Wednesday, July 6, 2016

स्वर्णमंदिर

सिक्ख धर्म की आस्था के सर्वोत्कृष्ट केंद्र एवं पवित्र तीर्थस्थल के रूप में स्वर्णमंदिर सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। अमृतसर नगर में स्थित एक मनोरम व विशाल सरोवर के मध्य में निर्मित स्वर्णमंदिर बहुत ही आकर्षक एवं भव्य मंदिर है। सम्पूर्ण विश्व में सिक्खधर्म के अनुयायी जब भी भारत आते हैं तब वे अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर के दर्शन अवश्य करते हैं। इस मंदिर की स्थापना सिक्खधर्म के चौथे गुरु श्रीरामदास जी द्वारा की गई थी। अमृतसर नगर में १३ अन्य गुरुद्वारे भी निर्मित हैं किन्तु प्रमुख गुरुद्वारा स्वर्ण मंदिर को माना जाता है। इस गुरु द्वारे में प्रवेश के कठोर नियम बनाए गए हैं जिसका अनुपालन करने के बाद ही प्रवेश सम्भव होता है। स्वर्णमंदिर में गुरुग्रन्थ साहिब अवस्थित हैं जिसके कारण सिक्खधर्म के अनुयायी अत्यन्त श्रद्धा एवं अनुशासन के साथ इस मंदिर में गुरुग्रन्थ साहिब के दर्शन  करते हैं ।
भौगोलिक स्थिति :-
स्वर्णमंदिर भारतवर्ष के पंजाब प्रान्त के अमृतसर नामक शहर के मध्यभाग में स्थित है। अमृतसर नगर व्यास नदी के तट पर बसा हुआ पंजाब राज्य का एक अत्यन्त समृद्धशाली शहर माना जाता है। पूर्वी पंजाब में स्थित यह शहर उत्तरी रेलवे का प्रमुख जंक्सन है और अमृतसर पहुँचने के लिए रेलमार्ग ,सड़कमार्ग एवं वायुमार्ग की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। अमृतसर दिल्ली व भारत के अन्य प्रमुख नगरों से रेलमार्ग व सड़कमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। यह जालंधर से १८० किलोमीटर ,लुधियाना से १०० किलोमीटर ,फिरोजपुर से १६० किलोमीटर ,चंडीगढ़ से २३५ किलोमीटर और दिल्ली से ४४६ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पाकिस्तान की सीमारेखा से मात्र २९ किलोमीटर की दूरी पर अमृतसर नगर स्थित है। यहां पर पर्यटकों के ठहरने के लिए अनेकों धर्मशालाएं यथा संतराम धर्मशाला ,गुरुवाणी बाजार स्थित हरपाल का धर्मशाला ,गुरुबाजार स्थित गुरुरामदास जी का धर्मशाला प्रमुख हैं। चूँकि अमृतसर स्थित स्वर्णमंदिर को एक पर्यटन स्थल की मान्यता प्राप्त है अतः प्रत्येक माह यहां पर देश एवं विदेश से हजारों श्रद्धालु दर्शनार्थ आते रहते हैं।
पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य :-
पौराणिक आख्यानों के अनुसार त्रेतायुग में जब श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ का घोडा छोड़ा था तब लव एवं कुश ने उस घोड़े को पकड़ लिया था तथा भरत ,लक्ष्मण एवं शत्रुहन से उन्हें युद्ध करना पड़ा था और उस युद्ध में लवकुश ने उन्हें परास्त भी कर दिया था। कहा जाता है कि यह युद्ध इसी स्थल पर हुआ था। पुराणों में यह उल्लेख भी मिलता है कि लव एवं कुश यहां स्थित सरोवर के निकट विद्याध्ययन व रामायण पाठ के लिए भी आये थे। सिक्खधर्म के चौथे गुरु रामदास जी ने इस सरोवर की खुदाई कराकर इसे विस्तारित किया था किन्तु पुनः इसमें मिटटी आ जाने पर गुरु अर्जुनदेव जी ने अपने कार्यकाल में ही इस सरोवर की सफाई करवाकर इसे स्नान करने योग्य बना दिया था।
अमृतसर नगर की स्थापना का क्रम सन् १५७४ ई से प्रारम्भ माना जाता है क्योंकि गुरु रामदास जी ने यहां पर  स्थित सरोवर के  किनारे डेरा डालने के पश्चात उनके भक्तों की भारी भीड़ एकत्रित होने पर कारसेवा द्वारा  इस सरोवर की खुदाई आरम्भ की गई थी। बाद में गुरु साहिब ने सरोवर के निकट की जमीन भी खरीद ली थी तब भक्तों ने उस सरोवर की खुदाई करके उसे विस्तार रूप प्रदान कर दिया था। प्रारम्भ में यहां गुरु के निवास स्थल के रूप में गुरुमहल का निर्माण करवाया गया था और उसके निकट रामदासपुर नामक बस्ती बसायी गई और कालान्तर में यही बस्ती अमृतसर नगर के रूप में जानी गई। गुरु रामदास जी ने यहां पर एक मंदिर बनवाकर उसे एक प्रधान धार्मिक केंद्र बनाये जाने की योजना बनायी थी किन्तु दो वर्ष बाद ही उनकी आकस्मिक मृत्यु के कारण योजना का कार्यान्वयन सम्भव न हो सका । बाद में उनके पुत्र एवं उत्तराधिकारी गुरु अर्जुनदेव ने १६०१ ई. में इस सरोवर के मध्य में स्वर्ण मंदिर का निर्माण करवाया तथा यहां पर पवित्र गुरुग्रंथ साहिब को विराजमान किया था। पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने बाद में इस मंदिर के कुछ भाग में संगमरमर लगवाया तथा शेष भाग को तांबे से जड़वाकर उस पर सोने की पर्त चढ़वा दी थी। कहा जाता है कि इसकी मढ़वाई में ४५० किलोग्राम सोने का उपयोग किया गया था। तभी से इसे स्वर्णमंदिर के नाम से सम्बोधित किया जाने लगा।
अमृतसर गुरु गोविन्द सिंह जी का निवास स्थल एवं गुरु तेग बहादुर सिंह का जन्म स्थान भी है। यहां स्थित सरोवर की लम्बाई ४२५ फिट एवं चौड़ाई ४९० फिट तथा गहराई १८ फिट है। भक्तजन कारसेवा करके समय समय पर इसकी सफाई करते रहें हैं। हरमिंदर साहिब के चारों ओर चार भव्य द्वार बनवाए गए जो इस तथ्य के प्रतीक हैं कि यहां पर सभी धर्मों के लिए प्रवेश अनुमन्य है। सन् १८६२ ई में अहमदशाह पुरोनी  ने हरमिंदर साहिब को काफी नुकसान पहुँचाया था किन्तु बाद में सिक्खों ने अमृतसर पर कब्जा करके सन् १८६४ ई में जस्सा सिंह अहलूवालिया के नेतृत्व में इसकी नींव रख दी गई थी। गुरु अर्जुनदेव ने सर्वप्रथम हरमिंदर साहिब में ग्रंथि परम्परा की शुरुआत की थी।
दर्शनीय स्थल :-
स्वर्णमंदिर पवित्र सरोवर के मध्य में स्थित है जहां ६० मीटर लम्बे पुल के द्वारा पहुंचा जा सकता है। इस पुल के किनारों को दर्शन ड्योढ़ी कहा जाता है। हरमिंदर साहिब ५२ मीटर ऊंचे व वर्गाकार चबूतरे पर बनवाया गया है। स्वर्णमंदिर तीन मंजिला है और इसकी स्थापत्य कला अद्वितीय है ।इस पवित्र सरोवर के निकट ही दुखभंजन बेरी नामक एक पेड़ स्थित है। इस पवित्र सरोवर में स्नान करके श्रद्धालुगण इस सरोवर की परिक्रमा भी करते हैं तथा ततपश्चात दर्शन ड्योढ़ी होते हुए हरमिंदर साहिब तक पहुंचते हैं। स्वर्ममन्दिर के निकट ही संगमरमर से बना हुआ अकालतख्त स्थित है जिसकी स्थापना सिक्ख धर्म के छठें गुरु गोविन्द सिंह जी ने किया था। यहीं से सिक्खधर्म के उपदेश व हुक्मनामे प्रसारित किये जाते हैं । यहीं पर पूर्व गुरुओं के अस्त्र शस्त्र ,आभूषण व वस्त्रादि सुरक्षित रखे गए हैं। इस प्रकार यह ऐतिहासिक धरोहर व संग्रहालय भी माना जाता है।
स्वर्णमंदिर में गुरु के लंगर का विशेष महत्व है क्योंकि भोजन के समय यहां पर सभी को पंक्तिबद्ध बैठाकर भोजन प्रदान किया जाता है। यह लंगर निःशुल्क है तथा भोजन में दाल ,चावल ,चपातियां व सब्जी सम्मिलित रहती है। लंगर का प्रबन्ध कारसेवा के द्वारा किया जाता है। यहां पर जूते पहनकर अथवा सिर खुला  रखकर आना सख्त मना है। गुरुओं के जन्मदिन पर अथवा सिक्खधर्म के अन्य विशेष त्योहारों या पर्वों पर स्वर्णमंदिर को विधिवत सजाया जाता है। मंदिर के दर्शन के पश्चात लोग यहां स्थित  पैड़ी के चरणामृत अवश्य लेते हैं   क्योंकि ऐसी मान्यता है कि चरणामृत लेने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। स्वर्णमंदिर में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है। मंदिर में प्रवेश के पूर्व पैर धोने के लिए बहते हुए पानी की व्यवस्था यहां पर की गई है। मंदिर परिसर में धूम्रपान का पूर्णतयः निषेध है। यहां पर प्रातःकाल ३ बजे से रात्रि १० बजे तक गुरुग्रन्थ साहिब का अखंडपाठ होता रहता है और रात्रि में १० बजे पाठ समाप्त होने पर गुरुग्रन्थ साहिब को ससम्मान कोठा साहब नामक पवित्र स्थान पर स्थापित कर दिया जाता है। प्रतिदिन हरमिंदर साहिब की सफाई कर इसे दूध से धोया जाता है और विधिवत कपडे से पोंछकर चांदनी बिछायी जाती है। श्रद्धालुगण पूरे दिन यहां पर अपना माथा टेकने पहुँचते रहते हैं।
हरमिंदर साहिब परिसर में अकालतख्त ,दर्शन ड्योढ़ी ,बेरबाबा बुड्ढा साहिब ,थड़ा साहिब ,संतोख सर साहिब ,गुरुद्वारा रामदास ,गुरुद्वारा विवेकसर और गुरुद्वारा शहीद संजका एवं  अन्य धार्मिक स्थल बने हुए हैं। अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में उन शहीदों के स्मारक बने हैं जिन्हें १३ अप्रैल १९१९ ई को हुए नरसंहार में अंग्रेजों ने गोलियों से भून दिया था। अमृतसर स्थित सरोवर के निकट कई अन्य हिन्दू मंदिर भी बने हुए हैं जिनमें दुर्गाजी का मंदिर प्रमुख है। यहीं पर सत्यनारायण जी का मंदिर भी स्थित है। अमृतसर स्थित अन्य महत्वपूर्ण धर्मस्थलों के विवरण निम्नवत हैं :-
तरनतारन :- अमृतसर से २० किलोमीटर की दूरी पर तरनतारन सिक्खधर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल के रूप में स्थापित है जो व्यास और सतलज नदी के संगम स्थल पर स्थित है।यहां पर गुरु अर्जुनदेव जी ने एक मंदिर का निर्माण करवाया था और इस धर्मस्थल पर वैशाख अमावस्या को एक वृहत मेले का आयोजन किया जाता है। 
श्रीज्वालामुखी :--अमृतसर पठानकोट रेलवे मार्ग पर यह मंदिर स्थित है जो इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यह अमृतसर से २१ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और कहा जाता है कि यहां पर सती की जिह्वा गिरी थी जिसके कारण इसे शक्तिपीठ की मान्यता प्रदान की गई थी । यहां पर पृथ्वी से एक ज्वाला निरन्तर निकलती रहती है इसीलिए इसे ज्वालामुखी की संज्ञा दी गई थी। 
चिन्तपूर्णा  देवी:--पंजाब के होशियारपुर जनपद में यह मंदिर स्थित है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए १६० सीढियाँ चढ़नी पड़तीं हैं। यहां पर देवी की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है बल्कि देवी के पिंडी के दर्शन ही श्रद्धालुगण यहां पर करते हैं। 
पंजा साहिब :--यह स्थल हसन अभल रेलवे स्टेशन से ३ किलोमीटर दक्षिण की ओर पेशावर से लाहौर रेलमार्ग पर स्थित है। यहां पर गुरुनानक जी भाई मदराना के साथ में गए थे और पीरवाली से पानी छोड़ने के लिए अनुरोध किया था। जब पिर ने अनुरोध स्वीकार नहीं किया तब गुरुनानक ने उस पहाड़ी की क्रमशः तीन बार यात्रा की और पुनः अनुरोध किया तब पहाड़ी से पानी स्वयं एक झरने के रूप में गिरने लगा था। इस समय यह स्थल पाकिस्तान में है। गुरूद्वारे के पीछे पीरवाली कंधारी पीरपहाड़ी पर स्थित हैं।     

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