डॉ प्रणव पण्डया एमडी {मेडिसिन }
कुलाधिपति- देव संस्कृति विश्वविद्यालय
प्रमुख- अखिल विश्व गायत्री परिवार
निदेशक- ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान
सम्पादक- अखण्ड ज्योति २५ अगस्त २०१६
श्री कृष्ण जन्माष्टमी
" शुभ कामना सन्देश"
भयध्विधा भागवतास्तीर्थभूताः स्वयं विभो। तीर्थी कुर्वन्ति तीर्थानि स्वान्तः स्थेन गदाभृता। {भागवत }
युधिष्ठिर विदुर से कहते हैं -आप जैसे भक्त स्वयं ही तीर्थ रूप होते हैं। आप लोग अपने हृदय में विराजित भगवान द्वारा तीर्थों को महातीर्थ बनाते हुए विचरण करते हैं।
तीर्थों के माध्यम से ऋषियों ने भारत जैसे भूभाग में रहने वाले विभिन्न आचार विचार के व्यक्तियों को एक भावनात्मकसूत्र में बाँध रखा है। मानसरोवर से लेकर कन्याकुमारी तक का क्षेत्र धर्म प्रेमियों को एक ही सांस्कृतिक धरोहर के रूप में दिखता है। गंगोत्री का जल पाकर रामेश्वरम प्रसन्न होते हैं। यह भाव रहते उत्तर दक्षिण की एकात्मता में कुचक्रियों के प्रयास बाधक नहीं बन सकते।
केरल में पैदा हुए शंकराचार्य ने चार कोनों पर चारधाम बनाये। शरीर छोड़ा उत्तराखण्ड में। दक्षिण के मन्दिरों में उत्तराखण्ड के पुरोहित तथा उत्तराखण्ड में दक्षिण के पुरोहितोँ द्वारा ही पूजा होती थी। यह सूत्र कभी नहीं टूट सकते। बंगाल के श्रीचैतन्य महाप्रभु अपने इष्ट ब्रज और द्वारिका में देखते हैं। उन क्षेत्रों को जागृत तीर्थ बनाकर पूर्व पश्चिम के स्नेह को अक्षुण्य बनाते हैं। भगवान शिवजी देवी सती के अंगों को देश के कोने के हर भाग स्थापित करते हैं और वहाँ शक्तिपीठों की स्थापना करते हैं। शक्ति साधना के दिव्य प्रवाह से वह सारे क्षेत्र बंधें हैं। अयोध्या के राजा राम दक्षिण भारत के रामेश्वरम की स्थापना करते हैं। यह तीर्थ-परम्परा का पुनर्जीवन है।
यह जानकर प्रसन्नता है कि परमपूज्य गुरुदेव पँ०श्रीराम शर्मा आचार्य जी एवं परम् वन्दनीया माताजी के प्रति असीम श्रद्धा रखने वाले हमारे अभिन्न डॉ जटाशंकर त्रिपाठी ने "भारत के प्रमुख तीर्थस्थल "ग्रन्थ का निरूपण किया है। इसके अन्तर्गततीर्थस्थलों का महात्म्य,शक्तिपीठ एवं उसकी अवधारणा,मां विंध्यवासिनी देवी,स्वर्ण मन्दिर,भुवनेश्वर,पद्मनाभमन्दिर,तारापीठ,महालक्ष्मीमन्दिर,मीनाक्षी,कन्याकुमारी,नान्देड़साहिब,नासिक, तिरुपतिबालाजी,चिदम्बरम,मल्लिकार्जुनज्योतिर्लिंग,कोणार्क,श्रीकांचीपुरी,रामेश्वरम,जगन्नाथधाम,शिरडी, द्वारिकाधाम,सोमनाथ,पारसनाथ,पटनासाहिब,बैजनाथधाम,गया,बोधगया,अमरकंटक,ओंकारेश्वर,उज्जैन, श्रीनाथद्वारा,माउन्टआबू,अजमेरशरीफ,पुष्कर,कामाख्यादेवी,कैलाशमानसरोवर,देवप्रयाग,यमुनोत्री,गंगोत्री, नैमिषारण्य,अयोध्या,प्रयाग,काशी,चित्रकूट,वृन्दावन,मथुराऋषिकेश,हरिद्वार,गंगासागर,बद्रीनाथधाम, केदारनाथ,ज्वालाजी,चामुण्डा देवी,अमरनाथ,वैष्णों देवी आदि तीर्थस्थलों की धार्मिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि,भौगोलिक स्थिति,पौराणिक एवं ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ,मन्दिर एवं घाट,अन्य दर्शनीय स्थलों,ठहरने आदि की व्यवस्था का वर्णन किया गया है।
"भारत के प्रमुख तीर्थस्थल " में डॉ जटाशंकर त्रिपाठी जी ने हरिद्वार के प्रमुख तीर्थस्थलों में गंगा की गोद,हिमालय की छाया में बसे युग तीर्थ गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज,देव संस्कृति विश्व विद्यालय को सम्मिलित करके पाठकों को युग ऋषि परम् पूज्य गुरुदेव पँ० श्रीराम शर्मा आचार्य जी द्वारा स्थापित आध्यात्मिक केन्द्र एवं उससे जुड़े नौ दिवसीय एवं एक मासीय प्रशिक्षण से जोड़ा है। निश्चित रूप से पाठकगण इससे लाभान्वित होंगे। मथुरा से जुड़े अखण्ड ज्योति संस्थान,गायत्री तपोभूमि एवं जन्मभूमि आंवलखेड़ा के सूर्य मन्दिर के बारे में पढ़कर पाठकों को चैतन्य तीर्थ सिद्ध पीठ में जाने का मन करेगा।
डॉ जटाशंकर त्रिपाठी को भारत के प्रमुख तीर्थस्थल के प्रकाशन हेतु हार्दिक बधाई। उनके मंगलमय जीवन की कामना ऋषियुग्म से करता हूँ।
डॉ० प्रणव पण्डया