Friday, September 16, 2016

शुभकामना सन्देश

रसिक पीठाधीश्वर महांत जन्मेजय शरण जी महराज                                १५ अगस्त २०१६ 
जानकीघाट,बड़ा स्थान ,श्रीअयोध्या, उ० प्र०                                               स्वतन्त्रता दिवस 
                                       शुभकामना सन्देश 
महापुरुषों एवं सन्तों की लोकयात्रा लोक शिक्षा के लिए होती है। भगवददर्शन एवं तत्वानुसन्धान ये दोनों ही किसी सन्त के आध्यात्मिक जीवन के मुख्य सम्बल माने जाते हैं। स्वरूपज्ञान के विभिन्न स्तरों में रमण करने वाले ऐसे साधनामार्ग के पथिकों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके अथवा सत्संग द्वारा जो भी ऊर्जा प्राप्त होती है,वही कालान्तर में अन्तःप्रकाश बनकर जीवन के कल्याणकारी मार्ग को प्रशस्त करती है। सन्तों के शास्त्र ज्ञान तथा बाह्य प्रतिष्ठा पर विशेष ध्यान न देकर केवल उनके साधनामार्ग एवं उपदेशों को ही आत्मोन्नति की कसौटी मानना चाहिए और उसी का अनुसरण भी करना चाहिए । 
भारत की सन्त-परम्परा की लम्बी श्रृंखला से कतिपय सन्तों के जीवन-दर्शन एवं उनके कृतित्व को "हमारे पूज्य सन्त "नामक इस पुस्तक में संकलित करते हुए डॉ ० जटाशंकर त्रिपाठी  ने एक सराहनीय कार्य किया है। इन्होंने अपनी इस पुस्तक में जिन सन्तों का चित्रण किया है,वे  अपने युग के प्रकाश स्तम्भ थे। सनातन धर्म के संरक्षक जगद्गुरु शंकराचार्य,नाथ सम्प्रदाय के संरक्षक गुरु गोरखनाथ तथा रसिकपीठ के संस्थापक श्री करुणासिन्धु जी महाराज,स्वामी श्री रामप्रसादाचार्य जी,स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी,स्वामी विशुद्धानन्द जी,स्वामी करपात्री जी,श्रीराम शर्मा आचार्य जी आदि सन्तों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए डॉ ० त्रिपाठी ने उन्हें जनसामान्य से सुपरिचित कराने का पुनीत कार्य किया है। अतः एतदर्थ मैं उन्हें अपनी हार्दिक शुभकामना एवं स्नेहाशीष प्रदान करता हूँ। 
                                                                                       रसिक पीठाधीश्वर महांत जन्मेजय शरण 
                                                                                           श्री जानकीघाट  बडा  स्थान 
                                                                                              श्री अयोध्या ,फैजाबाद, उ० प्र० 

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