Friday, March 10, 2017

भारत के प्रमुख तीर्थस्थल

                               भारत के प्रमुख तीर्थस्थल 



                   इस पुस्तक में शक्तिपीठ एवम उनकी अवधारणा तथा तीर्थस्थलों के महात्म्य का 
                    विश्लेषण करते हुए भारतवर्ष में स्थित चारों धामों ,द्वादश ज्योतिर्लिंगों एवम प्रमुख 
                    शक्तिपीठों का सचित्र विस्तृत वर्णन किया गया है। ऐसे महत्वपूर्ण तिरपन तीर्थस्थलों 
                   की भौगोलिक स्थिति,पौराणिक एवम ऐतिहासिक साक्ष्य,अन्य दर्शनीय स्थल,आवागमन 
                    की सुविधाएँ एवम ठहरने आदि की व्यवस्थाओं का विस्तृत वर्णन करते हुए लेखक 
                    ने उसकी सांस्कृतिक ,धार्मिक पृष्ठभूमि को भी प्रकाश में लाया है। इस प्रकार इन 
                   तीर्थस्थलों को राज्यवार प्रस्तुत करते हुए उनका विस्तृत परिचय लेखक द्वारा पाठकों 
                     के सम्मुख रखने का प्रयास किया गया है। 
                   डॉ ० प्रणव पण्ड्या ,प्रमुख अखिल विश्व गायत्री परिवार,एवम कुलाधिपति देवसंस्कृति 
                     विश्वविद्यालय हरिद्वार, महंत जनमेजय शरण जी महराज ,पीठाधीश्वर रसिकपीठ 
                      जानकीघाट बड़ास्थान ,अयोध्या ,बिन्दुगाद्याचार्य महंत देवेंद्रप्रसादाचार्य जी ,अध्यक्ष,श्री                                  रामप्रसाद सेवा ट्रस्ट ,अयोध्या एवम स्वामी आत्मानन्द सरस्वती जी द्वारा अपना स्नेहपूर्ण 
                  आशीर्वचन इस पुस्तक के प्रकाशन हेतु दिया गया है। इस पुस्तक की कुल पृष्ठ संख्या २२८ है। 

                       लोकार्पण ---दिनाँक १९ मार्च २०१७ समय १२ बजे 
                       स्थान ---  हिंदी संस्थान ,हज़रतगंज, लखनऊ 

Saturday, December 31, 2016

      २०१७--------- नव वर्ष अभिनन्दन -------  २०१७  



                              गत  वर्ष को कहें अलविदा ,
                     नव वर्ष को कहें स्वागतम। 
                      मधुमास सा आनन्दमय हो,
                      नव वर्ष का शुभ आगमन। 


                                                  डॉ ० जटाशंकर त्रिपाठी 
                                                                 उपसचिव 
                                                         खाद्य एवं रसद विभाग 
                                                         उत्तर प्रदेश सचिवालय       

Thursday, October 6, 2016

लेखक-परिचय

डॉ जटाशंकर त्रिपाठी "जिज्ञासु "का जन्म ६ अप्रैल १९५८ ई० को उत्तरप्रदेश प्रान्त के प्रतापगढ़ जिलान्तर्गत कुंडा तहसील स्थित ग्राम गोपालापुर में हुआ था। अपने पिता स्व० शिवशंकर त्रिपाठी एवं माता स्व० रामदुलारी ने अपनी अनेकों मनौतियों के फलस्वरूप आठवीं सन्तान के रूप में इनको जन्म दिया था। अतः इनका लालन-पालन एवं प्राथमिक शिक्षा गाँव में ही सम्पन्न हुई। जूनियर हाईस्कूल की परीक्षा बहोरिकपुर विद्यालय से तथा हाईस्कूल एवं इंटर की परीक्षा लखपेड़ा कोटा भवानीगंज से उत्तीर्ण की।स्नातक की पढ़ाई हेतु प्रयाग विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और यहीं से स्नातक,स्नातकोत्तर उत्तीर्ण करके डी०फिल०की उपाधि दर्शनशास्त्र में प्राप्त की।इनका विवाह श्रीमती शांति देवी से हुआ एवम दो पुत्र सञ्जीव एवं राजीव तथा दो पुत्रियां पूर्णिमा एवं ज्योत्स्ना को जन्म दिया किन्तु वर्ष २०१५ में राजीव, जो पूर्वांचल ग्रामीण बैंक में सहायक मैनेजर थे, की आकस्मिक मृत्यु से इन्हें गहरा आघात लगा।विश्वविद्यालय की पढ़ाई के दौरान ही अपनी साहित्यिक अभिरुचि को साकार करते हुए कविताएं,कहानी एवम लेख आदि लिखना आरम्भ कर दिया था तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके प्रकाशन के साथ ही आकाशवाणी केंद्र इलाहाबाद से रेडियो कार्यक्रमों  के प्रसारण में भी सहभागिता करने लगे।वर्ष १९८९ ई ० में लोकसेवा आयोग से सहायक समीक्षा अधिकारी के पद  पर उत्तरप्रदेश सचिवालय में चयनित हुए और सम्प्रति डिप्टी सेक्रेटरी के पद पर कार्यरत हैं।इनका शोध प्रबन्ध "भारतीय समकालीन दर्शन में प्रो० रानडे के योगदान "को एकेडमी ऑफ कम्परेटिव फिलासफी एन्ड रिलिजन ,बेलगांव ,कर्नाटक द्वारा वर्ष १९८२ ई में प्रकाशित किया गया। इनका काव्य संग्रह"श्रृंखला"वर्ष १९८९ एवं "जीवेम शरदः शतम {योगासन,प्रणायाम एवं ध्यान}"वर्ष २०१४ ई में प्रकाशित हुआ। राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान उत्तरप्रदेश द्वारा इन्हें आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी एवं साहित्य गौरव का पुरस्कार एवं सम्मानपत्र प्रदान किया गया। रसिकपीठ जानकीघाट बड़ा स्थान, श्रीअयोध्या के संस्थापक अनंत श्रीविभूषित स्वामी करुणासिन्धु जी महराज,जो इनके पूर्वज थे,के ३४१वीं जन्मतिथि पर उनकी जन्मभूमि गोपालापुर में माह अप्रैल २०१५ को सम्पन्न हुए नवकुंडीय श्रीराम महायज्ञ के अवसर पर उनकी पुण्यस्मृति में एक स्मारिका का प्रकाशन करके अपनी धार्मिक एवं आध्यात्मिक अभिरुचि को मूर्तरूप देते हुए तदुपरान्त"भारत के प्रमुख तीर्थस्थल" एवं "हमारे पूज्य सन्त " नामक दो पुस्तकों की रचना की।      

Thursday, September 22, 2016

आशीर्वचन

अनंत श्री विभूषित कनिष्ठ जगतगुरु शंकराचार्य                                श्री चौमुखनाथ परमधाम आश्रम 
स्वामी आत्मानंद सरस्वती जी महराज                                              ग्राम लखरौनी पथरिया 
राष्ट्रिय अध्यक्ष -विश्व हिन्दू जागरण परिषद                                        जिला- दमोह {म० प्र० }
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष -श्रीराम जन्मभूमि मन्दिर निर्माण न्यास अयोध्या


                                                                    आशीर्वचन 

परम् श्रद्धेय, डॉ जटाशंकर त्रिपाठी  जी ,
                                       आप द्वारा लिखी गयी दोनों पुस्तकों "भारत के प्रमुख तीर्थस्थल "एवं "हमारे पूज्य सन्त"को देखकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई।निश्चित ही आपके द्वारा किया जा रहा आध्यात्मिक एवं वैदिक प्रयास निश्चित ही राष्ट्र के लिए अलौकिक सम्पदा के रूप में संचित होगी। इसी आशा के साथ आपके दीर्घायु होने की शुभकामना सहित। 
                                                                                                 


                                                                                                           स्वामी आत्मानंद सरस्वती 

Monday, September 19, 2016

शुभ कामना सन्देश

डॉ प्रणव पण्डया  एमडी {मेडिसिन }
कुलाधिपति- देव संस्कृति विश्वविद्यालय 
प्रमुख- अखिल विश्व गायत्री परिवार 
निदेशक- ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान 
सम्पादक- अखण्ड ज्योति                                                                                     २५ अगस्त २०१६ 
                                                                                                                     श्री कृष्ण जन्माष्टमी 

                                                        " शुभ कामना सन्देश"
भयध्विधा भागवतास्तीर्थभूताः स्वयं विभो। तीर्थी कुर्वन्ति तीर्थानि स्वान्तः स्थेन गदाभृता। {भागवत }
युधिष्ठिर विदुर से कहते हैं -आप जैसे भक्त स्वयं ही तीर्थ रूप होते हैं। आप लोग अपने हृदय में विराजित भगवान द्वारा तीर्थों को महातीर्थ बनाते हुए विचरण करते हैं। 
तीर्थों के माध्यम से ऋषियों ने भारत जैसे भूभाग में रहने वाले विभिन्न आचार विचार के व्यक्तियों को एक भावनात्मकसूत्र में बाँध रखा है। मानसरोवर से  लेकर कन्याकुमारी तक का क्षेत्र धर्म प्रेमियों को एक ही सांस्कृतिक धरोहर के रूप में दिखता है। गंगोत्री का जल पाकर रामेश्वरम प्रसन्न होते हैं। यह भाव रहते उत्तर दक्षिण की एकात्मता में कुचक्रियों के प्रयास बाधक नहीं बन सकते। 
केरल में पैदा हुए शंकराचार्य ने चार कोनों पर चारधाम बनाये। शरीर छोड़ा उत्तराखण्ड में। दक्षिण के मन्दिरों में उत्तराखण्ड के पुरोहित तथा उत्तराखण्ड में दक्षिण के पुरोहितोँ द्वारा ही पूजा होती थी। यह सूत्र कभी नहीं टूट सकते। बंगाल के श्रीचैतन्य महाप्रभु अपने इष्ट ब्रज और द्वारिका में देखते हैं। उन क्षेत्रों को जागृत तीर्थ बनाकर पूर्व पश्चिम के स्नेह को अक्षुण्य बनाते हैं। भगवान शिवजी देवी सती के अंगों को देश के कोने के हर भाग स्थापित करते हैं और वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना करते हैं। शक्ति साधना के दिव्य प्रवाह से वह सारे क्षेत्र बंधें हैं। अयोध्या के राजा राम दक्षिण भारत के रामेश्वरम की स्थापना करते हैं। यह तीर्थ-परम्परा का पुनर्जीवन है। 
यह जानकर प्रसन्नता है कि परमपूज्य गुरुदेव पँ०श्रीराम शर्मा आचार्य जी एवं परम् वन्दनीया माताजी के प्रति असीम श्रद्धा रखने वाले हमारे अभिन्न डॉ जटाशंकर त्रिपाठी ने "भारत के प्रमुख तीर्थस्थल "ग्रन्थ का निरूपण किया है। इसके अन्तर्गततीर्थस्थलों का महात्म्य,शक्तिपीठ एवं उसकी अवधारणा,मां विंध्यवासिनी देवी,स्वर्ण  मन्दिर,भुवनेश्वर,पद्मनाभमन्दिर,तारापीठ,महालक्ष्मीमन्दिर,मीनाक्षी,कन्याकुमारी,नान्देड़साहिब,नासिक, तिरुपतिबालाजी,चिदम्बरम,मल्लिकार्जुनज्योतिर्लिंग,कोणार्क,श्रीकांचीपुरी,रामेश्वरम,जगन्नाथधाम,शिरडी, द्वारिकाधाम,सोमनाथ,पारसनाथ,पटनासाहिब,बैजनाथधाम,गया,बोधगया,अमरकंटक,ओंकारेश्वर,उज्जैन, श्रीनाथद्वारा,माउन्टआबू,अजमेरशरीफ,पुष्कर,कामाख्यादेवी,कैलाशमानसरोवर,देवप्रयाग,यमुनोत्री,गंगोत्री, नैमिषारण्य,अयोध्या,प्रयाग,काशी,चित्रकूट,वृन्दावन,मथुराऋषिकेश,हरिद्वार,गंगासागर,बद्रीनाथधाम, केदारनाथ,ज्वालाजी,चामुण्डा देवी,अमरनाथ,वैष्णों देवी आदि तीर्थस्थलों की धार्मिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि,भौगोलिक स्थिति,पौराणिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ,मन्दिर एवं घाट,अन्य दर्शनीय स्थलों,ठहरने आदि की व्यवस्था का वर्णन किया गया है। 
"भारत के प्रमुख तीर्थस्थल " में डॉ जटाशंकर त्रिपाठी जी ने हरिद्वार के प्रमुख तीर्थस्थलों में गंगा की गोद,हिमालय की छाया में बसे युग तीर्थ गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज,देव संस्कृति विश्व विद्यालय को सम्मिलित करके पाठकों को युग ऋषि परम् पूज्य गुरुदेव पँ० श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा स्थापित आध्यात्मिक केन्द्र एवं उससे जुड़े नौ दिवसीय एवं एक मासीय प्रशिक्षण से जोड़ा है। निश्चित रूप से पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे। मथुरा से जुड़े अखण्ड ज्योति संस्थान,गायत्री तपोभूमि एवं जन्मभूमि आंवलखेड़ा के सूर्य मन्दिर के बारे में पढ़कर पाठकों को चैतन्य तीर्थ सिद्ध पीठ में जाने का मन करेगा। 
डॉ जटाशंकर त्रिपाठी को भारत के प्रमुख तीर्थस्थल के प्रकाशन हेतु हार्दिक बधाई। उनके मंगलमय जीवन की कामना ऋषियुग्म से करता हूँ। 
                                                                                                    डॉ०  प्रणव पण्डया       

Friday, September 16, 2016

शुभकामना सन्देश

रसिक पीठाधीश्वर महांत जन्मेजय शरण जी महराज                                १५ अगस्त २०१६ 
जानकीघाट,बड़ा स्थान ,श्रीअयोध्या, उ० प्र०                                               स्वतन्त्रता दिवस 
                                       शुभकामना सन्देश 
महापुरुषों एवं सन्तों की लोकयात्रा लोक शिक्षा के लिए होती है। भगवददर्शन एवं तत्वानुसन्धान ये दोनों ही किसी सन्त के आध्यात्मिक जीवन के मुख्य सम्बल माने जाते हैं। स्वरूपज्ञान के विभिन्न स्तरों में रमण करने वाले ऐसे साधनामार्ग के पथिकों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके अथवा सत्संग द्वारा जो भी ऊर्जा प्राप्त होती है,वही कालान्तर में अन्तःप्रकाश बनकर जीवन के कल्याणकारी मार्ग को प्रशस्त करती है। सन्तों के शास्त्र ज्ञान तथा बाह्य प्रतिष्ठा पर विशेष ध्यान न देकर केवल उनके साधनामार्ग एवं उपदेशों को ही आत्मोन्नति की कसौटी मानना चाहिए और उसी का अनुसरण भी करना चाहिए । 
भारत की सन्त-परम्परा की लम्बी श्रृंखला से कतिपय सन्तों के जीवन-दर्शन एवं उनके कृतित्व को "हमारे पूज्य सन्त "नामक इस पुस्तक में संकलित करते हुए डॉ ० जटाशंकर त्रिपाठी  ने एक सराहनीय कार्य किया है। इन्होंने अपनी इस पुस्तक में जिन सन्तों का चित्रण किया है,वे  अपने युग के प्रकाश स्तम्भ थे। सनातन धर्म के संरक्षक जगद्गुरु शंकराचार्य,नाथ सम्प्रदाय के संरक्षक गुरु गोरखनाथ तथा रसिकपीठ के संस्थापक श्री करुणासिन्धु जी महाराज,स्वामी श्री रामप्रसादाचार्य जी,स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी,स्वामी विशुद्धानन्द जी,स्वामी करपात्री जी,श्रीराम शर्मा आचार्य जी आदि सन्तों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए डॉ ० त्रिपाठी ने उन्हें जनसामान्य से सुपरिचित कराने का पुनीत कार्य किया है। अतः एतदर्थ मैं उन्हें अपनी हार्दिक शुभकामना एवं स्नेहाशीष प्रदान करता हूँ। 
                                                                                       रसिक पीठाधीश्वर महांत जन्मेजय शरण 
                                                                                           श्री जानकीघाट  बडा  स्थान 
                                                                                              श्री अयोध्या ,फैजाबाद, उ० प्र० 

आशीर्वचन

बिन्दुगाद्याचार्य महांत देवेंद्रप्रसादाचार्य जी महराज                                              १५ अगस्त २०१६ 
श्री रामप्रसाद सेवा ट्रस्ट ,श्री अयोध्या ,उ० प्र०                                                       स्वतन्त्रता दिवस 
                                                                       आशीर्वचन 

प्राचीनकाल में सम्पूर्ण उत्तर भारत -भूमि को देवभूमि की संज्ञा दी जाती रही है तथा भारतवर्ष के कण कण को तीर्थ भी कहा जाता रहा है क्योंकि हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में ही हिंदुओं के अधिकांश तीर्थस्थल पाए जाते हैं। तीर्थ की परिभाषा "तारयितुम समर्थः इति तीर्थः "अर्थात संसार रूपी भवसागर को पार कराने में जो समर्थ हो ,वही तीर्थ है, दी गयी है। तीर्थों का धार्मिक महत्व तो है ही ,साथ ही साथ सामाजिक सामञ्जस्य स्थापित करने व सत्संग का सुअवसर प्रदान करने में भी तीर्थों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। सामान्यतः सम्पूर्ण भारत में एक ही तीर्थस्थल है क्योंकि यहां पर विष्णु तत्व अर्थात सत्वगुण के उत्सर्जक केंद्र के रूप में चार धाम,शिवतत्व के उत्सर्जक केंद्र के रूप में द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं शक्ति तत्व के उत्सर्जक केंद्र के रूप में इक्यावन शक्तिपीठों के साथ साथ सहस्रों दैवीय ऊर्जा के अन्य केंद्र यहां पर स्थापित किये गये हैं। ये सभी क्रेन्द्र मानव निर्मित नहीं हैं बल्कि दैवीय अथवा प्राकृतिक हैं। बाद में इन्हीं केंद्रों को तीर्थस्थल कहा जाने लगा और इसके दर्शन को ही तीर्थयात्रा। कैलाश से कन्याकुमारी और कामाख्या से कच्छ तक सम्पूर्ण भारतवर्ष की पावन भूमि तीर्थस्थल मानी जाने लगी। तीर्थ -दर्शन से पाप तो नष्ट होते ही हैं ,साथ ही साथ भाग्योदय भी होता है तथा परम् पुरुषार्थ अर्थात मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त हो जाता है। 
ड़ॉ० जटाशंकर त्रिपाठी  ने ऐसे तीर्थों को इस पुस्तक में संकलित करते हुए उनका विस्तृत वर्णन,पौराणिक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करके वास्तव में एक पुनीत कार्य किया है। जो व्यक्ति इन तीर्थों की यात्रा करने में शारीरिक रूप से अथवा अन्य किसी कारणवश असमर्थ हैं,वे इस पुस्तक को पढ़कर कम से कम इन तीर्थों की मानसिक यात्रा तो कर ही सकते हैं और उनके बारे में सम्यक जानकारी भी प्राप्त करके ज्ञानार्जन कर सकते हैं। 
मैं ड़ॉ० जटाशंकर त्रिपाठी  के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए इस पुस्तक के सफल प्रकाशन हेतु अपनी शुभकामना व्यक्त करता हूँ। 
                          सर्वे  भवन्तु  सुखिनः ,सर्वे  सन्तु  निरामया। 
                           सर्वे भद्राणि पश्यन्तु,मा कश्चिद दुःखभाग्भवेत।  
                                                                                        बिन्दुगाद्याचार्य महांत देवेन्द्रप्रसादाचार्य 
                                                                                     अध्यक्ष , श्री रामप्रसाद सेवा ट्रस्ट, अयोध्या