बिन्दुगाद्याचार्य महांत देवेंद्रप्रसादाचार्य जी महराज १५ अगस्त २०१६
श्री रामप्रसाद सेवा ट्रस्ट ,श्री अयोध्या ,उ० प्र० स्वतन्त्रता दिवस
आशीर्वचन
प्राचीनकाल में सम्पूर्ण उत्तर भारत -भूमि को देवभूमि की संज्ञा दी जाती रही है तथा भारतवर्ष के कण कण को तीर्थ भी कहा जाता रहा है क्योंकि हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में ही हिंदुओं के अधिकांश तीर्थस्थल पाए जाते हैं। तीर्थ की परिभाषा "तारयितुम समर्थः इति तीर्थः "अर्थात संसार रूपी भवसागर को पार कराने में जो समर्थ हो ,वही तीर्थ है, दी गयी है। तीर्थों का धार्मिक महत्व तो है ही ,साथ ही साथ सामाजिक सामञ्जस्य स्थापित करने व सत्संग का सुअवसर प्रदान करने में भी तीर्थों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। सामान्यतः सम्पूर्ण भारत में एक ही तीर्थस्थल है क्योंकि यहां पर विष्णु तत्व अर्थात सत्वगुण के उत्सर्जक केंद्र के रूप में चार धाम,शिवतत्व के उत्सर्जक केंद्र के रूप में द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं शक्ति तत्व के उत्सर्जक केंद्र के रूप में इक्यावन शक्तिपीठों के साथ साथ सहस्रों दैवीय ऊर्जा के अन्य केंद्र यहां पर स्थापित किये गये हैं। ये सभी क्रेन्द्र मानव निर्मित नहीं हैं बल्कि दैवीय अथवा प्राकृतिक हैं। बाद में इन्हीं केंद्रों को तीर्थस्थल कहा जाने लगा और इसके दर्शन को ही तीर्थयात्रा। कैलाश से कन्याकुमारी और कामाख्या से कच्छ तक सम्पूर्ण भारतवर्ष की पावन भूमि तीर्थस्थल मानी जाने लगी। तीर्थ -दर्शन से पाप तो नष्ट होते ही हैं ,साथ ही साथ भाग्योदय भी होता है तथा परम् पुरुषार्थ अर्थात मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है।
श्री रामप्रसाद सेवा ट्रस्ट ,श्री अयोध्या ,उ० प्र० स्वतन्त्रता दिवस
आशीर्वचन
प्राचीनकाल में सम्पूर्ण उत्तर भारत -भूमि को देवभूमि की संज्ञा दी जाती रही है तथा भारतवर्ष के कण कण को तीर्थ भी कहा जाता रहा है क्योंकि हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में ही हिंदुओं के अधिकांश तीर्थस्थल पाए जाते हैं। तीर्थ की परिभाषा "तारयितुम समर्थः इति तीर्थः "अर्थात संसार रूपी भवसागर को पार कराने में जो समर्थ हो ,वही तीर्थ है, दी गयी है। तीर्थों का धार्मिक महत्व तो है ही ,साथ ही साथ सामाजिक सामञ्जस्य स्थापित करने व सत्संग का सुअवसर प्रदान करने में भी तीर्थों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। सामान्यतः सम्पूर्ण भारत में एक ही तीर्थस्थल है क्योंकि यहां पर विष्णु तत्व अर्थात सत्वगुण के उत्सर्जक केंद्र के रूप में चार धाम,शिवतत्व के उत्सर्जक केंद्र के रूप में द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं शक्ति तत्व के उत्सर्जक केंद्र के रूप में इक्यावन शक्तिपीठों के साथ साथ सहस्रों दैवीय ऊर्जा के अन्य केंद्र यहां पर स्थापित किये गये हैं। ये सभी क्रेन्द्र मानव निर्मित नहीं हैं बल्कि दैवीय अथवा प्राकृतिक हैं। बाद में इन्हीं केंद्रों को तीर्थस्थल कहा जाने लगा और इसके दर्शन को ही तीर्थयात्रा। कैलाश से कन्याकुमारी और कामाख्या से कच्छ तक सम्पूर्ण भारतवर्ष की पावन भूमि तीर्थस्थल मानी जाने लगी। तीर्थ -दर्शन से पाप तो नष्ट होते ही हैं ,साथ ही साथ भाग्योदय भी होता है तथा परम् पुरुषार्थ अर्थात मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है।
ड़ॉ० जटाशंकर त्रिपाठी ने ऐसे तीर्थों को इस पुस्तक में संकलित करते हुए उनका विस्तृत वर्णन,पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करके वास्तव में एक पुनीत कार्य किया है। जो व्यक्ति इन तीर्थों की यात्रा करने में शारीरिक रूप से अथवा अन्य किसी कारणवश असमर्थ हैं,वे इस पुस्तक को पढ़कर कम से कम इन तीर्थों की मानसिक यात्रा तो कर ही सकते हैं और उनके बारे में सम्यक जानकारी भी प्राप्त करके ज्ञानार्जन कर सकते हैं।
मैं ड़ॉ० जटाशंकर त्रिपाठी के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए इस पुस्तक के सफल प्रकाशन हेतु अपनी शुभकामना व्यक्त करता हूँ।
सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,मा कश्चिद दुःखभाग्भवेत।
बिन्दुगाद्याचार्य महांत देवेन्द्रप्रसादाचार्य
अध्यक्ष , श्री रामप्रसाद सेवा ट्रस्ट, अयोध्या
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