उत्तराखण्ड
शास्त्रों में वर्णित चारधामों यथा बद्रीनाथ,द्वारिकाधाम,जगन्नाथपुरी एवं रामेश्वरम के अतिरिक्त उत्तराखण्ड में चारधाम के अंतर्गत केदारनाथ,गंगोत्री एवम यमुनोत्री की भी गणना की जाती है। उत्तराखण्ड स्थित हिमालय की पहाड़ियों में पूरब से पश्चिम तक अनेकों तीर्थस्थल स्थित हैं जहां प्रतिवर्ष श्रद्धालुगण उनके दर्शन किया करते हैं। यद्यपि उत्तराखण्ड स्थित तीर्थस्थानों की यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को अपेक्षाकृत सँकरे मार्ग,सीधी चढ़ाई ,आकस्मिक वर्षा ,हिमपात एवं फिसलन भरे मार्ग से गुजरना पड़ता है जिसके कारण वृद्धजनों के लिए यह यात्रा कठिनाईपूर्ण एवम जोखिमपूर्ण अवश्य है किन्तु सम्प्रति प्रदेश सरकार द्वारा इस यात्रा के दौरान यात्रियों के लिए दी जाने वाली सुविधाओं में उत्तरोत्तर वृद्धि की जा रही है। हिमालय क्षेत्र का शांतिपूर्ण वातावरण ,प्राकृतिक दृश्य एवं आध्यात्मिक अनुभूति की सघनता के कारण उत्तराखण्ड के तीर्थस्थलों की यात्रा विशेष महत्व रखती है। उत्तराखण्ड के प्रमुख तीर्थस्थलों में गंगोत्रीधाम,यमुनोत्रीधाम,बद्रीनाथ,हेमकुंड साहिब,जागेश्वर,ऋषिकेश हरिद्वार,केदारनाथ,कैलाश मानसरोवर,देवीधुरा आदि विश्व-प्रसिद्ध धर्मस्थल माने जाते हैं। उत्तर प्रदेश से पृथक होकर एक नए राज्य के रूप में उत्तराखण्ड को भारत की देवभूमि कहा जाता है अतः इस प्रदेश में स्थित धर्मस्थलों का पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व सर्वविदित है।
हिमांचल प्रदेश
हिमांचल प्रदेश भारतवर्ष का एक छोटा सा प्रान्त है जो वनसम्पदा एवं प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण है। ऊंची ऊंची पहाड़ियों पर बर्फ से आच्छादित चोटियों के अप्रतिम सौन्दर्य का आनन्द व अनुभति लेने हेतु देश एवम विदेश से हजारों पर्यटक प्रतिवर्ष यहां पर आते रहते हैं। यहां पर शिमला,मनाली,कुल्लू व धर्मशाला जैसे प्रसिद्ध पर्यटन-स्थल यद्यपि इसका अधिकांश भाग वर्षभर हिमाच्छादित रहता है फिरभी पर्यटकों के आवागमन में कोई कमी नहीं आती है। कुल्लू का दशहरा विश्वप्रसिद्ध है जिसमें काफी संख्या में पर्यटक एकत्रित होते है। यहां की अर्थव्यवस्था कृषि एवं बागवानी पर आधारित है.हिमांचल के सेव विश्वभर में प्रसिद्ध है जिनका निर्यात भी वृहद स्तर पर होता है। हिमांचल के निवासी प्रायः धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं। यहां पर प्राचीनकाल से ही लकड़ी के मकान व बनवाये जाने की प्रथा रही है जो यथावत आअज भी यत्र -तत्र देखी जा सकती है। चीड़ एवं ,देवदार के वृक्षों से इमारती लकड़ियों सर्वाधिक उपयोग इसी प्रदेश में होता है। यहां की जलवायु शीतप्रधान है अतः भेड़ों के ऊन से स्वेटर,शाल व टोपी बनाने का उद्योग यहां के लोगों की आय का प्रमुख साधन है।
उत्तरप्रदेश
भौगोलिक क्षेत्रफल एवम जनसँख्या की दृष्टि से उत्तरप्रदेश भारतवर्ष का सबसे बड़ा प्रान्त है। उत्तरांचल के पश्चात ऊतरप्रदेश में ही सर्वाधिक तीर्थस्थल स्थित हैं। भगवान श्रीराम व कृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण तथा गंगा यमुना जैसी पवित्र नदियों का परवाह इसी प्रदेश से होने के कारण भी इसका महत्व बढ़ जाता है। विश्व के सबसे बड़े मेले कुंभमेले का आयोजन प्रयाग में ही किया जाता है। यहां पर हिन्दू,जैन,बौद्ध धर्म का सर्वाधिक विस्तार हुआ है जिसके कारण इन धर्मों के धर्मस्थल यहां पर विशेष आकर्षण के केंद्र माने जाते हैं। .काशी,प्रयाग,कौशाम्बी.अयोध्या ,नैमिषारण्य मथुरा वृंदावन जैसे प्राचीन नगर उत्तरप्रदेश के गौरव माने जाते हैं क्योंकि इनका वर्णन हिन्दू-धर्मशास्त्रों,पुराणों,वेदों,उपनिषदों, महाभारत एवम रामायण में विस्तृत रूप से मिलता है। आगरा ,फतेहपुर,सारनाथ,कुशीनगर आदि नगरों का ऐतिहासिक महत्व सर्वविदित है यहां स्थित तीर्थस्थलों में नैमिषारण्य,अयोध्या,काशी,मथुरा,वृंदावन,प्रयाग,चित्रकूट, विंध्याचल आदि प्रमुख हैं।
जम्मू-कश्मीर
जम्मू-कश्मीर भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपने प्राकृतिक सौन्दर्य एवम वनसम्पदा के कारण पृथ्वी का स्वर्ग कहलाता है। हिमाच्छादित घाटियाँ ,मनोरम झीलें ,घास के हरे भरे मैदान एवम देवदार तथा चिनार के पेड़ों की उपलब्धता के कारण इसकी समृद्धता का आकलन सहज रूप से किया जा सकता है। यही कारण है कि विदेशी पर्यटकों का बहुत बड़ा भाग इस प्रदेश की यात्रा करता है। आतंकवाद की छिटपुट घटनाओं ने यात्रियों की संख्या पर थोड़ा रोक अवश्य लगा दिया है किन्तु धार्मिक पर्यटक अभी भी उस उत्साह से यहां आते रहे हैं।
यहां का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल अमरनाथ जी का धाम है जहाँ स्थित पवित्र गुफा में बाबा भोलेनाथ का दर्शन प्रत्येक वर्ष श्रावण मास में किये जाने की परम्परा आजतक जीवन्त बनी हुई है। यद्यपि यहां पर वर्षभर हिमपात होता रहता है और कड़ाके की ठंडी भी पड़ती है फिरभी पर्यटक यहां आने में थोड़ा भी नहीं हिचकते हैं। जम्मू-कश्मीर का दूसरा धार्मिक स्थल वैष्णों देवी का मन्दिर है जो प्रमुख इक्यावन शक्तिपीठों में से एक है। यहां पर आने वाले दर्शनार्थियों के लिए प्रदेश सरकार एवम भारत सरकार दोनों ने उत्तम व्यवस्था कर रखी है। कठिन चढ़ाई से बचने के लिए अब रेलमार्ग द्वारा सीधे कटरा तक पहुंच जा सकता है। देश के करोड़ों लोगों की आस्था मां वैष्णों देवी का प्रति अटूट है अतः वे इनके दर्शनार्थ बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष यहां आते रहते हैं और अपने मनोरथ की सम्पूर्ति करके अपने को धन्य मानते हैं।
आसाम
भारतवर्ष के उत्तर पूर्व में स्थित आसाम प्रान्त भी वनसम्पदा से भरपूर एवम प्राकृतिक सौन्दर्य का अनुपम केंद्र माना जाता है। इसकी राजधानी गुआहाटी है। इस प्रान्त में मुख्य रूप से ब्रह्मपुत्र नदी बहती हैं और इसी के तट पर गुआहाटी बस हुआ है जो आसाम का सर्वाधिक सुन्दर नगर है। यह नगर जनसँख्या की दृष्टि से अधिक बड़ा नहीं है किन्तु अपनी चाय के बागान के लिए यह विश्व भर में प्रसिद्ध है। .यहां पर भारतवर्ष की ७५ प्रतिशत चाय का उत्पादन होता है यहां पर जनजातियों का बाहुल्य है इसीलिए यहां पर कई भाषाएँ व संस्कृति देखने को मिलती है। उग्रवाद की अनेकों घटनाओं के कारण आजकल यह विशेष चर्चा में अवश्य रहता है किन्तु पर्यटकों का आवागमन वर्षभर बना रहता है। यहां पर छोटे छोटे कई धर्मस्थल व पर्यटक केन्द्र स्थित हैं किन्तु मुख्य रूप से कामाख्या देवी जो इक्यावन शक्तिपीठों में से एक हैं ,के कारण यह विश्व भर में जादू-टोने की सिद्धि प्राप्त करने के केंद्र के रूप में जाना जाता है।
पश्चिम बंगाल
भारत के उत्तर- पश्चिम में स्थित यह प्रान्त भारत के महत्वपूर्ण राज्यों में से एक है। सांस्कृतिक महत्व के इस प्रदेश में गंगासागर,सिद्धपीठ तारापीठ तारकेश्वर महादेव आदि धर्मस्थल स्थित हैं जहां प्रत्येक वर्ष हजारों श्रद्धालुओं का आवागमन होता रहता है। मध्यकालीन भारत के कई धार्मिक सुधर व आंदोलन का यह जन्मदाता माना जाता है। देश विभाजन के समय इसका कुछ भाग पाकिस्तान का अंग बन गया था जो सम्प्रति बंगलादेश के नाम से स्वतन्त्र राष्ट्र बन गया है। यहां के लोगों में मां दुर्गा के प्रति अगाध श्रद्धा देखने को मिलती है और यही कारण है कि यहां पर दुर्गापूजा व दशहरा आदि का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस प्रान्त की राजधानी कलकत्ता है। गंगा नदी गंगोत्री से निकलकर इस प्रदेश के मैदानी क्षेत्र में बहती हुई अंत में समुद्र में मिल जाती हैं। इस स्थान पर प्रतिवर्ष एक बहुत बड़े मेले का आयोजन भी किया जाता है। यहां स्थित दार्जलिंग को एक मनोरम पर्यटन केंद्र के रूप में जाना जाता है। .दार्जलिंग की चाय विश्व- प्रसिद्ध है। दार्जलिंग के सन्निकट कई बौद्धमठ बने हुए हैं जहां लामा जाती के लोगों का बाहुल्य है।
गुजरात
भारतवर्ष के पश्चिमी समुद्रतट पर स्थित गुजरात प्रान्त की गणना एक समृद्धशाली राज्य के रूप में की जाती है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जन्मस्थली पोरबन्दर इसी प्रान्त में स्थित है। भगवान श्रीकृष्ण अपने जीवनकाल के अंतिम समय में यहां पर स्थित द्वारिका आकर द्वारिका नगरी बसाई थी। यद्यपि सम्प्रति उसका अस्तित्व तो नहीं है क्योंकि समुद्र में समा जाने के कारण उसके अवशेष को ही अबतक भारतीय पुरातत्व वैज्ञानिकों द्वारा खोज जा सका है। हिन्दू धर्म का यह प्राचीन एवम प्रसिद्ध केंद्र था इसीलिए यहां पर हजारों की संख्या में मन्दिर दृष्टिगत होते हैं।
भारत का प्रसिद्ध मन्दिर सोमनाथ इसी प्रान्त में स्थित है। इस ऐतिहासिक मन्दिर को कई बार बहरी आक्रमणों का सामना करना पड़ा था और इसकी सम्पत्ति को भरी नुकसान उठाना पड़ा था किन्तु अंतिम बार भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल द्वारा इस मन्दिर का नवनिर्माण करवाया गया था। गुजरात में कई अन्य पर्यटन केंद्र स्थित हैं जहां बड़ी संख्या में देश के एवं विदेशी पर्यटक वर्षभर आते रहते हैं। गुजरात सरकार द्वारा इन पर्यटन केंद्रों का समय समय पर पुनरोद्धार करवाया जाता रहा है और इसे विश्वस्तरीय स्वरूप प्रदान किया जाता रहा है। इस प्रान्त की राजधानी अहमदाबाद को सबसे बड़ा नगर होने का गौरव प्राप्त है। यहां पर कई कपड़े की मीलें व अन्य उद्योग स्थापित हैं जो इसकी समृद्धता के सहायक माने जाते हैं।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र भारतवर्ष के मध्यभाग में पूर्वी समुद्रतट पर स्थित एक समृद्धशाली एवम व्यापारिक प्रान्त है। यह समुद्रतट पर अरब की खाड़ी के सन्निकट होने के कारण प्राचीनकाल से ही जलमार्ग से व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा है। मराठा शासकों द्वारा पोषित इस प्रान्त में छत्रपति शिवाजी जैसे महान योद्धा जिसने मुगल सम्राट औरंगजेब से युद्ध में सामना किया था ,का नाम उल्लेखनीय है। इस प्रान्त की राजधानी मुम्बई भारतवर्ष का अत्यधिक प्राचीन नगर माना जाता है।
महाराष्ट्र में प्रसिद्ध एलिफेंटा ,अजन्ता व एलोरा की गुफाएं स्थित हैं। इन गुफाओं में स्थित विभिन्न मूर्तियां अपनी कलात्मकता ,उन्मुक्त कामक्रीड़ा एवं भव्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। सिक्ख धर्म का प्रमुख धार्मिक केन्द्र नान्देड साहिब इसी प्रान्त में अवस्थित है। बम्बई फिल्म उद्योग का भी प्रमुख केंद्र है। यहां के धार्मिक स्थलों में शिरडी के साईं बाबा,नासिक,पण्ढरपुर,कोल्हापुर,घृणेश्वर महादेव,त्रयम्बकेश्वर व भीमशंकर के मन्दिर मुख्य हैं। नासिक प्राचीनकाल से ही हिन्दू धर्म का प्रधान केंद्र रहा है। बौद्ध धर्म स्थलों में यहां पर स्थित कार्ली की गुफा की गणना की जाती है।
बिहार
बिहार भारतवर्ष का एक ऐसा प्रान्त है जहां धर्म, दर्शन, संस्कृति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हमेशा से ओरवाहित होती रही है। शिक्षा एवं संस्कृति का तो यह एक ऐसा प्रधान केन्द्र था जिसके कारण यहां पर स्थित नालन्दा विव विद्यालय में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी छात्र पढ़ने के लिए आया करते थे।इसकी राजधानी पटना को प्राचीनकाल में पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। यहीं पर स्थित बोधगया में भगवान बुद्ध को सम्यक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी जिसका प्रतीकस्वरूप महाबोधि मन्दिर यहां पर अवलोकनीय है।
बिहार प्रदेश हिन्दू,बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रधान केंद्र के रूप में भी विश्व विख्यात है। यहां पर स्थित गया पौराणिक काल से हिन्दुओं के लिए पितृ- तर्पण एवं श्राद्ध करने तथा एक तीर्थ के रूप में जाना जाता रहा है। भारतवर्ष के सभी प्रान्तों से लोग प्रतिवर्ष यहां पर पितृ- तर्पण हेतु आते रहते हैं। यहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित बोधगया में नालन्दा विश्व विद्यालय व बौद्ध धर्म के कई स्मारक बने हुए हैं।यहीं पर स्थित राजगीर व पावापुरी जैनियों के प्रसिद्ध तीर्थस्थल के रूप में जाने जाते हैं। भगवान महावीर का जन्म बिहार के वैशाली नामक स्थान पर हुआ था। सिक्ख धर्म के भी प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र पटना साहिब यहीं पर अवस्थित है। इसके अतिरिक्त बौद्ध स्थल के अन्य केंद्र लुम्बिनी, वैशाली एवं राजगीर यहीं पर स्थित हैं।
मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश को प्राचीनकाल में मालवा प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यह एक जनजाति बाहुल्य प्रान्त है तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारतवर्ष का सबसे बड़ा राज्य है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी मध्यप्रदेश का महत्व है क्योंकि यह प्राचीनकाल से ही एक समृद्धशाली प्रान्त के रूप में जाना जाता रहा है। मौर्य सम्राट अशोक के कार्यकाल में मालवा एक प्रशासनिक केंद्र था। बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल साँची यहीं पर स्थित है जिसमें सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्तूप व स्तम्भ दर्शनीय हैं।
खजुराहो का प्रसिद्ध मन्दिर मध्यप्रदेश में ही स्थित है जो अपनी कला एवं सौन्दर्यमयी चित्रों एवं काम-क्रीड़ा करते हुई मूर्तियों आदि के लिए विश्व प्रसिद्ध है।उज्जैन जिसे प्राचीनकाल में उज्जैनी अथवा अवन्तिका के नाम से भी जाना जाता था ,हिन्दू- धर्म का प्रमुख केंद्र है जहां पर सिहस्थ कुम्भ मेले का आयोजन होता है। महाकालेश्वर का विश्व प्रसिद्ध मन्दिर उज्जैन में ही स्थित है। महाराजा चन्द्रगुप्त ने यहां पर काफी दिनों तक शासन किया था तथा प्रसिद्ध कवि कालिदास उन्हीं के नवरत्नों में से एक थे।
मध्यप्रदेश में ही ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। इसके अतिरिक्त अमरकण्टक धार्मिक स्थल भी मध्यप्रदेश का प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
राजस्थान
राजस्थान प्रान्त भारतवर्ष का एक प्रमुख धार्मिक एवम पर्यटन केंद्र है। यहां की संस्कृति ,कला एवं साहित्य की अपनी अलग पहचान है। इसका बहुत बड़ा भाग रेगिस्तान होने के बावजूद इसे राजा महाराजाओं की वीरभूमि होने का गौरव प्राप्त है। यहां के प्रमुख आकर्षण यहां स्थित प्राचीन किले,इमारतें व राजमहल हैं। भारत सरकार द्वारा यहां पर प्रत्येक वर्ष थार महोत्सव का भव्य आयोजन किया जाता है जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम द्वारा लोक गायकों व नर्तकियों द्वारा अपनी अपनी कला का प्रदर्शन किया जाता है।
राजस्थान में हिंदुओं का पवित्र धार्मिक- स्थल पुष्कर स्थित है जो भगवान ब्रह्मा जी को समर्पित है तथा एकमात्र ब्रह्मा जी के मन्दिर स्थापित होने का गौरव भी इसे प्राप्त है।पुष्कर में प्रत्येक वर्ष एक वृहद मेले का आयोजन किया जाता है जहां देश एवं विदेश से पर्यटक उपस्थित होते हैं। अन्य धार्मिक स्थलों में श्रीनाथ द्वारा ,अजमेर शरीफ,मौन आबू,जीर्णमाता का मन्दिर ,खाटूश्याम और सालासर हनुमान मन्दिर तथा मेहंदीपुर के बाला जी महराज मन्दिर प्रमुख हैं। वैसे तो राजस्थान में छोटे बड़े कुल मिलाकर एक हजार से अधिक मन्दिर स्थित हैं किन्तु यहां का जैन मन्दिर व माउन्ट आबू विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। ब्रह्म कुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय यहीं पर स्थित है।
झारखण्ड
भारतवर्ष के अठ्ठाइसवें प्रान्त के रूप में झारखण्ड नाम से दिनांक १५ नवम्बर सन २००० को नवीनतम प्रान्त की इसे मान्यता प्राप्त हुई थी। झारखण्ड पहले वन प्रदेश का एक समूह था जिसे बिहार के दक्षिणी भाग को पृथक करके बनाया गया। प्रसिद्ध औद्योगिक नगरी रांची इसकी राजधानी है। अन्य बड़े नगरों में धनबाद,बोकारो व जमशेदपुर आदि प्रमुख नगर हैं। झारखण्ड की सीमायें उत्तर में बिहार,पश्चिम में उत्तरप्रदेश एवं छत्तीसगढ़,दक्षिण में ओडिसा और पूर्व में पश्चिम नेपाल को स्पर्श करती है। यह सम्पूर्ण प्रदेश छोटा नागपुर के पठार पर स्थित है। स्वर्णरेखा यहां की प्रमुख नदी है। यह प्रदेश वन्य जीवों के संरक्षण के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में विभिन्न भाषाओँ,संस्कृतियोँ एवं धर्मों का संगम दृष्टिगत होता है। द्रविण,आर्य एवं आस्ट्रो- एशियाई तत्वों का मिला जुला रूप यहां पर देखने को मिलता है। इसके प्रारम्भिक इतिहास में राजवंशों की भूमिका प्रभावी रही है क्योंकि उड़ीसा के राजा जयसिंहदेव इसे अपना क्षेत्र मानते थे। कबीलाई सरदार के रूप में मुंडा का नाम आज भी यहां पर जीवन्त है।
यहां के प्रमुख धार्मिक स्थलों में देवघर बैजनाथ धाम प्रसिद्ध है जहां पर द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गयी थी। पर्यटक केंद्रों में हुँडरु जलप्रपात ,दलमा अभयारण्य ,बेतला राष्ट्रीय उद्यान आदि मुख्य हैं। यहां पर जैन धर्म- स्थल पारसनाथ स्थित है जो श्री समेद शिखर के नाम से भी जाना जाता है।
तमिलनाडु
भारतवर्ष के दक्षिणी भाग में स्थित तमिलनाडु प्रान्त धर्म,संस्कृति एवं कला का अनुपम केंद्र माना जाता है। यहां पर हिंदुओं का बाहुल्य है और धर्म के प्रति बहुत अधिक आस्था के कारण यहां पर लगभग एक हजार मन्दिर दिखाई पड़ते हैं। यहां की प्राचीन सभ्यता द्रविण है इसीलिए द्रविण कला का विकास यहां पर उत्तरोत्तर होता रहा है। यहां के प्रमुख नगरों में कांचीपुरम,तंजौर,मदुरै आदि प्रमुख हैं। ये सभी प्राचीन नगर हैं क्योंकि हजारों वर्षों पूर्व निर्मित मन्दिर अथवा उनके अवशेष आज भी यहां पर देखने को मिलते हैं। कांचीपुरम व मदुरै नगर की गणना अत्यंत साफ सुथरे नगरों में की जाती है। भारतवर्ष के दक्षिणी तट पर बसे हुए कन्याकुमारी यहां का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। यहां का सूर्योदय व सूर्यास्त दोनों का दृश्य अत्यन्त मनमोहक होता है जिसे देखने के लिए देश एवं विदेश से पर्यटक वर्षभर यहां पर आते रहते हैं। स्वामी विवेकानन्द जिस शिला पर बैठकर योगसाधना की थी ,वह शिला विवेकानंद के नाम से जनि जाती है तथा यहां पर बना हुआ भव्य स्मारक भी विवेकानन्द के नाम से जाना जाता है।
उड़ीसा
उड़ीसा को प्राचीनकाल में कलिंगदेश के नाम से जाना जाता था। सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध के पश्चात ही बौद्ध धर्म अपनाये जाने के कारण भी इसका ऐतिहासिक महत्व है। यह धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र होने के साथ साथ कला, साहित्य,संगीत का भी प्रमुख केंद्र रहा है। जगन्नाथपुरी जो भारतवर्ष के चारधामों में से प्रमुख धाम है ,इसी प्रान्त में स्थित है। यहां स्थित पूरी नगर में भगवान जगन्नाथ का प्रसिद्ध मन्दिर अवस्थित है जहां भारत के समस्त प्रान्तों से श्रद्धालुगण इनके दर्शनार्थ आते रहते हैं। समुद्रतट पर बसे होने के कारण इसकी छटा को देखने हेतु भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी पर्यटक यहां पर आते रहते हैं। इस प्रान्त के निवासियों की धर्म के प्रति विशेष आस्था देखने को मिलती है। यही कारण है कि यहां पर सम्पूर्ण प्रान्त में अनेकों मन्दिर व धर्मस्थलों का निर्माण करवाया गया है।
यहां के प्रमुख धार्मिक स्थलों में जगन्नाथपुरी,कोणार्क,भुवनेश्वर,उदयगिरि और खण्डगिरि प्रमुख हैं। कोणार्क अपने सूर्य मन्दिर के लिए विश्व विख्यात है तो भुवनेश्वर जो इस प्रान्त की राजधानी भी है ,को उत्कल काशी के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां पर कोटि शिवलिंगों की स्थापना की गयी है। उदयगिरि और खण्डगिरि जैन धर्म स्थल के रूप में जाने जाते हैं। ये दोनों अलग अलग चट्टानें हैं जिनकी गुफाओं में जैन मन्दिर का निर्माण हुआ है। अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए ये स्थान विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।
आन्ध्रप्रदेश
भारतवर्ष के दक्षिणी भाग में स्थित आन्ध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद है। यहां पर मुख्यतः तेलगू भाषा बोली जाती है। सम्राट अशोक के कार्यकाल में यह बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र था और पर चालुक्य एवम चोल राजाओं ने लम्बे समय तक शासन किया था। मुगलकाल में बनवाई गयी कतिपय ऐतिहासिक इमारतों में चारमीनार विश्व- प्रसिद्ध इमारत मानी जाती है। सलारगंज का प्रसिद्ध संग्रहालय इसी प्रान्त में स्थित है जिसमें बहुमूल्य कलाकृतियाँ सुरक्षित रखी गयीं हैं।
यहां के प्रमुख धर्मस्थलों में तिरुपति बालाजी का मन्दिर विश्व प्रसिद्ध है जिसे देखने हेतु देश विदेश के श्रद्धालु एवं पर्यटक वर्षभर यहां पर आते रहते हैं। तिरुपति बालाजी हिदुओं का प्रमुख धार्मिक स्थल है जिसे भगवान विष्णु का वैकुण्ठधाम भी कहा जाता है।
केरल
भारतवर्ष के सुदूर दक्षिणी भाग में स्थित केरल प्रान्त अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। सन १९५६ ई ० में ट्रावनकोर ,कोचीन एवं मालावार को मिलाकर इस राज्य का गठन किया गया था। मलयालम यहां की मुख्य भाषा है जिसका जन्म तमिल से माना जाता है। समुद्रतट पर स्थित होने के कारण यह प्राचीनकाल से समुद्री व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा है। केरल के मसाले विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां के जनजीवन पर पुर्तगाली, अरबी एवं चीनी सभ्यता का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ता है। यहां पर स्थित कोवलम विदेशी पर्यटकों के विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस प्रान्त में हिन्दू,मुस्लिम,ईसाई सभी का प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। यहां के निवासियों का प्रमुख उद्योग मछली पकड़ना है।
यहां के प्रमुख धार्मिक स्थल पद्मनाभ मन्दिर, श्रृंगेरीपीठ, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, गुरुवायूर आदि हैं।श्रृंगेरी पीठ की स्थापना आदि शंकराचार्य द्वारा लगभग ५०० ई ० पू ० में की गयी थी।
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र भारतवर्ष के मध्यभाग में पूर्वी समुद्रतट पर स्थित एक समृद्धशाली एवम व्यापारिक प्रान्त है। यह समुद्रतट पर अरब की खाड़ी के सन्निकट होने के कारण प्राचीनकाल से ही जलमार्ग से व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा है। मराठा शासकों द्वारा पोषित इस प्रान्त में छत्रपति शिवाजी जैसे महान योद्धा जिसने मुगल सम्राट औरंगजेब से युद्ध में सामना किया था ,का नाम उल्लेखनीय है। इस प्रान्त की राजधानी मुम्बई भारतवर्ष का अत्यधिक प्राचीन नगर माना जाता है।
महाराष्ट्र में प्रसिद्ध एलिफेंटा ,अजन्ता व एलोरा की गुफाएं स्थित हैं। इन गुफाओं में स्थित विभिन्न मूर्तियां अपनी कलात्मकता ,उन्मुक्त कामक्रीड़ा एवं भव्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। सिक्ख धर्म का प्रमुख धार्मिक केन्द्र नान्देड साहिब इसी प्रान्त में अवस्थित है। बम्बई फिल्म उद्योग का भी प्रमुख केंद्र है। यहां के धार्मिक स्थलों में शिरडी के साईं बाबा,नासिक,पण्ढरपुर,कोल्हापुर,घृणेश्वर महादेव,त्रयम्बकेश्वर व भीमशंकर के मन्दिर मुख्य हैं। नासिक प्राचीनकाल से ही हिन्दू धर्म का प्रधान केंद्र रहा है। बौद्ध धर्म स्थलों में यहां पर स्थित कार्ली की गुफा की गणना की जाती है।
बिहार
बिहार भारतवर्ष का एक ऐसा प्रान्त है जहां धर्म, दर्शन, संस्कृति एवं ज्ञान की त्रिवेणी हमेशा से ओरवाहित होती रही है। शिक्षा एवं संस्कृति का तो यह एक ऐसा प्रधान केन्द्र था जिसके कारण यहां पर स्थित नालन्दा विव विद्यालय में देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी छात्र पढ़ने के लिए आया करते थे।इसकी राजधानी पटना को प्राचीनकाल में पाटलिपुत्र के नाम से जाना जाता था। यहीं पर स्थित बोधगया में भगवान बुद्ध को सम्यक ज्ञान की प्राप्ति हुई थी जिसका प्रतीकस्वरूप महाबोधि मन्दिर यहां पर अवलोकनीय है।
बिहार प्रदेश हिन्दू,बौद्ध एवं जैन धर्म के प्रधान केंद्र के रूप में भी विश्व विख्यात है। यहां पर स्थित गया पौराणिक काल से हिन्दुओं के लिए पितृ- तर्पण एवं श्राद्ध करने तथा एक तीर्थ के रूप में जाना जाता रहा है। भारतवर्ष के सभी प्रान्तों से लोग प्रतिवर्ष यहां पर पितृ- तर्पण हेतु आते रहते हैं। यहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित बोधगया में नालन्दा विश्व विद्यालय व बौद्ध धर्म के कई स्मारक बने हुए हैं।यहीं पर स्थित राजगीर व पावापुरी जैनियों के प्रसिद्ध तीर्थस्थल के रूप में जाने जाते हैं। भगवान महावीर का जन्म बिहार के वैशाली नामक स्थान पर हुआ था। सिक्ख धर्म के भी प्रसिद्ध धार्मिक केंद्र पटना साहिब यहीं पर अवस्थित है। इसके अतिरिक्त बौद्ध स्थल के अन्य केंद्र लुम्बिनी, वैशाली एवं राजगीर यहीं पर स्थित हैं।
मध्यप्रदेश
मध्यप्रदेश को प्राचीनकाल में मालवा प्रदेश के नाम से जाना जाता था। यह एक जनजाति बाहुल्य प्रान्त है तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारतवर्ष का सबसे बड़ा राज्य है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी मध्यप्रदेश का महत्व है क्योंकि यह प्राचीनकाल से ही एक समृद्धशाली प्रान्त के रूप में जाना जाता रहा है। मौर्य सम्राट अशोक के कार्यकाल में मालवा एक प्रशासनिक केंद्र था। बौद्ध धर्म का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल साँची यहीं पर स्थित है जिसमें सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्तूप व स्तम्भ दर्शनीय हैं।
खजुराहो का प्रसिद्ध मन्दिर मध्यप्रदेश में ही स्थित है जो अपनी कला एवं सौन्दर्यमयी चित्रों एवं काम-क्रीड़ा करते हुई मूर्तियों आदि के लिए विश्व प्रसिद्ध है।उज्जैन जिसे प्राचीनकाल में उज्जैनी अथवा अवन्तिका के नाम से भी जाना जाता था ,हिन्दू- धर्म का प्रमुख केंद्र है जहां पर सिहस्थ कुम्भ मेले का आयोजन होता है। महाकालेश्वर का विश्व प्रसिद्ध मन्दिर उज्जैन में ही स्थित है। महाराजा चन्द्रगुप्त ने यहां पर काफी दिनों तक शासन किया था तथा प्रसिद्ध कवि कालिदास उन्हीं के नवरत्नों में से एक थे।
मध्यप्रदेश में ही ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। इसके अतिरिक्त अमरकण्टक धार्मिक स्थल भी मध्यप्रदेश का प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।
राजस्थान
राजस्थान प्रान्त भारतवर्ष का एक प्रमुख धार्मिक एवम पर्यटन केंद्र है। यहां की संस्कृति ,कला एवं साहित्य की अपनी अलग पहचान है। इसका बहुत बड़ा भाग रेगिस्तान होने के बावजूद इसे राजा महाराजाओं की वीरभूमि होने का गौरव प्राप्त है। यहां के प्रमुख आकर्षण यहां स्थित प्राचीन किले,इमारतें व राजमहल हैं। भारत सरकार द्वारा यहां पर प्रत्येक वर्ष थार महोत्सव का भव्य आयोजन किया जाता है जिसमें सांस्कृतिक कार्यक्रम द्वारा लोक गायकों व नर्तकियों द्वारा अपनी अपनी कला का प्रदर्शन किया जाता है।
राजस्थान में हिंदुओं का पवित्र धार्मिक- स्थल पुष्कर स्थित है जो भगवान ब्रह्मा जी को समर्पित है तथा एकमात्र ब्रह्मा जी के मन्दिर स्थापित होने का गौरव भी इसे प्राप्त है।पुष्कर में प्रत्येक वर्ष एक वृहद मेले का आयोजन किया जाता है जहां देश एवं विदेश से पर्यटक उपस्थित होते हैं। अन्य धार्मिक स्थलों में श्रीनाथ द्वारा ,अजमेर शरीफ,मौन आबू,जीर्णमाता का मन्दिर ,खाटूश्याम और सालासर हनुमान मन्दिर तथा मेहंदीपुर के बाला जी महराज मन्दिर प्रमुख हैं। वैसे तो राजस्थान में छोटे बड़े कुल मिलाकर एक हजार से अधिक मन्दिर स्थित हैं किन्तु यहां का जैन मन्दिर व माउन्ट आबू विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। ब्रह्म कुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय यहीं पर स्थित है।
झारखण्ड
भारतवर्ष के अठ्ठाइसवें प्रान्त के रूप में झारखण्ड नाम से दिनांक १५ नवम्बर सन २००० को नवीनतम प्रान्त की इसे मान्यता प्राप्त हुई थी। झारखण्ड पहले वन प्रदेश का एक समूह था जिसे बिहार के दक्षिणी भाग को पृथक करके बनाया गया। प्रसिद्ध औद्योगिक नगरी रांची इसकी राजधानी है। अन्य बड़े नगरों में धनबाद,बोकारो व जमशेदपुर आदि प्रमुख नगर हैं। झारखण्ड की सीमायें उत्तर में बिहार,पश्चिम में उत्तरप्रदेश एवं छत्तीसगढ़,दक्षिण में ओडिसा और पूर्व में पश्चिम नेपाल को स्पर्श करती है। यह सम्पूर्ण प्रदेश छोटा नागपुर के पठार पर स्थित है। स्वर्णरेखा यहां की प्रमुख नदी है। यह प्रदेश वन्य जीवों के संरक्षण के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। इस प्रदेश में विभिन्न भाषाओँ,संस्कृतियोँ एवं धर्मों का संगम दृष्टिगत होता है। द्रविण,आर्य एवं आस्ट्रो- एशियाई तत्वों का मिला जुला रूप यहां पर देखने को मिलता है। इसके प्रारम्भिक इतिहास में राजवंशों की भूमिका प्रभावी रही है क्योंकि उड़ीसा के राजा जयसिंहदेव इसे अपना क्षेत्र मानते थे। कबीलाई सरदार के रूप में मुंडा का नाम आज भी यहां पर जीवन्त है।
यहां के प्रमुख धार्मिक स्थलों में देवघर बैजनाथ धाम प्रसिद्ध है जहां पर द्वादश ज्योतिर्लिंग की स्थापना की गयी थी। पर्यटक केंद्रों में हुँडरु जलप्रपात ,दलमा अभयारण्य ,बेतला राष्ट्रीय उद्यान आदि मुख्य हैं। यहां पर जैन धर्म- स्थल पारसनाथ स्थित है जो श्री समेद शिखर के नाम से भी जाना जाता है।
तमिलनाडु
भारतवर्ष के दक्षिणी भाग में स्थित तमिलनाडु प्रान्त धर्म,संस्कृति एवं कला का अनुपम केंद्र माना जाता है। यहां पर हिंदुओं का बाहुल्य है और धर्म के प्रति बहुत अधिक आस्था के कारण यहां पर लगभग एक हजार मन्दिर दिखाई पड़ते हैं। यहां की प्राचीन सभ्यता द्रविण है इसीलिए द्रविण कला का विकास यहां पर उत्तरोत्तर होता रहा है। यहां के प्रमुख नगरों में कांचीपुरम,तंजौर,मदुरै आदि प्रमुख हैं। ये सभी प्राचीन नगर हैं क्योंकि हजारों वर्षों पूर्व निर्मित मन्दिर अथवा उनके अवशेष आज भी यहां पर देखने को मिलते हैं। कांचीपुरम व मदुरै नगर की गणना अत्यंत साफ सुथरे नगरों में की जाती है। भारतवर्ष के दक्षिणी तट पर बसे हुए कन्याकुमारी यहां का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है। यहां का सूर्योदय व सूर्यास्त दोनों का दृश्य अत्यन्त मनमोहक होता है जिसे देखने के लिए देश एवं विदेश से पर्यटक वर्षभर यहां पर आते रहते हैं। स्वामी विवेकानन्द जिस शिला पर बैठकर योगसाधना की थी ,वह शिला विवेकानंद के नाम से जनि जाती है तथा यहां पर बना हुआ भव्य स्मारक भी विवेकानन्द के नाम से जाना जाता है।
उड़ीसा
उड़ीसा को प्राचीनकाल में कलिंगदेश के नाम से जाना जाता था। सम्राट अशोक के कलिंग युद्ध के पश्चात ही बौद्ध धर्म अपनाये जाने के कारण भी इसका ऐतिहासिक महत्व है। यह धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र होने के साथ साथ कला, साहित्य,संगीत का भी प्रमुख केंद्र रहा है। जगन्नाथपुरी जो भारतवर्ष के चारधामों में से प्रमुख धाम है ,इसी प्रान्त में स्थित है। यहां स्थित पूरी नगर में भगवान जगन्नाथ का प्रसिद्ध मन्दिर अवस्थित है जहां भारत के समस्त प्रान्तों से श्रद्धालुगण इनके दर्शनार्थ आते रहते हैं। समुद्रतट पर बसे होने के कारण इसकी छटा को देखने हेतु भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी पर्यटक यहां पर आते रहते हैं। इस प्रान्त के निवासियों की धर्म के प्रति विशेष आस्था देखने को मिलती है। यही कारण है कि यहां पर सम्पूर्ण प्रान्त में अनेकों मन्दिर व धर्मस्थलों का निर्माण करवाया गया है।
यहां के प्रमुख धार्मिक स्थलों में जगन्नाथपुरी,कोणार्क,भुवनेश्वर,उदयगिरि और खण्डगिरि प्रमुख हैं। कोणार्क अपने सूर्य मन्दिर के लिए विश्व विख्यात है तो भुवनेश्वर जो इस प्रान्त की राजधानी भी है ,को उत्कल काशी के नाम से जाना जाता है क्योंकि यहां पर कोटि शिवलिंगों की स्थापना की गयी है। उदयगिरि और खण्डगिरि जैन धर्म स्थल के रूप में जाने जाते हैं। ये दोनों अलग अलग चट्टानें हैं जिनकी गुफाओं में जैन मन्दिर का निर्माण हुआ है। अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए ये स्थान विश्व भर में प्रसिद्ध हैं।
आन्ध्रप्रदेश
भारतवर्ष के दक्षिणी भाग में स्थित आन्ध्रप्रदेश की राजधानी हैदराबाद है। यहां पर मुख्यतः तेलगू भाषा बोली जाती है। सम्राट अशोक के कार्यकाल में यह बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र था और पर चालुक्य एवम चोल राजाओं ने लम्बे समय तक शासन किया था। मुगलकाल में बनवाई गयी कतिपय ऐतिहासिक इमारतों में चारमीनार विश्व- प्रसिद्ध इमारत मानी जाती है। सलारगंज का प्रसिद्ध संग्रहालय इसी प्रान्त में स्थित है जिसमें बहुमूल्य कलाकृतियाँ सुरक्षित रखी गयीं हैं।
यहां के प्रमुख धर्मस्थलों में तिरुपति बालाजी का मन्दिर विश्व प्रसिद्ध है जिसे देखने हेतु देश विदेश के श्रद्धालु एवं पर्यटक वर्षभर यहां पर आते रहते हैं। तिरुपति बालाजी हिदुओं का प्रमुख धार्मिक स्थल है जिसे भगवान विष्णु का वैकुण्ठधाम भी कहा जाता है।
केरल
भारतवर्ष के सुदूर दक्षिणी भाग में स्थित केरल प्रान्त अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण विशेष रूप से प्रसिद्ध है। सन १९५६ ई ० में ट्रावनकोर ,कोचीन एवं मालावार को मिलाकर इस राज्य का गठन किया गया था। मलयालम यहां की मुख्य भाषा है जिसका जन्म तमिल से माना जाता है। समुद्रतट पर स्थित होने के कारण यह प्राचीनकाल से समुद्री व्यापार का प्रमुख केंद्र रहा है। केरल के मसाले विश्व प्रसिद्ध हैं। यहां के जनजीवन पर पुर्तगाली, अरबी एवं चीनी सभ्यता का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखलाई पड़ता है। यहां पर स्थित कोवलम विदेशी पर्यटकों के विशेष आकर्षण का केंद्र है। इस प्रान्त में हिन्दू,मुस्लिम,ईसाई सभी का प्रतिनिधित्व देखने को मिलता है। यहां के निवासियों का प्रमुख उद्योग मछली पकड़ना है।
यहां के प्रमुख धार्मिक स्थल पद्मनाभ मन्दिर, श्रृंगेरीपीठ, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, गुरुवायूर आदि हैं।श्रृंगेरी पीठ की स्थापना आदि शंकराचार्य द्वारा लगभग ५०० ई ० पू ० में की गयी थी।