Tuesday, June 7, 2016

आत्मनिवेदन

भारत एक धर्म प्रधान देश है। अतः प्राचीनकाल में उत्तरी भारत में स्थित हिमालय के सम्पूर्ण परिक्षेत्र को ऋषियों एवं मुनियों की तपस्थली होने के कारण इसे देवभूमि की संज्ञा भी दी जाती थी। वैसे तो भारतवर्ष में प्रत्येक दो चार किलोमीटर पर कोई न कोई देवालय ,मंदिर ,गुरुद्वारा व चर्च देखने को मिल जाता है किन्तु कुछ ऐसे भी स्थल हैं जिसकी पवित्रता को आत्मसात करते हुए हम उन्हें तीर्थस्थल की संज्ञा देते हैं। धर्म पूर्णतयः आस्था का ही विषय है और आस्था को तर्कों से नियमित नहीं किया जा सकता है। वह स्वतःस्फूर्त होती है।यद्यपि धार्मिक आस्था का सुपरिणाम हमें अपने जीवनकाल में ही देखने को मिल जाता है। धार्मिक व्यक्ति यह मानता है कि ईश्वर की असीम चेतना उसकी चेतना से जुडी हुई है इसीलिए उसमें अतिरिक्त सकारात्मक ऊर्जा और आशावाद का संचरण भी होता है। महाराष्ट्र के प्रसिद्ध सन्त एकनाथ जी का मत है कि हमे एक तीर्थयात्री की तरह जीवन बिताना चाहिए जो प्रातःकाल यात्रा के लिए चलता है और शाम को पुनः अपने घर वापस आ जाता है। तीर्थस्थलों का दर्शन करने से मन और मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है तथा एक विशेष प्रकार के आनन्द की अनुभूति भी होती है। जिस प्रकार शरीर का प्रत्येक अंग ऊर्जा सम्पन्न होते हुए भी समान अनुभूति नहीं कर पाता, केवल मन व ह्रदय ही आध्यात्मिक आनन्द की अनुभूति कर पाता है ,उसी प्रकार भारत के कण कण में भगवान होते हुए भी कुछ ही स्थल ऐसे हैं जहां ईश्वर की साक्षात् अनुभूति हो पाती है। भारतवर्ष में कुछ स्थान ऐसे भी हैं जहां भगवान ने लीलाएं की थी अथवा निवास किया था ,अतः ऐसे स्थानों  पर जाने से विशेष आध्यात्मिक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। इस ब्लॉग/पुस्तक में ऐसे ही तीर्थस्थलों का वर्णन किया गया है जहां जाने से मन को अपूर्व शांति व आनन्द  की प्राप्ति होती है। 
आत्मानुभूति के चरम उद्देश्य मोक्ष जिसे स्थायी शांति भी कहा जाता है, की प्राप्ति के क्रम में ही भारत के चारों कोनो पर चार धामों की स्थापना की गई थी। इनमें से तीन धामों की यात्रा अपेक्षाकृत सरल व सुगम है किन्तु बद्रीनाथ की यात्रा में सीधी चढ़ाई चढ़ने के कारण अपेक्षाकृत किञ्चित कठिनाई अवश्य महशूस की जाती है किन्तु उनके प्रति अटूट विश्वास,आस्था एवं समर्पण के कारण यह यात्रा भी आसान लगने लगती है। 
सम्पूर्ण विश्व में भारत ही ऐसा देश है जो समस्त धर्मों के अनुयायियों का एकल गन्तव्य है। धर्मानुयायी जिस सभ्यता ,विरासत ,अध्यात्म ,दर्शन व प्राकृतिक दृश्यों की मिश्रित अनुभूति को आत्मसात करना चाहते हैं ,वह भारतवर्ष में सहज ही उपलब्ध है। यही कारण है कि भारतवर्ष में पर्यटकों का सबसे बड़ा वर्ग धार्मिक पर्यटकों का है। प्रत्येक धर्म जैसे हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख ,ईसाई ,जैन ,बौद्ध आदि के अपने अपने तीर्थस्थल हैं और उन तीर्थस्थलों का पर्यटन के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है। पर्यटन के क्षेत्र में आध्यात्मिक पर्यटन एक नवीन     अवधारणा है। आध्यात्मिक पर्यटन स्थल का तात्पर्य अपनी आन्तरिक चेतना के विकास के उद्देश्य को प्राप्त करना है तथा धार्मिक पर्यटन का तात्पर्य अपने धर्म के उन प्रतीक स्थलों जहां पूर्व में देवी देवता अथवा सिद्ध पुरुष व संतगण कभी निवास किया करते थे, ऐसे ही धर्मस्थलों का दर्शन कर उनकी अलौकिक शक्तियों को आत्मसात करना माना जाता है। चूँकि आध्यात्मिकता प्राकृतिक एवं सार्वभौम तत्व है और इस तत्व को आत्मसात करने हेतु किसी धर्म से जुड़ा होना अनिवार्य भी नहीं है। अतः ऐसे पर्यटन स्थलों को भी आध्यात्मिक स्थलों की मान्यता दी जा सकती है जो पूर्व में आध्यात्मिक महापुरुषों की कर्मस्थली रही हो। पांडिचेरी का अरविन्द आश्रम ,हरिद्वार का शांतिकुंज आश्रम ,अजमेर के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का दरगाह एवं शिरडी के साईंबाबा आदि ऐसे ही धर्मस्थल हैं जहाँ लोग किसी धर्म से प्रेरित हो करके नहीं जाते हैं बल्कि इन स्थानों की आध्यात्मिक चेतना से प्रभावित होकर यहां स्थित धर्मस्थलों की यात्रा किया  करते हैं। 
भारतवर्ष को ३३ करोड़ देवी देवताओं का निवास स्थल माना जाता है। अतः स्वाभाविक है कि ऐसे देश में धार्मिक स्थलों की संख्या भी अनगिनत ही होगी। यही कारण है कि ऐसे धर्मस्थल  अपनी महत्ता एवं अलौकिक शक्ति के कारण ही कालान्तर में तीर्थस्थल का रूप ले लेते हैं। ऐसे स्थलों पर श्रद्धालुगण अपने समस्त कष्टों को दूर करने एवं सुख समृद्धि प्राप्त करने की मनोकामना के साथ एकत्र होते हैं और ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा को फलीभूत करके पुण्य की प्राप्ति करते हैं और ऐसे ही कतिपय धर्मस्थलों को  तीर्थस्थल की श्रेणी में रखा गया है। हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित चारों धामों, द्वादश ज्योतिर्लिंगों एवं इक्यावन शक्तिपीठों के दृष्टिगत अति महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थस्थलों का चयन करके उन्हें इस पुस्तक में समाविष्ट किया गया है। हिन्दू धर्म के अतिरिक्त मुस्लिमधर्म, र्सिखधर्म,जैनधर्म एवं बौद्धधर्म से सम्बन्धित कतिपय महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों को भी इसमें सम्मिलित किया गया है। ऐसे तिरपन  तीर्थस्थलों के सम्बन्ध में उनका सामान्य परिचय ,भौगोलिक स्थिति ,पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य तथा निकटवर्ती अन्य धार्मिक स्थलों की सम्यक जानकारी सुधी पाठकों के संज्ञान में लायी जा रही है ताकि ऐसे तीर्थस्थलों की यात्रा के पूर्व इन वर्णित तथ्यों को संज्ञान में लेते हुए यदि श्रद्धालुगण वहां पर जाते हैं तो उन्हें उस तीर्थस्थल के बारे में सम्पूर्ण जानकारी पहले से ही रहेगी और पूर्व जानकारी का लाभ उन्हें उस परिक्षेत्र के अन्य दर्शनीय स्थलों के निरीक्षण में सहायक होगा। 
इस पुस्तक में तीर्थस्थलों के सम्बन्ध में प्रामाणिक तथ्यों हेतु तद्सम्बन्धित पुस्तकों एवं इंटरनेट पर उपलब्ध तथ्यों से पुष्टि करने के पश्चात ही उनके बारे में आवश्यक तथ्य प्रस्तुत किये गए हैं। यदि कोई तथ्य असंगत प्रतीत होता हो तो इसके लिए सुधी पाठकों के सुझाव आमन्त्रित करते हुए त्रुटि के लिए क्षमा चाहता हूँ। तीर्थस्थलों के सम्बन्ध में आवश्यक तथ्यों के संकलन में श्री बृजेश कुमार मिश्र ,डॉ राजमणि चतुर्वेदी  श्री रामकुमार,श्री रमेश चन्द्र त्रिपाठी,का पर्याप्त सहयोग प्राप्त हुआ है जिसके लिए मैं उनका हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।महांत जन्मेजय शरण जी महराज,महांत देवेन्द्रप्रसादाचार्य जी महराज,स्वामी आत्मानन्द सरस्वती जी महराज जिनकी प्रेरणा से यह पुस्तक तैयार हो पायी ,के प्रति मैं अपनी कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ।  तीर्थस्थलों की सम्यक जानकारी हेतु चित्रों एवं मानचित्रों का भी इस पुस्तक में समावेश किया गया है। आशा है कि श्रद्धालु पाठकगण इससे अधिक लाभान्वित होंगे। 

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