पौराणिक मान्यता है कि प्रजापति दक्ष द्वारा कनखल में आयोजित अपने वृहस्पति नामक महायज्ञ में सभी देवताओं को आमन्त्रित किया गया था किन्तु उन्होंने अपने जामाता भगवान शंकर को नहीं आमंत्रित किया। माता सती को जब यह ज्ञात हुआ तब वे पितृमोह के कारण वहाँ बिना आमंत्रण के ही पहुँच गईं। वहां जाकर उन्होंने देखा कि यज्ञानुष्ठान में उनके पति शिवजी का कोई भाग नहीं लगाया गया था तथा उनके पिता द्वारा शिव जी के प्रति अपमानजनक भाषा का भी प्रयोग किया जा रहा है। इस कृत्य पर सती अत्यधिक क्रोधित हो गईं और वे उसी यञकुण्ड में कूद पड़ीं। यह देखकर क्रोध में आकर वहां उपस्थित शिव के गणों ने दक्ष की हत्या कर दी एवं काफी उत्पात भी मचाया। जब भगवान शंकर को यह ज्ञात हुआ तब वे वहां पहुंचकर सती के शव को अपने कंधे पर रखकर पूरे ब्रह्माण्ड में विचरण करने लगे। सृष्टि विनाश के भय से भगवान विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के कई टुकड़े कर दिए ताकि शिव जी का क्रोध शांत किया जा सके। सती के आभूषण एवं शरीर के टुकड़े भूमण्डल पर जिन जिन स्थलों पर गिरे थे उन उन स्थलों पर महापीठ अथवा शक्तिपीठ की स्थापना हुई। ऐसे ही इक्यावन स्थलों के विवरण निम्नवत हैं :-
१- किरीट शक्तिपीठ :- पश्चिम बंगाल राज्य के वटनगर {लालबाग } में स्थित इस शक्तिपीठ में माता सती का किरीट गिरा था। इन्हें विमला देवी व भुवनेसगवरी भी कहा जाता है।
२-कात्यायनी शक्तिपीठ :- यह शक्तिपीठ उत्तरप्रदेश राज्य के वृंदावन नगर में स्थित है। कहा जाता है कि यहां पर सती का केशपाश गिरा था। मथुरा से वृंदावन जाते समय वृंदावन से २ किलोमीटर पहले ही यह स्थल अवस्थित है।
३ -करवीर शक्तिपीठ :- कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी के मंदिर में यह पीठ अवस्थित है। इन्हें महिष मर्दिनी भी कहा जाता है। यह कोल्हापुर रेलवे स्टेशन से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है। यहां सती के दोनों नेत्र गिरे थे।
४-श्रीपर्वत शक्तिपीठ :- यहां पर सती का दाहिना तलुवा गिरा था। श्रीपर्वत पर स्थापित इस सुन्दर शक्तिपीठ में सुन्दरानन्द भैरव के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इन्हें सुंदरी शक्तिपीठ भी कहा जाता है। यह शक्तिपीठ आसाम प्रान्त में जौनपुर नामक स्थान पर बताया जाता है।
५-विशालाक्षी शक्तिपीठ :- यह शक्तिपीठ उत्तरप्रदेश के वाराणसी नगर में मीरघाट मोहल्ले में अवस्थित है। यहां पर सती के दाहिने कान की मणि गिरी थी। यह काशी विश्व्नाथ के प्रसिद्ध मंदिर के निकट स्थित है।
६-विश्वमातृका शक्तिपीठ :- यहां पर सती का वामगण्ड {गाल } गिरा था। इन्हें विशेश्वरी देवी भी कहा जाता है। यह गोदावरी नदी के तट पर आंध्रप्रदेश के राजमाहेंदरी रेलवे स्टेशन के निकट नदी के उस पार कुब्बूर नामक स्थान पर स्थित है।
७-नारायणी शक्तिपीठ :- कन्याकुमारी से त्रिवेन्द्रम मार्ग पर १२ किलोमीटर की दूरी पर यह शक्तिपीठ स्थित है। यहां पर सती के ऊपरी दांत गिरे थे। इसे शुचीन्द्रम के नाम से भी जाना जाता है।
८- पञ्चसागर वाराही शक्तिपीठ :- यहां पर सती के निचले दांत गिरे थे। इसे पम्पसागर भी कहते हैं। इसके निश्चित स्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद है।
९-ज्वालामुखी शक्तिपीठ :- कहा जाता है कि यहां पर सती की जिह्वा गिरी थी। यहां देवी अम्बिका ज्वालामुखी के रूप में उन्मत्त भैरव के साथ विराजमान हैं। यह हिमांचल प्रदेश के कांगड़ा मंदिर रेलवे स्टेशन के समीप स्थित हैं। स्टेशन से मात्र २ किलोमीटर की दूरी पर इनका मंदिर बना हुआ है।
१० -अवन्तिदेवी शक्तिपीठ :- इसे भैरवपर्वत शक्तिपीठ भी कहते हैं। यहां पर सती का ऊपरी ओंठ गिरा था। मध्यप्रदेश के क्षिप्रा नदी के तट पर यह शक्तिपीठ अवस्थित है। कुछ लोग गुजरात के गिरनार पर्वत पर इन्हें अवस्थित मानते हैं।
११ -भैरवी शक्तिपीठ :- इन्हें हिंगलाज देवी भी कहा जाता है। यहां पर सती का ब्रह्मरन्ध्र गिरा था। यह शक्तिपीठ पाकिस्तान में अवस्थित बताई जाती है।
१२-गुह्येश्वरी शक्तिपीठ :- यहां पर सती के दोनों घुटने गिरे थे। यह शक्तिपीठ नेपाल में बागमती नदी के तट पर स्थित बताई जाती है। पशुपतिनाथ के सन्निकट स्थित होने के कारण यात्रा का मार्ग तदनुसार चयन किया जा सकता है।
१३ -मुक्तेश्वरी गंडकी शक्तिपीठ :- यहां पर सती का दाहिना गाल गिरा था। देवी गण्डकी चक्रपाणि भैरव के साथ यहां अवस्थित हैं। यह मध्य नेपाल में गंडक नदी के उदगम स्थल पर स्थित मुक्तिनाथ मंदिर में स्थापित हैं।
१४ -चट्टलपीठ भवानी शक्तिपीठ:- यहां स्थित पर्वत पर सती की दाहिनी भुजा गिरी थी। यह बंग्लादेश के चटगांव में अवस्थित हैं। चटगांव से रेल द्वारा सीताकुंड स्टेशन होकर यहां पहुंचा जा सकता है।
१५ -अपर्णा देवी शक्तिपीठ:- इसे करतोया शक्तिपीठ भी कहते हैं। यहां सती का बांया तलुवा गिरा था। देवी अपर्णा के रूप में वामन भैरव के साथ वे यहां विराजमान हैं। बंग्लादेश के बोगरा स्टेशन से ३६ किलोमीटर की दूरी पर भवानीपुर गांव में यह मंदिर स्थित है।
१६ -सुगंधा शक्तिपीठ :- इन्हें उग्रतारा शक्तिपीठ भी कहा जाता है। यहां पर सती की नासिका गिरी थी। सुगन्धा नदी के तट पर शिकारपुर गांव {बंग्लादेश }में यह अवस्थित हैं।
१७ -यशोरेश्वरी शक्तिपीठ :- यहां पर सती की हथेली गिरी थी। यह शक्तिपीठ भी बंग्लादेश के ईश्वरपुर ग्राम जो यशोहार के निकट है ,अवस्थित हैं।
१८-लंका शक्तिपीठ :- यहां स्थित देवी को इद्राक्षी देवी के नाम से जाना जाता है। यहां पर देवी सती का नूपुर गिरा था। यह शक्तिपीठ श्रीलंका में अवस्थित है।
१९-मानस शक्तिपीठ :- यह शक्तिपीठ चीन के द्वारा अधिकृत तिब्बत जहां मानसरोवर स्थित है ,के निकट अवस्थित है। यहां पर सती की बांयीं हथेली गिरी थी।
२०- जयदुर्गा शक्तिपीठ :- यह शक्तिपीठ कर्नाटक प्रदेश में अवस्थित है। यहां पर सती के दोनों हाथ गिरे बताये जाते हैं।
२१- अट्टहास शक्तिपीठ :- इस स्थान पर सती का अधरोष्ठ गिरा था। इन्हें फुलोरा देवी के नाम से भी जाना जाता है। यह शक्तिपीठ दिल्ली -कलकत्ता रेलमार्ग पर अहमदपुर नामक स्टेशन के निकट है और यहीं स्थित फुल्लोरा देवी के मंदिर में यह पीठ अवस्थित मानी जाती है।
२२ -भ्रामरी भद्रकाली :- इसे जनस्थान शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यहां पर सती का चिबुक गिरा था। यहां स्थित भद्रकाली मंदिर में यह शक्तिपीठ अवस्थित मानी जाती है जो महाराष्ट्र में नासिक के पंचवटी में स्थित है।
२३- महामाया देवी :- इसे कश्मीर शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। यहां पर सती का कण्ठभाग गिरा था। बाबा अमरनाथ के निकट दूसरा हिमानी शिवलिंग जिसे पार्वती पीठ कहते हैं ,में यह अवस्थित है।
२४- नन्दीपुरशक्तिपीठ :- यहां पर सती का कण्ठहार गिरा था। अतः यहां देवी नंदिनी के रूप में नंदिकेश्वर भैरव के साथ अवस्थित हैं। यह एक प्राचीन वटवृक्ष के नीचे स्थित है, जो दिल्ली हावड़ा रेलमार्ग पर सैथिना स्टेशन के पास नन्दीपुर ग्राम में है।
२५- श्रीशैलम शक्तिपीठ :-इन्हें महालक्ष्मी भ्रमराम्बा के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर सती की ग्रीवा गिरी थी। श्रीशैल के मल्लिकार्जुन पर्वत पर स्थित भ्रमराम्बा देवी के मंदिर में यह अवस्थित हैं। यह शक्तिपीठ हैदराबाद से २५० किलोमीटर दूर मरकापुर रोड रेलवे स्टेशन की निकट है।
26-काली शक्तिपीठ :- यहां पर सती के दाहिने पैर की चार उँगलियाँ गिरी थीं। यहां की अधिष्ठात्री देवी कालिका हैं। यह पश्चिम बंगाल में कलकत्ता रेलमार्ग पर अवस्थित हैं।
२७- विराट शक्तिपीठ :- इसे अम्बिका देवी के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से ६४ किलोमीटर उत्तर स्थित विराटनगर की प्राचीन गुफा में यह अवस्थित हैं। यहां पर सती के दाहिने पैर की उंगलियां गिरी थीं। यहां अलवर से बस द्वारा भी पहुंचा जा सकता है।
२८- युगाद्या शक्तिपीठ :- यह पश्चिम बंगाल के कटवाक्षीर नामक ग्राम में स्थित हैं। यहां पर सती के दाहिने पैर का अंगूठा गिरा था। कहते हैं कि क्षीर ग्राम की भूतधारी महामाया के साथ देवी युगाद्या की भद्रकाली स्वरूप एकाकार होकर यहां पर स्थित हैं।
२९- देवीकूप पीठ :- इन्हें कुरुक्षेत्र पीठ अथवा सावत्री पीठ भी कहते हैं। यहां पर सती का दाहिना चरण गिरा था। यह दिल्ली -अमृतसर रेलमार्ग पर कुरुक्षेत्र स्टेशन के निकट दिल्ली से मात्र ५५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
३०- विभाष शक्तिपीठ :- यहां पर सती का बायाँ टखना गिरा था। इस शक्तिपीठ में देवी कपालिनी के रूप में अवस्थित हैं। यह पश्चिम बंगाल के आसनसोल रेलवे स्टेशन के निकट तुमलुक नामक स्थान पर देवी विराजमान हैं।
३१- त्रिपुरसुंदरी शक्तिपीठ :- यह त्रिपुरा के उदयपुर नगर से २-३ किलोमीटर की दूरी पर राधाकिशोर ग्राम में अवस्थित हैंऔर यहां पर सती का दाहिना पैर गिरा था।
३२- त्रिस्तोता शक्तिपीठ :- इन्हें भ्रामरी देवी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर सती का बायां पैर गिरा था। पश्चिम बंगाल प्रान्त के सिलीगुड़ी के निकट यह शक्तिपीठ स्थित है।
मगध शक्तिपीठ :-इन्हें सर्वानन्दकरी पटनेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। यहां पर सती की दाहिनी जांघ गिरी थी। यह पटना -हावड़ा -दिल्ली रेलमार्ग पर स्थित मुंगेर में अवस्थित हैं।
३३- जयन्ती शक्तिपीठ :- यह मेघालय राज्य के गारोखासी की पहाड़ियों पर स्थित हैं। यहां पर सती की बायीं जांघ गिरी थी। यह शक्तिपीठ शिलांग से ५३ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है।
३४- कामरूप कामाख्या शक्तिपीठ :- असम प्रान्त के गुवाहाटी में स्थित नीलाञ्चल पर्वत पर अवस्थित कामाख्या देवी के मंदिर में यह विराजमान हैं। यहां पर सती का योनिमण्डल गिरा था। तंत्र मंत्र की साधना का यह प्रसिद्ध स्थल माना जाता है।
३५- शोणशक्तिपीठ :- इन्हें देवी नर्मदा के नाम से जाना जाता है। नर्मदा के पवित्र कुण्ड से मात्र ४ किलोमीटर दूरी पर सोन नदी के उद्गम स्थल पर स्थित शोणाक्षी देवी के मंदिर में यह शक्तिपीठ अवस्थित है। यहां पर सती का दाहिना नितम्ब गिरा था। यह छत्तीसगढ़ अमरकंटक के सन्निकट स्थित हैं। पेण्ड्रारोड रेलवे स्टेशन से ३५ किलोमीटर चलकर यहां पहुंचा जा सकता है।
३६- काँची शक्तिपीठ :- यहां पर स्थित देवी को देवगर्भा के नाम से जाना जाता है। इस स्थल पर सती का कंकाल गिरा था। इसे कामकोटि भी कहते हैं। कामाक्षी मंदिर में स्थित इस शक्तिपीठ को त्रिपुर सुंदरी भी कहा जाता है। यह चेन्नई से ७५ किलोमीटर की अवस्थित हैं।
३७- कालमाधव शक्तिपीठ :- यहां पर सती का बायाँ नितम्ब गिरा था। यहां स्थित देवी को काली देवी के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसका प्रमाणिक स्थल अज्ञात है।
३८- विरजा क्षेत्र शक्तिपीठ :- इन्हें विमला देवी के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। यह जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित मंदिर में अवस्थित मानी जाती हैं। यहां पर सती की नाभि गिरी थी। यहां तक पहुँचने के लिए जगन्नाथ जाने वाला मार्ग का चयन किया जाना उपयुक्त होगा ।
३९-प्रयाग शक्तिपीठ :- यहां पर ललित देवी से यह शक्तिपीठ जानी जाती है। यहां पर सती की हस्तांगुलि गिरी थी। इलाहाबाद किले में अवस्थित अक्षयवट के समीप कल्याणी ललिता देवीमंदिर में यह अवस्थित मानी जाती हैं।
४०- उज्जयिनी शक्तिपीठ :- इन्हें देवी मंगल चण्डी के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। उज्जैन स्थित हरिसिद्ध देवी के मंदिर में यह शक्तिपीठ अवस्थित बतायी जाती है। यहां पर सती की कोहनी गिरी थी इसीलिए उज्जैन स्थित इस मंदिर में देवी की कोहनी की पूजा की जाती है।
४१- मणिवेदिका शक्तिपीठ :- इसे गायत्री देवी शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है। यहां पर सती की दोनों कलाई गिरी थी। यह राजस्थान के पुष्कर में गायत्री की पहाड़ी पर अवस्थित मानी जाती हैं।
४२-बहुला शक्तिपीठ :- यहां पर सती का बायाँ बाहु गिरा था। यहां पर देवी चण्डिका भीरुक भैरव के साथ अवस्थित हैं। यह पश्चिम बंगाल की वीरभूमि में कटवा नामक स्टेशन के निकट स्थित है। इसे महाक्षेत्र भी कहा जाता है।
४३- कन्यकाश्रम शक्तिपीठ :- कन्याकुमारी स्थित भद्रकाली मंदिर में यह शक्तिपीठ अवस्थित बताई जाती है। यहां पर सती का पृष्ठ भाग गिरा था। कुछ लोग यहां पर उनके ऊपरी दाँत गिरने की भी पुष्टि करते हैं।
४४- वक्त्रेश्वर शक्तिपीठ :- इन्हें महिष मर्दिनी भी कहा जाता है। यहां पर सती का मष्तिष्क गिरा था। यह पश्चिम बंगाल में सैंथिया स्टेशन से ११ किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित बतायी जाती हैं।
४५- जयदुर्गा हृदयेश्वरी शक्तिपीठ :- यहां पर सती का ह्रदय गिरा था। अतः इसे प्रधान शक्तिपीठ की संज्ञा दी जाती है। यह पटना -कलकत्ता मार्ग पर गिरिडीह स्टेशन के निकट वैद्यनाथ धाम स्थित मंदिर में अवस्थित बताई जाती हैं।
४६- जालन्धर शक्तिपीठ :- इन्हें त्रिपुर मालिनी शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है। यहां पर सती का वाम स्तन गिरा था। यहां तक पहुँचने हेतु पठानकोट -बैजनाथ -पथरौल रेलमार्ग से नगरौरा -बंगवा स्टेशन पर उतरना पड़ता है।
४७- रामगिरी शक्तिपीठ :- यह शक्तिपीठ मध्यप्रदेश के मैहर के शारदा मंदिर में अवस्थित मानी जाती हैं। कुछ लोग इन्हें चित्रकूट में अवस्थित मानते हैं। यहां पर सती का दाहिना स्तन गिरा था। चूँकि रामगिरि पर्वत चित्रकूट में है इसीलिए यह मतभेद उत्पन्न हुआ प्रतीत होता है।
४८- अम्बाजी शक्तिपीठ :- इसे प्रभाष शक्तिपीठ भी कहा जाता है। यहां पर यह चन्द्रभागा देवी के नाम से जानी जाती हैं। यहां सती का उदर भाग गिरा था। यह गिरनार पर्वत पर स्थित अम्बाजी के मंदिर में अवस्थित बताई जाती हैं।
४९- रत्नावली शक्तिपीठ :- यहां पर सती का दाहिना स्कन्ध गिरा था। रत्नावली पर्वत पर चेन्नई के निकट यह शक्तिपीठ अवस्थित मानी जाती है। कुछ लोग इसे कन्याकुमारी में स्थित मानते हैं।
५०- मिथिला शक्तिपीठ :- इसे महादेवी उमा मिथिलेश्वरी भी कहा जाता है। यह बिहार राज्य के मिथिला में अवस्थित है तथा यहां पर सती का बायाँ स्कन्ध गिरा था। बिहार के उग्रतारा मंदिर एवं समस्तीपुर के जयमंगला देवी मंदिर में यह संयुक्त रूप में विराजमान बताई जाती है।
५१ -नलहरि शक्तिपीठ :- इस पीठ में स्थापित देवी को महाकाली के रूप में प्रतिष्ठित माना जाता है। यहां पर सती की आँत गिरी थी। यहां पर कोई भी मंदिर नहीं बना हुआ है बल्कि एक टीले पर आंत की आकृति में यह अवस्थित हैं। यह हावड़ा -क्यूल मेन लाइन पर नलहाठी रेलवे स्टेशन से ३ किलोमीटर की दूरी पर तथा शांतिनिकेतन से २ किलोमीटर दूरी पर स्थित हैं।