिकी के मना करने पर भी जब वे दोनों असुर अड़े रहे और देवी के ऊपर प्रहार करने के लिए उद्यत हो गए तब माँ कौशिकी ने अपना काली का  विकराल रूप धारण कर लिया और दोनों असुरों का  वहीं पर वध कर दिया। इनके वध के पश्चात ही माँ को चामुण्डा देवी के नाम से जाना जाने लगा। 
देवी की उत्पत्ति कथा का वर्णन दुर्गा शप्तशती एवं देवी माहात्म्य में विधिवत वर्णित है जिसमें यह  बताया गया है कि सैकड़ों वर्षों तक देवताओं एवं असुरों के मध्य हुए युद्ध में अन्ततः असुरों की विजय हुई थी।  असुरराज महिषासुर  स्वर्ग पर अधिकार करके वहां का भी राजा बन बैठा था और देवताओं को बलात धरती पर रहने के लिए मजबूर कर दिया था। इस अत्याचार से क्षुब्ध होकर देवतागण भगवान विष्णु के पास सहायतार्थ पहुँच गए। भगवान विष्णु ने उन्हें देवी की आराधना करने का परामर्श दिया। अतः देवताओं ने त्रिदेव ब्रह्मा ,विष्णु एवं महेश से उत्पन्न दिव्य प्रकाश स्वरूपा देवी की आराधना की और यथाशक्ति भेंट आदि चढ़ाई। भगवान शिव ने सिंह ,विष्णु ने कमल ,इन्द्र ने घंटा तथा समुद्र ने माला उन्हें  भेंट की जिससे प्रसन्न होकर देवी ने देवताओं को यह वरदान दिया वे देवताओं की रक्षा अवश्य करेगी। इस वरदान पूर्ति हेतु देवी ने महिषासुर से युद्ध करके अंततः उसका वध कर दिया। इसीलिए माँ देवी को महिषासुर मर्दिनी भी कहा जाता है।  
चामुण्डा देवी को शिवशक्ति का प्रमुख केंद्र माना जाता है। इसीलिए इन्हें चामुण्डा नदीकेश्वेर भी कहते हैं। यह सिद्ध पीठ बाणगंगा के तट पर स्थित है। मान्यता है कि भगवान शंकर मृत्यु ,विनाश और शवतारी विसर्जन के रूप में चामुण्डा देवी के इस मंदिर में विद्यमान हैं। यह तांत्रिकों एवं योगियों की तंत्र साधना का भी प्रमुख केंद्र माना जाता है। श्रद्धालुगण माँ के दर्शन के पूर्व बाणगंगा में विधिवत स्नान करते हैं क्योंकि बाणगंगा में स्नान शुभ एवं मंगलकारी माना  गया है। स्नान करते समय भक्तगण भगवान शिव का स्मरण करते हैं। मंदिर के पास पीछे एक पवित्र गुफा के अंदर भगवान शिव का प्राकृतिक शिवलिंग स्थापित है और विभिन्न देवी देवताओं के चित्र एवं आकृति  यहां देखी जा सकती है। मंदिर के मुख्य द्वार पर श्री हनुमानजी एवं भैंरोंनाथ की प्रतिमा स्थापित की गयी है। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी माँ की रक्षा के लिए यहां हमेशा विराजमान रहते हैं। 

अन्य दर्शनीय स्थल :-

चामुण्डा देवी के ठीक पीछे आयुर्वेदिक चिकित्सालय ,पुस्तकालय एवं संस्कृत विद्यालय स्थित हैं। मंदिर प्रांगण में बहुत सी दुकानें हैं जिसमें धार्मिक पुस्तकें ,पूजन सामग्री एवं माता को चढ़ाने हेतु प्रसाद ख़रीदा जा सकता है। नवरात्रि के समय चामुण्डा देवी के दर्शन के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु  यहां उपस्थित होते हैं। मंदिर के अन्दर अखण्ड पाठ विशेष सप्तचन्डी का पाठ ,नवरात्रि पूजा एवं कीर्तन की व्यवस्था की जाती है। इसी समय यहां पर एक विशाल मेले का आयोजन भी होता है। विशेष हवन पूजा आदि के लिए लम्बी -लम्बी कतारें लगने का दृश्य भी यहां देखने को मिलता है। 

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